Amanush - 14 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१४)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१४)

तब सतरुपा बोली...
"ओह...तभी सिंघानिया रात को घर नहीं आया था कह रहा था कि रात को फार्म हाउस में ही रुकेगा"
"कुछ ना कुछ तो जरूर है उस फार्म हाउस में",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
" लेकिन क्या हो सकता है उस फार्म हाउस में",सतरुपा बोली...
"कुछ तो ऐसा है उस फार्म हाउस में जो दुनिया से छुपाकर रखा जा रहा है",करन बोला...
"हाँ! और इसका मतलब है कि रघुवीर और सिंघानिया मिले हुए हैं,कुछ ना कुछ तो खिचड़ी पक रही है दोनों के बीच में",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"हाँ! और फार्महाउस की बाउंड्री में करंट क्यों बिछा रखा है उसने,कुछ तो गड़बड़ घोटाला हो रहा है उस जगह पर",करन बोला...
"लेकिन हमारे पास ऐसी कोई ठोस वजह नहीं है ,जिससे हम उस फार्महाउस की तलाशी ले सकें", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"हाँ! मुझे तो अब उसके घर में रहने से डर लग रहा है,ना जाने कहाँ फँसा दिया आपलोगों ने मुझे",सतरुपा बोली...
"हमें क्या मालूम था कि वो सिंघानिया इतना खतरनाक इन्सान है",करन बोला...
"लेकिन अब तो मेरी जान पर बन आई है ना....जब देखो तब देवू डार्लिंग...देवू डार्लिंग करके मेरे पीछे पड़ा रहता है,कुत्ता कहीं का,जब वो मुझे देखता है तो जी में तो आता है उसकी आँखें नोच लूँ और उसकी वो डायन सौतेली माँ, जब देखो तब भूतनी की तरह मेरे पीछे पड़ी रहती है और उसका वो दरिन्दा खूँखार भाई,उसकी तो शकल पर ही लिखा है कि वो कितना कमीना इन्सान है",
सतरुपा जब ये सब बोले जा रही थी तो करन और धरमवीर उसका मुँह ताके जा रहे थे,इससे पहले उन दोनों उसे इतना बोलते हुए नहीं देखा था,सतरुपा जब चुप हुई तो इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"करन! ऐसा लगता है कि सतरुपा सिंघानिया के घर में नहीं,किसी भूत बंगले में रहती है"
इन्सपेक्टर धरमवीर की बात सुनकर करन हँस पड़ा तो सतरुपा बोली...
"आपको नहीं पता इन्सपेक्टर साहब! मैं वहाँ कैंसे दिन बिता रही हूँ,देविका बनना तो मेरे लिए जैसे जी का जंजाल बन गया है",
"बस! सतरुपा! कुछ दिन और फिर इसके बाद तुम्हें उस घर से मुक्ति मिल जाऐगी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"मतलब क्या है आपके कहने का,क्या वो सिंघानिया मुझे भी बोरे में भरकर अपने फार्म हाउस ले जाएगा और मेरा खून कर देगा,मुझे ऐसी मुक्ति नहीं चाहिए",सतरुपा बोली...
सतरुपा की बात सुनकर करन और धरमवीर का माथा ठनका और तब इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"क्या कहा तुमने,बोरे में भरकर फार्म हाउस ले जाएगा"
"हाँ...और वहीं पर मेरा खून कर देगा",सतरुपा दोबारा बोली....
"धरमवीर! सतरुपा शायद सही कह रही है,कहीं ऐसा तो नहीं कल रात उस बोरे में कोई लड़की थी" करन बोला...
"हाँ! हो सकता है और जो लड़कियांँ गायब हो रहीं हैं,कहीं वो सब सिंघानिया का काम तो नहीं",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"लेकिन वो अपनी पत्नी देविका को क्यों अगवा करेगा",करन बोला...
"हाँ! ये भी सही बात है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"हाँ! मैं तो आप दोनों को एक बात बताना तो भूल ही गई",सतरुपा बोली...
"वो भला क्या?",करन ने पूछा...
तब सतरुपा बोली...
"आज जब मैं दोपहर के वक्त सिंघानिया के साथ लंच पर उसके होटल गई थी तो वहाँ पर मेरी मुलाकात किसी शिशिर सरकार नाम के इन्सान से हुई,वो मुझसे ऐसे चिपक रहा था जैसे कि देविका से उसका बहुत करीबी का रिश्ता हो और सिंघानिया ने मुझे उससे दूर रहने को कहा,बोला कि शिशिर जब देखो तब शादीशुदा औरतों के पीछे पड़ा रहता है,मुझे भी वो इन्सान कुछ ठीक नहीं लगा,थोड़ा चिपकू टाइप था और शिशिर का नाम सिंघानिया के भाई रोहन ने भी लिया था"
"तो क्या करें,अब इस शिशिर सरकार के बारें में पता लगाएँ कि वो कौन है",करन बोला...
"अब ऐसा ही करना पड़ेगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"लेकिन अब शिशिर सरकार को कहाँ ढूढ़े",करन बोला...
"उसी सिंघानिया से पूछते हैं उसके बारें मे,कह देगें कि देविका के केस के बारें में उससे भी कुछ पूछताछ करनी हैं",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"हाँ! यही सही रहेगा",करन बोला....
"चलो! अब मैं सतरुपा को सिंघानिया के घर छोड़कर आता हूँ और वहीं सिंघानिया से शिशिर सरकार के बारें में भी पूछ लूँगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"लेकिन मैं तो अकेली निकली थी घर से,आपको मेरे साथ देखकर कहीं उन लोगों को मेरे ऊपर कोई शक़ ना हो जाए",सतरुपा बोली...
"मैं कह दूँगा कि आप मुझे बाहर दिख गईं थी,इसलिए सेफ्टी के लिए आपको अपने साथ ले आया", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! ठीक है तो अब चलते हैं",सतरुपा बोली...
और फिर इन्सपेक्टर धरमवीर सतरुपा को लेकर सिंघानिया के घर पहुँचे,उस वक्त तक सिंघानिया आँफिस से नहीं लौटा था,इसलिए इन्सपेक्टर धरमवीर वहीं रुककर सिंघानिया का इन्तजार करने लगे,फिर शैलजा वहाँ आ गई तो वो दोनों आपस में बातें करते रहे,कुछ देर के बाद सिंघानिया भी घर आ पहुँचा,कुछ वक्त तक इन्सपेक्टर धरमवीर ने सिंघानिया से केस को लेकर के बातें कीं और फिर उसके बाद इन्सपेक्टर धरमवीर ने सिंघानिया से पूछा....
"क्या आप शिशिर सरकार को जानते हैं सिंघानिया साहब?",
"जी! ज्यादा नहीं! बस ये जानता हूँ कि वो मेरे दोस्त मानव ओबेरॉय के फाइवस्टार होटल तक्षशिला में मैनेजर है,लेकिन आप उसके बारें में मुझसे क्यों पूछ रहे हैं,कुछ किया है क्या उसने?", सिंघानिया साहब बोले...
"जी! ऐसे ही उसके बारें में जानकारी ले रहा था आपसे,मिसेज सिंघानिया ने बताया था कि जब वो लंच पर आपके साथ गईं थीं तो तब उनकी मुलाकात किसी शिशिर सरकार से हुई थी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! बस मैं उसके बारें में इतना ही जानता हूँ"मिस्टर सिंघानिया बोले...
"जी! ठीक है! अब मैं चलता हूँ,वैसे भी बहुत देर से मैं यहाँ आपका इन्तजार कर रहा था", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले..
"जी! ठीक है!",सिंघानिया साहब बोले...
और फिर इन्सपेक्टर धरमवीर उसी वक्त शिशिर सरकार से मुलाकात करने होटल तक्षशिला पहुँचे, पहले तो शिशिर इन्सपेक्टर धरमवीर को देखकर थोड़ा घबराया,इसके बाद बोला...
"जी! मैं आपको सब बताऊँगा,लेकिन यहाँ नहीं,आप मुझे बाहर ले चलिए"
इसके बाद इन्सपेक्टर धरमवीर शिशिर को लेकर बाहर आएं और एक चाय की छोटी सी टपरी पर चाय पीते पीते उससे बातें करने लगे,उन्होंने शिशिर से पूछा...
"तो आप मिसेज सिंघानिया को कब से जानते हैं?",
"जी! तब से जानता हूँ मैं मिसेज सिंघानिया को,जब से मुझे पता चला कि मेरे भाई के साथ देविका का चक्कर चल रहा है", शिशिर बोला...
"तुम्हारे भाई का नाम क्या है"? इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी...शिशिर..शिशिर सरकार नाम था मेरे भाई का",शिशिर बोला...
"ये क्या बकवास कर रहे हैं आप"?,इन्सपेक्टर धरमवीर गुस्से से बोले...
"जी! मैं बकवास नहीं कर रहा हूँ,शिशिर मेरा जुड़वाँ भाई था और मेरा नाम शिरिष है,हम दोनों की शक्लें हूबहू एक जैसीं हैं",शिरिष बोला...
"तो तुम्हारा भाई कहाँ है"?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! उसका किसी ने खून कर दिया,उसके खूनी का पता लगाने के लिए ही मैं यहाँ आया हूँ",शिरिष बोला...
"ये क्या गड़बड़ घोटाला चल रहा है,आप मुझे समझाऐगें कुछ", इन्सपेक्टर धरमवीर खिसियाकर बोले...
"जी! मैं पेशे से डाक्टर हूँ और मेरे भाई शिशिर ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रखा था",शिरिष बोला...
"फिर क्या हुआ",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"उसके पीछे एक और कहानी है",शिरिष बोला...
"तो फिर सुनाओ",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ये कहानी शुरू होती है जिज्ञासा से" , शिरिष बोला..
"अब ये जिज्ञासा कौन है",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! वो हम दोनों की बड़ी बहन थी",शिरिष बोला...
"भाई गोल गोल बात को मत घुमाओ,सीधी सीधी बात बताओ",इन्सपेक्टर धरमवीर गुस्से से बोले....
और फिर शिरिष इन्सपेक्टर धरमवीर को जिज्ञासा की कहानी सुनाने लगा....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...