Shaapit khazana - 12 in Hindi Fiction Stories by Deepak Pawar books and stories PDF | शापित खज़ाना - 12

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शापित खज़ाना - 12

ज्वालामुखी पर्वत के मैदानों में रानी अपना आपा खो रही है एक सैनिक जिसे उसने अपने बुजुर्ग जादूगर के पास भेजा था उसने रानी के लिए अच्छी खबर नहीं लाई थी । रात के अंधेरे में महारानी के लिए बनाए गए विशाल टेंट के अंदर रोशनी जल रही थी और जगदीश के साथ ही कई रानी के गुलाम बने योद्धा भी रानी के गुस्से भरी आवाज़ सुनकर टेंट के बाहर से अंदर के नज़ारे को देख कांप गए ।
अंदर की जलती रोशनी में हलकी रानी और सैनिक की सिर्फ परछाई दिखाई दे रही थी पर जिस तरह रानी ने गुस्से सैनिक को पकड़ कर उसके सर को अपने मुंह में पकड़ धड़ से अलग किया था और धड़ से खून की पिचकारियां जैसे फवारों में बदल गई थी उसे देख जगदीश लगभग बेहोश होते होते बचा था । रानी अब एक एक पल में भयावह रूप लेने लगी थी और इस परिस्थिति में रानी के साथ हजारों शापित सैनिक और योद्धा भी अब काबू के बाहर होने लगे थे । मानो की जल्द उनका असली रूप बाहर आने को तड़प रहा है।
महारानी को बुजुर्ग जादूगर ने ही अब तक हर हमले से बचाया था पहले ही आगाह करते हुए । जब करण और रवि पहली बार आए थे तब यह वही बुजुर्ग जादूगर था जिसने भविष्य से मानवों के आने की बात रानी तक पहुंचाई थी । पर आज उस बुजुर्ग जादूगर ने रानी को जल्द ही उसके राज और शैतानी ताकत के खत्म होने के संकेतो के साथ ही चुडैल के महल में पहुंचे भविष्य मानव और सर्प प्रजाति के नागा लोगो की भी बात संदेश पहुचाई थी । रानी को यकीन नहीं हो रहा था इस बात का और यह दोनो संदेश रानी के लिए बिलकुल अच्छे नही थे । इसलिए रानी अब गुस्से में थी जिसकी परछाई टेंट के अंदर से बाहर बेहद डरावनी दिखाई दे रही थी । की रानी उठी और आईने के सामने जा खड़ी हुई उसने अपने सर के बालों में लगे एक पिन को बाहर निकाला और उसपर फूंक मारकर अपनी हथेली पर रख दिया ..,कुछ ही सेकंड वह पिन अपना रूप बदलने लगा और एक तोते में बदल गया । हरे रंग और हल्के लाल के साथ नीले रंग का यह तोता बेहद खूबसूरत दिखाई देने लगा,जिसके बाद रानी ने तोते के गर्दन को पकड़ कर उसकी चोंच में फूंक मारी और उसके आखों को देखने लगी कुछ ही पल में तोते की आंखे भी रानी की आखों जैसी दिखने लगी । अब रानी ने उसकी गर्दन छोड़ उसे एक टेबल पर रख दिया और उसे देखते हुए बोली ।

रानी-
सेवक तोते उड़ना है बदलो के नीचे पूर्व के अंधेरे पहाड़ों के पास ...देख तो सही मेरे सेवक कौन है तेरे रानी के दुश्मन...।

रानी के आवाज को सुनकर तोते ने रटना शुरू कर दिया ।
कौन है दुश्मन....?....कौन है दुश्मन....?...कौन है दुश्मन....?में देखूंगा .....
और यह रटते हुए तोते ने उड़ना शुरू किया रानी के टेंट से बाहर निकला और आसमान की तरफ बदलो के नीचे की दिशा में उठने लगा ...यह कोई साधारण तोता नही लग रहा था इसके उड़ने से मानो तोते के पंखों की एक बारीक चमचमाती लाइन आसमान में दिखाई देती और गायब हो जाती ।
अब इस टेंट के थोड़ी दूर पर जगदीश भी अपनी सिगार निकाल कर कश लेने लगा उसके कपाल पर पसीने की बुंदे साफ साफ जगदीश के अंतर्मन के डर को बता रही है पर अब वह फस गया था लालच में ।
रानी के आमोर और सामोर नामक दोनो योद्धा अब भी टेंट में बैठे विचारो में खोए थे उड़ते तोते को देख कर ।
रानी अपनी शैतानी सेना ले कर बैठ गई थी ना जाने उसे ऐसा क्यों लगाने लगा था की उसका अंत अब नजदीक है। बुजुर्ग जादूगर के संदेश में भी उसे कोई बचने का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था उसे लग रहा था की भविष्य मानव जो नागा प्रजाति के साथ है उन्हे पूर्णिमा की रात तक रोक लेने से वह फिर से कई सौ वर्ष के लिए जीने लगेगी और फिर नागा प्रजाति के साथ ही देवताओं के बौने और सूर्यनगर के योद्धाओं के साथ महाराज और दूसरे वफादारों को उनके श्रापित रूप में ही हमेशा के लिए मौत देकर खुद राज करेगी । रानी की बैचेनी का आलम यह था की उसने अपने जादू से एक तोता बनाया और नागा प्रजाति के सर्प के साथ भविष्य मानवों के ऊपर नजर बनानी शुरू कर दी ।…

अब चुडैल के महल के आगे आसमान में चमकाता तोता फर्राटे से उड़ते आया और महल के आगे बरगद के पेड़ की एक डाली पर बैठ गया । अब तोता तो ठहरा तोता उसने देखा महल उसे बड़ा सुंदर दिखाई दिया तो वह बड़बड़ाने लगा ..
तोता -
अररे .. वाह भाई…वाह चुडैल का महल बड़ा है सुंदर …वाह भाई वाह …मुझे रानी ने बताया था जंगल….यह तो है सुंदर सुंदर…।

फिर तोते ने महल की तरफ मारी उड़ान और सीधे महल के एक बड़े से खिड़की पर जा बैठा अब वह अंदर झांकने लगा ,उसने देखा की अंदर तो चुडैल और करण ,रवि और राका, नैनी,नाता के साथ कुछ बचे हुए सर्प सैनिक लड़ने में व्यस्त थे । दृश्य काफी भयावह था पर यह कोई साधारण तोता तो था नहीं को डर से भाग जाता । यह रानी का जादुई तोता था इसे एबी इनसब से डर लगना बंद हो गया था और वह ऊपर से चुडेल को देख रहा था । की तभी वहां विशाल गरुड़ की आवाज़ सुनकर तोता खिड़की से महल की तरफ छुपने लगा । और कुछ चंद पल के अंदर विशालकाय गरुड़ ने तोते को पकड़ने के लिए झपटा मारा …बाल बाल बचा तोता उसके करीब से गरुड़ के विशाल पंजे के नाखून महल की दीवार को रगड़ते हुए दिवाल में निशान बनाते बहार निकल गए थे ।

हालाकि गरुड़ जख्मी था पर अब भी वह उड़ने लगा था और तोते की शामत आने वाली थी ,। पर यह तोता भी ऐसा वैसा नही था बस इसका साइज थोड़ा नॉर्मल था पर उसे रानी ने बनाया था तो थोड़ी बहुत इंसानों का सोच उसमे थी । इस लिए अब बार बार तोता अपने आप को बचाने के लिए कुछ ना कुछ जगह ढूंढ लेता और पल में गायब होकर बचने वाली जगह पर आ जाता । तोते ने यह इतनी बार किया की विशालकाय गरुड़ भी अब थकने लगा था ।

महल के अंदर अब चुडैल राजकुमार के तस्वीर को देखकर काफी हद तक शांत हो गई थी और करण की तस्वीर में आग लगाने की धमकी काम कर गई थी । चुडैल के शांत होने पर करण ने चुडैल से बात करने की कोशिश शुरू की । पर इस समय रवि, नैनी नाता,सब कुएं के पास थे और अभी भी चुडैल उन्हें भयानक दिखाई दे रही थी इस वजह से करण बात करने में भी घबरा रहा था । आखिर कार उसने हिम्मत की ओर चुडैल को कहा ।

करण -
देखो चुडैल ….।
जैसे ही करण ने उसे चुडैल बोला वह फिर से गुस्से में पागल होने लगी और यह देखकर रवि ने करण को धीरे से नजदीक जा कर कहा ।
रवि -
अर्रर…मरवाएगा क्या..? उसके ही महल में उसको चुडैल मत बोल राजकुमारी बोल जल्दी ..वरना फिर से वो तूफान आंधी बड़े पेड़ और उसकी दोनो मेकप वाली भूतिया हरकते शुरू कर देंगी।…और हा उसका वो गरुड़ भी आ जायेगा…।
लगभग यही होने जा रहा था की करण ने अपनी आंखे बंद कर कहना शुरू किया ।
करण - राजकुमारी हमारी बात सुनो..हम तुम्हे मारने या लड़ने नही आए है…हमको तो उलटा तुम्हारी मद्दत की जरूरत है…। तुम्हारे राजकुमार को वापिस लाने के लिए ।

अब अचानक करण ने यह बात चिल्लाकर कह दी थी । और वाकई इसका असर अब होने लगा था । कुछ पल महल में खामोशी छाई और फिर महल की दिवारें फिर से अपनी जगह पर पहले की तरह लगने लगी अब भूलभुलेया वाला दृश्य भी इन दीवारों के सीधे होने से खत्म होने लगा और सभी इस परिवर्तन को देख रहे थे की तभी करण ने चुडैल की तरफ देखा तो वह भी आश्चर्य में डूब गया । अब चुडैल पूरी तरह एक 25 वर्ष की खूबसूरत राजकुमारी बन गई थी और उसकी वह दोनो साथी महिला भी वहा बेहद खूबसूरत लिबास में राजकुमारी के दोनो तरफ खड़ी हो गई । महल में अब तक जो हुआ और उसकी वजह से जो तोड़फोड़ हो गई थी अब वह भी गायब सी हो गई थी और महल अब बेहद खूबसूरत और आलीशान बन गया । बाहर के मौसम में भी बदलाव आया और खुशनुमा वातावरण बन गया । अब बाहर से भी चिड़ियों की आवाजे और शांत सी हवाओ के बहने का अंदाजा लगाया जा सकता था । हालाकि राका, नैनी, नाता, करण,रवि और सर्प सैनिक अब भी कुएं के पास सुरक्षित अदृश्य शक्तिशाली घेरे में थे ।अब जब करण ने राजकुमारी को देखा तो वाकई उसे वह बहौत ज्यादा खूबसूरत नजर आने लगी ।
अब बारी राजकुमारी की थी उसने कहना शुरू किया ।
राजकुमारी -
सुनो परदेसी घुसपैठियों भविष्य मानव और नागा सर्प प्रजाति के तुम लोग ..यहां आकर तुमने अपनी मौत को दावत दे दी है..पर जब तुमने राजकुमार की जान बचाने और उसे वापस लाने की बात कही तो मैं तुमापर रहम कर सकती हूं ।…बोलो क्या चाहिए तुम लोगो को …?
अब राका ने कहना शुरू किया ।
राका -
राजकुमारी वर्षो से हम नागा प्रजाति पहाड़ों और यहां की रक्षा मुर्दों के जंगल से करते रहे है…शायद तुम नही जानती पर तुम्हारे पिता भी अभी तक जिंदा है और राजकुमार भी…क्या तुम्हे नही पता यह एक श्राप है सूर्यनगर की रानी का ।
उसकी बात सुनकर राजकुमारी कहती है।
राजकुमारी -
हां..तो तुम मुझे श्राप के बारे में बताने आए थे …बस यही तो मेने सुन लिया ।
इनकी बात बिगड़ते देख रवि ने कहा ।
रवि -
राजकुमारी जी देखिए वैसे आपको कहना नही चाहिए पर आप भी जिंदा ही हो बस उस श्राप का असर से चुडैल बन गई हो….।
अब राजकुमारी ने रवि को बड़े गौर से देखा वह उसे देख रही थी की तभी महल के दरवाजे से विशाल गरुड़ अंदर आता है और राजकुमारी के नजदीक जमीन पर उतरते ही एक बलशाली मजबूत सैनिक के रूप में बदल जाता है। इसको देख कर सभी हैरान हो जाते है तब रवि बोल पड़ता है।
रवि -
हैं..अरे यह भी इंसान बन गया …गरुड़ था अभी तक हमको मरने पर तुला हुआ था …मतलब इसको भी श्राप ने ..।
अब इसबर वह विशालकाय गरुड़ से सैनिक बना व्यक्ति कहता है।
गरुड़ -
हां…मुझे भी श्राप दिया गया पर मैं सीमा से बाहर कूदकर भाग निकला और बाहर के बरगद पर कई दिनों तक बैठा रहा तभी रानी के शैतानी सैनिक वरिष्ट गुरुजी को बंदी बनाकर यहां से ले जा रहे थे और अचानक गुरुजी ने मुझे देखा और मेरी तरफ एक अपनी अंगूठी फेक दी मैने अंगूठी पहनी और श्राप से गरुड़ बन गया । मेरा काम राजकुमारी को बचाना है…उनकी रक्षा करना है…इस लिए में हमारी सीमाओं में आने वाले सभी अंजनाबियों को समाप्त कर देता हूं । पर आप लोग ना जाने कैसे मेरे बरगद के पेड़ तक आ गए और मेरी नज़रों से बच कर महल में घुस गए । पर अब राजकुमारी जब शांत हो चुकी है तो अपनी शर्त बताए।
राका गरुड़ की तरफ देख कहता है।
राका -
देखो गरुड़ सैनिक ..यह दोनो भविष्य मानव है…और जल्द ही यही दोनो राजकुमार को वापिस लायेंगे और तुम्हारे राजकुमारी का भी श्राप टूट जायेगा …पर इसके लिए हमें..हमसबको देवताओं के बौनो के नगर का रास्ता दिखाना होगा और उन देवताओं के बौनो के नगर में हमारा साथ भी …। मुझे पता है की विशाल गरुड़ वहा भी दिखाई दिया है इस लिए अब तुम मना नहीं कर सकते …। तुम खुद ही सोचो कई सौ वर्ष बीत चुके पर आज तक कोई भविष्य मानव आया हे यह …लोग वाकई हमारे साथ हमारी भलाई के लिए है।
राका की बात सुनकर राजकुमारी कहती है।

राजकुमारी - ठीक है…मुझे मंजूर है पर मैं तुम्हे वहा नही ले जा सकती हूं और ना तुमरे साथ आ सकती हूं । बस यह रास्ता दिखा सकती हूं….पर तुम्हे अपना वादा भी पूरा करना होगा …वरना मैं किसी को भी जीवित नहीं छोडूंगी…कहते हुए राजकुमारी महल के अपने बैठने वाली बड़ी आलीशान कुर्सी पर बैठ जाती है और अपने उंगली से अपनी कुएं से मिली तस्वीर के साथ राजकुमार की तस्वीर को दिखाते हुए कहती है।…अब यह राजकुमार की तस्वीर मुझे दे दो और मेरी तस्वीर भी ….।
करण यह सुनकर आगे बढ़ता है की तभी राका और रवि करण के कंधे पर पकड़ उसे रोक देते है और राका राजकुमारी की तरफ देखकर कहता है।
राका -
नही ऐसे नही…पहले हमे देवताओं के बौनो के नगर जल्द पहुंचने का रास्ता बताओ और उसके बाद हम देवताओं के बौने के नगर पहुंचकर यह तस्वीर देंगे …वरना नही.।
उसकी बात सुनकर गरुड़ सैनिक गुस्से से कहता है।
गरुड़ सैनिक -
तुम्हारी यह हिम्मत….की तुम अपनी शर्त हमारे महल में मनवाने के लिए जबरदस्ती कर रहे हो …।
तभी राजकुमारी अपने उंगलियों से बालो को सहलाते हुए कहती है।
राजकुमारी -
हां…मुझे मंजूर है..जैसे बौनो के नगर पहुचोगे वैसे ही मेरा सैनिक वहां आएगा और तुमलोग अपनी शर्त पूरी करोगे यह तस्वीरों को मुझे देकर ….।
अब राजकुमारी को देखकर सभी हा में सर हिला देते है।
21वीं सदी में प्रोफेसर प्राण अब भी उसी महाराष्ट्र के जंगल के बीच उस झील के किनारे अपने टेंट में बैठा हुआ कुछ सामान रिपेयर में जुटा हुआ है। उसके आसपास जगदीश के बॉडीगार्ड गुंडे और जगदीश की गर्ल फ्रेंड कामिनी भी बैठी सामने टेंट पर लगी बड़ी एल ई डी टीवी पर भूकंप के ग्राफ जैसे कुछ ग्राफों को देख रहे थे जो कभी चलते और कभी रुकते । इस टेंट के बाहर जगदीश के गार्ड थे तो अंदर अब उसकी गर्ल फ्रेंड कामिनी थी । प्रोफेसर प्राण लगभग कुछ इनसे छुप छुपाकर करने की कोशिश में है पर ना जाने वह क्यों इसे यहा छुपाकर बना रहे है। तभी जगदीश की प्रेमिका कामिनी ने प्रोफेसर को कहा ।

कामिनी -
प्रो कितने घंटे और लगेगे जगदीश को वापिस आने में …कही तुमने उसे हमेशा के लिए तो नही भेजा ना…।
उसकी बात सुनकर प्रोफेसर अपना नंबर का चश्मा सही करते हुए कहने लगे ।
प्रोफेसर -
देखो मेने जगदीश साहब को पहले ही मना किया था ….इस झील पर जाने से पर…पता नही उन्होंने करण और रवि को देखा गायब होते हुए तो ….।
कामिनी -
तो …वह खुद गया …यही ना ।
प्रोफेसर -
हां….यही …।
कामिनी -
देखो प्रोफेसर इस पूरे प्रोजेक्ट में अरबों हजार रुपयों की डील हे अगर वाकई….तुम्हारा यह स्टडी काम करता है तो…वरना तुम जगदीश को जानते हो …।
इतना कहकर वह टेंट से निकल जाती है और प्रोफेसर अपनी कुर्सी पर बैठकर सोचने लगते है।थोड़ी देर बाद प्रोफेसर को कुछ याद आता है। और वह अपनी जगह से उठकर अपने पीछे रखे एक बड़े ब्रीफकेस को देखने लगते और जल्द ही इस ब्रीफकेस को उठाकर इस टेंट के अंदर रखे एक टेबल पर रख देते है। यह वही ब्रीफकेस था जिसे जगदीश के आफिस की एक सुरक्षित तिजोरी में रखा गया था । और इस ब्रीफकेस में प्रोफेसर प्राण ने यहां इस जगह पर आने से पहले तिजोरी से एक इतिहास करो और पुरातत्वो के साथ काम करते एक मजदूर से छुपछुपाते पांच हजार रुपयों के लालच पर गेरकानुनी तरीके से ले लिया था और उसे जगदीश की तिजोरी में सुरक्षित रखा था । यह एक पुराना तांबे से बना हुआ मशीनी कैलेंडर जैसा यंत्र था और वह यंत्र इसी ब्रीफकेस में था । प्रोफेसर ने तुरंत टेबल पर यह ब्रीफकेस रखी और उसे खोला । अंदर एक चमड़े के छोटे से बॉक्स में यह रखा हुआ था अब प्रोफेसर ने इस चमड़े के बॉक्स को खोला और यहां प्रोफेसर को वह यंत्र दिखाई दिया । जिसके साथ एक तांबे की बनी पतली पट्टी पर कुछ लिखा हुआ था । यह भाषा काफी सदियों पुरानी थी और इसे प्रोफेसर पढ़ नही पा रहे थे कुछ लाइन उसे समझ में आई और कुछ का वह मतलब नही निकाल पा रहा था । की तभी प्रोफेसर ने अपना मोबाइल निकला और उससे एक फोटो उस तांबे के प्लेट की खींची और किसी को वह तस्वीर मोबाइल से भेज दी । अब प्रोफेसर इस यंत्र को बड़े ही सावधानी से ब्रीफकेस के अंदर से निकाल कर टेबल पर रखते है और गौर से उसे देखने लगते है। अपने मन ही मन वह बडबडा भी रहे हे…अगर मैं गलत नही तो यह यंत्र यहीं आसपास की जगह का लोकेशन पर काम करता होगा….कही यह दिशा सूचक ….अरे नही वो नही है…तो कही यह कोई कैलेंडर तो नही…मेनयुवल चलने वाला …क्या है और इतना सटीक केसे बनाया है…वो भी इस काल में जब इतनी बारीकी से इंजीनियरिंग करना पॉसिबल ही नहीं …।तभी प्रोफेसर के मोबाइल पर एक मेसेज आता है जिसे देख प्रोफेसर मोबाइल में लिखे मेसेज को पढ़ने लगता है जिसमे लिखा था ।
हाई…प्राण किधर हो भाई …आजकल वैसे तुमने तो रिटायरमेंट ले ली थी ना …अब फिर से काम शुरू कर दिया क्या…?
ठीक है..जो तस्वीर तुमने मुझे भेजी थी उसके अंदर की भाषा अब लुप्त हो चुकी है। पर मेरे एक दिल्ली के दोस्त ने इसे डिकोड कर दिया है शायद तुम्हे कुछ काम आ जाए ।
प्रोफेसर लगातार पढ़ रहे थे ।
आगे लिखा था मेसेज में ।

जब दोनो पहिए विपरित हो ,मध्य बिंदु एक समान अंतर पर,झील का जल,सूर्य की ज्वाला से समय और दिवस की होगी प्राप्ति ।

अब इस लाइन को पढ़ने के बाद प्रोफेसर यंत्र को गौर से देखने लगते है इस यंत्र में दो छोटे 5 इंच के किसी रथ के पहिए के जैसे डिजाइन किए दो पहिए एक साथ लगे थे एक नीचे तो दूसरा ऊपर ,और इनके बीचोबीच जो एक प्वाइंट था वहा यह दोनो जुड़े थे । जिस प्वाइंट पर एक बारीक सी खोखली तांबे की सुई थी और ठीक इन दोनो पहियों के नीचे कुछ खोखली जगह छोड़ी गई थी मानो वहा कुछ यह रखने के लिए हो पर सबसे अलग तो यह था की यंत्र एक गोल कटोरे में बना हुआ था । अब प्रोफेसर अपना काफी दिमाग लगाते है और फिर मेसेज में लिखी लाइन दोहराते है।

प्रोफ़ेसर - जब दोनो पहिए विपरित हो ,मध्य बिंदु एक समान अंतर पर,झील का जल ,सूर्य की ज्वाला से समय और दिवस की होगी प्राप्ति
मतलब एक अगर दाई तरफ घूमेगा तो दूसरा बाई तरफ और सूर्य की ज्वाला मतलब आग …हां आग यहां इसके बीच गर्म करना होगा …यस अब समझ गया ….।
तुरंत प्रोफेसर उठे और अपने जैकेट और पेंट कुछ ढूंढने लगे । पर शायद उन्हें लाइट या ऐसी चीज चाहिए थी जिससे आग जलाई जा सके वैसी उन्हे कोई चीज खुद के पास नही मिली तब आगे ही टेंट के एक दूसरे टेबल पर जगदीश का कोट उन्हें दिखाई दिया और जगदीश सिगार पिता था बस, प्रोफेसर तुरंत उस टेबल के पास पहुंचे और वहा रखे कोट के जेब में हाथ डाल दिया तो उन्हे जगदीश का वह महंगा वाला लाइटर मिल गया ।

अब सिर्फ एक हफ्ते का समय रह गया था पूर्णिमा की रात के लिए ।
रानी ज्वालामुखी पर्वत के मैदान में अपने सैनिकों के साथ इंतजार करने लग गई थी । रानी का सेवक तोता चुडैल राजकुमारी के महल जो हो रहा था वो देख रहा था । जगदीश और उसके लोग भी अपने अपने टेट में अब धीरे धीरे घुसुर फुसुर कर रहे थे । पर जगदीश किसी और फिराक में था इसका दिमाग अलग चल रहा था पर वह अभी खामोशी से सब कुछ होते हुए देख रहा था और अपने लोगो के पास जाकर कहता है।
जगदीश - तुम सब सावधान रहो यहां जो कुछ हो रहा है उसे होने दो बस जैसे ही हमे वो खजाना मिल जाए वैसे ही हम यहां से निकलने की कोशिश करेंगे …मेरी बात आई समझ में..!?.
उसे यू बोलता देख सब ने गौर से उसकी बात सुन ली थी इस लिए सबके सब एकसाथ पर धीरे से बोल पड़े - यस बॉस।

दूसरी ओर चुडैल के महल में अब राजकुमारी अपने खुद के रूप में आ गई थी ,जिसके सामने करण ,रवि नैनी, नाता राका और सर्प सैनिक कुएं के पास खड़े थे ।
अब राजकुमारी ने अपने सिंहासन के पास से एक फर्श की ईट पर अपना पैर रखा और फिर कुएं के चारोतरफ की ज़मीन भूकंप जैसे हिलने लगी। जिससे वहा खड़े सब घबराने लगे की तभी गरुड़ सैनिक ने कहा घबराओ मत कुएं की चारों दिवारी पर चढ़ जाओ यही से देवताओं के बौनो के नगर का एक रास्ता खुलेगा । उसकी बात सुनकर सभी लोग अब कुएं पर बनी चारो तरफ की 3 फीट ऊंची पत्थर के दीवार पर चढ जाते है और कुछ सेकंड में ही कुएं के बाहरी तरफ एक जमीन में सीधा कई फिट लंबा दूसरा कुआं बन जाता है। अब हालात ऐसे थे की एक बड़े कुएं के अंदर एक छोटा कुआ बन गया था मानो इस कुएं को जिसपर सब खड़े थे उसे किसीने इस बने हुए बड़े कुएं में बीचों बीच गाड़ दिया हो ।
राजकुमारी ने सबकी तरफ देख कहा ।

राजकुमारी - भविष्य मानव तुम लोगो ने मुझसे वादा किया है यह तुम्हे भूलना नहीं चाहिए ।( कुछ पल रुकने के बाद ) कुएं के चारो तरफ बनी सीढ़ियों को दिखाते हुए कहती है। .. जहा खड़े हो उस कुएं पर नीचे देखो बाहर की दिशा में सीढ़िया है.. इनमें से आपलोगो को हर पचास सीढ़ियों पर एक दरवाजा और वहा जाने के लिए रास्ता दिखाई देगा पर याद रहे…सवा सौ सीढ़ी की गिनती पर तुम्हे देवताओं के बौनो के नगर का रास्ता दिखाई देगा ।…. सीढ़िया गिनने में गलती करोगे तो मौत या श्राप निश्चित है।
राजकुमारी की बात सुनकर रवि ने राका की तरफ देखा और कहा । राका जी ..आपकी गिनती अच्छी है ना…पता नही इस युग में सवा सौ की गिनती ठीक है या एकाद माइनस प्लस …।
उसकी बात बिचमे काटते हुए नाता ने कहा -
नाता - उसकी फिक्र मत करो हमारे सर्प सैनिक इसमें बहुत ज्ञानी है।
नाता को देख रवि ने सर्प सैनिकों पर नज़र घूमते हुए कहा ।
रवि - हम्म वह तो देख ही लिया जब निकले थे तो डबल थे अभी आधे भी नही बचे है।
तभी गरुड़ सैनिक ने कहा - अब जल्दी करो जाओ..।
इसके साथ ही राका अब अपने घायल पैर से लगड़ाते हुए चलने लगा की राजकुमारी ने उसके घायल पैर को देख कर अपनी आखें बंद की और अपनी जगह पर खड़े हो कर हाथो की उंगलियां नाचने लगी इससे चमत्कार हो गया राका का दर्द खत्म हो गया और उसने नीचे अपने पैर को देखा तो वह ठीक हो गया था । उसने राजकुमारी को देखा और चलते चलते अपने सीने पर हाथ रख राजकुमारी को गर्दन झुकाकर आभार व्यक्त किया। अब आगे आगे बचे हुए सर्प सैनिक नीचे कुएं के बाहरी तरफ बनी सीढ़ियों से उतरने लगे और उनके पीछे यह तीनों। यह सारा दृश्य अब भी सेवक तोता खिड़की पर बैठे बैठे देख रहा था । जब तक करण, रवि नैनी नाता राका और सर्प सैनिक लगभग कुएं के अंदर के अंधेरे में खो जाने तक । अब सेवक तोता ने अपने पंख फड़फड़ाए और यह उसकी बड़ी भूल हो गई । महल में गरुड़ सैनिक था जैसे सेवक तोते ने पंख फड़फड़ाए वैसे ही गरुड़ सैनिक अपने गरुड़ के रूप में आया और सेवक तोता कुछ समझ पाता इसके पहले वह उसके पंजों में जकड़ चुका था । जिसकी वजह से उसके दाहिनी दिशा के कुछ पंख उखड़ गए और तोता अपनी आजादी के लिए छटपटाने लगा ,उसे अपने सामने साक्षात मौत नाचती नजर आने लगी । अब गरुड़ पुनः अपने मानवीय रूप में आ गया और अपने हाथ में पकड़े तोते को देखने लगा । इसके पहले की गरुड़ उसे राजकुमारी के सामने ले जाता तोते ने गरुड़ के हाथ में अपनी पूरी ताकत लगाकर चोंच से काट लिया जिससे मानवीय शरीर में गरुड़ ने अपने हाथो को झटक दिया । इससे सेवक तोता तो पकड़ से छूटा पर वह सीधे बड़े कुएं में जा गिरा उसने उड़ने की बड़ी कोशिश की पर तेजी से अब वह नीचे जा रहा था ।
सीढ़िया उतरते हुए अब घुप्प अंधेरा था और नीचे से एकमात्र रोशनी के सहारे सीढ़िया दिखाई दे रही थी । काफी देर सीढ़िया उतरते के बाद सर्प सैनिक रुक जाते है और राका की तरफ इशारा कर सवा सौ सीढियां पूरी होने की बात बताते है। राका उन्हें रुककर शांति से अंधेरे में देखने कहता है की कही कोई रास्ता या रोशनी मिल जाए । तभी सबसे आगे का सर्प सैनिक अपने आगे इशारा कर एक लकड़ी के कच्चे पूल की तरफ इशारा करता है यह पुल दस मीटर का था पर एकसाथ सभी इसपर खड़े हो गए तो टूट भी सकता था इस लिए एक एक कर सभी पुल पर आगे बढ़ने लगे इस पुल के आखरी छोर पर सूरज की कुछ हल्की रोशनी आ रही थी । काफी सावधानी के बाद सभी सुरक्षित पुल के पार पहुंच गए थे जहा एक भव्य दरवाजा था और उसके पीछे खूबसूरत नीला आसमान ,पहाड़ों पर लाल और पीले जमुनी रंग के फूलों के पौधे,बड़े बड़े पैड बड़ा ही खूबसूरत और खुशनुमा मौसम वाला यह दृश्य देख सबने दौड़ लगा दी उस चमचमाते दरवाजे की दिशा में और सभी दरवाजा पार कर फूलों से ढंकी पहाड़ी पर ,खूबसूरत वातावरण में आने के बाद जैसे मोहित हो गए । सभी खुश दिखाई दे रहे थे की करण ने पीछे मुड़कर दरवाजे की दिशा में देखा तो वहा दरवाजे पर गरुड़ सैनिक अपने अस्त्र शस्त्र और योद्धा के वेशभूषा में खड़ा दिखाई दिया ,जिसे देख करण समझ गया कि यह राजकुमारी और राजकुमार की वह तस्वीर लेने आया है। जल्द ही सबने उसे देख लिया । अब करण ने गरुड़ को देख कहा ।
करण - क्या हम देवताओं के बौनो के नगर में पहुंच गए ..?
गरुड़ सैनिक ने जवाब दिया - हां यहां से उनकी सीमा शुरू हो जाती है.. जैसे जैसे आगे बढ़ोगे वैसे वैसे तुम लोगो को बौनो के संकेत मिलना शुरू हो जाएगा …और एक समय आने पर तुम नगर में पहुंच जाओगे …। अब मुझे जाना होगा अपनी शर्त पूरी करो…।
यह कहते हुए गरुड़ सैनिक अपना हाथ आगे बढ़ता है और करण राका से राजकुमार की तस्वीर ले कर उसे राजकुमारी की तस्वीर के साथ गरुड़ के हाथ पर रख देता है। जैसे ही तस्वीर गरुड़ के हाथ आती है वैसे ही गरुड़ वहा से अचानक गायब हो जाता है और साथ ही वह दरवाजा भी । जैसे वहां कभी कुछ था ही नही ..अब वहा भी फूलों और पैडों से भरी पहाड़ी दिखाई देने लगी थी ।
कुछ समय यहां पहाड़ियों की सुंदरता देखने के बाद राका ने सबकी तरफ इशारा करते हुए कहा ।
राका - दिखाने में बहौत खूबसूरत जरूर है पर ..संभाल कर कपने कदम आगे रखना ….यह बौने बहुत जल्दी गुस्सा जाते है….और जबतक इन्हे भरोसा नहीं हो पाता तब तक यहां से बाहर भागने में कोई कसर नहीं छोड़ते …इन पगडंडियों पर दोनो तरफ खूबसूरत फूलों के पौधों में भी बौने…अपना जादू सरहद की रक्षा के लिए डालकर रखते है…..।
अब राका की बात सुनकर करण ने कहा।
करण - मतलब ..!?
राका -मतलब यह की …इस रास्ते पर अगर कोई जीव जंतु तुम्हें डराने आए …तुम पर हमला करने कूदे या तुम्हारा पैर पकड़ ले तो भी उसे कुछ नहीं करना …।
करण - कुछ नही करना …भाई साहब जान बचेगी ही नही फिर ….!?
राका - घबराओ नहीं बौने शैतानी करते है पर जान से नही मारते अगर तुम …अच्छी आत्मा हो तो ।
करण - तो करते क्या हैं सिर्फ डराते है?
राका अभी जवाब देने ही वाला था की एक सर्प सैनिक ने सबको किसी के होने का इशारा दिया जो सर्प सैनिक सबसे आगे इन खूबसूरत पगडंडियों पर चल रहा था । उसके इशारे से सभी अपनी जगह सावधान हो गए और शांति से खड़े हो गए पर देखते ही देखते आगे चल रहे 8 सर्प सैनिक अचानक ही आस पास के फूलों के पौधों में खींच गए जैसे नीचे कोई गड्ढा बना हो ,कुछ समझ आए इससे पहले अब करण,राका नैनी नाता रवि के सामने से सर्प सैनिक गायब हो गए थे बस उनकी गले में घुटी चीख का हलका कतरा सुना था सबने । थोड़ी देर यूं ही खड़े रहने के बाद राका ने मोर्चा संभाला और अपने पीछे आने के लिए कहते हुए आगे बढ़ने लगा ,सभी उसके पीछे सावधान अस्वथा में थे रवि के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था की उसे डर लगना शुरू हो गया है और इससे उसके चेहरे पर पसीने की बुंदे भी उभर आई थी । कुछ दूर चलने पर अचानक ही नैनी के पैर के पास फूलों के पौधे से एक हाथ तेज गति से आया और नैनी का पैर पकड़ कर खींचने लगा जिससे करण की निगाहे इस हाथ की तरफ गई तो उसने देखा की किसी छोटे से बच्चे का वह हाथ था । और फिर करण ने फुर्ती दिखाते हुए पौधे के अंदर अपना हाथ डाल दिया और कुछ पलों में ही उसने एक छोटे से बौने को इन पौधों से बाहर खींच लिया उसके सर के भूरे और अजीब बालो को पकड़ कर । बौना छटपटाने लगा और देखते ही देखते उसने करण के हाथ में जोरदार दातों से काट लिया जिससे करण की पकड़ ढीली हो गई और बौना छूट गया । वह बौना था पर गजब की रफ्तार थी उसकी छूटते ही सीधा पौधे में ऐसे गायब हुआ मानो वो रॉकेट था । खैर अब नैनी ने पहली बार करण के प्रति संवेदना दिखाते हुए उसके हाथ को देखा और कहा ।
नैनी - अकसर बौने काट लेते है जब उन्हें कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई देता बचने का …तुम भविष्य से आए हो पर यहां ध्यान रखो जबतक अजनबी अपनी पहचान नहीं बताता तब तक वह दुश्मन है…तुम्हारा यह घाव जल्द ठीक हो जायेगा ..।
नैनी अब करण के हाथ को पकड़ कर उसपर अपने एक छोटी कमर में बंधी थैली से मिट्टी जैसा कुछ चूर्ण निकलती है और घाव पर मां देती है। यह देख करण उसे इंग्लिश में कहता है।
करण - थैंक्यू।
हालाकि नैनी को यह समझ नही आता पर वह उसके मुंह को गौर से देख फिर चलना शुरू कर देती है सबके साथ । करण और रवि भी चुपचाप आसपास देखते अपने कदम आगे बढ़ाने लगते है। कुछ देर चलने के बाद सभी चलते हुए थक जाते है और अब सुनहरे दिन के बाद सूर्य ढलने को है इस लिए सब कही रुककर आराम करने का विचार करते है पर तभी राका सबको ना रुकने को कहकर फिर चलना शुरू कर देता है । करण और रवि का तो हाल ही खराब था । पूरा दिन खत्म होने पर था और अब दोनो को भूख भी लगने लगी थी ।वही हाल नैनी और नाता का था उन दोनो को भी अब ना जाने कैसे बहौत जोरो की भूख का एहसास होने लगा था । अंधेरा अब छाने को है और अभी यह सब कई किलोमीटर चल चुके थे बस अब सब्र का बांध करण और रवि से नहीं रोके रुक रहा था । बस उन्होंने राका को कहा ।
करण - सरदार राका अब मुझसे चला नही जाएगा …बेहद थक गया हूं…और भूख भी जोरो की लगी है…।
करण की हा में हा मिलते हुए रवि ने भी कहा ।
रवि - हां सही बात है सरदार हम मनुष्य है दोनो …कोई घोड़े या खच्चर नही…में अब नही चल सकता …।
राका ने सिर्फ मुड़कर देखा और कहा ।
राका - कोई बात नही जरा सामने देखो इस पहाड़ी के नजदीक के टीले पर …। हम वहा जाकर रात रुकेंगे ।
राका की बात सुनकर सबने पहाड़ी के नजदीक एक टीले पर देखना शुरू किया । वहा एक छोटी सी बस्ती नजर आ रही थी मुश्किल से दो चार घर बने हुए दिखाई दे रहे थे । चुकी अब शाम ढल चुकी थी इसलिए इन घरों में कंदील की बत्तियां भी रोशनी फैलते दिखाई दे रही थी । पर अब भी यह लोग इस बस्ती से काफी दूर थे और वहा जाने के लिए पहाड़ी से उतरना बाकी था । जिससे राका ने सबसे कहा ।
राका - अगर आप लोग थोड़ी चाल तेज करे चलने की तो हम जल्द वहा पहुंच जायेंगे और खाना के साथ आराम का भी कोई इंतजाम हो पाएगा ।
राका की बात सुनकर अब सभी चारो लोग जल्द कदम उठाने लग गए थे । और देखते ही देखते थोड़े समय बाद पांचों टीले पर बनी इस बस्ती में दाखिल हो रहे थे ।
वाकई शानदार नजारा था रात के अंधेरे में भी कंदील की रोशनी में अब यह छोटी सी बस्ती बेहद उम्दा इंजीनियरिंग की मिसाल थी । यहां घरों के जो रूपरंग और डिजाइन ऐसी थी कि पहले नीचे आंगन और विशाल एक घर जिसमे तीन मंजिलें और बाइस कमरे हर एक मंजिल पर कंदिल की रोशनी आंगन में फूलों का बगीचा और एक सुंदर विशाल वृक्ष इस विशाल वृक्ष की ऊंचाई इतनी की सबको अपने गर्दन आसमान की तरफ करनी पड़ी । राका एक ऐसे ही घर के सामने खड़ा हो जाता है और सबको इशारे से बाहर ही रहने को कहकर घर के दरवाजे पर लटकी बड़ी सी लोहे की कुंडी से खटखटाता है। आंगन के बाहर चारो करण, रवि, नैनी,नाता खड़े हो कर यह सब देख रहे थे । तभी अचानक दरवाजा खुलता है ।