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केस सॉल्व हो जाने पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई थी। अदीबा खबर रोज़ाना की तरफ से उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुई थी। मीडिया के सभी लोग एक बड़े से कमरे में उपस्थित थे। सबके मन में यह जानने की जिज्ञासा थी कि आखिर पुष्कर और चेतन की हत्या किसने की थी ? हत्या करने के पीछे उसका मकसद क्या था ? अदीबा भी इन सवालों का जवाब जानने को उत्सुक थी। इस केस से वह सिर्फ प्रोफेशनल रूप से ही नहीं बल्की व्यक्तिगत रूप से भी जुड़ी हुई थी। दिशा और उसके बीच एक दोस्ती का रिश्ता बन गया था। वह जानती थी कि पुष्कर को खोकर दिशा पर क्या गुज़र रही है। इसलिए वह भी पुष्कर के हत्यारे के बारे में व्यक्तिगत रूप से जानना चाहती थी।
कुछ देर में साइमन अपने साथियों इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ कॉन्फ्रेंस रूम में आया। उन सभी के चेहरे सफलता की खुशी से चमक रहे थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत साइमन ने की। उसने वहाँ उपस्थित मीडिया के लोगों से कहा,
"आप सब पुष्कर और चेतन की हत्या के रहस्य के बारे में जानना चाहते थे। मैं और मेरी टीम भी शिद्दत से इस बात के लिए जुटी थी कि आप सबके सामने सच लाया जाए। हमारी टीम जिसमें मेरे साथ इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल शामिल थे, आखिरकार सच को सामने लाने में सफल रही। इसलिए आज आप सबको यहाँ बुलाया है जिससे सच आप सबके सामने लाया जा सके। अब मेरे साथी इंस्पेक्टर हरीश आपको इस केस का सच बताएंगे।"
इंस्पेक्टर हरीश ने वहाँ मौजूद लोगों को केस का सच बताया। उन्हें पूरी कहानी बताई कि किस प्रकार पुलिस ललित और पुनीत तक पहुँची। किस तरह से उनके अंधविश्वास का पता लगाया जिसके चलते उन लोगों ने ना सिर्फ पुष्कर और चेतन बल्की चार और लोगों की निर्मम हत्या की थी। उनसे उनके जुर्म कुबूल करवाए। सच सामने आने के बाद सभी मीडिया वालों में एक हलचल सी पैदा हो गई। जो सच उनके सामने आया था वह बहुत ही खौफनाक था। मीडिया वालों ने साइमन और उसकी टीम से तरह तरह के सवाल किए। उन लोगों ने सभी सवालों के जवाब दिए।
मीडिया के सवाल खत्म होने के बाद साइमन को अंतिम बयान देना था। सभी उसके अंतिम स्टेटमेंट को सुनने के लिए शांत बैठे थे। साइमन ने वहाँ बैठे मीडिया के लोगों पर नज़र डाली। उसके बाद आगे कहा,
"यह केस बहुत उलझा हुआ था। इसमें कई उतार चढ़ाव आए। कई परतों को खोलते हुए हम आगे बढ़े। इन हत्याओं के पीछे शैतानी शक्ति होने की अफवाह उड़ी। फिर पुष्कर के भाई विशाल की गिरफ्तारी से ऐसा लगा कि सबकुछ उसने करवाया है। जांच हुई तो उस पर सिर्फ हत्या की साज़िश रचने का आरोप साबित हुआ। लेकिन उसके चलते विशाल की पत्नी और बच्चे की अचानक हुई मौत का सच सामने आया जो बहुत भयानक था। विशाल एक मानसिक बीमारी से पीड़ित था। उसके प्रभाव में उसने ही अपनी पत्नी और बच्चे को ज़हर देकर मार दिया था। फिलहाल उसके वकील ने इस आधार पर उसे बरी किए जाने की मांग की है। कोर्ट ने विशाल को देश के माने हुए मनोचिकित्सक के पास जांच के लिए भेजे जाने का आदेश दिया है। हमने नए सिरे से इस केस पर काम किया तो एक और चौंकाने वाला सच सामने आया। ललित और पुनीत अपने स्वार्थ में अंधविश्वास के चलते इतना जघन्य अपराध कर रहे थे। मैं चाहता हूँ कि आप लोग जब अपनी रिपोर्ट तैयार करें तो उसमें इस बात का अवश्य उल्लेख करें कि लालच और अंधविश्वास इंसान को किस अंधे कुएं में ढकेल देते हैं।"
साइमन ने अपना अंतिम व्यक्तव्य देकर प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त कर दी।
बैठक में सन्नाटा था। केदारनाथ के हाथ में खबर रोज़ाना की प्रति थी। उन्होंने अखबार में छपी पुष्कर की हत्या के केस की रिपोर्ट पढ़कर सुनाई थी। उसके बाद से सब एकदम चुप थे। इस चुप्पी को उमा की सिसकियों ने तोड़ा। बहुत समय के बाद उनकी सूख चुकी आँखों में आंसू आए थे। उनकी सिसकियों में पहले किशोरी और उसके बाद बद्रीनाथ का रोना भी शामिल हो गया। किशोरी ने रोते हुए कहा,
"हे भोलेनाथ हमारे बच्चे ने उनका क्या बिगाड़ा था। अपने लालच में उसे मार दिया।"
बद्रीनाथ ने रोते हुए कहा,
"जिज्जी हमारे घर में जो कुछ हुआ हम लोगों ने उसके लिए माया को दोष दिया। जबकी वह हमारा वहम था। कुसुम और मोहित के साथ जो हुआ उसके दोषी तो हम थे। पर पुष्कर उन लोगों के लालच का शिकार हो गया।"
केदारनाथ ने अपने भाई को शांत कराया। उसके बाद बोले,
"सच जानने के बाद पुष्कर की मौत का और अधिक अफसोस हो रहा है। काश कि पुष्कर समय से पहले वापस ना जाता। अगर वह रुका होता तो ऐसा ना होता।"
उमा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा,
"अब इन सब बातों को सोचने से क्या लाभ है। वैसे भी विशाल ने तो व्यवस्था कर रखी....."
कहते हुए वह रुक गईं। वहाँ से उठकर अंदर चली गईं। किशोरी भी उनके पीछे पीछे चली गईं। दोनों भाई कुछ देर चुप बैठे रहे। कुछ देर बाद बद्रीनाथ ने कहा,
"विशाल ने तो मना कर दिया था। पर जिज्जी के कहने पर हमने उस पर ज़ोर डालकर उसे मना लिया। खालिद मुस्तफा की दलीलों के कारण ही कोर्ट ने विशाल की मानसिक स्थिति की जांच का आदेश दिया है। देखो क्या होता है। पर उमा इस बात से खुश नहीं है।"
बद्रीनाथ ने अपने भाई की तरफ देखकर कहा,
"केदार.... तुमने कभी सोचा था कि उमा जो ज़रा ज़रा सी बात पर आंसू बहाती थी इतनी कठोर हो जाएगी।"
कुछ देर चुप रहने के बाद केदारनाथ ने कहा,
"भाइया.... इतना सबकुछ घटा। सोच तो कोई उसके बारे में भी नहीं जा सकता था। रही भाभी की बात तो वह बोलती नहीं थीं पर सही गलत का विवेक उनमें अच्छा है।"
अपने भाई की बात सुनकर बद्रीनाथ चुप हो गए। उन्हें अपने भाई की बात सही लग रही थी।
अदीबा किसी नई स्टोरी को कवर करके अभी ऑफिस लौटी थी। मंजुला ने उसे बताया कि अखलाक उसे अपने केबिन में बुला रहा है। वह अखलाक के केबिन में चली गई। उसने केबिन में घुसते हुए कहा,
"सर आपने बुलाया था.....
अखलाक ने उसे देखकर कहा,
"हाँ.....आओ बैठो।"
अदीबा कुर्सी पर बैठ गई। अखलाक ने कहा,
"तुमने पुष्कर की हत्या के मामले में बहुत अच्छा काम किया। तुम्हारी रिपोर्टिंग ने हमारे अखबार को इस क्षेत्र में दूर तक प्रसिद्धि दिला दी है। इसलिए हमारे मैनेजमेंट ने तुम्हारी तनख्वाह बढ़ाने का फैसला किया है।"
अदीबा हल्के से मुस्कुरा दी। उसकी प्रतिक्रिया वैसी नहीं थी जो इन्क्रीमेंट पाने वाले कर्मचारी की होनी चाहिए। अखलाक उसके दिल का हाल समझ गया। उसने कहा,
"अदीबा तुमको लगता है कि अखबार ने अपने फायदे के लिए पुष्कर की कहानी को उछाला। मैं मानता हूँ कि इससे अखबार को फायदा पहुँचा। पर इसमें कुछ अनुचित नहीं था। हमने वही लोगों के सामने रखा जो सच था। उसमें कुछ भी झूठ नहीं था। ताबीज़ वाली बात भी नहीं।"
अखलाक ने कुछ रुककर कहा,
"तुमको लगता है कि तुमने इस सबका हिस्सा बनकर गलत किया तो तुम सही नहीं हो। तुमने अपने काम को इस तरह से किया कि लोगों को सही बात भी पता चली और अखबार को भी फायदा हुआ।"
अदीबा ने हल्के से सर हिलाया। अखलाक ने आगे कहा,
"इसको तुम इस तरह से भी सोचो। हमारे अखबार ने इस केस की तरफ लोगों का ध्यान खींचा। लोगों ने उस पर बात करनी शुरू की इसलिए दबाव बढ़ा। केस के लिए साइमन मरांडी को भेजा गया। नहीं तो ललित और पुनीत की बाकी चार हत्याओं की तरह यह दो हत्याएं भी दबकर रह जातीं।"
अदीबा को उसकी यह बात ठीक लगी। उसने कहा,
"मुझे इन्क्रीमेंट देने के लिए शुक्रिया। कोशिश करूँगी कि आगे भी सही तरह से काम कर सकूँ।"
यह कहकर वह मुस्कुरा दी। अखलाक ने उसे आगे के लिए शुभकामनाएं दीं।
पुष्कर की हत्या का सच जानने के बाद दिशा बहुत दुखी हो गई थी। शांतनु उसे दिल्ली से गाज़ियाबाद ले आए थे। सच जानकर मनीषा भी परेशान थीं। शांतनु ने उन दोनों को समझाया कि पुष्कर की हत्या का जो भी सच है उसे स्वीकार कर आगे बढ़ना ही ठीक रहेगा।
दिशा बहुत हद तक अपने दुख से बाहर निकल आई थी। शांतनु उसके और अनिर्बान के बीच बढ़ती दोस्ती को देखकर खुश थे। लेकिन पुष्कर की हत्या का सच सामने आने के बाद दिशा फिर पहले जैसी हो गई थी। इसलिए शांतनु ने अनिर्बान से कहा था कि वह दिशा को कहीं बाहर ले जाए और उसका मन हल्का करे। इसलिए अनिर्बान दिशा को लंच के लिए लेकर आया था। दिशा मान नहीं रही थी। लेकिन शांतनु और मनीषा के ज़ोर देने पर आ गई थी। दिशा आ तो गई थी पर एकदम चुप थी। अनिर्बान ने धीरे से उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दिशा ने आँखें उठाकर उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में नमी थी। अनिर्बान ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,
"दिशा मैं जानता हूँ कि तुम्हारे दिल में पुष्कर की जगह कोई नहीं ले सकता है। पर एक अच्छे दोस्त की तरह तुम्हारा दुख बांट सकूँ इस बात की इजाज़त तो दोगी ना।"
दिशा की आँखें छलक पड़ीं। उसने सर हिलाकर हाँ कह दिया। अनिर्बान की दोस्ती उसके दिल के लिए मरहम की तरह थी।
विशाल को उसकी मानसिक बीमारी के चलते कुसुम और मोहित की हत्या के अपराध से मुक्ति मिल गई थी। लेकिन कोर्ट ने आदेश दिया था कि उसे मेंटल फैसिलिटी में रखकर उसका सही इलाज किया जाए। उसके बाद जब वह हत्या की साज़िश की सज़ा काट ले तो रिहा कर दिया जाए। बद्रीनाथ ने अब परिस्थिति को स्वीकार कर लिया था। अपने भाई केदारनाथ का साथ पाकर वह धीरे धीरे ज़िंदगी की तरफ लौट रहे थे। किशोरी ने भी अब सबकुछ ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार कर लिया था। उमा पहले से बहुत बदल गई थीं। अब अगर कोई बात मन को अच्छी नहीं लगती थी तो पहले की तरह चुपचाप सह नहीं लेती थीं। अपनी बात सामने रखती थीं। उन्हें मलाल था कि यदि उन्होंने पहले यह हिम्मत की होती तो उनके परिवार के साथ इतना कुछ ना होता।
ललित और पुनीत पर मुकदमा चला और कोर्ट ने उन्हें हत्याओं का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई।