Ishq Or Jazbaat in Hindi Drama by Maan Singh books and stories PDF | इश्क़ और जज़्बात

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इश्क़ और जज़्बात

रसोई घर एक आवाज़ आती है "तब पूछ रही हूँ, कहाँ है ये सुनैना? शादी का तय होना है, और वो गायब है।" यह औेर कोई नहीं बल्कि हमारी कहानी की हेरोइन की बुआ कीरत है, जो कि हमारी कहानी की हेरोइन सुनैना घर पर ना होने की वजह से गुस्से मेे थी।

दूसरी तरफ सुनैना की मां गुर्णीत कौर मिर्ची कूटते हुए बोली "तब ही तो पूछ रही हूँ ना! ये लड़की कहाँ घूम रही है?"


सुनैना अपने कॉलेज आयी हुई थी। छात्र-छात्राएं इधर-उधर घूम रहे हैं। सुनैना (खुश मुस्कान के साथ) अपने खाकी रंग की वर्दी में खड़ी है। वह किसी के साथ बात कर रही है और फिर हंसते हुए सड़क पर नाचती हुई चल पड़ती है।

"ये लोहड़ी का मजा ही कुछ और है!" सुनैना खुद ही से बाते करते हुए बोली।


इतने में सुनैना कॉलेज से बाज़ार पहुंच जाती है, सुनैना बाज़ार को देखकर चकित रह जाती है बाज़ार का दृश्य। दुकानें सजी हुई हैं। लोग खरीदारी कर रहे हैं। सुनैना (खुश) खाने की चीजों का आनंद ले रही है। दूसरी तरफ अदिति (परेशान) खड़ी है।

"दीदी! कल मेरा केमिस्ट्री का पेपर है और आज लोहड़ी भी है। अगर मैं फेल हो गई तो..." अदिति सुनैना से परेशान होते हुए कहती है।

तब सुनैना अदिति को परेशान देख के बोलती है "परेशान मत हो अदिति! तुम पढ़ाई करो, मैं तुम्हारे सारे काम कर दूंगी। रात को तो लोहड़ी का त्योहार है ही।"

"अरे हाँ! कोई मेरा इंतज़ार कर रहा है..." सुनैना अपने मन ही मन में ये बात सोच खेतो की तरफ दौड़ पड़ती है।

दूसरी तरफ अदिति अपनी हवेली के बाहर पहुंचती है, उसके रोंगटे खड़े होए रहते हैं, तभी अचानक उसे गुर्नीत कौर गुस्से में दरवाजे पर खड़ी दिखती है, अदिति डरती हुई अंदर आती है तभी...

"रुको..." गुर्नीत कौर गुस्से से बोलती है।
"जी... हा...जी..." अदिति के डर के मारे बस यही दो शब्द निकलते है। गुर्नीत कौर उसके पास जाती है।

"सुनैना कहां है" गुर्नीत उसे आंखो से घूरते हुए बोली।


गूर्नीत को गुस्से में देख अदिति को एक दम से पसीना आ जाता हैं।

"वो...वो कॉलेज को गई हैं...पढ़ने के लिए..." जैसे तैसे करके अदिति ने बोला।


सुनैना अब कॉलेज से सीधे मन में वोह बात सोच के सीधा खेतो में आ जाती है। सुनैना (तेज गति से दौड़ रही है)। वह एक लाल स्कूटी देखकर रुकती है और किसी को "लड्डू" कहकर पुकारती है।

"5 मिनट लेट हो सुनैना दीदी, घर में मुझसे कोई प्यार नहीं करता..." लड्डू नाराज़ होते हुए बोला। लड्डू और कोई नहीं बल्कि सुनैना का छोटा भाई है।


सुनैना ने लड्डू की तरफ देख ओर अपने कान पकड़ के बोली। "सॉरी लड्डू! जल्दी चलना है, घर पहुँचने में देर हो जाएगी।"

लड्डू हस्ते हुए "क्यों तुम्हारी शादी की बात हो रही तभी जल्दी चलना है, ना?"

ये बात सुन सुनैना झटके से लड्डू की तरफ देखती है।

सुनैना मुंह बनाते हुए बोली "भला ये क्या बात हुई।"

वहीं दूसरी तरफ सुनैना के दादा ( चौधरी यशपाल सिंह चड्डा ) मंदिर में पूजा करने आए हैं शांत मंदिर का दृश्य। दादा जी (पूजा करते हुए) दो अन्य पुरुषों के साथ खड़े हैं। तनवीर (परेशान) मंदिर में आता है और दादा जी को प्रणाम करता है।

दादा तनवीर को इस तरह से परेशान देख बोले "तनवीर, क्या बात है? इतने परेशान क्यों दिख रहे हो?"

तब तनवीर ने दादा से रोते हुए बोला "दादा जी, आपकी पोती लाजो... वो किसी के बेटे के साथ घर छोड़ भाग गई है, और उसको मार डाला...।"

"क्या बक रहे हो? अपनी बेटी पर ध्यान नहीं रख सकते हो?" तब दादा गुस्से से तिलमिला उठते है, और बोलते हैं।

तनवीर दादा की तरफ देखते हुए बोलता है "मैंने उसे बहुत समझाया दादा जी, लेकिन... उसने नहीं माना और उसको किसी ने मार डाला..."

दादा बीच में बात काटते हुए बोला "पर कुछ नहीं! दो चार थप्पड़ मारो, सब ठीक हो जाती।"

इतनी बात कहकर दादा बाहर की ओर चल पड़ते हैं।

एक महिला किसी उम्र लगभग 60 साल है वह मंदिर की तरफ रोते ओर चिल्लाते हुए आती है "लाजो! लाजो!"

यह महिला कोई और नहीं थी, बल्कि लाजो कि मां थी जो कि उसकी हत्या और घर से भाग जाने के कारण दुखी थी।

दादा मंदिर की पेड़ियो पर खड़े है। दादा जी, तनवीर, और अन्य पुरुष भी वही खड़े हैं। लाजो की माँ रो रही है। अमरजीत (दुखी) भी वहां मौजूद है। एक आदमी (अमरजीत के साथ) भी खड़ा है। लाजो की माँ उस आदमी को देखकर रुक जाती है और दोनों एक दूसरे को घूरते हैं।

सिकन्दर गुस्से से बोलता है "मेरी बहन लाजो को कहाँ ले जा रहा है?"

तब लाजो का भाई मुंह बनाते हुए बोला "लाजो अब आपकी बहन नहीं रही। उसने पूरे परिवार का नाम खराब किया है।"

"क्या बकवास है ये?" सिकंदर हैरानी और गुस्से से बोलता है।

अमरजीत सुनैना के पिता ऋषभ की और देखते हुए ओर तंज कसते हुए बोला "अगर! सुनैना ने भी ऐसा किया तो?"

दूसरी तरफ सुनैना स्कूटी चला रही है, ताकि वह जल्दी घर पहुंच सके। एक तेज रफ्तार से चलती हुई स्कूटी। सुनैना स्कूटी चला रही है। उसके साइड में ही एक कार तेज रफ्तार से आती है, उसकी चुन्नी हवा के कारण उस कार के टायर मेे जाके अटक जाती है। सुनैना साइड से आती हुई कार को देखकर चौंक जाती है, और स्कूटी कार में भीड़ जाती है।

"अरे मेरा दुपट्टा!" सुनैना हैरानी से बोलती है।

सुनैना का चुन्नी टायर के चारो और लिपट जाती है, और उसको खींचने पर फट जाती है।

एक्सीडेंट के बाद कार रुकी हुई थी। सुनैना (घबराई हुई) कार के जोर के कारण पास मेे पड़े घास के ढेर में गिर पड़ती हैं। उसका दुपट्टा कार के टायर मेे फंसा हुआ है, और सूट भी फट चुका है। कार से एक आदमी (चश्मे लगाए हुए) निकलता है। वह सुनैना को देखकर मदद के लिए जाता है।


"रुकिए!" सुनैना शर्म से बोलती है।

युवक सुनैना के पास पहुंचता है। सुनैना घबराई हुई नजरों से उसे देखती है। उसका दुपट्टा अभी भी कार के टायर मेे अटका हुआ है।


"आप ठीक हैं तो?" लड़का बोलता है।

सुनैना अपना चेहरा दुपट्टे से ढँक लेती है और भाग जाती है। युवक चौंक जाता है। सुनैना का दुपट्टा उसकी कार के टायर मेे ही रह जाता है।

सुनैना मन ही मन दुखी होती है "दुपट्टा!"

हवेली का भव्य प्रवेश द्वार। सुनैना (परेशान) दरवाजे के पास खड़ी है। वह इधर-उधर देखती है कि कोई उसे देख रहा है या नहीं।


सुनैना मन ही मन में सवाल करती है "अरे ओह! दुपट्टा खो गया तो अब क्या होगा? दादा जी को पता चल गया तो..."

वही हवेली का बाहर का दृश्य। एक जीप हवेली के सामने रुकती है। दादा जी, गीता के पिता, और उसका भाई जीप से बाहर निकलते हैं। गीता चौंक जाती है।

"दादा जी!" सुनैना हैरानी से बोलती है।

हवेली के अंदर का एक सादी सुंदर कमरा। कमरे के बीच में सुनैना खड़ी है। उसके हाथ पीठ के पीछे बंधे हुए हैं। दादा जी (गुस्से से) एक तरफ खड़े हैं। सुनैना के पिता (दुखी) और भाई (गुस्से से) दूसरी तरफ खड़े हैं। कीरत (दुखी) कमरे के कोने में खड़ी है।


दादा गुस्से से लकड़ी से मारते हुए बोलते है "इतनी हिम्मत! मुंबई की सड़कों पर घूमने की? वो भी बिना दुपट्टे के!"

सुनैना दर्द से कराहते हुए "दादा जी, सोरी..."

"दादा जी, इतनी सज़ा भी कम है क्या?" कीरत परेशान होकर ओर दुखी स्वर में बोली।

अमरजीत कीरत को रोकते हुए "किर रहने दो!"

"शादी सिर पर है और अभी से बगावत कर रही है! सीख लेगी सबक!" दादा लकड़ी से सुनैना को मारते हुए बोला।

"नहीं दादा जी, मेरी गलती थी..." लड्डू आगे बढ़ते हुए बोलता है।

अमरजीत लड्डू को आंखे दिखा के डराते हुए बोलता है "ओए..."


दादा जी गुस्से से तलवार उठाए हुए हैं। सुनैना डरी हुई नजरों से उन्हें देख रही है। कमरे का दरवाजा खुलता है और एक महिला चिल्लाती है।

एक महिला बाहर से खुशी से चिल्लाते हुए अन्दर आती है "मेहमान आ गए दादा जी! गेस्ट हाउस में ठहरे हुए हैं"

दादा जी तलवार नीचे कर देते हैं। सुनैना राहत की सांस लेती है। उसका चेहरा आंसुओं से लथपथ है।