डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा की लघुकथाएँ 04
धरती के भगवान
"माँ, माँ, मैंने अभी-अभी सपने में देखा कि भगवान जी हम लोगों को अपनी गोद में उठाकर दादा जी के गाँव छोड़ आए हैं। आप कहती थीं न कि सुबह का देखा सपना सच होता है। क्या मेरा सपना भी सच होगा ?" माँ की गोद में ही सोकर उठने के बाद आँख मलते हुए चार वर्षीय बेटे ने कहा।
"हाँ बेटा, धरती के कुछ भगवानों की बदौलत हम लोग हवाई जहाज से अपने शहर पहुंच चुके हैं। तुम गहरी नींद में थे। इसलिए जगाया नहीं। पीछे देखो, हमारे शहर का एयरपोर्ट। अब हम कुछ ही देर में बस से अपने गाँव पहुंच जाएँगे।" महिला ने संतोष भरे स्वर में कहा।
"सच माँ ?" बच्चे को यकीन नहीं हो रहा था।
"भगवान भला करें इन धरती के भगवानों का..." महिला हाथ जोड़े ईश्वर को धन्यवाद देने लगीं।
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वोटर की पॉलिटिक्स
“पिताजी, आप पिछले हफ्ते भर में पांच नेताओं से वोट देने के बदले में कुछ न कुछ उपहार या नगद राशि ले चुके हैं. वोट तो किसी भी एक ही को दे सकते हैं न, फिर ये... ?” उत्सुकतावश बारह वर्षीय बेटे ने अपने पिताजी से पूछा।
“हाँ बेटा, वोट तो एक ही व्यक्ति को दे सकता हूँ। वह जिसे देना है, उसे तो दे ही दूंगा, पर इन लोगों को, जो मतदाताओं को खरीदने का दंभ भर रहे हैं, उन्हें तो बिलकुल भी नहीं दूंगा। बेटा, जो आदमी जैसा होता है, वह दूसरों के विषय में भी वैसा ही सोचता है। ये लोग आज मतदाताओं को खरीदने की कोशिश कर रहे हैं, यदि किसी तरह जीत गए, तो कल देश को बेचने की कोशिश करेंगे।” पिताजी ने समझाते हुए कहा।
“यदि इन्हें वोट नहीं देना है, तो आपको इनसे कोई भी चीज नहीं लेनी चाहिए। आप ही मुझे ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं और आप ही ?” बेटे को सच जानने की जिज्ञाषा हो रही थी।
“बेटा, कभी-कभी बेईमान लोगों से बेईमानी से पेश आना पड़ता है। यदि मैंने इनके उपहार लेने से इनकार कर दिया, तो ये मुझे अपना दुश्मन मान बैठेंगे और परेशान करेंगे। इसलिए इनकी हाँ में हाँ मिलाना मेरी मजबूरी है, पर वोट तो पूर्णतः गोपनीय होता है। इसलिए वोट अपनी मर्जी से दूंगा।” पिताजी ने स्पष्ट किया।
अब बेटे की जिज्ञाषा शांत हो गई थी।
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गणेश जी की हैप्पी बर्थ डे
“गणेश बप्पा ! ये अच्छी बात नहीं है. आपका हैप्पी बर्थ डे आने वाला है और आप यूँ दुखी बैठे हैं. देखिए आपके भक्त कितने उत्साह से तैयारी में लगे हुए हैं.” गणेश जी को उदास देख नंदी महाराज बोले.
“इन भक्तों ने ही तो मुझे उदास कर रखा है नंदी काका ?” गणेश जी बोले.
“क्या ? ऐसा कैसे हो सकता है बप्पा ? देखिए आपके भक्त कितने उत्साहित हैं. आपका हैप्पी बर्थ डे मनाने के वास्ते पिछले हफ्तेभर से घूम-घूम कर चन्दा मांग रहे हैं. धूप-बरसात की परवाह किए बगैर सड़क पर खड़े हर आने-जाने वाले से चन्दा कलेक्ट कर रहे हैं. मूर्तिकार आपकी कितनी सुन्दर-सुन्दर प्रतिमाएं बना रहे हैं. उधर देखिए, उसने तो आपके मम्मी-पापा के साथ-साथ हमारी भी मूर्ति बनाई है.”
“यही बातें तो हमें परेशान कर रही हैं काका. अब हमारे ये भक्त, लोगों से जबरन चन्दा वसूल कर रहे हैं. चन्दा वसूली के लिए सड़क पर वाहनों को यूँ रोकना क्या ठीक है ? उधर मूर्तिकार मिट्टी की बजाय प्लास्टर ऑफ पेरिस और प्लास्टिक से हमारी मूर्तियाँ बना रहे हैं. विसर्जन के बाद ये तालाब और नदियों को प्रदूषित करेंगे. अब ये भक्त दस-बारह दिन हमारे अस्थायी केम्प बनाकर खूब उधम मचाएँगे. ऊँची आवाज में लाउड-स्पीकर चलाने से छोटे-छोटे बच्चों, मरीजों, बुजुर्गों और विद्यार्थियों को कितनी परेशानी होगी, इस बात की इन्हें कोई परवाह नहीं. ये तो बस शराबखोरी और धूम-धडाका ही करेंगे.”
“हाँ... ये बात तो है बप्पा.” नंदी भी सोच में पड़ गया था.
“नंदी काका, हद तो तब हो जाती है, जब मेरे इन भक्तों में से सैकड़ों लोग मेरा विसर्जन करते समय स्वयं नदी या तालाब में डूब कर मर जाते हैं.” कहते हुए गणेश जी की आँखों में आंसू आ गए.
“हाँ बेटा, चिंता की बात तो है.” नंदी बोले.
“काका, ये चाहें तो लोगों से जबरन चन्दा वसूली न कर स्वयं अपनी श्रद्धानुसार मेरा जन्मदिन सादगीपूर्ण ढंग से भी मना सकते हैं. आपको तो पता ही है कि मैं कितना सादगीपसंद हूँ. शोर-शराबा और नशे से तो मुझे सख्त नफ़रत है.” गणेश जी बोले.
“सही बोले बप्पा. यही बात तो लोगों को समझाना है. मैं जा रहा हूँ मुनादी करने कि अब से बप्पा का हैप्पी बर्थ डे सादगीपूर्ण ढंग से ही मनाना है.” नंदी जी बोले और निकल पड़े.
पीछे से आवाज सुनाई पड़ रही थी, सुनो...सुनो...
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़