Prem Gali ati Sankari - 139 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 139

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प्रेम गली अति साँकरी - 139

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रोज़ ही बात होती थी सबसे, वीडियो कॉल! कितनी सुविधाएं जुटा रखी थीं इन लोगों ने एक ऐसे देश में जिसकी न तो भूमि अपनी थी, न ही वातावरण और तो और संस्कृति भी | कितने प्यार व अपनेपन से सुबह संध्या की आरती होती, प्रसाद बनता और सबमें वितरित होता | सच है, स्वीकारोक्ति होनी चाहिए अन्यथा मनुष्य मन की संवेदनाएं तो उसकी भीतरी सतह में होती ही हैं | अमोल, एमिली के पूरे परिवार में न कोई काल-गोरा था, न ऊंचा, नीचा था, न ही बड़ा छोटा!यह बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण बात थी कि एक प्रेमिल वातावरण में सब आनंदित रहते | अम्मा–पापा को देखकर लगता कि वे कितने आनंद में हैं | हम सब तृप्त हो जाते | 

एमिली के मॉम-डैड कितनी बढ़िया हिन्दी में बातें करते थे, सबके साथ संध्या-वंदन करते और यू.के अलग-अलग स्थानों पर, कंट्रीसाइड्स में लंबी ड्राइव के लिए निकल जाते | अब एमिली के पेरेंट्स भी अपने जीवन के लगभग उसी भाग में चल रहे थे जिसमें अम्मा-पापा थे | खूब पटरी बैठी थी इन चारों में | यही नहीं शहर के बड़े फेमस मॉल्स में जहाँ ‘सेल’का पता चलता, उधर गाड़ी उठाकर बच्चों की तरह चल देते | अमोल, एमिली खूब हँसते और बताते कि यहाँ सब बच्चे बन रहे हैं | लगता, सब अपने अंदर किसी बच्चे को जी रहे थे | 

पापा-अम्मा इतने खुश थे कि उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनके बेटे ने उनके लिए एक अलग ही स्वप्निल नगरी सी बसा दी थी | इंसान चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता, मन में ईमानदार नीयत होनी चाहिए | कई बार मैं मन में सोचती थी कि भाई का बहुत अच्छा रहा जो इतनी दूर जाकर बैठ गया | ठीक है, सफ़ल है, खुश है और उसके लिए, उसके परिवार के लिए हम सब खुश और गर्वित भी हैं | न केवल हम वरना एमिली के मम्मी-पापा पापा भी उतने ही खुश हैं लेकिन मुझे लगता कि उसके सामने कोई ऐसी ड्यूटी तो नहीं थी जो उसे हमेशा यहाँ पर तैनात रहने के लिए मजबूर रहना पड़े | ऐसी सोच से कभी मैं अपना मन दुखी भी कर लेती जब कि वह गलत था, मैं जानती भी थी | 

इतने लंबे बरसों में हम किसी ने भी उसे या उसके परिवार को अपने प्यार या ड्यूटी से हटते हुए देखा या महसूस नहीं किया था | जब भी कोई बात उसकी नज़र में आती, वह भारत आने के लिए, हम सब पर बेहिसाब खर्चे के लिए तैयार ही बैठा रहता | इतना प्रेमसिक्त हो जाता कि अपना सब कुछ हम सब पर न्योछावर कर डाले | कब से चाहता था कि अम्मा-पापा को अपने पास रखकर उनके साथ रहे, सेवा करे | अभी मेरी इस शादी के नाटक में वह क्या-क्या नहीं कर गया था जिसकी न तो ज़रूरत थीऔर न ही अपेक्षा!

इंसान की फितरत ऐसी ही है कि वह अपने अलावा सब पर शक करता है | वहाँ सब मिलकर बहुत खुश थे और मुझे--क्या हम सबको उन सबकी यह खुशी बनाए रखनी थी | जिसमें हम फँस गए थे या आगे भी कोई ऐसी तस्वीर दिमाग में बन रही थी कि कुछ बड़ी गड़बड़ होने वाली है उसको बचाना सबसे बड़ी बात थी और यह और भी बड़ी बात कि अम्मा-पापा और भाई-भाभी पर इसका कोई प्रेशर नहीं पड़ना चाहिए था | 

हम सब मिलकर अपनी स्कीम पर जो काम कर रहे थे उसमें हमने जय और प्रमोद जी के कई ऐसे परिचितों को जोड़ लिया था जिनकी जरूरत हमें पड़ने वाली थी | एक तरह से यह एक रिस्क था कि हमने पापा के पहचान की एजेंसियों से संपर्क न करके ऐसे लोगों से संपर्क किया था जिससे दूर-दूर तक किसी को प्लान की खबर न हो और सबसे बड़ी बात कि कहीं से कोई बात लीक न हो सके | सबसे बड़ी सी.आई.डी दीदी नाम की रहस्यमयी स्त्री की करनी जरूरी थी और यह कोई छोटी-मोटी बात न थी, बहुत महत्वपूर्ण थी | 

जबसे इस शर्बत की बॉटल का राज खुला था, चिंता कुछ ज़्यादा ही थी और ‘पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी’ की बात से सबके मन में एक अलग ही खलबली मचने लगी थी | यह औरत कैसे किसी को निकाल और किसी को जुड़वा सकती थी? वैसे होती कौन थी? सबके मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे और बार-बार मन के भीतर एक से दूसरा और दूसरे से तीसरा प्रश्न पंक्तिबद्ध होता जा रहा था जिनको जाने बिना तस्वीर का रुख स्पष्ट होने की कोई संभावना ही नहीं थी | 

हर इंसान का अपना शरीर होता है और उस पर पड़ने वाला प्रभाव भी किसी पर कुछ पड़ता है तो किसी पर किसी और प्रकार से | हम देखते हैं कि किसी मनुष्य पर कितनी भी परेशानियाँ आ जाएं, वह इतना उनसे अधिक परेशान या प्रभावित नहीं होता जितना एक दूसरा हो जाता है | इसका सीधा सा कारण होता है, हर मनुष्य का स्टेमिना, उसकी सहन करने की शक्ति जिस पर उसकी पूरी संवेदनाएँ आधारित रहती हैं | 

हमारे परिवार में पापा और दादी सबसे ‘स्ट्रॉंग’ माने जाते थे, दादा जी के अचानक परलोक गमन के बाद उन दोनों ने ही घर-परिवार, उनके द्वारा फैलाए गए व्यापार को संभाला था व बड़ा रूप बनाया था जब कि उत्तर-प्रदेश के उनके सारे सगे-संबंधी सदा उनकी खुली हुई मानसिकता के विरुद्ध ही रहे थे | वे दोनों किसी भी परिस्थिति में डटकर खड़े रहते और एक सुदृढ़ टीम की तरह सबको पीछे छोड़कर ही आगे निकलते | अम्मा के आने के बाद वे भी पक्का हिस्सा बन गईं और फिर हम भाई-बहन ! बाद में तो शीला दीदी और उनका पूरा परिवार भी और शेष सभी!

समय के साथ-साथ सब कुछ परिवर्तित होता है, मन-तन, भावनाएँ, सब परिस्थिति और चिंता के तहत बदलती रहती हैं और उनका प्रभाव भी!

“मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा अमी---”एक दिन अमोल का फ़ोन चुपचाप मेरे पास आया | वैसे तो अधिकतर सब लोग साथ मिलकर ही वीडियो-कॉल करते थे | इन सबको पूजा-अर्चना करते, घूमते हुए, मस्ती करते हुए देखकर हम सबको बहुत मज़ा आता | यहाँ तक कि यू.के विभिन्न शहरों में जहाँ अम्मा के संस्थान की शाखाएं खुली हुई थीं, वहाँ भी सब साथ जाते और खूब आनंद करते | हम सब यह देखकर बहुत खुश रहते थे, बस एक ही बड़ा काम करना था जिसकी तैयारी में हम दिन-रात जुटे हुए थे और बहुत गंभीरता से!

“क्या हुआ भाई ? ”जब अचानक अमोल का फ़ोन मेरे पास आया, मुझे चिंता होना स्वाभाविक था और मन में घबराहट भी !अभी तक तो उसने कोई ऐसी चिंता की बात की ही नहीं थी जिससे पापा की ढीली तबियत के बारे में कुछ हल्का सा आभास भी हो सके | 

सच कहूँ तो मैं घबरा ही गई थी | मैंने उससे कहा कि पापा-अम्मा से बात तो करवाए लेकिन वह बात करवा ही नहीं पा रहा था, अम्मा से भी बात नहीं इसलिए मन में कुछ-कुछ होता रहा | 

“भाई, कुछ तो बताओ, ”मैंने घबराकर कहा | 

“सब लोग कल एक मॉल गए थे, वहाँ पापा बिलकुल ठीक थे, मज़ा कर रहे थे | वाणी भी साथ थी तो पापा को और मज़ा आ रहा था | हम सबने ‘स्वाद’में इंडियन खाना खाया | तुम जानती हो, वह बहुत बड़ा रेस्टोरेंट नहीं है पर उसका खाना, खासकर ड्रिंक्स बहुत फेमस हैं | ”मैं जितनी बार भी गई थी, मैंने भी वहाँ के कुज़ीन का भरपूर स्वाद लिया था | 

“हुआ क्या है भाई ? ”मैंने बौखलाकर पूछा | 

“पापा ने दो-तीन तरह की ड्रिंक्स ऊपर-नीचे पी लीं | शायद उनका मन कुछ खाने का नहीं हो रहा था, उन्होंने अलग-अलग तरह की सॉफ़्ट ड्रिंक्स लीं और बेहोश हो गए | ”अमोल रोने लगा था | 

“कल से उनके सारे टेस्ट्स हो चुके हैं, हम लोग हॉस्पिटल में हैं, डॉक्टर्स की पूरी टीम है और उनका कहना है कि पापा ने कुछ दिन पहले जो ड्रिंक्स पीए थे, वे उन्हें सूट नहीं किए हैं | उन्हें ‘ब्रेन-स्ट्रोक’हो गया है | ”

मेरे हाथ में फ़ोन काँपने लगा और साथ ही मेरे सारा शरीर भी | 

“भाई, मैं एक चक्कर मार लेती हूँ | ”मैं अजीब सी हो उठी | जिनके लिए हम इतने छिप-छिपकर सारे कार्यक्रम बना रहे थे, वही----

“नहीं अमी! यहाँ हॉस्पिटल के नियम तुम जानती हो, मैं तुम्हें अपडेट करता रहूँगा लेकिन अम्मा से अभी बात मत करो | वे खुद बहुत परेशान हैं | सब सैंपिल्स् लेकर यहाँ के डॉक्टर्स दिल्ली के एक्सपर्ट्स से बात कर रहे हैं | सब गठीक होगा, तू चिंता मत कर | ”वह चुप हो गया फिर बोल उठा;

“वैसे वहाँ सब ठीक है न ? वो---” उसने पूछा | 

“हाँ, यहाँ सब ठीक है, तुम वहाँ की फ़िक्र करो | पापा को संभालो---जब कहोगे, मैं पापा को देखने आऊँगी--“मेरी आँखों से लगातार आँसुओं की बरसात शुरू हो चुकी थी | क्या हो रहा था ?