Prem Gali ati Sankari - 134 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 134

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प्रेम गली अति साँकरी - 134

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जब शर्बत की बॉटल के बारे में पता चला था मैंने महाराज से वह बॉटल अपने कमरे के एक ऐसे कोने में रखवा दी थी जिससे किसी की नज़र उस पर न पड़े और बाद में उसके बारे में असलियत पता की जा सके | एक ज़रा सी शर्बत की बॉटल क्या हो गई जैसे उसके चारों ओर ज़िंदगी ही घूमने लगी लेकिन जिस बात से ज़िंदगी पर फ़र्क पड़ जाए, वह भी इतना अधिक कि साँसें लेना मुहाल होने लगे उसकी वास्तविकता तो जाननी ही थी | अब समय था कि महाराज उस लड़के से पूछें कि ठीक से याद करके बताए कि यह बोतल उसे क्यों और किसने दी थी ?

शीला दीदी और रतनी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था | वे दोनों तो समझ रही थीं कि आज मैं उनके साथ अपने और प्रमेश के साथ कैसे, कुछ हुआ, यह बात साझा करूंगी | वे लोग आधे सच से वाकिफ़ थीं और उनके मन में हलचल तब ही से हो रही थी जबसे पहली बार में ही प्रमेश के घर जाकर यह सब बनाव अचानक बन गए थे जो उनके लिए आश्चर्य के कारण थे | तब उन्हें कुछ हवा में उड़ते हुए ऐसे भाव व संवेदना ही छू गईं थीं जो कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सकी थीं | फिर अचानक ही इतना अजीब बदलाव और सब कुछ उलट-पलट ! मन में आशंकाओं का उठना स्वाभाविक ही था | स्पष्ट न होने पर और भी असहजता लेकिन न तो समय मिला और न ही थोड़ी देर बैठने की मुहलत!

“यह क्या है? कैसी और कौनसी बॉटल है और इसका इस लड़के से क्या मतलब है?” शीला दीदी जैसे अचानक छटपटाहट से बोल उठीं | उन्होंने बॉटल महाराज के हाथ से लेकर अपने हाथ में घुमाकर देखा जिस पर लिखा था ‘लीची का ज्यूस’ यह कोई बड़ी बात नहीं थी | अधिकतर लोग अपने पाचन-तंत्र को स्वस्थ्य रखने के लिए इसका प्रयोग करते हैं | यह स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्य वर्धक भी होता है | 

“बताओ बेटा ! क्या हुआ था और फिर हम चलते हैं | ” महाराज ने लड़के से पूछा | 

“वो जो दामाद साहब की दीदी हैं न, उन्होंने मुझे दिया था और कहा था कि खाने से पहले सबको यह ज़रूर पिला देना | ”लड़का थोड़ा डरा हुआ सा भी था लेकिन उसने महाराज को बता दिया था इसलिए निश्चिंत हो गया था और इस प्रकार महाराज से मुझ तक बात पहुंची थी | 

“उन्होंने मुझे दो हज़ार रुपए देकर यह भी कहा था कि वह दीदी मुझसे जो भी काम करवाएंगी उसके लिए अलग से खूब सारे पैसे देंगी और मैं यह किसी को न बताऊँ | ”उसने पैसे जेब से निकालकर महाराज को पकड़ा दिए थे | 

“मुझे समझ में नहीं आया क्या करूँ, मैंने बॉटल और पैसे दोनों ले लिए थे | ”लड़का रूआँसा हो रहा था | 

“जा बेटा, जाकर सो जा, अब दीदी के पास है न सब, वो सोच लेंगी क्या करना है | बस तुम किसी भी चक्कर में मत पड़ना, जा—सो जा जाकर, मैं भी अभी आता हूँ | ”उन्होंने डरे हुए लड़के को समझा-बुझाकर भेज दिया | 

“वैसे तो यह हरकत ही बड़ी अजीब सी स्थिति में लटकी हुई है लेकिन दीदी, अभी कोई यहाँ ऐसी स्थिति में नहीं था कि निर्णय के तौर पर कुछ भी कहा जा सके | ”

“मुझे तो यह खेल समझ ही नहीं आ रहा---”शीला दीदी की आँखों में चिंता की गहन रेखाएं गहराने लगी थीं, साथ ही रतनी की आँखों में भी प्रश्नों की कतार खड़ी थी | 

“शीला दीदी !खेल तो यह बहुत बड़ा है और आज का नहीं है, तबसे शुरू हो चुका है जब प्रमेश की दीदी ने शादी की बात शुरू की थी लेकिन यह खेल है क्या?और क्यों?यह बात रहस्य की है और इसकी तह में जाने की ज़रूरत तो पड़ेगी ही | 

“प्रमेश जी का व्यवहार शुरू से ही अजीब है, पता नहीं कैसे---?”मैं जानती थी कि वह कहना चाहती थी कि मुझ जैसा इंसान न जाने कैसे इतनी आसानी से उस सबका हिस्सा बन गया था ?

वैसे अब इस बात पर कोई चर्चा करने का मतलब था नहीं, संभालना वह था जो आगे होने वाला था लेकिन क्या? वह कोई बड़ा और ऐसा खतरनाक खेल था जिससे न जाने क्या होने वाला था, किस-किस पर इस खेल का क्या प्रभाव पड़ने वाला था !

“बहुत बड़ा रिस्क ले लिया आपने---”रतनी की आँखों में भी भय की परछाईयां फेरा लगाने लगी थीं और वह अपने सर और मैडम को याद करने लगी थी | 

“ओ ! रतनी, मत घबराओ, ऐसे क्या इनके लोग हमें जीने ही नहीं देंगे | देखते हैं, आखिर कहाँ तक लगा है इनका दिमाग और कैसे खिलाड़ी हैं ये लोग?”मैंने अपने शब्दों को जैसे इतनी ज़ोर से उछाला जैसे मैं कोई वेगवती नदी थी और सारे झंझावतों को उड़ाकर समुद्र में पटक देने वाली थी | अचानक ही मेरे ऊपर चुप्पी का पहरा सा चढ़ा | ’एक दिन तो उस घर में खुद को संभाल नहीं पाई और यहाँ शेरनी बन रही थी | ’

शीला दीदी और रतनी क्या मेरी बात समझ नहीं पाई थीं, अच्छी तरह वे मेरे मूड-स्विंग्स् से वाकिफ़ थीं सो दोनों ने मुझे एक बार घूरकर देखा और फिर हम तीनों ही ठठाकर हँस पड़े | यह ठठाना एक खुला आकाश दिखा गया जैसे, मन में आया इतना विस्तार, भई, कुछ तो मिलेगा आधार!

मैंने आज उन दोनों को पूरी कहानी खुलकर बताई और उस पहले दिन के शर्बत के ‘रोल’की भी चर्चा की जिसके कारण केवल मैं ही नहीं पूरा का पूरा परिवार एक भ्रमित दिशा में घूम गया था या दिशाएँ ही घूम गई थीं या फिर मन की वाचाल तरंगों की लहर किसी उत्तुंग शिखर पर जा उछली थी | 

शादी के बाद पार्टी में तो सभी थे लेकिन उसके बाद की कहानी मुझे उन दोनों को बतानी ही थी सो मैंने जैसी की तैसी ही सारी बातें बता दीं | प्रमेश को जब मैंने रबर का, बिना रीढ़ का इंसान कहा तब वे दोनों एक-दूसरे को अजीब सी नज़रों से देखने लगीं | जब अगले दिन अपने कमरे में दीदी के पलंग की बात बताई तब उनका चेहरा अजीब सा हो आया, शर्म और ग्लानि से !

“यह तो बहुत ज़्यादा और अजीब है, ऐसे तो अनपढ़ लोग भी नहीं करते | ”शीला दीदी के मुँह से निकला | 

“यहाँ अनपढ़ की बात है ही कहाँ दीदी, कुछ और ही है जो हमें पता लगाना तो पड़ेगा ही और इनका भांडा फोड़ना पड़ेगा, इससे पहले कि ये कुछ बड़ा नुकसान कर दें | ”मेरे मन में ‘पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी’ की बात भी घूम रही थी जो मेरे और शीला दीदी के नाम न जाने कब से थी लेकिन उस दिन प्रमेश की दीदी ने क्या कहा था यह बात शीला दीदी को मालूम नहीं थी क्योंकि उस दिन वहाँ वह या उनमें से कोई भी था ही नहीं | 

मैंने अभी इस बात का जिक्र करना ठीक नहीं समझा | कुल मिलकर पूरी रात सभी बातें खुलीं और तय यह किया गया कि अभी पहले शर्बत की बॉटल की करामात का पता लगाया जाना जरूरी है | परिचय तो हमारा सबसे था ही, बस हम यह चाहते थे कि अम्मा-पापा, भाई-भाभी अभी इस बेकार के पचड़े से दूर रहें और हम इस समस्या का हल मिलकर ढूंढ लें | 

इस सब चर्चा में मैं मंगला का जिक्र करना न भूली थी जो मुझे कसाईखाने में एक ऐसी बकरी सी महसूस हुई थी जिसके गले में माला डालकर उसे बलि के लिए सुरक्षित रखा गया हो | मन में जाने कितनी बार मंगला के विचार उठे थे और मैंने शीला दीदी और रतनी को बताया था कि मेरे मन उसके लिए बहुत जिज्ञासा थी | काश! मैं उसे अपने पास ला पाती !