Prem Gali ati Sankari - 141 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 141

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प्रेम गली अति साँकरी - 141

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ये अजीब और अप्रत्याशित घटनाएं ही थीं जिनका कोई सिर-पैर समझ में नहीं आ रहा था | आगे और क्या-क्या होना था, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी जैसे चित्र किसी आवरण में लिपटा हुआ हो, जैसे कोई परछाई! अब परछाई में क्या तलाश किया जाता, वह तो वैसे ही भ्रम में घुमा ही रही थी | 

अचानक एक बात और सामने आई, वह भी कुछ अजीब ही लगी | पता चला, पापा ने अम्मा से संस्थान से निकलते हुए न जाने क्यों कहा;

“संस्थान में कभी मच्छर नहीं हुए, आज मुझे लगा किसी मच्छर ने ज़ोर से काटा है | सफ़ाई का ध्यान रखवाना पड़ेगा | कितने बच्चे आते हैं, यहाँ कभी ऐसी लापरवाही देखी नहीं गई | ”पापा का स्वर अम्मा को चिंतित लगा तो लेकिन वह समय निकलने का था इसलिए इस विषय पर आगे बात बढ़ी नहीं | पापा ही कुछ अधीर लगते रहे जैसे उन्हें किसी ने डंक मारा हो | फिर वहाँ जाकर तो उनका आनंद सब देख ही रहे थे, सब ठीक-ठाक ही नहीं एक अलग ही दुनिया में विचरण ! और उन सबके लिए सभी खूब खुश थे | 

अब काम में तीव्रता लानी और जरूरी हो गई थी क्योंकि जहाँ पापा एडमिट थे, वहाँ भी पापा के सारे इंवेस्टिगेशन्स चल रहे थे और डॉक्टर्स को यह अनुमान लगा था कि उन्हें कोई ज़हरीली चीज़ इंजेक्ट की गई है? अब वह चीज़ क्या थी ? उनके शरीर में कब गई, कैसे गई, किसने की ? ये और भी बड़े सवाल थे | 

“अम्मा ! पापा ने संस्थान से निकलते हुए आपसे कुछ कहा था क्या? ”भाई ने अम्मा से पूछा क्योंकि उन्हें लग रहा था कि सारी ही बातें ‘को-इन्सीडेंट’ तो हो नहीं सकतीं | 

अम्मा बेचारी इतना घबराई हुई थीं कि उन्हें कुछ याद ही नहीं आ रहा था | अच्छे भले सब लोग इन्जॉय कर रहे थे और यह सब अचानक---जिसकी दूर-दूर तक कोई कल्पना भी नहीं थी, यह क्या हो गया था ? उन्होंने अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर डाला और सिर पकड़कर बैठ गईं फिर अचानक ही बोल बैठीं;

“अमोल! बेटा—पापा ने निकलते समय मुझे कहा था कि हमारे संस्थान में कभी मच्छर नहीं हुए हैं, सफ़ाई का ध्यान रखना पड़ेगा | इतने सारे बच्चे संस्थान में आते हैं | ”अम्मा ने अचानक अपने सिर पर हाथ रखकर कहा जैसे ही उन्हें पापा के ये शब्द याद आए | वह और भी उदास हो उठीं | 

“उस समय समझ में ही नहीं आया, क्या हुआ होगा, अब अचानक याद आया | ”अम्मा को अफ़सोस था कि उन्होंने पापा की बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया? 

“कोई बात नहीं अम्मा, हो जाता है ऐसा | काट खाया होगा किसी कीटाणु ने---सब ठीक हो जाएगा | ”अमोल ने अम्मा को संभालने की कोशिश की | उसे यह भी तो डर था कि अम्मा स्वस्थ रहें | अम्मा को यहाँ की सब घटनाएं बताना न तो ठीक था न ही उससे कुछ लाभ था | 

“अमी ! यह कुछ और ही कांड कर गई है वह शातिर औरत ! एक सेकेंड में इसने पापा के शरीर में कुछ ऐसा ज़हर इंजेक्ट कर दिया कि उन्हें पता भी नहीं चला और वह अपने काम में सफ़ल हो गई | तुम लोग वहाँ पर सब इंवेस्टिगेशंस चालू रखो | ”भाई की बात से कुछ सहारा तो मिला लेकिन पापा के स्वास्थ्य की चिंता सबको चिंता में डाल रही थी और यह औरत और क्या-क्या करने वाली थी इसका भय भी ? 

हम सबको ही यह पक्का विश्वास हो चला था कि पापा विनम्र होकर उसे जो ‘विश’ करने गए थे उसने सेकेंड्स भर में ही यह कांड कर डाला था तो भला वह क्या-क्या और नहीं खराब कर सकती थी? ’पावर ऑफ़ एटॉर्नी’ पहले से ही उसके पेट में खलबली मचा रही थी और कहीं न कहीं उसके पास कोई ऐसा कुछ तो था ही जिसके सहारे वह इतने बड़े गेम में शामिल हो रही थी, उसे पक्का विश्वास था कि वह अपने गेम में जीतकर और उसे जो हासिल करना है उसे पाकर ही दम लेगी | 

हमारी टीम और भी एलर्ट हो गई | शर्बत का सैंपल काफ़ी पहले भेजा जा चुका था और डॉक्टर्स को पापा के हाथ के साइड में हल्का सा छेद मिला था जिसके सहारे कुछ नशीला पदार्थ पूरे शरीर में प्रवेश कराया गया था और पापा को किसी मच्छर काटने का डंक सा चुभा महसूस हुआ था | 

इस खोज-बीन के दौरान कई और महत्वपूर्ण बातों का खुलासा हुआ जिनमें एक तो यह कि कुछ घंटों के बाद जो कुछ भी शर्बत में मिलाया जाता है, उसका रंग फिर वैसा ही हो जाता है जैसा ओरिजिनल था, स्वाद में भी कुछ परिवर्तन नहीं लगता, वह एक आम शर्बत ही लगता है | 

यानि कि यह स्पष्ट हो गया था कि यह सब गलती से नहीं हुआ था, कोई था जिसकी घुसपैठ तो हुई थी और यह जो उस इन्वैस्टीगेशन टीम के लड़के का अचानक एक्सीडेंट हुआ, वह भी कुछ कमाल ही था | बॉटल महाराज के हैल्पर को देने से पहले खोली गई या नहीं, यह पता नहीं चला लेकिन उसमें से ही यदि कुछ इंजेक्ट किया गया था तब ? प्रश्न पर प्रश्न थे लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न था पापा के स्वस्थ होने का!वे इस स्थिति में तो आ जाएं कि कुछ अपने मुँह से बता सकें | 

“अमी! उत्पल का कुछ पता चला क्या? उसे अचानक क्या हो गया? संस्थान का एक इतना ज़िम्मेदार व्यक्ति ऐसे कैसे, कहाँ जा सकता है? ” भाई ने अचानक मुझे पूछ लिया और मन फिर से तुम्हें खोजने लगा उत्पल! वैसे तुम कहीं मन से कभी भी बाहर कहाँ गए थे लेकिन मैं इतना जानती हूँ कि तुम मुझे परेशानी में देखकर सहज रह ही नहीं सकते थे? तुम कैसे? 

अमोल के पूछते ही दो महत्वपूर्ण चरित्र मेरे मन में आकर फिर से सिमट गए | एक तो बरसों पुराने तुम उत्पल और दूसरी कुछ दिन की ही मिली ये मंगला!इससे क्या रिश्ता था मेरा ? मैं उससे मिलने, उससे बात करने के लिए बेचैन हो रही थी और उसके बारे में जाने क्यों जानना चाहती थी लेकिन वह मुझसे कैसे और क्यों मिलेगी? 

ज़िंदगी में स्ट्रगल्स चल रहे थे लेकिन संस्थान का व पापा का व्यापार दोनों अपने पुराने कर्मचारियों के कर्तव्यनिष्ठ रवैये से उसी प्रकार चल रहा था | इतने बड़े संस्थानों, व्यापारों में ‘फाइनेंस’की समस्या सिर उठाकर बोलने लगती है लेकिन यहाँ अर्थ की इतनी सुदृढ़ व्यवस्था थी कि कोई परेशानी नहीं थी और इस ओर से सब निश्चिंत थे | 

आज भाई से बात करके मैं बहुत दिनों बाद उत्पल के ऑफ़िस में गई और उसके असिस्टेंट से मिली;

“आइए, दीदी—कुछ काम है क्या ? आप मुझको बुला लेते---“उसके पास लगभग उसकी ही उम्र का एक और लड़का था | उससे कुछ छोटा ही हो शायद !

“ये ? ”मैंने उसको कभी नहीं देखा था | 

“दीदी ! सर ने भेजा है, मेरे हैल्प के लिए--” उसने बताया | 

“लेकिन तुम्हारे सर कहाँ हैं? कुछ अता-पता है उनका या नहीं ? ”मेरे शब्दों में खीज भरी थी, मैं जानती थी | गलत था, किसी की गलती के लिए किसी पर क्रोध करना हमने कहाँ सीखा था लेकिन हम सब ही मनुष्य हैं तो कुछ न कुछ गड़बड़ी तो करते ही रहते हैं | 

“जी, कहकर तो गए थे किसी इंपोर्टेन्ट काम के लिए जा रहे हैं | वहाँ से भी कहीं आगे निकल गए लगते हैं | ”उसने बताया जो वह पहले भी बता चुका था | 

“दीदी ! हम दोनों मिलकर एडिटिंग कर रहे हैं, अगर आप किसी दिन थोड़ा टाइम निकाल सकें तो---? ”

“क्या तुम अपने सर के पास नहीं भेजते हो ? ” मैं फिर रुड होने लगी थी | 

“जी, भेजते हैं, उनके एप्रूवल के बिना कुछ भी फ़ाइनल नहीं करते | ”

“तब ? ”

“जी, उन्होंने कहा था कि हो सके तो आपसे फ़ाइनल करवा लें---”उसने बड़ी मासूमियत से कहा | 

सूखे, निराश मन में पल भर के लिए एक हरियाली का झौंका सा लहरआया हो जैसे----यानि कि उत्पल ! तुम छोड़कर तो नहीं गए, यहाँ के बारे में चिंता यानि मेरे पास बने रहने का आभास ! इस ज़रा सी आश्वस्ति से मैं भीग उठी लेकिन यह भी तो उतना ही सच था कि जब मुझे तुम्हारी इतनी शिद्दत से ज़रूरत थी, तुम मेरे सामने कहाँ खड़े थे ? 

दूसरा लड़का चुप था शायद इंतज़ार कर रहा था कि मैं उससे भी कुछ पूछूँगी | 

“कंफरटेबल हो ? ”मैंने अम्मा की तरह पूछा | 

“जी, ” सकुचाते हुए उसने उत्तर दिया | 

“गुड, तुम लोग अपने बॉस को दिखाकर ही फ़ाइनल करो, तुम जानते हो आजकल अम्मा-पापा के न होने से संस्थान का काफ़ी लोड है | अभी टाइम नहीं निकाल पाऊँगी, मिलकर काम करो | उत्पल बता रहे थे, एडिटिंग के लिए काफ़ी पुराना काम पेंडिंग था | धीरे-धीरे मगर अच्छा करो, अम्मा को पसंद आना चाहिए | ”मैंने बहुत सहज तरीके से एक बार फिर कोशिश की;

“वैसे, आजकल कहाँ हैं उत्पल, कुछ मालूम है ? ”

“जी, नहीं---”

दिल की धड़कनों में तुम्हें समेटते हुए फिर से मेरे कदम अपने चैंबर की ओर थे |