Laga Chunari me Daag - 1 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग--भाग(१)

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लागा चुनरी में दाग--भाग(१)

शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही शामिल हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है तो किसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था....
अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी दिनों से बीमार चल रही थी,अब उन्हें आस नहीं है कि वे और ज्यादा जी पाऐगी,इसलिए उन्होंने अपने गोद लिए बेटे को अपने पास बुलाकर लरझती आवाज़ में कहा....
"नकुल बेटा! लगता है भगवान का बुलावा आ गया है,तुम धनुष बाबू को फोन करके बुलवा लो,आखिरी बार उनके दर्शन हो जाते तो अच्छा रहता,मरते वक्त कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं रहनी चाहिए",
"जी! अम्मा! अभी बुलाएँ लेता हूँ उन्हें",
और ऐसा कहकर नकुल ने धनुष बाबू को फोन लगाया,धनुष बाबू मोबाइल फोन वगैरह से दूर रहते हैं, मोबाइल सम्भालना उन्हें झंझट का काम लगता है,इसलिए घर पर उन्होंने लैंडलाइन लगवा रखा है,इतने बड़े घर में वे अपने नौकर हरिया के साथ अकेले रहते हैं,वे प्रत्यन्चा माँ से उम्र में एकाध साल बड़े हैं,उनका प्रत्यन्चा माँ के साथ क्या रिश्ता है ये वे खुद ही नहीं जानते,बस उन दोनों का बेनाम सा रिश्ता सालों से यूँ ही चलता चला आ रहा है,उनके रिश्ते में इतनी पवित्रता है कि अगर उस रिश्ते को कोई नाम दे दिया जाता तो उस रिश्ते की पवित्रता नष्ट हो जाती,कहते हैं ना कि जिन रिश्तों का नाम नहीं होता वे रिश्ते ज्यादा चलते हैं,क्योंकि दिलों से बने रिश्तों की कोई मंजिल नहीं होती बस उसमें एक ठहराव होता है जो वक्त के साथ वहीं ठहर जाता है जहाँ उसे ठहरना चाहिए था ....
धनुष बाबू के घर के टेलीफोन की घण्टी बजी,उस समय धनुष बाबू घर पर नहीं थे,वे शाम की वाँक के लिए पार्क गए थे,फोन हरिया ने उठाया और नकुल की बात सुनकर बोला....
"नकुल बाबू!मैं मालिक से कह दूँगा कि आपका फोन आया था"
"ठीक है,याद से कह देना,भूलना मत,बहुत जरुरी बात करनी है",नकुल बोला...
"हाँ...हाँ...आप फिक्र मत कीजिए,मैं उन्हें बता दूँगा",हरिया बोला....
फिर नकुल ने फोन रख दिया और जब धनुष बाबू घर लौटे तो हरिया ने उन्हें नकुल का संदेश दिया और बोला कि आप उन्हें फोन कर लें बहुत जरुरी बात करनी हैं,फिर धनुष बाबू ने फौरन नकुल को फोन लगाकर पूछा कि क्या बात है और तब नकुल ने उनसे कहा कि आपको फौरन यहाँ आना होगा,प्रत्यन्चा माँ की तबियत बहुत खराब है,कह रहीं थीं कि आपसे आखिरी बार मिलना चाहतीं हैं,नकुल की बात सुनकर धनुष बाबू हरिया से बोले....
"हरिया! समान बाँध लो,हमें फौरन ही निकलना होगा",
"लेकिन हम कहाँ जा रहे हैं मालिक!",हरिया ने पूछा...
"बनारस...हम लोग बनारस जा रहे हैं",धनुष बाबू बोले...
"लेकिन क्यों?",हरिया ने पूछा...
"सबकुछ बताना जरूरी नहीं होता हरिया!,जैसा कहा है वैसा करो",धनुष बाबू बोले...
"ठीक है,तो मैं जाकर समान बाँधता हूँ",
और ऐसा कहकर हरिया सामान बाँधने लगा,कुछ ही देर में धनुष बाबू ने एक टैक्सी बुलवाई और चल पड़े स्टेशन की ओर,स्टेशन पहुँचकर उन्होंने ट्रेन का टिकट खरीदा और जा बैठे ट्रेन में,बाद में टीसी से कहकर और उसे कुछ रुपये देकर उन्होंने रिजर्वेशन वाले कम्पार्टमेन्ट में दो सीटें बुक करवा लीं,अभी शाम हुई थी रात ज्यादा नहीं गहराई थी और किसी स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो उन्होंने हरिया से दो प्लेट खाना पैक करवा लाने को कहा....
हरिया फौरन ही खाना पैक करवाकर ले आया फिर उन्होंने हरिया को अपने बगल में बैठाकर कहा...
"देख! मैं तो अब बनारस में ही रहूँगा,इसलिए तू गाँव लौट जाना,मेरे गाँव वाला घर और जमीन मैंने तेरे नाम कर दी है,उसके कागजात भी मेरे इस ब्रीफकेस में हैं और शहर वाला घर मैंने अनाथलय को दान कर दिया है,उसके पेपर भी इसी ब्रीफकेस में हैं,"
"ये क्या कह रहे हैं आप! मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा",हरिया बोला....
"बस! तूने मेरी बहुत सेवा कर ली,अब मैं वृद्धाश्रम में रहूँगा और तू अपने परिवार के पास गाँव में रहेगा," धनुष बाबू बोले...
"ये आप ठीक नहीं कर रहे हैं मालिक!",हरिया बोला...
"मैं तुझे आजाद कर रहा हूँ और तू रो रहा है,चल अब दुखी मत हो,खुद भी खाना खा ले और मुझे भी खिला" धनुष बाबू बोले....
और फिर हरिया ने पैक किया हुआ खाना खोलकर धनुष बाबू के सामने रख दिया,फिर दोनों खाना खाने में व्यस्त हो गए,खाना खाने के बाद धनुष बाबू बोले....
"ट्रेन पाँच बजे बनारस पहुँच जाऐगी,सोते मत रहना",
"जी! मालिक!"
और फिर दोनों अपनी अपनी सीट पर जाकर सो गए,भोर होते ही लगभग पाँच बजे ट्रेन बनारस पहुँच गई और दोनों ने वृद्धाश्रम जाने के लिए टैक्सी पकड़ ली,थोड़ी ही देर में दोनों वृद्धाश्रम पहुँच गए,नकुल उनका बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहा था और जैसे धनुष बाबू पहुँचे तो नकुल उनसे बोला...
"फौरन अम्मा के पास चलिए,वो आपकी बाट जोह रहीं हैं"
और फिर धनुष बाबू प्रत्यन्चा के पास पहुँचकर बोले....
"कैंसी हो प्रत्यन्चा?"
"आखिरी साँसें गिन रही थीं ,आपका ही इन्तजार था धनुष बाबू!,अब मैं सुकून से मर सकूँगीं"प्रत्यन्चा बोली...
"मुझे अकेला छोड़कर जा रही हो",धनुष बाबू ने पूछा...
"जाना तो नहीं चाहती लेकिन जाना पड़ेगा,शायद ऊपरवाले की यही मर्जी है",प्रत्यन्चा बोली...
और फिर कुछ देर के बाद प्रत्यन्चा के साँसों की माला टूटी और पल भर में वो इस संसार के बंधनों से मुक्त हो गई,धनुष बाबू ने एक बार प्रत्यन्चा को पुकारा और जब वो कुछ नहीं बोली तो वे बाहर आकर नकुल से बोले....
"बेटा! तुम्हारी माँ इस संसार से मुक्त हो चुकी है"
और ऐसा कहकर वो वहीं पड़ी बेंच पर बेसुध से बैठ गए,तभी उनके पास हरिया आया और बोला....
"मालिक! मन भारी मत कीजिए,जाने वाले को कौन रोक सकता है भला!",
लेकिन धनुष बाबू ने कोई जवाब नहीं दिया,तब हरिया को लगा कि शायद मालिक ज्यादा दुखी हैं,इसलिए उसने उन्हें हिलाकर कहा....
"मालिक! ऐसे हिम्मत नहीं हारते"
और उसी समय धनुष बाबू की गरदन एक ओर लुढ़क गई ,ये देखकर हरिया डर गया और उसने चिल्लाकर कहा...
"नकुल बाबू! जरा डाक्टर को बुलाइए,ना जाने मालिक को क्या हो गया"?
फिर डाक्टर साहब आए और उन्होंने जब धनुष बाबू का चेकअप किया तो बोले....
"बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अब ये नहीं रहे",
हरिया ये सुनकर रो पड़ा और उस दिन दो जनो का दाहसंस्कार हुआ,वृद्धाश्रम के सभी लोग दुख में डूबे हुए थे,लेकिन समय किसी के लिए नहीं रुकता,इन्सान हमेशा के लिए शोक मनाकर भी तो नहीं बैठ सकता,आगें बढ़ने का नाम ही जिन्दगी है और फिर दोनों जनों की तेहरवीं के बाद हरिया ने धनुष का ब्रीफकेस खोलकर कागजात निकाले और नकुल को दिखाते हुए बोला....
"ये मालिक की वसीयत है,भला पढ़िए कि इसमें क्या लिखा है,क्योंकि मुझे अंग्रेजी नहीं आती"
तब नकुल ने वसीयत पढ़ी और उस वसीयत में वही सब लिखा था जो धनुष बाबू ने ट्रेन में हरिया को बताया था,मतलब उन्हें पहले से ऐसा एहसास हो चुका था,इसलिए उन्होंने पहले से ही वसीयत बनवा ली थी....
फिर उस रात हरिया ने नकुल से बात करते हुए कहा....
"नकुल बाबू! आप मुझे बताऐगें की आपकी माँ और मेरे मालिक के बीच क्या रिश्ता था",
"जज्बाती,बेनाम सा पाक रिश्ता,जिसकी ब्याख्या नहीं की जा सकती",नकुल बोला....
"आपको तो सब मालूम होगा दोनों के बारें में तो मुझे भी कुछ बताइए ना!",हरिया बोला...
"उन दोनों के बारें में जानने के लिए तो पूरी रात भी कम पड़ जाएगी",नकुल बोला...
"लेकिन मुझे जानना है,आखिर इतना गहरा रिश्ता भी हो सकता है भला कि एक के जाते ही दूसरा भी दुनिया छोड़ दे",हरिया बोला...
"हाँ! क्योंकि धनुष से प्रत्यन्चा भला कैंसे दूर रह सकती है",नकुल बोला....
"अब तो आपको सुनानी होगी दोनों की कहानी",हरिया जिद करते हुए बोला...
तो सुनो...
और ऐसा कहकर नकुल हरिया को उन दोनों की कहानी सुनाने लगा...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...