Ae Watan Mere Watan Movie Review in Hindi Film Reviews by Mahendra Sharma books and stories PDF | ऐ वतन मेरे वतन फिल्म रिव्यू

Featured Books
Categories
Share

ऐ वतन मेरे वतन फिल्म रिव्यू

आज़ादी की लड़ाई केवल एक या दो संगठनों की नहीं थी पर इस लड़ाई में अनेक गुमनाम व्यक्ति भी सक्रिय तौर पर योगदान दे रहे थे जिनके नाम इतिहास के पन्नों में खो चुके हैं। ऐ वतन मेरे वतन ऐसे ही गुमनाम योधाओ की कहानी है जिनके क्रांतिकारी कार्यों से अंग्रेज सरकार की नीव कमज़ोर पड़ रही थी। फिल्म आई है एमेजॉन प्राईम पर। एक बार सह परिवार देखें और युवा पीढ़ी को दिखाएं क्योंकि आज आज़ादी के बाद यह हमारी तीसरी पीढ़ी है और उनका इस लड़ाई से जुड़ा हर सत्य जानना आवश्यक है।

उषा मेहता, इनका नाम आप या हम नहीं जानते क्यूंकि इनपर न कोई किताब लिखी गई और न ही इनका कोई किस्सा इतिहास की किताबों में हमें पढ़ाया गया। अकबर, बाबर, इब्राहिम लोदी, शाह जहां और बहादुर शाह ज़फ़र का जीवन और मरण हमारे लिए हमारी किताबों में अधिक महत्पूर्ण था। इसलिए आजादी के पश्चात भी भारतीय पाठशालाओं में हमें वह इतिहास पढ़ाया जा रहा है जो भारत की गुलामी की कहानी को दोहराता है।

उषा मेहता के क्रांतिकारी जीवन पर बनी यह फिल्म आजादी की लड़ाई के उस इतिहास को हमारे सामने ला रही है जिसमें गांधी और नेहरू नहीं पर अन्य क्रांतिकारी नायक हैं। यहां विचार गांधी के हैं, उन्हीं का नारा है पर बलिदान है उषा मेहता और उनके साथियों का।

करो या मरो, 1942 में महात्मा गांधी ने यह नारा देश को दिया और भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत बंबई से होकर पूरे देश तक पहुंच गई। इस आंदोलन में जुड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अब विश्वास हो चुका था की भारत आज़ाद हो जाएगा। इस आंदोलन ने जब पूरे भारत के क्रांतिकारियों के सीने में आग लगाई और हर गली और मुहल्ला आज़ादी की आग में जलते अंग्रेज़ सरकार के सामने विद्रोह कर रहा था तब अंग्रेजों ने कांग्रेस पर पाबंदी लगा दी। सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर दिए गए। उनकी अनुपस्थिति में कौन इस आंदोलन को आगे ले जाएगा?

तभी गांधीवादी विचार रखने वाली उषा मेहता और उनके दोस्तों ने कुछ ऐसा किया जिसने आज़ादी के आंदोलन की दिशा ही बदल दी। यह कार्य भले ही इतिहास के पन्नों में बढ़ी कठिनाई से ढूंढने से मिलता है पर इस कार्य को भारत छोड़ो आंदोलन की नींव की ईंट कहें तो यह बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगा।

फिल्म की बात करें तो सारा अली बनीं हैं उषा मेहता, उनके पिता जाने माने हिंदी और मराठी फिल्म के कलाकार सचिन खेडेकर और साथ हैं राम मनोहर लोहिया के किरदार में इमरान हाशमी। साथी कलाकार स्पर्श श्रीवास्तव ने फहद बनके उषा मेहता का बहुत ही अच्छा साथ दिया।

कहानी है एक गुप्त रेडियो स्टेशन बनाने की। एक ऐसा गुप्त रेडियो स्टेशन जो आगे चलकर आज़ादी की इस लड़ाई में एक बहुत बड़ा काम कर गया। लोगों को जोड़ने और जगाने में इस रेडियो ने एक नया आयाम स्थापित किया। राम मनोहर लोहिया जैसे आज़ादी के क्रांतिकारियों ने अपने विचार देशवासियों तक पहुंचाने के लिए इस गुप्त रेडियो को प्रबल माध्यम की तरह प्रयोग किया। यह उस समय हुआ जब अन्य रेडियो अखबार और समाचार सब अंग्रेज सरकार के अधिकार में थे।

फिल्म में १९४२ का भारत बहुत ही बारीकी से दिखाया गया है। आप स्क्रीन पर उस समय का बंबई शहर अच्छी तरफ अनुभव कर सकते हैं। किरदारों की वेशभूषा और भाषा सभी पर बढ़ी मेहनत की गई है। पर कहीं न कहीं कन्नन अइयर का निर्देशन थोड़ा फीका लगा। बैकग्राउंड म्यूजिक पर थोड़ा अच्छा काम किया जा सकता था। सारा अली इस रोल में थोड़ी निस्तेज लगीं । दर्शकों को इनसे स्क्रीन पर जुड़ने में कठिनाई होगी।

फिल्म आपको इसलिए देखनी चाहिए क्योंकि इस इतिहास की जानकारी सीमित है। उस समय की परिस्थिति और नव जवानों में जोश और देशभक्ति का माहोल, अंग्रेज सरकार का अतिशय अत्याचार और फिर भी भारत को आजाद करवाने की जिद, यह सब देखकर ही आपको ज्ञात होगा कि आज़ादी की लड़ाई एक की नही अनेक लोगों की थी और इस आज़ादी पर हमें गर्व करना आवश्यक है।
ए वतन मेरे वतन फिल्म एमेजॉन प्राईम पर उपलब्ध है।

आपको फिल्म समीक्षा कैसी लगी, अवश्य लाइक और कमेंट करके प्रोत्साहन देना न भूलें।

– महेंद्र शर्मा