तो दोस्तों आपने सुना कि हमरा आघात हो चुका था, मुंबई में, सारे शिकायतों को मन से अलविदा करते हुये, जीवन को जीना शुरू किया.
तब में 8th std में थी, गुजरात में तो मे Grils school में study करती थी, यहां मेरा दाखिला mix school में हुआ था। हम लोग कांदिवली West मे रहते थे, Sai नगर में, अब उन दिनों तो मोबिल phone की सुविधा नहीं थी.
मेरे गुजरात का जीवन अलग था वहां 11am to 5pm की school हुआ करती थी, हम खेल कूद भी बहुत करते थे, उन दिनों हम घर का कुछ काम नहीं करते थे, हम मजेदार किस्सा सुनाते है आपको की, वहां गाय भेस गुमा करते थे, एक दिन में अपने घर के आँगन में बेठे पढ़ाई कर रही थी, मे कुछ लेने घर मे गई और मेरी बुक गाय खा रही थी, बहुत कोशिश की पर book नई बचा पाई, उस दिन मुजे 2 बातों का ज्यादा दुख था की, एक मेरी mom के कड़ी मेहनत के पेसे बर्बाद हुए और दूसरा की गाय के ने बुक खाई उसमे पीन था.
मेरी मम्मी सिलाई- का काम करते थे,गाव का जीवन बहुत सरल था, वहां समय ही समय था, लेकिन हमारे मुंबई में वक़्त की बहुत कमी थी मुजे तो आज भी यूँ लगता है कि मुंबई की घड़ी तेज जलती है, समय ek चुटकी बनाने में निकल जाता है.
पर हम खुश थे बहुत खुश थे कि आज नहीं तो कल हमें हमारी मंजिल मिल ही जायेगी,। मुंबई शिफ्ट हुए तब हम 13 साल के थे, फिर हमरा दाखिला हुआ कांदिवली West school Sardar vallabhbhai patel विविध lakshi vidhayalay. School बहुत अच्छी थी, school का ground बड़ा था, school के teachers भी अच्छे थे, जहां गुजरात की तरह यहां कोई पक्षपात नहीं था, गुजरात में जब मे 6th std में थी तब कुछ हुआ था, मे महिला school में थी वहां सारे teachers भी महिलाये थी, मेरी एक टीचर थी हिस्ट्री के विषय की उसने परीक्षा के पेपर को अपने पसंदीदा स्टूडेंट से चेक करवाया था ओर में उस विषय में केवल 1 मार्क के लिए फैल हुई थी।
मुजे यकीन था कि ये सब मेरे साथ जान भुज के हुआ है, फिर क्या था मेने आवाज उठाई और टीचर को बोला आपने ये गलत किया है, फिर टीचर ने मुजे लेके Principal के पास गए, सारी बात की,मुजे लगा आचार्य हमारी बात सुनेंगे लेकिन उल्टा आचार्य ने हमें सुनाया फिर क्या था, हम चुप रहने वालों में से तो नहीं थे, आचार्य और वो निशा जिसने पेपर चेक किया था वो रिश्तेदार थे, उसी समय स्कूल के ट्रस्टी आए थे, मेने आचार्य को सुनाया आप भेदभाव करते है आमिर बच्चों मे और मिडल क्लास बच्चों मे, और भी कुछ बोली होगी फ़िलहाल याद नहीं मुजे आचार्य ने मुजे बोला जाओ आप. 🤣🤣🤣
आलम यह था कि सब डरते थे आचार्य से और आचार्य मुझसे आँख नहीं मिलते थे. ये 2001 की बात थी, मे जब 2003 को स्कूल का दाखिला लेने गई तब बहुत सताया आचार्य ने फिर दाखिला दिया, स्कूल के बच्चों का डर यह था कि स्कूल से हमें निकाल दिया जाएगा और फिर कोई स्कूल में हम स्टडी नहीं कर पायेगे।
स्कूल में बहुत सारी चीजें ऐसी हुई जो नहीं होनी चाहिए थी। मुजे तो बचपन में ही समझ आ गया था अखिरकार दुनिया है केसी........।
Bye guys मिलते है next episode me...😍😘🫡