Winterline Carnival - 1 in Hindi Travel stories by Ruchi Modi Kakkad books and stories PDF | विंटरलाइन कार्निवल - भाग 1

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विंटरलाइन कार्निवल - भाग 1

नया साल मनाने का इरादा था। सोचा २०२३ को अलविदा करने और २०२४ का स्वागत करने मसूरी जाया जाए। वैसे भी देहरादून से मसूरी करीब ३०-३५ कि.मी. की दूरी पर है। मौसम भी सुहावना था, लोगों का कहना था कि शाम तक ठंड बढ़ सकती है और पाला भी पड़ेगा। हमने जल्दी से मॉल रोड पर स्थित होटल बुक किया और समय व्यर्थ न करते हुए गाड़ी में बैठ गए।

देहरादून से मसूरी जाने वाले रास्ते पर ट्रैफिक जाम हो गया था। मानो सभी लोगों ने एक साथ मसूरी जाने का कार्यक्रम बनाया हो। पूछने पर पता चला कि मसूरी में इस वक्त विंटर कार्निवल नामक स्थानिय कार्यक्रम की धूम मची है और अधिकतर लोग उस कार्यक्रम में सम्मिलित होने जा रहे थे। वैसे तो पिछले दस साल से यह प्रतिवर्ष दिसंबर के आखिरी सप्ताह में यहां मनाया जाता हैं पंरतु मुझे इसकी कोई खास जानकारी नहीं थी।

सांझ हो चली थी और पूरा मॉल रोड दुल्हन-सा सज़ा धजा बेहद खुबसूरत लग रहा था। भिन्न-भिन्न प्रांतों से आए सैलानी तथा वहां रहने वाले स्थानीय लोग मिलकर विभिन्नता में एकता का परिचय दे रहे थे। ३ कि.मी. लंबे मॉल रोड के दोनों ओर छोटे-छोटे स्टॉल लगे हुए थे जिनमे स्थानीय लोगों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का प्रचार, प्रसार व विक्रय हो रहा था। अधिकतर लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर अपने पारंपरिक व्यंजन, पोशाक, हस्त-शिल्प का बेहद ख़ूबसूरती और उत्सुकता से प्रदर्शन कर रहे थे तो वहीं सैलानी-जन भी उतनी ही कुतुहलता के साथ उन्हें सुनते और खरीदारी कर रहें थे। गढ़वाल, कुमाऊं, टेहरी, पहाड़ी न जाने और कितने क्षेत्रों से आए लोगों ने अपने-अपने पारंपरिक अंदाज में सैलानियों से मज़ेदार बातें करी, कुछ अपनी बताई तो कुछ हमसे पूछी मानो ऐसा लग रहा हो की बरसों की पहचान हो। हम लोग भी खाने के शौकीन थे तो पारंपरिक व्यंजनों और स्थानीय चाट का लुफ़्त लेने में लग गए। मीठा रोट, मठरी, कबाब, छोले भटूरे, टिक्की, चाट, मोमोज़, नूडल्स, गरमा गरम चाय, कॉफी, सूप इत्यादि। कहीं से कुमाऊं तो कहीं से गढ़वाली लोकसंगीत कानों में सुनाई पड़ता और हम भी साथ-साथ थिरक पड़ते उन्हें सुनकर। पहले- पहल तो थोड़ी शर्म-सी महसूस हुई इस तरह सड़क पर थिरकते हुए, दादी की डांट भी याद आई लेकिन फिर अंतर्मन ने कहा- चलो छोड़ो, मौज करो! वैसे भी हमें यहां कोई नहीं जानता।

हम बस इसी तरह मॉल रोड पर तफ़री किये जा रहे थे और आगे लगभग १ कि.मी. तक रंग-बिरंगे, गरम, ऊनी कपड़ों की दुकानें थी। टोपी, मफलर, जुराबें, जैकेट, स्कर्ट क्या कुछ नहीं था, देखते ही मेरा मन उन्हें खरीदने को ललचा गया। रास्ते पर चलते-चलते मेरा ध्यान आकर्षित किया एक बेहद खुबसूरत, मोर पंख रंग के पौंचो ने। यह शॉल के समान ही ठंड से बचने के लिए पहना जाता है। इसे बनानेवाली बूढ़ी औरत करीब ६५ वर्ष की होंगी पंरतु उनकी कार्य कुशलता, लगनता और रफ्तार ने मेरा मन मोह लिया। वह हमसे बातें करते-करते ही बुनाई भी कर रही थी। मैंने झट से एक पोंचो खरीद लिया और पहन लिया। वह बेहद मुलायम और गर्माहट देनेवाला था।

तभी हमने लोगों में अजीब-सी चहल-पहल देखी। सभी लोग मॉल रोड पर स्थित बालकनी व छतरी की तरफ बढ़ रहे थे। हम भी साथ-साथ चल लिये। वहां पहुंचते ही एक अद्भुत नज़ारा मसूरी के आसमान में देखने को मिला। वह था विंटरलाइन, जिसके नाम पर यह मनोरंजनपूर्ण कार्निवल आयोजित किया गया था। आसमान के ऊपरी सतह पर गहरे गुलाबी, नारंगी, बैंगनी रंग के अद्भुत मिश्रण से बनने वाली वह प्राकृतिक लकीर जो आसमान को दो हिस्से में बांट रही थी, वह विंटरलाइन कहलाती है। यह सर्दियों में मसूरी की पहाड़ियों से देखने को मिलती है।आंखो को सुकून देने वाला, वह मनोहारी दृश्य जीवनभर के लिये मेरे मन के कैमरे में कैद हो गया।

विंटरलाइन कार्निवल की यह रोमांचक शाम सदैव के लिए मेरे हृदय में घर कर गई। यदि जीवन में मौका मिले तो, एक बार अवश्य मसूरी जाना चाहिए और स्थानीय लोगों द्वारा संचालित इस विंटरकार्निवल का आनन्द उठाना चाहिए।