who is the villain ? in Hindi Moral Stories by नंदी books and stories PDF | खलनायक कौन ?

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खलनायक कौन ?

गांव के एक छोटी सी जगह पर विद्यालय थी ।
जहां पर अध्यापक बहुत दूर दूसरे गांव से आया करते थे ।

जहां पर विद्यालय थी उस गांव का नाम श्रवणपुर था , और जहां से अध्यापक आया करते थे उस गांव का नाम मेलानगर था ।
अब इन दोनो गांव को जोड़ने का काम बस एक विद्यालय से होता था , क्यू की दोनो गांव के बीच एक नदी थी । परंतु विद्यालय में आने के लिए लोग नदी को पार करते श्रवणपुर में आया करते थे । जिससे दोनो गांव के संबंध बहत ही अच्छे थे ।

दो गांवों को इकठ्ठा किया जाए तो भी वहां की बस्ती एक हजार तक ही होगी ।
वहां किसानों की आबादी ज्यादा थी , पढ़े लिखे लोग गांव से पलायन होकर शहर ही तरफ चले जाते थे ।

कई सालों तक विद्यालय में बच्चे पढ़ते और उनके माता पिता उनको कमाने के लिए शहर भेज देते थे । और जो बच्चे पढ़कर गांव में रहते वो पंचायत में या तो कहीं बैंक में काम करते । जहां पर शिक्षण की अति आवश्यकता हो ।

दोनो गांव भी शहर के सरहद पर ही थे , लेकिन वहां पर शहर की तरह कोई भी सुविधा नहीं थी , कई बार तो बिजली भी चार दिन तक नही आती थी ।

विद्यालय में दोनो गांव के बच्चे पढ़ रहे थे , और विद्यालय का अध्यापक बच्चो को पढ़ाने के लिए आतुर रहता था । बस वो भी यही बात से दुखी था की पढ़ने के बाद बच्चे यहां से शहर में नौकरी करने चले जाते थे । जिससे दोनो गांव को लाभ नहीं होता था ।

एक दिन दोनो गांव के सरपंच विद्यालय की मुलाकात लेने के लिए साथ में पहुंचे । उन्होंने वहां पर देखा की विद्यालय की इमारत अभी झर – झर हो रही थी । उसके कारण दोनो सरपंच ने इमारत की मरम्मत के लिए दोनो गांव वालों को इकट्ठा किया ।
गांव वालो ने सरपंच की बातो को सम्मान देते हुए इमारत के लिए थोड़े थोड़े पैसे देने के लिए तैयार हो गए ।

लेकिन उसी समय शहर से आया हुआ एक डेढ़ साना इंसान बीच में खड़ा हो गया , उसने सबसे कहा की जिस गांव में विद्यालय है वो गांव मरम्मत के लिए पैसे कम देगी क्यू की यहां जमीन श्रवणपुर की है । इसके कारण दोनों गांव के सरपंच सोच में पड़ गए । उन्होंने फिर पंचायत को बिठाया और दश लोगों की वो पंचायत ने भी वही फैसला सुनाया की जहां जमीन है वो गांव मरम्मत के लिए पैसे कम देगी।

पंचायत का फैसला सब लोगों ने मान लिया और एक महीने के अंदर सबने तय की गई रकम सरपंच को जमा करवा दी । अब सरपंचों को मिली रकम इतनी थी की लगभग विद्यालय के कार्य को सम्पन्न किया जाए ।

विद्यालय के मरम्मत कार्य को चालूं करवाया गया , जिसके कारण वहां पढ़ रहे बच्चों की कुछ दिन तक छुट्टी हो गई । मरम्मत के लिए शहर से मजदूर मंगवाए गए थे , उसके कारण विद्यालय में लगी राशि कम पड़ने लगी । मरम्मत तीन महीनों तक चली , आधे से ज्यादा काम हो चुका था लेकिन फर्श और दरवाजे के कार्य बाकी रह गया था ।

अब और राशि के आवश्यकता के कारण मेलानगर के सरपंच ने श्रवणपुर के सरपंच को कहा की हमारे गांव ने पहले से ही ज्यादा राशि का योगदान दिया है । तो इस बार राशि को श्रवणपुर वाशियो से इकठ्ठा किया जाए ।
लेकिन श्रवणपुर का सरपंच इस बात पे इस बात पे सहमत नहीं हुआ ।
इसके कारण वहां पर विवाद बढ़ गया , और दोनो गांव की पंचायत को फिर से बुलाया गया। उसमे दलीलों के साथ यही तय हुआ की बाकी की राशि मेलानगर के लोग देंगे । या तो जब भी राशि इकठ्ठी होगी तब विद्यालय की मरम्मत करवाई जायेगी ।
लेकिन अब मेलानगर में कोई भी इंसान पैसे देने के लिए तैयार नहीं हुआ । दोनो गांव के लोग ये इंतजार में बैठ गए की राशि कब तक इकट्ठा होगी ।
विद्यालय के इस विवाद के कारण दोनो गांव के बीच कड़वाहट आ गई । और विद्यालय की मरम्मत सही से ना होने के कारण बच्चों की सुरक्षा के लिए विद्यालय को बंद रखा गया । और उसके बाद बच्चों के मन में शिक्षण से मन उठ गया ।

अब विद्यालय के पास एक ही इंसान खड़ा था , वो था अध्यापक ।

अब एक फैसले को वजह से विद्यालय में पढ़ाई बंद हो चुकी थी ।

अब ये बताओ की इसमें खलनायक कौन बना ?
१) समय
२) दोनो सरपंच
३) वो डेढ़ साना इंसान
४) ज्यादा पढ़ाई
या
५) गेरसमझ ???