Meri Chuninda Laghukataye - 15 in Hindi Short Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 15

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 15

लघुकथा क्रमांक 40
जानवर कौन ?
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वह एक पशु चिकित्सक थी। पशुओं के प्रति प्रेम और करुणा ने उसे हमेशा पशु चिकित्सक बनने के लिए प्रेरित किया था।
वह अक्सर राह चलते हुए किसी भी घायल जानवर की मरहम पट्टी और दवाई कर देती थी। इससे मिलनेवाले आत्मिक खुशी की चाह में उसे अपने आर्थिक नुकसान की भी परवाह नहीं थी।
उस दिन भी हमेशा की तरह रात आठ बजे वह दवाखाना बंद करके अपनी स्कूटी से घर के लिए रवाना हुई। अचानक एक जगह स्कूटी का टायर पंचर हो गया।
वह सुनसान जगह थी और घर अभी दूर था। बढ़ रहे अँधेरे का ध्यान कर वह स्कूटी धकेलकर आगे बढ़ने लगी, तभी उसे कुछ आगे खड़े ट्रक के पास से दो लोग आते हुए दिखे।
उन लोगों ने मदद की पेशकश की।
उनसे बात करते हुए उसकी नजर एक आवारा कुत्ते पर पड़ी जो उसकी तरफ ही आ रहा था। वह उन इंसानों से बात कर रही थी लेकिन उसकी नजर उस कुत्ते पर थी जिसे उसने पहचान लिया था।
कुछ दिन पहले ही उसने इस घायल कुत्ते की मरहम पट्टी की थी। वह उसकी तरफ बढ़ते हुए अपनी पूँछ हिलाकर उसके प्रति अपनी खुशी और कृतज्ञता प्रकट कर रहा था। अभी वह कुत्ता उनसे कुछ दूरी पर ही था कि सुनसान देख दोनों नराधमों ने उस असहाय अबला पे जोर आजमाना शुरू कर दिया।
वह कुत्ता अचानक झपट पड़ा अपने मददकर्ता की मदद करने के लिए और उनमें से एक की टांग को उसने अपने मजबूत जबड़े में दबोच लिया। लेकिन वह घायल कुत्ता इन इंसानी दानवों का कब तक मुकाबला करता ? दूसरे ने अपने हाथ में पकड़े डंडे का एक सटीक प्रहार उस कुत्ते के सिर पर किया। चारों पैर फैला कर वह कुत्ता वहीं जमीन पर पसर गया।
मर्मांतक पीड़ा के साथ ही अश्रु उसकी आँखों से छलक पड़े। वह बेबसी से उन दोनों इंसानों को देख रहा था जिनके कुकृत्य से इंसानियत शर्मसार हो रही थी। इससे पहले कि वो दोनों नराधम अपने मकसद में कामयाब होते उस कुत्ते की आँखें स्वतः ही बंद हो गईं। शायद उसकी आत्मा अपने मददकर्ता का वह भयानक अंजाम देखने का साहस नहीं जुटा सकी थी।
उस बेबस बेजुबान की निर्जीव आँखों से अभी भी अश्रु छलक रहे थे और इधर दोनों इंसानी भेड़िए उस डॉक्टर के जिस्म को नोंचते हुए अपनी जीत का जश्न मना रहे थे।

(एक सत्य घटना पर आधारित )
राजकुमार कांदु
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लघुकथा क्रमांक 41
सस्ती मिठाई
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गाँव के बाजार में मोहनलाल की मिठाई व नाश्ते की एक दुकान थी।
पिछले साल की मंदी को ध्यान में रखते हुए मोहनलाल ने इस साल दिवाली से पहले ही सस्ती मिठाइयों का जुगाड़ कर लिया था। शायद इसी वजह से इस साल उनकी मिठाइयों की बिक्री शानदार हुई। लक्ष्मी पूजन की रात्रि में ही उनके पास उपलब्ध लगभग सभी मिठाइयाँ बिक गईं।

देर रात गल्ले में से पैसे निकाल कर सहेजते हुए मोहनलाल जी बहुत खुश नजर आ रहे थे। उनकी खुशी को महसूस करते हुए नौकर रामदीन रहस्यमय स्वर में बोला, "सेठ जी ! सस्ती मिठाइयाँ रखने का आपका फैसला बहुत सही साबित हुआ। दिनोंदिन बढ़ती महँगाई और घटती आमदनी के मार से त्रस्त लोग भला महँगी मिठाइयाँ खरीदते भी कैसे ? सस्ती मिठाई से देखो कितने लोगों का भला हो गया है।"

मंद मंद मुस्कुराते हुए मोहनलाल नोट सहेजते रहे तभी अचानक उनकी नजर सामने लगे टीवी पर पड़ी।
टी वी स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी और एंकर चीख चीख कर बता रहा था, 'जहरीली मिठाइयों के शिकार लगभग दो सौ से अधिक लोग शहर के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराए गए हैं, जिनमें से सोलह की हालत गंभीर बताई जा रही है।"
मोहनलाल के हाथों से नोटों की गड्डियाँ फिसल गईं और माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगी थीं।

राजकुमार कांदु