1. विकास और विशाल
विकास - "विशाल! तुम्हारे पास मेरी पेन्सिल है क्या?"
विशाल - "नहीं दोस्त! मेरे पास तुम्हारी पेन्सिल नहीं है।... ये देखो, केवल मेरे पास मेरी ही पेन्सिल है, जो कि मैंने आज सुबह विद्यालय आते समय खरीदी थी।"
विकास - "कल चित्रकला बनाते समय मेरे पास पेन्सिल थी परन्तु आज नहीं है, इसलिए पूछा! क्योंकि कल तुम मेरे पास बैठे थे और गलती से कहीं तुम्हारे पास चली तो नहीं गयी। तुम एक बार अपना बिस्ता जांच कर लो।"
विशाल - "लगता है विकास... तुम्हारा दिमाग खराब है। तुम एक पेन्सिल के लिए मेरे बिस्ते की तलाशी लोगे?
जब मैंने कह दिया कि नहीं है मेरे पास... तो नहीं है। आये दिन मैं तुम्हे अपने सामान देता आया हूँ ये सोच कर, कि तुम गरीब हो! खरीद नहीं सकते और आज तुम मुझ पर ही आरोप लगा रहे हो।
मुझे अफसोस हो रहा है कि मैंने तुम्हें अपना दोस्त माना! तुम गरीब तो हो ही, गलीज भी हो, आज से हमारी तुम्हारी दोस्ती खत्म।"
विकास - "मैंने तुम पर कोई आरोप नहीं लगाया। बस! हक जताया कि गलती से बिस्ते में चली गयी होगी। एक बार देख लो। मुझे बहुत तकलीफ हुई विशाल! तुम मेरी मदद दोस्ती के नाते नहीं, मेरी गरीबी की वजह से कर रहे थे।"
इतना कह कर विकास रोने लगा। कुछ देर बाद बच्चों की विद्यालय से छुट्टी हो गयी। सारे बच्चे अपने - अपने घर चले गये। विकास और विशाल भी अपने - अपने घर चले गये।
विशाल ने घर पहुँचते ही देखा कि पिता जी एक नया बिस्ता लाये हैं।
विशाल बहुत खुश हो गया। जल्दी से पुराने बिस्ते से अपना सारा सामान नये बिस्ते में रखने लगा, तभी अचानक उसकी नजर पेन्सिल पर पड़ी।
विशाल - "ओह! ये पेन्सिल तो विकास की है। मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गयी! मुझे विकास के पास जाकर माफ़ी माँगनी चाहिए। मैंने उस पर विश्वास न करके उसका दिल दुखाया है।"
विशाल दौड़ कर गया। उसने विकास से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी। विकास ने विशाल के आँसू पोंछे और माफ़ करते हुए गले से लगा लिया।
संस्कार सन्देश :- सच जाने बिना हमें कभी किसी से बहस नहीं करनी चाहिए।
2. नीशू का गांँव
गांँव में बहुत भीड़ जमा हुई थी। मैं अचानक शहर से गांँव बहुत दिनों बाद आया था। गर्मी की छुट्टियांँ थीं। नानी के घर घूमने गया था। आज अपने माता-पिता के साथ गांँव आया तो देखा कि गांँव में बहुत भीड़ जमा हुई है।
मैंने भीड़ को हटाते हुए जाकर देखा तो पता चला कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से लड़ाई कर रहा था। लोग वीडियो बना रहे थे। कोई उन दोनों को एक दूसरे से हटा नहीं रहा था, जबकि भीड़ इतनी ज्यादा थी कि अगर दोनों व्यक्तियों को अलग-अलग करके भीड़ हटा देती तो शायद लड़ाई रुक जाती।
इससे पहले मैं कुछ कहता या करता, पिताजी बोले- "नीशू चलो! घर चलो। यह तो रोज का माजरा है। ये लोग सुधरने वाले नहीं है। आये दिन लड़ाई-झगड़ा करते रहते हैं। तुम घर चलो! कल तुम्हें स्कूल भी जाना है।"
मैंने पिताजी से कहा-, "पिताजी! आप इन दोनों को लड़ाई करने से रोकें"।
पिताजी ने मुझे डांँटते हुए कहा-, "तू घर चलता है कि लगाऊँ तुझे एक थप्पड़!"
नीशू ने पिताजी से निवेदन किया कि-, "एक बार कोशिश करके देखिए, शायद लड़ाई रुक जाये। आप ही तो कहते हैं कि अगर हमें भलाई करने का मौका मिले तो जरूर करना चाहिए। इन दोनों लोगों को लड़ाई से रोकना भी एक भलाई है।"
नीशू की बात सुनकर उसके पिताजी ने लड़ाई रोकने की। पहल की और लोगों से भी लड़ाई रुकवाने के लिए मदद मांँगी।
कुछ ही देर में भीड़ ने मिलकर लड़ाई कर रहे दोनों व्यक्तियों को अलग-अलग ले जाकर समझा दिया।
कुछ ही देर में दोनों व्यक्तियों का एक-दूसरे से समझौता हो गया।
नीशू को बहुत अच्छा लगा। उसने अपने पिताजी को धन्यवाद कहा और घर की ओर चल दिया।
संस्कार सन्देश :- आपस में झगड़ रहे लोगों में समझौता करा देना भलाई का काम है।