भाग–७
हेलो, दोस्तों ,
तो कैसे है आप सब लोग? उम्मीद है सब अच्छे ही होंगे । कल मैंने आपको बताया कि मैं मम्मी को लेकर रोहिणी आंटी के घर गई और वहां मुझे रावण मिला जो रोहिणी आंटी के देवर का बेटा था । मुझे अब उसका नाम पता चल चुका था । और हम लोग अब बेस्ट फ्रेंड्स थे ।
अब आगे ,,
उन दिनों में बहुत खुश थी बहुत ज्यादा , राजीव का साथ जो मिल गया था और क्या चाहिए था ।
हम दोनों को पूरे कॉलेज में सब जानने लगे थे । लेकिन सभी को पता था कि हम बस दोस्त है । हां कुछ लोगों को ऐसा लगा जरूर की मेरा और राजीव का चक्कर चल रहा है , लेकिन राजीव की तरफ से जब सभी को महसूस हुआ कि वो मात्र मुझे दोस्त समझता है । लोगों ने बातें बनाना बंद कर दी और हमारी दोस्ती की कदर करने लगे ।
मैं राजीव से बहुत ज्यादा प्यार करने लगी थी लेकिन उसकी दोस्ती में ही खुश थी क्योंकि मुझे रोज उसका साथ जो मिल रहा था ।
अब मेरा रोहिणी आंटी के यहां आना जाना बहुत बढ़ गया था और उसका मेरे घर हम कई बार साथ में पढ़ा करते थे । यहां तक कि रात को भी ,, पापा को राजीव से मेरा मिलना कम पसंद था लेकिन फिर भी वो भी राजीव को जानते थे बचपन से और वो अच्छा लड़का है ये भी वो जानते थे । इसलिए बहुत ज्यादा इश्यू नहीं हुआ ।
"मम्मी,, मम्मी, जल्दी आइए बाहर" मैं खुशी से चिल्लाते हुए घर में आई ।
"अरे क्या हुआ इतना चिल्ला क्यों रही है ?"
"मम्मी मिशा का रिश्ता तय हो गया है , लड़का कैनेडा में जॉब करता है । रोहिणी आंटी के घर गई थी आज तो सब ने मुझे बताया और मिशा की तो खुशी देखने लायक थी ।" मैने खुशी से झूमते हुए मम्मी को बताया ।
"अरे क्या बात है वाह , मैं अभी रोहिणी को कॉल करती हूं । " कहकर मम्मी ने रोहिणी आंटी को कॉल मिलाकर बधाई दी ।
"ए झल्ली" राजीव की आवाज थी ।
"अबे तू यहां क्या कर रहा है ? दो मिनिट भी नही रह सकता मेरे बिना?"
"चल चल , तेरे बिना तो मैं सारी जिंदगी रह सकता हूं , मैं तो आंटी को मिठाई देने आया था तो सोचा मिलता चलूं ।"
"अभी दो मिनिट पहले तो मैं तेरे साथ थी अब क्या मिलना?"
"चल हट"
"हट गधा कहीं का जा रहा है या मारू तुझे ।"
"पागल"
उसका पागल कहना मुझे बड़ा अच्छा लगता था क्योंकि सच में मैं पागल हो चुकी थी उसके प्यार में । बस उसे खोने का डर सताता रहता था ।
जल्द ही मीशा की शादी तय कर दी गई । अगले महीने की 15 तारीख तय हुई थी ।
"मिशा इतनी जल्दी क्या है शादी की? रहा नही जा रहा क्या जीजाजी के बिना " मैने मजाक करते हुए उससे कहा ।
"अरे नहीं यार , उनके घर वाले जल्दी कर रहे उनकी दादी की तबीयत कुछ ठीक नहीं है ।"
"ओह अच्छा "
अब घर में शादी की तैयारियां चल रही थी । मैं भी रोहिणी आंटी की और मिशा की उसमे हेल्प कर रही थी ।
राजीव के साथ अक्सर में कुछ न कुछ सामान लाना ले जाना कर रही थी ।
सम्राट अंकल (मीशा के पापा) रोहिणी आंटी से कह रहे थे ।
"कितनी प्यारी बच्ची है ये, कितनी मदद कर रही है अपना ही घर समझ कर ,"
"जी हां ,बहुत प्यारी है"
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"ए पागल"
"तू सीधा सीधा नाम नही बुला सकता क्या ?"
"नही ना"
मैं मुंह सिकोड़ कर जाने लगी तो उसने फिर आवाज लगाई ।
"किट्टू, सुन न"
उसके मुंह से किट्टू सुनकर बड़ा अजीब लगा । वो बचपन में कभी कभी मुझे किट्टू बुलाता था । लेकिन वो नाम से मुझे कोई और बुलाता नही था । मुझे सब कीर्ति ही कहते थे ।
क्या चल रहा था राजीव के मन में ? मैं भी यही सोच रही थी । आप जानेंगे अगले भाग में ।