A puzzle in Hindi Poems by Nandita Pandya books and stories PDF | एक पहेली

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एक पहेली


हर पल कुछ नया सीखा कर जाती हे ये जींदगी,
हर रोज एक नया मोड लेती के ये जींदगी,
हर मोड पर एक नई पहेली होती हे ये जींदगी ,
एक पहेली सुलजी नही की दुसरी सुरु,
हर एक पहेली सीखा कर जाती हे एक नई सीख,
ऐ जींदगी तो हे ऐक पहेली से भरी कीताब ,हर एक पन्ने पे लीखी के नई कहानी,
हर एक कहानी में होते के दो किरदार,
पहला नायक और दुसरा होता हे विलन,
यहा हर कोई अपनी कहानी का नायक है,
ओर इसकी बात न मानने वाला विलन ,
दोनो के संर्घस ने फीर बनादी एक नई कहानी,
हर कहानी में लोग कई न कई अपने आप को खोज के रहते है ,
ओर फीरसे बन जाती के ये कहानी एक पहेली,
पहेली ही तो है ये जींदगी या तो कही सारी पहेली यो से घीरी हमारी जींदगी,
एक को सुलजालो दुसरी सामने खडी,
ए ऐक पहेली तो है जींदगी !

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खयालो से ख्वाबो को मीटा ना पर ये
ख्वाबो को हाथ में बांध ना सके,
हझारो से बंधन तोड इन मालामे पिरो के
सजालु तेरे मेरे दामन में जोड की,
ख्वाबो को हकीकत की आहटो में!

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तुजसे मिलना ऐक ख़्वाब था।
मिलना मिलाना होता रहेगा,
दिल मिल जाए तुजे मिले बगैर।
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बस एक कदम दूर
एक कदम दूर थी मंजिल से
सपना पूरा हो गया होता,
पर एक ही जटके मे
इस कदर दूर हो गई।
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मेरे लिखने से क्या.....?
तुम पढ़ो तो कोई बात बने .......
मेरे सोचने से क्या...?
तुम कुछ समझो तो कोई बात बने.......।
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तेरी एक मुस्कान से ही तबियत सुधर जाती है,
बताओ ना तुम इश्क करते हो या ईलाज ,,,,?
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अगर तू चांद है तो ये चांद हमारा बनता है
सितारों क्या? ये हक हमारा बनता है
एक वक्त था हम भागते थे बोतलों से,
आज महेफीलो में पैग पहेला हमारा बनता है।
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तुजसे मील सके वो वक्त नहीं
तु मुझे मिले वो कायनात नहीं चाहती।
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तारीफो के पूल सजा देती
आखोको तेरी चांद से खूबसूरत के देती
तेरे हाथ मेरी लाटो मे उल्जे रहते थे।
ओर अब तेरी तस्वीर देखके समझाए पर
अब सामने आये तुम मेरे तो!
अब मुझे मेरी लिखी तारीफ तेरी तौहीन लगने लगी।
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चोरी चोरी क्यों मुझे देखता रहता है,
मुझे देखने के लिऐ क्यों बहाने ढूंढता रहता है।

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लोट जाओ वापिस अपनी मंजिल को मुसाफ़िर !
महोबत की राह में स्क्स और दिल वापिस नही मिला करते !!

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बादल बन कर बरसता हे मेरे लिए
प्यास बन के तरसता है मेरे लिए ।

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मुझसे नफरत भी बड़े प्यार से करता हे,
उसकी नफरत भी मुझे प्यार लगने लगी है।
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अंधेरा मिटाता नहीं मिटाना पड़ता है ,
बुझे चिराग को फिर से जलना पड़ता है।
यहा ईन लम्बी कतारों में कोई साथ नहीं निभाता ,
खुदका हाथ पकड़ खुद को ही आगे बढना पड़ता है।
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शुरू करते हैं फिर से माहोबत तुम चले आओ ,
थोड़ा हम बदल जाते हैं थोड़ा तुम बदल जाओ।
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जिंदगी बड़ी अजीब सी हो गई है , जो मुसाफिर थे,
वो रास नहीं आए , जीने चाहा वो साथ नहीं आये।

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जुनून सवार था किसीके अंदर जिंदा रहने का !
नतीजा यह आया की हम अपने अंदर ही मर गए !!
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सुना ही आज समुन्दर को बड़ा गुमान आया है,
उधर ही ले चलो कस्ती जहा तूफान आया है !!
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मेने इतनी सिद्धत से चाहा उसे
फिर भी ना कायनात ने मिलाया हमें
अब बता किस को गुनहगार कहूं
पूरी कायनात को या फिर मेरी महोबत को?
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-Nandita pandya