18. दिल्ली की ओर भी प्रस्थान कर सकता है-
महाराज पृथ्वीराज जिन्हें ‘राय पिथौरा’ के नाम से भी जाना जाता है, को सत्ता सँभाले अभी पाँच वर्ष ही हुए थे। उनमें युवा रक्त फड़फड़ा रहा था। वे धनुर्विद्या में पारंगत थे। उन्होंने शब्द बेधते हुए बाण चलाने की कला सीखी थी। उनके यहाँ चामुण्डराय, चन्द, कदम्बवास, कन्ह जैसे कुशल योद्धा थे। कदम्बवास और माँ कर्पूरदेवी के संरक्षण में ही अवयस्क पृथ्वीराज ने राज भार सँभाला था। पर अब वे अनुभवों की सीढ़ी पर एक एक पग आगे बढ़ रहे हैं। कदम्बवास का संरक्षण अब भी था पर महाराज अब स्वतन्त्र निर्णय भी लेने लगे थे। चन्द काव्य रसिक ही नहीं, समर्थ रचनाकार थे। वे महाराज को आवश्यक परामर्श देते और युद्धभूमि में रण कौशल से सभी को चकित कर देते थे। वीरों के लिए सैन्य सेवा जीविका का प्रमुख माध्यम थी। कवि चन्द अकारण युद्ध छेड़ने के पक्षधर नहीं थे। वे निरन्तर महाराज को नीति एवं न्याय का पक्ष लेने के लिए उत्साहित करते।
चाहमान की पश्चिमी सीमाओं पर निरन्तर आक्रमण हो रहे थे। साँभर, अजमेर की सीमाओं पर चौकसी की विशेष आवश्यक ता पड़ती। पृथ्वीराज का छोटा भाई हरिराज अजमेर में रहकर पश्चिमी सीमाओं पर दृष्टि रखता।
युवा चाहमान नरेश अपने सभा कक्ष में आ चुके थे। कवि चन्द ने संस्कृत में एक श्लोक तथा जनभाषा का एक छंद पढ़कर महाराज का स्वागत किया। कदम्बवास ने राज्य की विधि व्यवस्था की जानकारी दी। उनकी आख्या से महाराज सन्तुष्ट दिखे। सभा कक्ष में अनेक सम्भ्रान्त एवं उच्च पदस्थ अधिकारी विद्यमान थे। कदम्बवास ने यह भी कहा कि सूचना मिली है कि मुहम्मद गोरी के सम्मुख लाहौर के शासक खुसरो मलिक ने आत्मसमर्पण कर दिया है इससे सम्पूर्ण सभा चिन्तित हो उठी। महाराज का मन भी उद्विग्न हो उठा। चन्द ने खड़े होकर इस घटना की पृष्ठभूमि का विश्लेषण किया और यह भी संकेत दिया कि मुहम्मद गोरी अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी है। समय पाकर वह दिल्ली की ओर भी प्रस्थान कर सकता है। चन्द के इतना कहते ही पूरी सभा हुंकार कर उठी। चामुण्डराय ने खड़े होकर कहा, ‘यदि मुहम्मद गोरी दिल्ली की ओर दृष्टि घुमाता है तो उसे गजनी की राह दिखा दी जाएगी। उसे महाराज मूलराज से पराजित हुए अभी बहुत दिन नहीं बीते हैं।’
‘पर गोरी के लिए जय-पराजय एक खेल है, उसकी रणनीति का अध्ययन आवश्यक है। बाह्य आक्रमण कारियों से सतर्क रहने के लिए हमें अपनी गुप्तचर व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा।’ चन्द ने जोड़ा। ‘‘आर्यचंद के सुझाव विचार योग्य हैं’’ मन्त्रिवर कदम्बवास ने सहमति व्यक्त की। ‘उत्तर भारत के नरेशों से समरस सम्बंध विकसित करना चाहिए जिससे बाह्य आक्रमण के समय सभी का सहयोग प्राप्त किया जा सके।’, चन्द ने बात आगे बढ़ाई। पर चन्द की इस बात से चामुण्डराय क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने तेज स्वर में कहा, ‘हमारी तलवार में जंग नहीं लगा है। एक क्या दस गोरी हमारा सामना नहीं कर सकते।’ ‘अपनी शक्ति को अधिक आँकना युक्ति संगत नहीं हैं’, चन्द से न रहा गया।
‘क्या हमारा सैन्य बल अशक्त हो रहा है?’ महाराज ने हस्तक्षेप किया।
‘नहीं महाराज , मेरे कहने का यह अर्थ कदापि नहीं है, किन्तु रणनीति यह कहती है कि बाह्य आक्रमण के समय आन्तरिक सौमनस्य आवश्यक है’, चन्द ने विनीत भाव से कहा।
‘पर रणनीति पर वाद-विवाद करने वाले रणभूमि से किनारा कस लेते हैं,’ चामुण्डराय ने व्यंग्य किया।
‘चन्द को प्राणों का मोह नहीं है, पर व्यापक रणनीति के बिना विजयश्री नहीं मिलती’, चन्द का स्वर भी तिक्त हो उठा था। ‘अपनी सैन्य शक्ति को पुनर्गठित करने की आवश्यकता अवश्य है’, कदम्बवास ने प्रस्ताव किया।
‘किस तरह का पुनर्गठन ?’, महाराज ने प्रश्न किया।
‘अपनी गज सेना विशाल है पर अश्व शक्ति में कुछ बढ़ोत्तरी करनी चाहिए। बाह्य आक्रमण कारियों के सैन्य बल में अश्व बल ही प्रमुख होता है’, कदम्बवास ने कहा। चन्द ने भी कदम्बवास का समर्थन किया। अश्व शक्ति बढ़ाने के लिए महाराज ने सहमति प्रदान कर दी। ‘इस योजना की पूर्ति के लिए’, चामुण्डराय ने कहा’, ऐसे नरेशों से अश्वों की माँग की जाए जिनके पास अश्व शक्ति अधिक विकसित है।’
‘इससे उत्तम अश्वों की आपूर्ति नहीं होगी’, चन्द ने कहा। ‘कोई नरेश अपने उत्तम अश्वों को हमें क्यों देगा? कुछ श्रेष्ठ अश्वों को हमें क्रय करना पड़ेगा।’
‘आप महानुभाव इस प्रकरण पर चिन्तन कर लें, अगली सभा में निर्णय लिया जाएगा,’ महाराज के संकेत करते ही सभा विसर्जित हो गई।