भाग 22
पिछले भाग में आपने पढ़ा की रज्जो को अपने मां बनने की आहट सुनाई देती है। कुछ समय बाद जय उसे घर अम्मा की देख रेख में छोड़ जाता है। पर जगत रानी उसे अलग उसके घर के हिस्से में रहने को बोलती है। सास की आज्ञा का पालन कर रज्जो घर के अपने हिस्से में रहने लगती है। और जय वापस चला जाता है। अब आगे पढ़े।
रज्जो जब भी गुलाबो के बच्चों को देखती बुलाने का इशारा करती। बच्चे पहले तो अपनी मां और दादी के डर से नहीं आते थे। पर कुछ समय बाद जैसे ही वो दोनो इधर उधर होती। उनकी निगाह बचा कर श्याम रिद्धि सिद्धि को साथ ले कर अपनी बड़ी मां के पास चला आता। रज्जो उन पर अपनी ममता लुटाती। और कुछ ना कुछ खाने को जरूर देती।
आज जब रज्जो ने उरद दाल की रिकवच (कढ़ी) बनाई थी। उसकी आंखें सामने कुएं पर लगी थी। वो इंतजार कर रही थी की जैसे ही विश्वनाथ जी नहा कर आएं। उन्हें गर्मा गर्म खाना परोस दे।
ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा रज्जो को। ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए विश्वनाथ आ गए। जैसे ही पूजा खत्म हुई रज्जो थाली ले कर आई पीढे के पास रख दिया और पल्ला संभाले जाने लगी। रिकवच कढ़ी जगत रानी को भी बहुत पसंद थी। पर क्या करती …? वो तो पहले ही रज्जो को सख्ती से मना कर चुकी थी। जब रज्जो जाने लगी तो जगत रानी को रज्जो को पर कुछ ऊंचा सा लगा। चिढ़ी तो वो पहले ही थी। उसने बुरा सा मुंह बनाया और विश्वनाथ जी और रज्जो को जोर से सुनाते हुए बोली, "अब क्या जमाना आ गया है…? जरा सा भी लाज शर्म रह ही नहीं गई है। अब जब बांझिन को बच्चा नही हो रहा तो पेट पे कपड़ा बांध कर शौख पूरा कर रही। अब कपड़ा तो बच्चे में बदल नही जायेगा…? चलो भईया बच्चे का ना सही काम से कम पेट ऊंचा होने का शौख तो पूरा हो जा रहा।"
इतना कह कर जगत रानी उपहास उड़ाते के अंदाज में हंसने लगी। गुलाबो जो अंदर से सास की बातें सुन रही थी। उसने भी बड़े स्वर में हंस कर सास का साथ दिया। रज्जो पिता समान ससुर के सामने अपने इस अपमान को नहीं सह सकी। अपमान से उसका चेहरा लाल हो गया। बिना किसी गलती के सजा अब रज्जो से नहीं सही जा रही थी। वो अंदर जा कर बिना खाए पिए निढाल बिस्तर पर गिर पड़ी। सास जगत रानी के शब्द उसके कानों में गरम शीशे की तरह जला रहे थे। इस उपहास ने उसका विश्वास और आत्म विश्वास दोनो डिगा दिया था। उसे सच में लगने लगा की वो मां नही बनने वाली उसे कोई भ्रम हो गया है।
इधर विश्वनाथ जी जो भोग लगा कर खाना शुरू ही किए थे। पत्नी के रज्जो के दिए तानों को सुन कर अपना संयम को बैठे। अमूमन वो कभी नाराज नहीं होते थे। पर आज रज्जो का इतने गन्दे तरीके से जगत रानी द्वारा किया गया अपमान उन्हें क्रोधित कर गया। उन्होहे हाथ जोड़ कर अन्न देवता से क्षमा मांगी और थाली सरका कर हाथ धो कर उठ गए।
फिर जगत रानी को खूब खरी खोटी सुनाई। वो बोले, "मैने तो सुना था सास मां होती है…? ऐसी होती है मां…? तुम उसे सदा डाटती रही, तानें देती रही। मैं सुन कर भी अनसुना करता रहा। चलो जाने दो । सास हो.. थोड़ी सख्ती करती हो, करनी चाहिए बहुओं को वश में रखने के लिए। तुमने उसे अलग रहने को बोला, मैने ये भी होने दिया की चलो वो आत्म निर्भर बनेगी। तुमने उसका दिया खाना खाने से मना कर दिया। मैने जाने दिया की तुम्हारी मर्जी, तुम चाहे गुलाबो के हाथ का खाओ या रज्जो के हाथ का। क्या फर्क पड़ता है..? पर आज तुमने सारी सीमा लांघ दी। उस बेचारी पर आरोप लगा रही हो…? छी…! छी… मेरे तो मुंह से निकलेगा भी नही…। बस अब मैं उसे अकेले नहीं रहने दूंगा। जब तक जय नही आ जाता मैं उसे तुम्हारी जली कटी बातों से दूर रक्खूंगा।"
इतना कह विश्वनाथ जी बाहर बाग की ओर चले गए। टहल कर अपना गुस्सा शांत करने। जगत रानी ने आज तक पति को इतने गुस्से में कभी नहीं देखा था। वो कभी उसे नहीं डांटते थे। पर आज बहुओं के सामने इतना कुछ सुना दिया। वो भी मुंह फुलाए नाराज हो गई की जाए अपनी बड़ी बहू के साथ रहें।
अपने वादे के मुताबिक जय रज्जो को छोड़ कर जाने के एक महीने के अंदर ही आ गया। उस दिन की घटना के बाद रज्जो तो जैसे खाना पीना, हंसना बोलना , सब जैसे भूल ही गई थी। पहले की तरह अच्छा भोजन नही बनाती। कुछ भी बना कर ससुर विश्वनाथ जी को खिला देती। खुद कुछ भी जरा सा मुंह में डाल लेती। इस एक महीने में ही कमजोरी से उसका रंग पीला पड़ गया।
जय को देखते ही रज्जो के दिल की पीड़ा बाहर आने को आतुर हो उठी। वो जय के गले लग कर फूट फूट कर रो उठी, वो रोते हुए बोली, "मैं मां नही बनने वाली। मुझे कोई भ्रम हो गया था। अम्मा ने कहा है मेरी साड़ी से मेरा पेट ऊंचा दिखता है। मैं कोई मां नही बनने वाली। मैं कभी आपको औलाद नहीं दे पाऊंगी। आपका वंश आपके साथ ही खत्म हो जाएगा। आप कर लो दूसरी शादी। अम्मा की बात मान लो। मैं घर के किसी कोने में पड़ी रहूंगी। आपको और आपके बच्चे को देख कर खुश हो जाऊंगी।"
जगत रानी के तानों ने रज्जो को बिखेर दिया था। उसे उन्हीं की कही बात सच लग रही थी।
जय हैरान था की ऐसा कैसे हो सकता..? सारे लक्षण रज्जो में मां बनने के थे। फिर अब ऐसा कैसे हो सकता है कि वो गर्भवती ही नहीं है….?
जय ने किसी तरह समझा बुझा कर रज्जो को शांत किया। वो बोला, "कोई बात नही…!अगर तुम मां नही बनने वाली तो ना सही। पर इस तरह रोओ मत। खुद को तरह दुख दे कर हलकन मत करो। को भी होगा बस इंतजार के बाद सामने आ ही जायेगा। मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए। हम तुम होंगें ना एक दूसरे का सहारा।
जय के समझाने से रज्जो शांत तो हो गई। पर उसके चेहरे से जैसे रौनक ही किसी ने धो - पोंछ दिया हो। एक दम शांत बस एक शब्द वो काम चलाऊ बोलती।
अगले भाग मे पढ़े क्या जय ने इस समस्या का कोई समाधान निकाला..? क्या वो रज्जो को समझाने में कामयाब हुआ..? पढ़े अगले भाग में।