Laga Chunari me Daag - 12 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(१२)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१२)

पप्पू गोम्स के साथ काम करते हुए ,मुझे महज़बीन की याद आई और मैं उससे मिलने पहुँचा तो मुझे पता चला कि उसका निकाह हो चुका है,जैसे तैसे मैं उसके घर का पता लगाते हुए वहाँ पहुँचा तो तब उस समय उसके घर में कोई नहीं था,उसने मुझे बड़े प्यार से खाना खिलाया और फिर मुझसे बोली....
"तुमने ऐसा क्यों किया था,वो खून तो मैंने किया था,फिर तुमने उसका इल्जाम अपने सिर क्यों लिया"?
"मैंने तुमसे मौहब्बत की थी महज़बीन! इसलिए तुम्हें बचाना मेरा फर्ज था",मैंने कहा.....
"लेकिन वो गलत था,तुमने अपनी जिन्दगी मेरे लिए बर्बाद क्यों कर दी",महज़बीन बोली...
"बर्बाद नहीं महज़बीन! सँवार दी",मैंने कहा....
"तुम मुझसे इतनी मौहब्बत करते थे",ये पूछते वक्त महज़बीन की आँखों में आँसू थे....
"हाँ! अब भी करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा,तुम मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत हो",मैंने उससे कहा...
"काश! हम दोनों जुदा ना होते",महज़बीन बोली...
"महज़बीन! हम दोनों का मिलना शायद हम दोनों की किस्मत में नहीं लिखा था,लेकिन फिर भी हमारी मोहब्बत हमेशा यूँ ही बरकरार रहेगी,जरूरी था दिलों का मिलना जो हमेशा के लिए मिल चुके हैं,मौहब्बत अगर मुकम्मिल हो जाए तो फिर वो मौहब्बत नहीं रहती,अधूरी मौहब्बत हमेशा दिलों में कायम रहती है,इसलिए जो हुआ उसका ग़म करने से कोई फायदा नहीं",मैंने उससे कहा....
"शायद तुम ठीक कहते हो",महज़बीन बोली...
"तो अब मैं चलूँ",मैंने कहा...
"अब कब मुलाकात होगी",उसने पूछा...
"कभी नहीं",मैंने कहा...
"लेकिन क्यों?"वो बोली...
"क्योंकि? अब तुम्हारा निकाह हो चुका है और तुम्हारे चेहरे से लगता है कि तुम्हारे शौहर तुम्हारी बहुत इज्जत करते हैं,तुम्हें बहुत प्यार करते हैं,इसलिए सभी की भलाई इसी में हैं कि अब हम कभी ना मिलें",मैंने कहा...
"तो तुम अब कभी नहीं मिलोगे",वो दुखी होकर बोली...
"नहीं!"मैंने कहा....
"ठीक है,लेकिन आखिरी बार अपने सीने से भी नहीं लगाओगे",
और ऐसा कहकर वो मेरे सीने से लगकर फूट फूटकर रो पड़ी,वो रोई तो मैं भी कोई पत्थरदिल नहीं था, मैं भी रो पड़ा,हम दोनों जब जी भर के रो चुके तो,मैंने उससे कहा....
"एतराज ना हो तो थोड़े कबाब और पराँठे बाँध कर दे दो,बहुत लजीज कबाब बनाएं थे तुमने हमेशा की तरह"
"अच्छा जी! तो तुम यहाँ खाना खाने आए थे मुझसे मिलने नहीं",महज़बीन बोली...
"ऐसा ही कुछ समझ लो",मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा...
"मैं तुम्हारा खून कर दूँगीं",महज़बीन गुस्से से बोली...
"मरे हुए को और क्या मारोगी महज़बीन!"मैंने दुखी होकर कहा....
और फिर मुझे दुखी देखकर वो फिर से मेरे गले लगकर रोने लगी और मुझसे बोली...
"मेरी वजह से तुम्हारी जिन्दगी बर्बाद हो गई शौकत!"
"नहीं! पगली! ऐसा नहीं कहते,अब अपने आँसू पोछो और खाना बाँध दो,तुम ऐसा करोगी तो फिर मैं जा नहीं पाऊँगा",मैंने उससे कहा...
फिर वो मुझसे अलग हुई और उसने मेरे लिए खाना बाँधा,ना जाने क्या क्या बाँध दिया उसने उस रोज़,जो जो था उसके घर में उस दिन उसने सब बाँध दिया मेरे लिए,कुछ रुपए भी दिए, मैंने रुपए लेने से इनकार किया तो उसने अपनी कसम दे दी,फिर उस दिन उसने मुझे रोते हुए रुखसत किया और उस दिन के बाद मैं कभी भी उससे मिलने नहीं गया,अगर मेरी मजबूरी ना होती तो मैं कभी तुम्हें उसके घर ना ले जाता प्रत्यन्चा !
और ऐसा कहकर शौकत चुप हो गया,तब प्रत्यन्चा बोली...
"आप दोनों का प्यार बहुत पवित्र है शौकत भाई!"
"जिन्दगी में जो हमारे साथ होता है उसे हम नहीं नियति लिखती है,इसलिए जो जैसा हो रहा है उसे खुदा की मर्जी समझकर कुबूल कर लेना चाहिए",शौकत बोला...
"अब मुझे भी यही लगने लगा है शौकत भाई!",प्रत्यन्चा बोली...
"इसलिए ज्यादा मत सोचो,जो होगा सो देखा जाएगा"शौकत बोला....
दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी प्लेटफार्म का सिगनल हो गया जो कि ये बता रहा था कि रेलगाड़ी आने वाली है और फिर कुछ ही देर में रेलगाड़ी प्लेटफार्म पर आ भी गई और दोनों उसमें जा बैठे,वे कम्पार्टमेंट में पहुँचे तो वहाँ और भी यात्री थे,भीड़ कम थी इसलिए उन दोनों को बैठने की जगह भी मिल गई,दोनों बैठकर वहाँ मौजूद यात्रियों की गतिविधियों को देखने लगे,रेलगाड़ी को चलते हुए अब लगभग एकाध घण्टे से ज्यादा बीत चुका था,प्रत्यन्चा ने खिड़की से बाहर झाँका तो अब रात गहरी होने लगी थी,शायद रात के करीब आठ बजने को थे....
इसके बाद रेलगाड़ी किसी स्टेशन पर रुकी तो लोगों ने देखा कि छोटा सा स्टेशन है,एक दुकान पर गरमागरम पूरियाँ और कचौरियांँ तली जा रहीं हैं,जिसके पास खाने को खाना नहीं था,तो वे पत्ते के दोनो में पूरियाँ,कचौरियांँ और आलू की सब्जी खरीद लाए,फिर रेलगाड़ी में आकर खाने लगे,उन लोगों ने प्रत्यन्चा और शौकत से भी खाने को कहा तो शौकत बोला कि हमारे पास खाना है,लोगों के देखा देखी प्रत्यन्चा ने भी पूरी और अचार निकाला,इसके बाद दोनों खाने लगे,खाने के बाद दोनों ने सुराही से कुल्हड़ में पानी निकालकर पिया और फिर वे यात्रियों के क्रियाकलापों को देखने लगे,तभी वहाँ एक साहब अखबार पढ़ रहे थे और वे वहाँ मौजूद सभी राहगीरों से बोले...
"क्या जमाना आ गया,ईमानदारी की तो जैसे कोई कीमत ही नहीं है"
"क्या हुआ भाईसाहब! अखबार में कोई खबर आई है क्या"?,दूसरे यात्री ने पूछा....
"अब क्या बताऊँ भाईसाहब! बेचारे के पूरे परिवार को मार डाला उन जालिमों ने" अखबार वाले साहब बोले...
"किसने किसको मार डाला",अगले यात्री ने आँखें बड़ी करते हुए पूछा...
"जी! बम्बई के सबइन्सपेक्टर प्रमोद मेहरा और उनके परिवार को तस्कर पप्पू गोम्स ने मार डाला और यही नहीं सबको मारने के बाद उनके छोटे भाई की पत्नी को भी उठाकर ले गए,बेचारी की ज्यादा उम्र नहीं थी",अखबार वाले साहब बोले...
"फिर क्या हुआ उस लड़की के साथ",अगले सहयात्री ने पूछा...
"और क्या हुआ होगा,नोच डाला होगा उस बेचारी को",अखबार वाले साहब बोले....
"ओह...तो ईमानदारी की ऐसी सजा मिली प्रमोद मेहरा को",दूसरा सहयात्री बोला....
"प्रमोद मेहरा का तो ठीक है कि वो परिवार सहित मरकर ऊपर चले गए,जरा उस लड़की के बारें में तो सोचो,जो अब इस दुनिया को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रही,वो तो पुलिस को भी नहीं मिली,क्या पता उसने कहीं दरिया में डूबकर खुदखुशी ना कर ली हो",अखबार वाले साहब बोले...
तभी उन सभी की बात सुनकर एक मोहतरमा तिलमिला उठीं,जो कभी स्वतंत्रतासेनानी रह चुकीं थीं,उन्होंने खद्दर की धोती पहन रखी थी और आँखों पर मोटा सा चश्मा लगा रखा था और वे बोलीं....
"इन सब में उस लड़की का क्या दोष है भला! वो क्यों नहीं दुनिया को मुँह दिखाने के काबिल रही"
"अब जिस लड़की की आबरू ही ना बची हो तो भला वो जी कर क्या करेगी,उसका तो मर जाना ही बेहतर है",अखबार वाले साहब बोले...
"आप ये कैंसी अनपढ़ गँवारों जैसी दकियानूसी बातें कर रहे हैं,वो लड़की क्यों मरे भला! फाँसी पर तो उनको लटकाना चाहिए,जिन्होंने उसके साथ ऐसा किया है",वे महिला बोलीं....
"देवी जी! हम अंग्रेज नहीं है और ना हमारे यहाँ वो सब चलता है,हमारे यहाँ तो अगर एक बार किसी औरत या लड़की की चुनरी पर दाग़ लग तो बस लग गया,उसके लिए हमारे घर और समाज में फिर कोई जगह नहीं रहती",अखबार वाले साहब बोले...
"तो आप ही बताइए यहाँ पर लड़की का क्या दोष है",महिला ने पूछा....
"दोषी तो वो नहीं है ,लेकिन परपुरूष के स्पर्श ने उसका सतीत्व भंग कर दिया है,अब वो किसी काम की नहीं रही",अखबार वाले साहब बोले...
"इसका मतलब है कि वो पाषाणी अहिल्या बन गई",महिला बोली....
"जी! बिलकुल और इस कलयुग में कोई ऐसा राम भी नहीं आएगा,जो उसका उद्घार कर सके़",अखबार वाले साहब बोले....
"हाँ! राम तो नहीं मिलेगा,लेकिन रावण तो हजार मिल जिऐगें",महिला बोली....
"अरे! छोड़िए ना बहनजी! हम और आप क्यों अपना सिर खपा रहे हैं,जिसके साथ बीती है वो जाने,हमारे आपस की बहसबाजी का क्या मतलब बनता है भला!",अखबार वाले साहब बोले...
"जी! शायद सही कह रहे हैं",महिला बोली....
और फिर उस मुद्दे को लेकर उन सभी के बीच बहसबाजी बंद हो गई,लेकिन उन लोगों की बातें सुनकर इधर प्रत्यन्चा के कलेजे के दो टुकड़े हो गए....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....