paths of dreams in Hindi Thriller by दिनेश कुमार कीर books and stories PDF | सपनों की राहें

Featured Books
Categories
Share

सपनों की राहें

सपनों की राहें

अनीशा के माँ - बापूजी अपने खेत - खलिहान, घर - द्वार और अपनों को छोडकर काम की तलाश में लाला राम के भट्टे पर रोजी - रोटी की जुगाड़ में आ गये।
अनीशा अपने गाँव में कक्षा छह तक पढ़ी थी। यहाँ माँ - बापूजी दिन भर काम में लगे रहते, इसी वजह से अनीशा अभी स्कूल न जा पा रही थी। वह माँ - बापूजी के काम में हाथ बँटाती और समय निकालकर खुद ही पढ़ती रहती।
एक दिन बापूजी ईंटें बना रहे थे। अनीशा अंग्रेजी की किताब पढ़़कर बापूजी को सुना रही थी, तभी भट्टा मालिक लाला राम अपनी चमचमाती कार से उतरकर भट्ठे पर काम कर रहे मजदूरों के पास आये।
उनकी नज़र अनीशा की किताब पर पड़ी। उन्होंने उत्सुकतावश अनीशा से पढ़ने को कहा। अनीशा ने फटाफट पढ़कर सुना दी।
लाला राम ने पूछा-, "अनीशा! आप बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो?"
अनीशा- "मैं बड़ी होकर आपकी तरह ईट का भट्टा अपने गाँव में बनवाऊँगी, जिससे मेरे बापूजी को गाँव न छोड़ना पड़े।"
अनीशा के बापूजी ने माँफी माँगते हुए कहा-, "मालिक! ये अभी नादान है। ये उन सपनों को देख रही है, जो हमारे वश में नहीं है।"
लाला राम बोले- "दिनेश! अनीशा के सपने उसके अपने सपने हैं। सपनों को पूरा करने का जज्बा उसके मन में पैदा करो। सपने अमीरी - गरीबी के आधार पर नहीं देखे जाते। सपने जज्बे के साथ देखे जाते हैं।"
"मैं अपने सपनों से समझौता कभी नहीं करूँगी। अपना सपना साकार करने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करूँगी।" अनीशा के चेहरे पर खुशी चमक रहा था।
'ईश्वर' से अरदास करते हुए कहते है की अनीशा का सपना जरूर साकार करें ।

संस्कार सन्देश :- सपने देखना जितना आवश्यक है, उतना ही उन्हें साकार करने के लिये कड़ी मेहनत भी जरूरी है।





अनीशा के माँ - बापूजी अपने खेत - खलिहान, घर - द्वार और अपनों को छोडकर काम की तलाश में लाला राम के भट्टे पर रोजी - रोटी की जुगाड़ में आ गये।
अनीशा अपने गाँव में कक्षा छह तक पढ़ी थी। यहाँ माँ - बापूजी दिन भर काम में लगे रहते, इसी वजह से अनीशा अभी स्कूल न जा पा रही थी। वह माँ - बापूजी के काम में हाथ बँटाती और समय निकालकर खुद ही पढ़ती रहती।
एक दिन बापूजी ईंटें बना रहे थे। अनीशा अंग्रेजी की किताब पढ़़कर बापूजी को सुना रही थी, तभी भट्टा मालिक लाला राम अपनी चमचमाती कार से उतरकर भट्ठे पर काम कर रहे मजदूरों के पास आये।
उनकी नज़र अनीशा की किताब पर पड़ी। उन्होंने उत्सुकतावश अनीशा से पढ़ने को कहा। अनीशा ने फटाफट पढ़कर सुना दी।
लाला राम ने पूछा-, "अनीशा! आप बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो?"
अनीशा- "मैं बड़ी होकर आपकी तरह ईट का भट्टा अपने गाँव में बनवाऊँगी, जिससे मेरे बापूजी को गाँव न छोड़ना पड़े।"
अनीशा के बापूजी ने माँफी माँगते हुए कहा-, "मालिक! ये अभी नादान है। ये उन सपनों को देख रही है, जो हमारे वश में नहीं है।"
लाला राम बोले- "दिनेश! अनीशा के सपने उसके अपने सपने हैं। सपनों को पूरा करने का जज्बा उसके मन में पैदा करो। सपने अमीरी - गरीबी के आधार पर नहीं देखे जाते। सपने जज्बे के साथ देखे जाते हैं।"
"मैं अपने सपनों से समझौता कभी नहीं करूँगी। अपना सपना साकार करने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करूँगी।" अनीशा के चेहरे पर खुशी चमक रहा था।
'ईश्वर' से अरदास करते हुए कहते है की अनीशा का सपना जरूर साकार करें ।

संस्कार सन्देश :- सपने देखना जितना आवश्यक है, उतना ही उन्हें साकार करने के लिये कड़ी मेहनत भी जरूरी है।