कालबाह्यी के वहाँ से जाने के पश्चात् चारुचित्रा के मुँख की मुस्कान देखने योग्य थी,वो प्राँगण में लगे स्तम्भ के समीप खड़ी मंद मंद मुस्कुरा रही थी,तभी उसके पास विराटज्योति आकर बोला....
"क्या हुआ रानी चारुचित्रा! आप बड़ी प्रसन्न दिखाई दे रहीं हैं",
तब चारुचित्रा बोली...
"मेरी प्रसन्नता का कारण आप हैं महाराज! बस आप यूँ ही मुझसे प्रेम करते रहेगें तो मैं सदैव यूँ ही प्रसन्न रहूँगी,एक स्त्री विवाह के पश्चात् केवल तभी प्रसन्न रह सकती है जब उसका स्वामी उससे प्रेम करें,उसे सम्मान दे,किसी समस्या को लेकर उससे विचार परामर्श करें,एक विवाहिता स्त्री को केवल इतना ही चाहिए होता है",
"बस तुम यूँ ही प्रसन्न रहा करो,मैं अब कभी भी तुम्हारा मन नहीं दुखाऊँगा चारुचित्रा!",विराटज्योति बोला...
"जी! मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे ये वचन दीजिए",चारुचित्रा बोली....
"हाँ! प्रिऐ! मैं तुम्हें वचन देता हूँ",
और ऐसा कहकर विराटज्योति ने चारुचित्रा के सिर पर हाथ रख दिया,ये सब प्राँगण में लगे स्तम्भ के पीछे से मनोज्ञा छुपकर देख रही थी,दोनों के मध्य प्रेम देखकर उसके भीतर ईर्ष्या की ज्वाला जल उठी और वो अब ये सोचने लगी कि वो ऐसा क्या करे,जिससे महाराज चारुचित्रा से दूर हो जाएंँ.....
ऐसे ही समय बीत रहा था परन्तु विराटज्योति को राज्य में हो रही हत्याओं का कोई भी समाधान नहीं मिल रहा था और चारुचित्रा पुनः मनोज्ञा का नाम लेकर विराटज्योति का क्रोध बढ़ाना नहीं चाह रही थी, परन्तु उससे विराटज्योति की चिन्ता भी नहीं देखी जाती थी,इसलिए उसने इस विषय पर पुनः यशवर्धन से बात करने का विचार बनाया और एक रात्रि उसने यशवर्धन और मान्धात्री को रात्रि के भोजन हेतु आमन्त्रित किया,यशवर्धन और मान्धात्री राजमहल आए और तब चारुचित्रा ने मान्धात्री का परिचय विराटज्योति से करवाते हुए ये कहा कि ये यशवर्धन की विशेष मित्र हैं,ये एक ताँत्रिक परिवार से सम्बन्ध रखतीं हैं,ये भी इस राज्य में हो रहीं हत्याओं के विषय में जानकारी लेने आईं हैं,हो सकता है इस वार्तालाप के पश्चात् इनके पास इस समस्या का कोई समाधान निकल आए,इसके पश्चात् सभी के मध्य राज्य में हो रही हत्याओं के विषय में चर्चा होने लगी...
तब विराटज्योति बोला....
"मित्र!यशवर्धन! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ?"
तभी मान्धात्री बोली....
"इस समस्या का समाधान हो सकता है महाराज!",
"आप कहें मान्धात्री! कि इस समस्या का निदान कैंसे हो सकता है",विराटज्योति ने पूछा...
तभी चारुचित्रा सभी के पास आकर बोली...
"भोजन तैयार है,पहले आप सभी भोजन कर लीजिए,उसके पश्चात् वार्तालाप कर लीजिएगा"
इसके पश्चात् सभी ने भोजन किया और पुनः उन सभी के मध्य वार्तालाप होने लगा,तभी विराटज्योति ने मान्धात्री से पूछा...
"हाँ! तो मान्धात्री! आप क्या कह रहीं थी कि इस समस्या का समाधान कैंसे हो सकता है",
"महाराज! उसके लिए मुझे एक विभूति का प्रयोग करना होगा" मान्धात्री बोली....
"हाँ! तो कीजिए उस विभूति का प्रयोग,उस विभूति में ऐसा क्या विशेष है",विराटज्योति बोला......
"वो विभूति मेरे पूर्वजों की है,यदि उस विभूति को मैं अभी इस स्थान पर बिखेर दूँ तो यदि यहाँ कोई मायावी शक्ति होगी तो वो विभूति स्वर्ण की भाँति चमकने लगेगी",मान्धात्री बोली...
"तो आप यहाँ पर उस विभूति का प्रयोग प्रसन्नतापूर्वक कर सकतीं है मान्धात्री!",विराटज्योति बोला....
इसके पश्चात् मान्धात्री ने उस विभूति का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया,उसने वातावरण में वो विभूति जैसे ही बिसरित की तो वो विभूति स्वर्ण की भाँति चमकने लगी,तब मान्धात्री विराटज्योति से बोली...
"महाराज! वो मायावी शक्ति राजमहल में ही निवास कर रही है",
"और हो ना हो वो मनोज्ञा ही है",यशवर्धन बोला...
"तुम इतने विश्वास के साथ कैंसे कह सकते हो कि वो मनोज्ञा ही है"विराटज्योति ने पूछा....
"क्योंकि! मैं ये सब पहले ही ज्ञात कर चुका हूँ,वो कोई स्वर्णकार की पुत्री नहीं एक प्रेतनी है",यशवर्धन बोला...
"तुम्हारे पास इसका कोई प्रमाण हो तो दिखाओ",विराटज्योति बोला...
"और कौन सा प्रमाण चाहिए तुम्हें?,आए दिन इतनी हत्याएँ,लोगों के क्षत विक्षत शव मिलना और इस विभूति का स्वर्ण की भाँति चमकना,इतने प्रमाण तो हैं तुम्हारे समक्ष,तब भी तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं है",यशवर्धन क्रोधित होकर बोला...
"ठीक है ! तो अभी मनोज्ञा को यहाँ बुलाओ,उस से ही पूछ लेते हैं कि वो कौन है",विराटज्योति बोला....
"हाँ! बुलाओ उसे,मुझे किसी का भय नहीं है",यशवर्धन बोला....
इसके पश्चात् मनोज्ञा को सबके समक्ष बुलाया गया और उससे यशवर्धन ने कहा कि महाराज विराटज्योति को बताओ कि कौन हो तुम? तब मनोज्ञा बोली....
"महाराज! भूल क्षमा करें,आपके मित्र यशवर्धन सत्य कह रहे हैं,मैं किसी स्वर्णकार की पुत्री नहीं हूँ",
"तो कौन हो तुम?महाराज को बताओ",यशवर्धन मनोज्ञा से दहाड़ते हुए बोला...
"मैं स्वर्णकार की पुत्री नहीं उसकी दासी थी और दस्युओं के यहाँ भी मैं दासी ही थी,मैंने आपसे झूठ कहा था",मनोज्ञा बोली...
"और ये भी बताओ कि तुम प्रेतनी कालबाह्यी हो",यशवर्धन बोला...
"महाराज! मैं कोई प्रेतनी नहीं,आपके मित्र झूठ कह रहे हैं,मैं तो एक साधारण सी युवती हूँ",मनोज्ञा रोते हुए बोली...
"अभी सब के समक्ष सच्चाई आई जाती है,मान्धात्री! आप इस पर विभूति बिखेरिए",यशवर्धन बोला....
यशवर्धन के कहने पर जैसे ही मान्धात्री ने मनोज्ञा पर विभूति बिखेरी तो वो स्वर्ण में परिवर्तित नहीं हुई और इससे सिद्ध हो गया कि मनोज्ञा प्रेतनी नहीं साधारण युवती है,तब इस बात पर चारुचित्रा बोली....
"महाराज! मनोज्ञा के पास ऐसी शक्तियाँ हैं जिससे वो किसी को भी अपना रूप धरवा सकती है और मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अभी भी उसने ऐसा ही किया है ये मनोज्ञा नहीं कोई और ही दासी है",
चारुचित्रा की बात पर अब विराटज्योति अत्यधिक क्रोधित हो उठा और वो क्रोधवश चारुचित्रा के गाल पर झापड़ मारते हुए बोला...
"बस करो चारुचित्रा! तुम इस यशवर्धन के संग मिलकर ऐसा षणयन्त्र रच सकती हो ,मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था,लज्जा नहीं आती तुम्हें एक निर्दोष युवती पर लांछन लगाते हुए,तुम यदि मनोज्ञा को राजमहल से बाहर निकालना चाहती हो तो उसे निकाल क्यों नहीं देती,उस पर दोषारोपण करने की क्या आवश्यकता है",
"महाराज! ये आपने अच्छा नहीं किया,एक साधारण सी दासी के मोह में आकर आप अपनी पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते"यशवर्धन बोला...
तब विराटज्योति यशवर्धन से बोला...
"तुम पुनः क्यों हमारे जीवन में विष घोलने चले आए यशवर्धन! मुझे ज्ञात है कि तुम चारुचित्रा से प्रेम करते थे,परन्तु मैंने उससे विवाह कर लिया इसलिए तुम उस बात का प्रतिशोध लेने पुनः लौटकर आए हो,मित्र की पत्नी पर कुदृष्टि डालते लज्जा नहीं आती तुम्हें",
"ये सत्य नहीं है विराटज्योति!"
ऐसा कहकर यशवर्धन अपनी खड्ग निकालकर विराटज्योति की ओर लपका,परन्तु तभी मान्धात्री और चारुचित्रा ने यशवर्धन को रोक लिया ,तब विराटज्योति यशवर्धन से बोला....
"हाँ! वध कर दो मेरा,मुझे भी मुक्ति चाहिए,नहीं चाहिए मुझे ऐसा मित्र,नहीं चाहिए मुझे ऐसी पत्नी",
तब मान्धात्री ने यशवर्धन से कहा...
"राजकुमार यशवर्धन! यहाँ जो भी हुआ है वो अनुचित था,मुझे इस बात का खेद है कि जिस कार्य के लिए हम दोनों यहाँ आए थे वो पूर्ण ना हो सका,चलिए यहाँ से चले जाने में ही हम सबकी भलाई है"
और मान्धात्री यशवर्धन को लेकर वहाँ से चली गई,इधर विराटज्योति धरती पर उदास बैठा था और उधर चारुचित्रा बिलख रही थी एवं ये दृश्य देखकर मनोज्ञा मंद मंद मुस्कुरा रही थी....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...