पथरीले कंटीले रास्ते
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लङके को थाने के लाकअप में छोङकर सिपाहियों को सतर्क रहने का हुक्म सुनाकर थानेदार सरकारी जीप में सवार हुआ और दस मिनट ही लगे होंगे कि वह आदेश अस्पताल के दरवाजे पर जा पहुँचा । उसने ड्राइवर को गाङी एक कोने में लगाने का आदेश दिया और उतरने के लिए दरवाजा खोला ही था कि परिसर में झुंड बनाकर खङे पत्रकारों में से एक पत्रकार की नजर उस पर पङ गयी । वह अपने कैमरामैन के साथ उसकी दिशा में भागा । तब तक थानेदार जीप से बाहर आया ही था कि उसने स्वयं को कैमरों और माइकों के बीच घिरा पाया ।
इंस्पैक्टर साहब , आपके इलाके में दिनदहाङे हत्या हो गई , आपको क्या कहना है ?
बता सकते हैं , हत्या किस उद्देश्य से की गयी है ?
आपके हिसाब से किसने की है ये हत्या ?
इस इलाके में कोई कानून और व्यवस्था है या नहीं ?
आप लोग यानिकि पुलिस क्या कर रही हैं ?
गाँवों तक में अमन और शांति भंग हो रही है और आप पता नहीं कहाँ छिपे बैठे हैं ?
थानेदार सज्जन सिंह ने अचानक हुए इन हमलों के जवाब में जबरन चेहरे पर एक मुस्कान चिपकाई – देखो भाई , जैसे ही हमें इस घटना की खबर मिली , हम यहाँ आ गये । अब अंदर जाने दोगे तभी कुछ पता लगा पाएंगे । जब तक घरवालों से , डाक्टरों से नहीं मिलेंगे , तब तक कुछ कैसे बता पाएंगे ।
और वह पत्रकारों के बीच से रास्ता बनाते हुए अस्पताल के भीतर चला गया । पीछे से पत्रकारों की आवाज सुनाई दी – साबजी हम इंतजार करेंगे ।
उसने एक सैकेंड रुककर देखा । ये पत्रकार नामक जीव भी परजीवी होते हैं । कोई घटना हो या दुर्घटना इन लोगों के लिए सिर्फ एक सुर्खी होती है । मात्र अखबार की एक खबर । कहीं कोई घटना घटी नहीं कि ये मक्खियों की तरह भिनभिनाते हुए वहाँ पहुँच जाते हैं । तब तक वहीं मंडराते रहेंगे जब तक कोई सनसनी इनके हाथ नहीं लगती । थोङी सी बात भी हाथ लग जाएगी तो अगले दिन मिर्च मसाला लगाकर पूरे कालम की खबर बना डालेंगे । संवेदना नाम की कोई चीज इनके पास नहीं होती । पूरा दिन थानों , अस्पतालों , रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों के आसपास सूंघते रहेंगे ताकि सबसे पहले खबर ढूँढ कर खुद को सबसे बङा पत्रकार साबित कर सकें ।
ये सब सोचते सोचते वह आपातकक्ष पहुँच गया । अंदर टेबल पर मृत युवक लेटा हुआ था । खून बह बह कर उसके चेहरे और गरदन पर आ गया था । सिर पूरा खुला पङा था । अंदर कोने में खङा कर्मचारी पोस्टमार्टम की तैयारी कर रहा था । उसने थानेदार को देखा तो हाथ के औजार वहीं छोङकर उसके पास सरक आया – जी सर
ये आज कौन डाक्टर साहब डयूटी पर हैं
सर डाक्टर विपुल की डयूटी है ।
अब कहाँ है
जी अभी कागज तैयार करवा रहे हैं । घरवालों के साईन करवाकर फिर इधर आएंगे । तब इसका पोस्टमार्टम होगा ।
ठीक है । मैं वहीं जाकर मिल लेता हूँ ।
वह वहाँ से बाहर निकला । बाहर कई ग्रामीण इधर उधर खङे चर्चा मग्न थे । कुछ गाँववाले चिंता में डूबे भी दिखाई दे रहे थे । उसे निकलते देख कुछ लोग उसके पास आ गये – साहब जी , आप थोङा जल्दी लाश दिलादो । टाईम से गाँव पहुँचेंगे तभी आगे का प्रोग्राम होगा । आप जानते हो , अंधेरा होने पर दाह नहीं दिया जाता । दिन रहते रहते गाँव पहुँच जाएँ ।
उन सबने हाथ जोङ दिये थे । थानेदार ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी और बिना कुछ बोले आगे बढ गया । गैलरी पार कर वह ओ पी डी वाले क्षेत्र में आ गया । इस इलाके में अलग अलग कैबिन बने थे । हर कैबिन पर दो डाक्टरों की नेमप्लेट लगी थी । शाम होने को थी इसलिए इन में से अधिकांश कैबिन बंद हो चुके थे । एमरजैंसी स्टाफ अपनी डयूटी पर आ चुका था और साथ ही रात की डयूटी वाला स्टाफ अपनी जगह ले रहा था ।
डाक्टर विपुल का कैबिन खुला था । वहाँ बाहर दस बारह लोग बाहर इंतजार कर रहे थे । भीतर भी दसेक लोग खङे थे । डाक्टर कागज भर रहे थे । उन्होंने कागज पूरे कर साईन करने के लिए इकबाल सिंह के सामने रख दिये और सज्जन सिंह से हाथ मिलाया – बैठो साहब , बस अभी चलते हैं ।
इकबाल सिंह ने कांपते हाथों से कागजों पर साईन किये और कागज डाक्टर की ओर बढा दिये । इकबाल सिंह को उठने में पूरा जोर लगाना पङा । उसे लग रहा था कि उसके बदन में ताकत खत्म हो गयी है । आँखों में अजीब सा सूनापन दीख रहा था । सज्जन सिंह ने उसके कंधे पर हाथ रखकर मौन सांत्वना दी । तबतक साथ खङे लोगों में से दो लोग आगे आ गये और इकबाल सिंह को सहारा देकर बाहर ले गये ।
डाक्टर ने पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट और लाश घरवालों को सौंपी और एक कापी थानेदार सज्जन सिंह को थमाई तो उसने सवालिया नजरों से डाक्टर को देखा ।
रिपोर्ट तो साफ क्लीयर थी थानेदार साब । किसी ने पूरे जोर से कोई भारी चीज इसके सिर पर मारी है । जख्म बहुत गहरा है । मौत ज्यादा खून बह जाने की वजह से हुई है । - कहते कहते उसने अपना बैग उठाया ।
ठीक है सर , मेरी डयूटी खत्म हो गई । सिर्फ इस पोस्टमार्टम की वजह से ही रुका हुआ था । अब चलें ।
दरजा चार कर्मचारी को कैबिन का दरवाजा बंद करने को कहकर वह घर की ओर चल पङा । थानेदार भी अपनी जीप की ओर बढा । अभी उसे चक्क रामसिंहवाला के शमशान घाट में जाकर इस युवक का अंतिम संस्कार में शामिल होना था । पर उससे भी पहले उसे पत्रकारों के सवालों के जवाब भी देने थे ।
वही हुआ , जैसे ही बाहर आँगन में आया , पत्रकार फिर से उसके आसपास आ जुटे । थानेदार ने अपना गला साफ किया – देखो भाइयों , दो लङके अचानक लङ पङे । एक लङके ने गुस्से में नलके की हत्थी शैंकी को मारी और वह मर गया । अभी इतनी ही जानकारी मिली है । बाकी जानकारी जैसे ही मिलेगी , आपसे साझा कर दी जाएगी ।
थानेदार उन्हें वहीं छोङकर जीप में बैठा और जीप गाँव चक्क राम सिंहवाला की ओर चल पङी । उसके साथ साथ गाङियों का काफिला कभी आगे कभी पीछे चल रहा था । पंद्रह मिनट बाद ये सब गाँव के शमशानघाट में पहुँच गये । जैसे ही लाश को गाङी से नीचे उतारा गया , औरतों के विलाप और रुदन से पूरा शमशानघाट गूँज उठा । आखिर घर के इकलौते बेटे की हत्या हुई थी । माँ तो बार बार बेहोश हो हो जाती । साथ की औरतें पानी के छींटे मारकर होश में लाती और वह फिर बेहोश हो जाती । दो बेटियाँ भी थी पर वे तो पराया धन हैं । शादी कर देंगे तो अपने घर बार की हो जाएंगी । कोई आने देगा तभी तो आ पाएंगी । यह बुढापे का सहारा तो चला गया । जिसके सहारे अब दिन कटने थे । कैसे कटेगी जिंदगी । कहाँ सपना देखा था कि अब बेटे को राजनीति में उतारना है । एम एल ए या किसी सोसाइटी का चेयरमैन तो बन ही जाएगा । तब इतने बरसों की मेहनत फल उठेगी । क्या पता था कि इस तरह अचानक छोङ कर चल देगा । पंडितजी ने मंत्र पढने शुरु किये । विधिविधान पूरा कर अग्नि प्रज्वलित करके इकबाल सिंह को थमाई तो वह फूट फूट कर रो पङा । उसके भतीजे ने आगे बढकर उसे थामा और उसका हाथ थामकर चिता को आग दिखाई । धू धू कर चिता जल उठी । लोग हाथ पाँव धोने लग पङे थे । इकबाल सिंह वही बैठ गया था । चिता के धुंए के साथ उसके सपने भस्म होने लगे थे । आखिर लोग घरों को चल पङे । धीरे धीरे शमशानघाट खाली हो गया । इकबाल सिंह भी घर को चला । सिर्फ दो तीन लङके मुर्दा जलने तक वहाँ रुक गये । सज्जन सिंह ने पहले इकबाल सिंह के घर जाने या बसस्टैंड जाने के बारे में सोचा पर घङी अब आठ की ओर चल पङी थी तो बाकी की तहकीकात कल तक के लिए मुलतवी कर वह थाने की ओर लौटा । थाने में अभी वे गाँव वाले अभी मौजूद थे ।
तुम लोग गये नहीं अभी तक यहीं हो
साब ये लङका
तुम लोग यहाँ खङे रहने की बजाय किसी वकील से मिल लेते तो कल को इसकी जमानत हो जाती । वैसे अभी मामला पूरा गरम है । बाहर इसकी जान को खतरा हो सकता है इसलिए अभी जमानत की अरजी न ही डालो तो ज्यादा बढिया होगा । बात कुछ ठंडी हो जाए तब सोचना ।
कल इसे पेश करेंगे , कोर्ट में । ज्यादा सजा की संभावना नहीं है । अधिक से अधिक तीन साल या पाँच साल की सजा होगी ।
इसके साथ ही उसने रात की डयूटी पर तैनात सिपाहियों को सतर्क रहने का आदेश दिया और घर चला गया । अब ग्रामीणों के लिए भी वहाँ खङे रहने की कोई बात न थी । उन्होने रोटी होटल से ही लेकर युवक को खिलाई और सुबह आने का वादा करके घर लौट गये । रविंद्र की वह रात हवालात के लाकअप में जमीन पर मच्छरों से लङते हुए बीती ।
शेष कहानी फिर ...