इसी ल के गम घमंड में उसने समुद्र को लड़ने की चुनौती दे डाली.।समुद्र ने कोई जवाब नही दियाया।जब उसने कई बार कहा।तब समुद्र बोला
मेरी अपनी मर्यादा है।मैं उसका उल्लंघन नही कर सकता।मैं तुम्हारे साथ नही लड़ सकता।तुम किसी और से युद्ध करो
तब दुदुभि हिमालय के पास गया था।उसने युद्ध के लिए हिमालय पर्वत को ललकारा था।हिमालय ने उसे बाली के पास जाने की सलाह दी थी।
दुन्दुभि बहुत बलशाली राक्षस था।लेकिन बाली भी कम नही था।बाली को तो वरदान भी मिला हुआ था कि जो भी उससे युद्ध करेगा उसकी आधी शक्ति,बल बाली को मिल जायेगा।और दुंदभी बाली से आ टकराया था।
बाली औऱ दुदुभि में मल युद्ध होने लगा और इस युद्ध मे आखिर में बाली ने दुदुभि का वध कर दिया था।वध करने के बाद बाली ने उसके शव को आकाश में इतनी जोर से उछाला था कि उसका शव किष्किंधा पर्वत पर जाकर गिरा था।उसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था।वह ध्यान की । मुद्रा में बैठे हुए थे।तभी राक्षस के शरीर के रक्त की बूंदे ऋषि के शरीर पर जाकर गिरी थी।ऋषि क्रोधित हो गए।
उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से पता लगाया था कि यह कार्य किसका है।
बाली ने दुदुभि को मल युद्ध के लिए ललकार ने के बाद मारा था।ऋषि की नजर में यह गलत नही था
क्योकि दुदुभि ने बाली को मल युद्ध के लिए ललकारा था।लेकिन उसके मर जाने के बाद उसके शव की दुर्गति करना घोर पाप था।ऋषि ने बाली को श्राप दिया था अगर वह ऋषि के आश्रम के एक योजन के पास भी आया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।
इस श्राप के डर से बाली किष्कन्ध्या पर्वत पर नही जाता था।
दुधभी की हत्या से मायावी राक्षस बहुत बौखलाया हुआ था।वह बाली से बदला लेना चाहता था।और एक दिन मायावी ने बाली को ललकारा था
और बाली ने उसकी ललकार स्वीकार कर ली थी।
मायावी सिर्फ नाम से ही मायावी नही था।वह छल प्रपंच और तांत्रिक सब काम जानता था।वह बाली को भृमित करने लगा।
मैं तुझे बताता हूँ
जब बाली मायावी से लड़ने के लिए जाने लगा।तब सुग्रीव उससे बोला,"भैया मायावी बड़ा खतरनाक है।मैं भी आपके साथ चलता हूँ
"नही।तुम राज्य की देखभाल करो
"नही।मैं आपको अकेले नही जाने दूँगा
तब बाली मान गया।मायावी बाली को चकमा देते हुए जंगल मे खिंच ले गया।और धीरे धीरे वह बाली को पर्वत की तरफ ले गया।वह पर एक गुफा थी।मायावी राक्षस उस गुफा के अंदर चला गया।बाली अपने भाई सुग्रीव से बोला,"तुम गुफा के दरवाजे पर मेरा इनइनत जाट करो।गुफा के अंदर किसी को भी मत आने देना
सुग्रीव गुफा के बाहर पहरा देने लगा।कई दिन बीत गए।न बाली बाहर आया न मायावी
सुग्रीव न अंदर जा सकता था।न ही गुफा छोड़कर
कई दिन बाद
खून की लकीर गुफा से बाहर आई साथ ही आवाज भी आई और उस आवाज को सुनकर सुग्रीव को ऐसा लगा कि मायावी राक्षस ने बाली का वध कर दिया है
और भाई के मारे जाने पर सुग्रीव विलाप करने लगा।।रोने लगा और रोते हुए उसे ध्यान आया कि अगर मायावी गुफा से बाहर आकर उसे भी न मार डाले।
और इससे बचने के लिए उसने एक विशाल पत्थर को लुढ़काकर गुफा का द्वार बंद कर दिया