Prem Gali ati Sankari - 130 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 130

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प्रेम गली अति साँकरी - 130

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कुछ लोगों की अजीब ही प्रकृति होती है, किसी बात में अपनी एंट्री मारे बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता | वे यह भी समझने में अशक्य रहते हैं कि यहाँ उनकी कितनी ज़रूरत है अथवा उन्हें कितना सम्मान मिल रहा है | उनका यहाँ स्वागत भी है या नहीं ? आखिर ऐसे लोगों से परेशानी तो होती ही है लेकिन किया क्या जाए? दुनिया में भाँति-भाँति के लोग जिनसे कभी किसी बात के लिए तो कभी बिना बात ही आमना-सामना होता ही रहता है | 

एक ओर संस्थान का अचानक महत्वपूर्ण बन जाने वाला दामाद जिसको यह भी समझ नहीं थी कि बेशक संस्थान की इज़्ज़त के लिए ही वह कम से कम मुझसे एक बार मिल तो लेता | अजीब नसीड़ा बिना कमर की हड्डी का इंसान ! दूसरी ओर दीदी जी थीं जो बिना बुलाए हर दिन आकर बैठने लगीं थीं | यहाँ तक कि हम सब उनके सामने किसी बात की चर्चा करते हुए संकोच करने लगे थे | आखिर सबके अपने व्यक्तिगत मामले होते हैं | और हैं, चिंतन होता है, चर्चाएं करनी होती हैं और उन्हें किसी के भी सामने नहीं किया जा सकता | 

कब समय निकला जा रहा था, पता ही नहीं चल रहा था और दीदी जी का रोज़ सुबह आकर बैठ जाना सबको परेशान कर रहा था | उन्हें अकेला बैठाना तो असभ्यता थी लेकिन वे हम सबके लिए एक मुश्किल स्थिति बना रही थीं | उन्हें अम्मा-पापा के सिटिंग में ही बैठाना पड़ता और वे बिना बीच में बोले रहना जानती ही नहीं थीं | 

ध्यान ही नहीं रहा था और एक दिन उनके सामने ही ‘पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी’की बात पापा के मुँह से निकल गई | उन्हें बिलकुल ध्यान नहीं था कि आज तो अपनी बहन के साथ प्रमेश भी उनके कमरे में ही पधारे हुए थे | पापा को अच्छा लगा था उन्हें वहाँ आए हुए देखकर लेकिन जब उनके मुँह से यह बात निकल गई अम्मा का मूड बहुत ऑफ़ हो चुका था | कहाँ फँस गई उनकी बेटी भी!अच्छा होता जो हम सब इस प्रमेश की महानता के चक्कर में न पड़ते | 

“पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी!” प्रमेश की दीदी एकाएक चौंककर बोल पड़ी थीं | 

“अमी के नाम में हाय, ठीक हाय---लेकिन अब तो प्रमेश का नाम भी इसमें आना चाहिए न?”वे उस दिन बड़ी बेशर्माई से बोलीं थीं | 

पापा ठहरे पापा, उनकी तो ठनक गई | वे पहले ही बहुत नाराज़ थे, उन्हें बार-बार लग रहा था कि उन लोगों का जाना कम से कम एक लंबे अरसे के लिए निश्चित है, कहीं ये लोग उनकी बेटी के सामने कोई समस्या न खड़ी कर दें | खैर, वैसे तो मैं कभी भी इन सब मामलों में इतनी कमज़ोर नहीं थी, पापा को शुरू से देखा ही था कि वे किस प्रकार समस्याओं का समाधान कर लेते थे, उनके संबंध व व्यवस्थाएं बहुत मजबूत थीं इसलिए कुछ अधिक परेशानी कर सकेंगे, इसकी उम्मीद तो कम ही थी लेकिन माता-पिता बच्चों के लिए सदा चिंता करते ही हैं, कोई विशेष बात नहीं है | 

पापा ने प्रमेश की दीदी की ओर ज़रा कड़ी दृष्टि से देखा और वे खिसिया सी गईं | प्रमेश पहली बार वहाँ आकर बैठा था, उसकी दीदी ने उसकी भी इज़्ज़त कौड़ी की कर दी | वैसे प्रश्न यह भी था कि थी क्या कुछ इज़्ज़त? मैं भी न ! पहले नहीं सोचा गया मुझसे?वह एक बार बहन के चेहरे पर नज़र डालकर चुपचाप बैठा रह गया | कुछ देर बाद उसने बहन से बांग्ला में कुछ फुसर-फुसर की और दीदी यह कहकर खड़ी हो गईं कि अब वे लोग चलते हैं, जिस दिन उनको यू.के का फ़्लाइट लेना होगा, उस दिन बाय करने आएंगे | सबने उनके आगे नमस्कार के लिए हाथ जोड़ दिए और वे दोनों वहाँ से चले गए | 

“अमी! चलो, हम चलते हैं, कुछ काम हो तो ज़रूर बता देना, प्रमेश आ जाएगा | ” वे मुझसे चलते-चलते बोलीं | भला, क्या काम करेगा यह बंदा जो---खैर, मुझे अपना मूड व दिमाग खराब करने का कोई इरादा या शौक नहीं था उस समय! वैसे ही दिमाग में काले बादलों का छितराव था, न जाने कहाँ कुछ छिपा पड़ा था | 

उनके जाने के बाद फिर से कई बातों पर चर्चा हुई | मैं क्या हम सभी पापा के सभी रिसोरसेज़ के बारे में अच्छी तरह से परिचित थे, ऐसा कोई महत्वपूर्ण संसाधन नहीं था जो हमसे या हम उनसे परिचित न हों | आखिर पापा वर्षों से एक बड़ा व्यापार और अम्मा के संस्थान का कार्य देख ही रहे थे और उनका एक पुख्ता बैकग्राउंड था जिसमें किसी भी बात के लिए उन्हें अब अपने आप भी कुछ करने की ज़रूरत नहीं थी | उनका किसी से कुछ कह देना भर, ऑर्डर देना ही पर्याप्त था | किसी भी बड़े काम के लिए सभी प्रकार के लोगों की आवश्यकता होती ही है | अपने पिता के बाद सब संभालने में पापा ने यह सब कुछ सहज ही सीख व कर लिया था | 

पापा को चिंता में देखकर भाई बोला;

“पापा! आप चिंता किस बात की कर रहे हैं?आपको लगता है कि अमी या यहाँ के सभी लोग किसी भी प्रकार से कमज़ोर हैं? आपके साथ रहकर ये सभी एक बड़े संगठित परिवार की तरह सशक्त हैं, आप जानते हैं और अगर कोई परेशानी आ भी जाती है तो यू.के है कितने कदम पर?

अमोल की बात पर मैंने और अम्मा ने भी सिर हिलाया और देखा पापा कुछ आश्वस्त से हो गए थे | हम यही सोच रहे थे कि अगर पापा-अम्मा भाई के साथ जा ही रहे हैं तो अपने समय को खूब इन्जॉय करें | कितने समय से जाना, रहना का गाना बजा रखा है अमोल ने | 

डिनर के समय फिर एक अजीब सी बात हो गई जिसने एक बार फिर से कुछ प्रश्न खड़े कर दिए जिसने वातावरण को एक बार फिर से गंभीर वातावरण से भर दिया | महाराज डिनर लगा रहे थे कि उनके असिस्टेंट ने उन्हें एक बॉटल पकड़ाई और कहा कि यह प्रमेश जी की मम्मी दे गईं थीं कि सबके लिए लाई हैं, डिनर से पहले सबके पीने के लिए शर्बत है | न जाने क्यों महाराज के मन में कुछ शंका हुई और उन्होंने उसको फिलहाल चुप रहने के लिए कहा | उन्हें लगा कि यह शर्बत उस लड़के को क्यों दिया गया था?

मैं कुछ देर के लिए अपने कमरे में आई थी और डिनर पर जा ही रही थी कि महाराज कमरे में आए और उन्होंने मुझे सारी बात बताई | उसको देखते ही मुझे उस दिन के शर्बत की याद आ गई और मन में लगा कि कुछ न कुछ तो ऐसा था ही जिससे केवल मेरा ही नहीं सबका दिमाग भटक गया था | अब यह क्या कारण था कि जाते-जाते एक नए नाटक की तैयारी की जा रही थी | मैंने महाराज से चुप रहने के लिए कहा और वह बॉटल अपने कमरे में रख ली | कुछ भी ऐसी बात होने पर अम्मा-पापा का जाना तो टल ही जाता, सब चिंताग्रस्त हो जाते | मैंने सोचा, बाद में देखती हूँ और उस समय चुप्पी लगा गई | 

आखिर फ़्लाइट का दिन भी आ गया | कई दिन बीच में प्रमेश की दीदी का संस्थान में पदार्पण नहीं हुआ था, सब आश्वस्त थे | बेकार की बातें करने का किसी का मन न होता | हाँ, फिर भी वे अम्मा को फ़ोन तो करती ही रहती थीं और प्रमेश हमेशा की तरह कक्षाएं लेकर निकल जाते थे | इस बात के सब आदी हो चुके थे | शीला दीदी के मन में सवाल उठते और रतनी की आँखों में भी क्योंकि सब देखते-भालते हुए भी मेरी उन दोनों से सारी बात खुलकर तो हुई नहीं थी |