मंदोदरी का दूसरा विवाह
सभी जानते हैं कि मंदोदरी महाबली रावण की पत्नी थी। उसके तीन पुत्र थे। मेघनाद, कुंभकरण और अंत्येक ।
राम-रावण युद्ध के बाद मंदोदरी युद्ध भूमि में गई। वह अपने पति, पुत्र और योद्धाओं के शव थे देखकर वह बहुत दुखी हुई। रावण कुल का पूरा नाश हो गया था। बचे थे तो विभीषण और कुछ स्त्रियाँ।
युद्ध भूमि में शव ही शव पड़े थे जैसे किसी महामारी ने लोगों के प्राण हर लिए हो। योद्धाओं के परिजन अपने प्रिय को ढूंढते व्याकुल थे और महिलाएं विलाप कर रही थी। बहुत ही दारुण और भयानक दृश्य था। मंदोदरी रावण के शव के पास बैठी विलाप करने लगी। बहुत ही कारुणिक दृश्य था।
उसी समय युद्ध भूमि का जायज लेने विभीषण के साथ राम भी मौजूद थे। दुखी तो वे भी थे लेकिन नियति के आगे कब किसकी चली है! रावण सीता हरण नहीं करता तो युद्ध की नौबत ही क्यों आती? रावण को अपने महाबली होने का अभिमान था, वह सोचता था ये बंदर मेरा और मेरी सेना का मुकाबला कैसे करेंगे? उस अभिमान ने उसे युद्ध के लिए उकसाया।
“माता मंदोदरी जो होना था वह हो चुका अब लंका के भविष्य की चिंता करो और रावण कुल को आगे बढ़ाओ। विजेता होने के नाते मैं लंका का राज्य विभीषण को सौंपता हूँ। मुझे विश्वास है विभीषण न्यायकारी और परोपकारी राजा सिद्ध होंगे। आप बुद्धिमता नारी है मेरा आपसे निवेदन है कि विभीषण की राज कार्य में सहायता करें।”
राज्याभिषेक के बाद राम ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बड़ी विनम्रता से मंदोदरी के समक्ष महाराज विभीषण से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। राज-काज और श्री लंका को मजबूत नेतृत्व प्रदान करने के लिए वैवाहिक बंधन जरूरी है और यह समय की माँग भी है।
मंदोदरी ने विचार किया, विधवा रहकर तो वह राजकाज में भाग नहीं ले पाएगी क्योंकि उस समय विधवा होना एक कलंक माना जाता था। विभीषण से विवाह कर वह इस कलंक से मुक्त हो सकती है। भाई की विधवा से दूसरा भाई विवाह कर सकता है यह उस समय की परम्परा थी जो आज भी कईं जगह प्रचिलित है। उसे लगा यह अनुचित प्रस्ताव नहीं है। राज काज करते समय महाराज विभीषण के सिंहासन के पास बैठने का अधिकार मिलेगा। इसे स्वीकार करने से उसका राजनैतिक और सामाजिक सम्मान बढ़ेगा। साथ ही विभीषण जैसा प्रभु राम का विश्वास पात्र पति मिलेगा। वैसे भी मंदोदरी और विभीषण के संबंध अच्छे रहे हैं। मंदोदरी को विभीषण की बुद्धिमता और करुणा पसंद थी। इस विवाह से उसे एक अच्छा जीवन साथी मिलेगा। यही सोचकर उन्होंने स्वीकृति दे दी।
इस विवाह से श्री लंका की प्रजा बहुत ही प्रसन्न थी। धीरे-धीरे राज्य में शान्ति और समृद्धि आयी। एक बार फिर नष्ट हुई लंका सोने की चिड़िया कहलाने लगी। विभीषण के राज में कोई असुर प्रजा को कष्ट देने की हिम्मत नहीं कर सकता था। असुरों को साफ निर्देश थे कि प्रजा के साथ अगर कोई अन्याय हुआ तो उसका उचित दंड दिया जायगा।
प्रजा अपने महाराज की जय जयकार करने लगी। जब अयोध्या के राजा राम को लंका के बारे में यह समाचार मिला तो वे अति प्रसन्न हुए और अयोध्या की तरफ से सहायता का प्रस्ताव भिजवाया।