Bakre ki Amma in Hindi Short Stories by SURENDRA ARORA books and stories PDF | बकरे की अम्मा

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बकरे की अम्मा

लघुकथा

बकरे की अम्मा

" साब जी ! नया कानून तो लाजवाब है। "
" किस कानून की बात कर रहे हो दिलबर ?"
" साब जी , अब हर बलात्कारी की सजा मौत मतलब फांसीं से कम कुछ नहीं। "
" होना भी यही चाहिए पर इस बात पर तुम क्यों गुब्बारा हो रहे हो ? "
" साब जी , समझे नहीं आप ! नोटिफिकेशन आते ही यूँ समझ लीजिये कि रशियन वोल्गा हर रात के लिए पक्की। "
" क्या अनाप - शनाप बके जा रहे हो । आज दिन में तो नहीं चढ़ा ली ? "
" लाहौल - वलाकुवत साब जी। नाराज मत होइए। समझने की कोशिश कीजिये। वैसे भी दारु ड्यूटी टाइम में हराम है। "
" तो समझाओ कि हर बलात्कारी के लिए फांसी का कानून और वोल्गा का आपस में कनेक्शन कैसे हो सकता है ? "
" साब जी , कानून की सख्ती के साथ फंदा भी मजबूत बन जाता है और फंदे की मजबूती देखते ही मुजरिम का पिछवाड़ा भी माल लीदने लगता है। "
दरोगा मुस्कुराया और एक भद्दी सी गाली उगलते हुए बोला , " दिलबर तुम तो वर्दी पहनने के एक साल के भीतर ही कप्तानी करना सीख गए। पहले शासनादेश तो जारी हो लेने दो , फिर रशियन वोल्गा या इटली की शेम्पेन के सपने देखना भी और दिखाना भी । "
" साब जी , बात निकली है तो दूर तक जाएगी और शासनादेश भी आ ही जायेगा। आपकी कृपा रहनी चाहिए। हिन्दुस्तान में हर दिन तकरीबन एक हजार बलात्कार तो होते ही होंगे। उनमें से औसतन एक केस अपने इलाके में भी हो जाता है और आज तक के सभी मामलों में बात समझौते पर ही खतम हुई है।और हर समझौते पर सरपंची मोहर आपकी ही लगी है , जिसकी फीस भी मिली है। "
" दिलबर भाई , समझौता न करवाएं तो ये हरामी उम्र भर जेल में रहकर सड़ जायेंगें। इंसानियत के हिसाब से इन पर दया करना हमारा फर्ज है। "
" अब इस नेक काम के रेट तीन गुने करने पड़ेंगें , साब जी । फांसी की दहशत अपने आप ,सब कुछ करवा देगी। कानून की सख्ती का यही तो मजा है। "
" दिलबर ! मूर्खों जैसी बात मत करो । इस तरह की बातें खुल्ल्मखुल्ला नहीं किया करते। " दरोगा जी ने झिड़क दिया।
" कुछ भी कह लो साब जी ! गरीबी बड़ी बेरहम होती है। अब्बा के पास थोड़ी सी खेती है। जवान बहन घर में तैयार बैठी है। उसका रिश्ता करना जरुरी हो गया है , चाहता हूँ उसका ब्याह धूम - धाम से किसी अच्छे घर में हो। " कहते - कहते दिलबर का गला भर्रा गया।
दरोगा जी ने उसे अपने पास बुलाकर बगल वाली सीट पर बैठाया। उसकी नम आँखों की तरफ अपना रुमाल बढ़ाते हुए बोले ," अब चुप कर। तसल्ली रख। कानून लागू हो जाने दे , तेरी ही नहीं हम सब की सारी हसरतें बड़ी जल्दी पूरी होंगीं। मेरी भी कोठी का काम रुका पड़ा है। साली पैसा ऐसे पी रही है जैसे कोठी न हो कोई जवान रंडी हो। जितना भी लगा रहा हूँ , कम ही लगता है। "
दिलबर अब तक सामान्य हो चुका था। बोला , " साब जी अभी के लिए कुछ ठंडा - गर्म लाऊँ ? "
" हाँ ! अग्रवाल स्वीट्स वाले को फोन लगा दे। अपने आप भिजवा देगा। साला देसी घी के नाम पर खूब पामोलिन चला रहा है। इसका बहीखाता भी चेक करते हैं किसी दिन। "
" इजाजत दें तो आज ही दबिश दे दूँ ? नेक कम में देरी क्यों ? "
" आज तो काजू - कतली का संदेशा भिजवा दो। दबिश फिर किसी दिन। बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी। "
" जो हुकुम साब जी। "

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ,
डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन , साहिबाबाद - 201005 ( ऊ. प्र. ),मो : 9911127277