color me shri ram in Hindi Spiritual Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | मोहे रंग दो श्री राम

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मोहे रंग दो श्री राम


आज होली का दिन है।श्री राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुए किष्किंधा राज्य में हैं।यहां वानरराज सुग्रीव से उनकी मित्रता हो चुकी है।श्री राम और लक्ष्मण पंपा नदी(वर्तमान नाम तुंगभद्रा नदी) के पास ऋष्यमूक पर्वत के एक पहाड़ी क्षेत्र में रुके हुए हैं।इस क्षेत्र में घने वन हैं और अपार प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा हुआ है।अभी थोड़ी देर पहले हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण से भेंटकर वापस लौटे हैं।किष्किंधा क्षेत्र अपनी वानस्पतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां पलाश,पीपल, आम्र, चंदन, नागकेसरी,अशोक, मंदार, कोविदार,अर्जुन और पुन्नाग के वृक्ष बहुतायत में हैं।इस पहाड़ी क्षेत्र में अनेक गुफाएं और कंदराएं हैं।
श्री राम और लक्ष्मण अयोध्या से हजारों योजन दूर भारतवर्ष के दक्षिणी क्षेत्र में हैं। श्री राम का ऐसा कोई दिन नहीं बीतता है,जब उन्हें जानकी जी की याद नहीं आती है। श्री राम के जीवन में जानकी जी के वियोग के कारण समय ठहर सा गया है लेकिन वास्तव में समय किसी के रोके नहीं रुकता है। श्री राम आज प्रातः से ही अयोध्या की होली का स्मरण कर रहे हैं।
होली के अवसर पर पूरी अयोध्या नगरी रंग से सराबोर हो जाती है। सर्वप्रथम महाराज दशरथ अपने उपासना कक्ष में श्री हरि विष्णु की मूर्ति का विधिवत पूजन करते हैं और उन्हें रोली अर्पित करते हैं। महाराज तथा रानियों के द्वारा श्री हरि के ललाट पर होली का तिलक लगाने के साथ ही होलिकोत्सव का प्रारंभ होता है। राम, लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न चारों कुमारों के होने से राज परिवार की होली का आनंद बहुगणित हो गया है। कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ का आशीर्वाद लेने के बाद महाराज दशरथ आगंतुक कक्ष में मंत्री परिषद के सदस्यों से होलिकोत्सव की शुभकामनाएं ग्रहण करते हैं और उन्हें भी बधाई तथा शुभ आशीष प्रदान करते हैं। दिन के प्रारंभिक प्रहर में प्रजा उनसे भेंट कर उन्हें होली की बधाई देती है और उन्हें रोली तिलक लगाती है।भीड़ बढ़ जाने पर प्रत्येक व्यक्ति से महाराज दशरथ का मिलना संभव नहीं हो पता है और वे राजप्रासाद के प्रथम तल की ओर प्रस्थान करते हैं।इसके पश्चात महाराज दशरथ राजप्रासाद के प्रथम तल पर बने हुए चौबारे से ही प्रजा को दर्शन देते हैं और उनकी बधाई तथा शुभकामनाएं स्वीकार करते हैं।संपूर्ण अयोध्या नगरी में होलिकोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। घर - घर में प्रसन्नता व्याप्त होती है।राजप्रासाद के प्रांगण में महाराज दशरथ,रानियां और चारों कुमार होली का त्यौहार मनाने के लिए एकत्र होते हैं।
राज्य की प्रजा के साथ होली का उत्सव मना लेने के बाद राजा दशरथ अपने परिवार के साथ होली मनाते हैं। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों कुमार पिताश्री तथा माता को रंग गुलाल लगाते हैं और पिताश्री महाराज दशरथ व माताएं चारों कुमारों के गालों पर रंग और गुलाल मलते हैं।महारानी कौशल्या, सुमित्रा और कैकेई की होली अपने सुपुत्रों के बिना अधूरी है।
“ओहो माता! अब बस भी करिए। मुझे कितना रंग और गुलाल लगाएंगी?”श्री राम माता कौशल्या से मनुहार करते हैं।
“जब तक तुम्हारे सांवले सलोने मुखड़े को पीले रंग में बदल न दूं।”माता कौशल्या अपने लाल के चेहरे को एक बार और रंग मलते हुए कहती हैं।
राम माताओं की पकड़ से छूटकर अपने भाइयों के पास जा पहुंचते हैं और चारों भाई मिलकर आपस में इस तरह रंग खेलते हैं कि रंगों से पुते हुए चेहरों से यह पहचान नहीं होती है कि राम कौन है, लक्ष्मण कौन है,भरत कौन है और शत्रुघ्न कौन है?
श्री राम विचारों की श्रृंखला से वापस वर्तमान में लौटे।अनुज लक्ष्मण एक पात्र में रंग लेकर उनके पास आते हैं। इस पात्र में श्री राम ने लक्ष्मण से टेसू के सूखे फूलों को कल रात पानी में भिगवाया था। आज सुबह यह गाढ़े सुर्ख होली के रंग में बदल गया। श्री राम ने लक्ष्मण जी के मस्तक पर इस स्वनिर्मित रंग से टीका लगाया और उनके गालों पर ढेर सारा रंग मल दिया। लक्ष्मण जी ने भी अपने बड़े भैया के मस्तक और गालों पर रंग का टीका लगाया और उनके चरण स्पर्श किए। इसके बाद श्री राम ने अपने दाहिने हाथ में ढेर सारा रंग लिया और उसे ऊपर उठाया। फिर अपना रंग वाला हाथ उन्होंने अपने सामने हवा में फैलाया जैसे किसी को रंग लगा रहे हों। किष्किंधा से हजारों योजन दूर श्रीलंका की अशोक वाटिका में सीता जी के गालों पर वही रंग उभर आया एकदम सुर्ख….। सीता जी ने भी इसी तरह टेसू के सूखे पुष्पों से रंग तैयार किया हुआ है। उन्होंने भी अपना हाथ हवा में बढ़ाया और इधर श्री राम के गालों पर वह रंग उभर आया।होली का एकदम पक्का रंग….। श्री राम मुस्कुरा उठे। जानकी जी के मुख पर भी मुस्कान तैरने लगी। अद्भुत होली श्री राम और जानकी जी की।
(श्री राम और माता सीता से प्रेरणा प्राप्त कर भक्तिभाव से लिखी गई एक काल्पनिक कथा)
डॉ योगेंद्र कुमार पांडेय