Kanchan Mrug - 21 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | कंचन मृग - 21. धौंसा बजा

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कंचन मृग - 21. धौंसा बजा

21. धौंसा बजा-

शिशिर गढ़ पर वत्सराज पुत्र पुरुषोत्तम शासन कर रहे थे। वत्सराज संस्कृत में श्लोक रचते थे। उन्होंने ‘रूपक शतकम्’ की रचना की थी। पुरुषोत्तम बात के धनी थे। उनकी प्रकृति गम्भीर थी। उन्होंने महोत्सव की प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने दी। पर यह ऐसा अवसर था जब माण्डलिक और उदयसिंह गाँजर क्षेत्र में कान्यकुब्जेश्वर का कर उगाहने में लगे थे। तालन और देवा भी उन्हीं के साथ थे। महोत्सव से माण्डलिक के निष्कासन से उन्हें कष्ट हुआ था पर आल्हा द्वारा शिशिरगढ़ रुकने में असमर्थता व्यक्त करने पर उन्हें लगा था कि वे अकेले हो गए हैं। वे प्रजा पालक थे। उन्होंने अपना अधिकांश समय उन्हीं की सेवा में लगाने का निश्चय किया।
एक दिन वे एकान्त में ध्यान कर रहे थे। ध्यान से उठते ही गुप्तचर ने सूचित किया कि चामुण्डराय ने शिशिरगढ़ पर आक्रमण की योजना बनाई है। वे शीघ्र ही युद्ध का आह्वान करेंगे। गुप्तचर से उन्होंने आवश्यक जानकारी प्राप्त की। अपनी सेना सन्नद्ध करने से पूर्व इस समाचार की पुष्टि दूसरे स्रोतों से भी की। सूचना की पुष्टि होते ही तैयारी प्रारम्भ करा दी। उन्हें पता चला कि शिशिरगढ़ के गोपालकों की गायें चामुण्डराय ने घिरवा लिया है। यह युद्ध का आह्वान था। उन्होंने सलक्षण के नेतृत्व में अपनी सेना गायों को छुड़ाने के लिए भेज दी। गायें तो छूट गईं पर सलक्षण और चामुण्डराय की सेनाएं एक दूसरे को ललकारते हुए आपस में भिड़ गई। चामुण्डराय और सलक्षण दोनों अपने अश्वों को नचाते अपनी-अपनी सेना का मनोबल बढ़ा रहे थे। चाहमान सैन्य बल जहाँ कहीं पीछे हटता, चामुण्डराय स्वयं पहुँच कर भयंकर युद्ध करते हुए सेना को प्रोत्साहित करते। जहाँ कहीं शिशिरगढ़ की सेना पीछे हटती, सलक्षण आगे आकर नेतृत्व सँभाल लेते। नवयुवक सलक्षण जिधर भी घूम जाते, विपक्षी को तितर-बितर कर देते । इससे शिशिरगढ़ के सैनिकों का मनोबल बढ़ जाता। वे उत्साहित होकर विपक्षी पर टूट पड़ते। अश्वों की हिनहिनाहट तथा वीरों की हुंकार से सम्पूर्ण क्षेत्र आप्लावित था। युद्ध चलता रहा। सूर्योदय के साथ ही युद्ध प्रारम्भ हो जाता और सूर्यास्त तक चलता । कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं था। चामुण्डराय को चिन्ता हुई। वे युद्ध भूमि के कुशल खिलाड़ी थे। उनके पक्ष के कई योद्धा स्वर्ग सिधार गए थे। उन्होंने सलक्षण को ललकारा । दोनों आमने-सामने आ गए। सलक्षण और चामुण्डराय का युद्ध चलता रहा। कभी चामुण्डराय प्रहार करते सलक्षण बचाते, कभी सलक्षण प्रहार करते चामुण्डराय बचाते। दोनों के शरीर रक्त रंजित हो उठे। सलक्षण ने पूरी शक्ति लगाकर साँग फेंकी। चामुण्डराय बच गए पर उनका अश्व धराशायी हो गया। सलक्षण ने दूसरा अश्व लेने का संकेत किया चामुण्डराय ने दूसरे अश्व पर बैठते ही शक्तिशाली प्रहार किया। सलक्षण की ढाल फट गई। खड्ग ने उनके सिर को धड़ से अलग कर दिया। सलक्षण के गिरते ही सेना तितर-बितर होने लगी। धावक ने पुरुषोत्तम को सूचना दी। उन्होंने अश्विनी कपोती पर सवार हो धौंसा बजवा दिया। पुरुषोत्तम के आते ही सेना में नया उत्साह जग गया। उन्होंने सलक्षण के शव को शिविका में रखवा कर घर भेज दिया। आगे बढ़कर चामुण्डराय को उन्होंने ललकारा। चामुण्डराय की थकी सेना पुरुषोत्तम के आगे टिक नहीं सकी। स्थिति का आकलन कर चामुण्डराय ने अपनी सेना को पीछे हटा लिया। पीछे हटती सेना पर आक्रमण करना अनुचित समझ, पुरुषोत्तम ने अपनी सेना शिशिरगढ़ की ओर मोड़ दी। सलक्षण की मृत्यु से शोक का वातावरण उग आया था पर लोग उनके युद्ध कौशल की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे।