gulabo - 21 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 21

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गुलाबो - भाग 21

भाग 21


पिछले भाग में आपने पढ़ा की रज्जो को आभास होता है की वो मां बनने वाली है। उसकी पूजा पाठ, भक्ति का प्रसाद उसे अम्बे मां ने दे दिया था। इस खबर से दोनों के जीवन में खुशियों की बरसात होने लगती है। अब आगे पढ़ें।


जय भले ही अपने मन की व्यथा रज्जो से नहीं व्यक्त करता था, पर दुख उसे भी होता था रज्जो के लिए बांझ की उपमा सुन कर। और वो भी कोई बाहरी कहता तो उसकी भावना को उतनी ठेस नहीं पहुंचती..? पर खुद अपनी ही मां से रज्जो के लिए बांझ शब्द सुनना ज्यादा ठेस पहुंचाता था। अपने बाप बनने की खुशी तो थी उसे पर उससे ज्यादा रज्जो के ऊपर लगे बांझ का धब्बा मिट जाने का था। अब अम्मा रज्जो को बांझ और अशगुनही नही समझेंगी।

कुछ दिन तो जय और रज्जो ने किसी से भी ये बात नहीं बताई। पर चार महीने बाद उन्हें लगा की अब रज्जो को किसी बड़े अनुभवी की देख रेख में रहना चाहिए। ये विचार आने के बाद जय ने रज्जो को गांव में अम्मा के पास छोड़ने का फैसला कर लिया।

और फिर अगले ही छुट्टी में वो रज्जो को साथ ले अपने घर पहुंच गया। हमेशा की तरह इस बार भी जगत रानी ने रज्जो को देख कर कोई उत्साह या खुशी नही जाहिर किया। घर तो अलग अलग बना ही था। पहले तो जगत रानी को लगा कि एक दो दिन में ये लोग चले जायेंगे। पर जब जय रज्जो को छोड़ कर वापस लखीमपुर जाने लगा तो जगत रानी बोली,

"ऐसा कर जय ..! जब इसे छोड़ कर जा रहा है तो इसके खाने पीने की व्यवस्था अलग कर के जा। मैं चाहती हूं मेरे सामने ही दोनो बेटे बहू अपनी अपनी गृहस्थी अच्छे से जमा लें। मेरे इस दुनिया में ना रहने पर उनके बीच घर और खेत को ले कर कोई लड़ाई झगड़ा ना हो। वो अलग अलग प्रेम से रहें।"

जय तो रज्जो को ले कर आया था अम्मा के संरक्षण में रखने के लिए। पर अम्मा तो उसे अलग रहने को बोल रही। उससे कुछ कहते नहीं बना। अब वो कैसे अपने मुंह से अम्मा को बताए की, "अम्मा..! रज्जो मां बनने वाली है। (पुराने समय में इतना संकोच होता था की लड़के ऐसी बात अपने माता पिता से नही कर पाते थे।)

फिर जय ने सोचा अम्मा की अनुभवी आंखे जरूर इस बात को समझ लेंगी।

जय को चिंतित देख विश्वनाथ जी ने जय को दिलासा दिया और बोले,"बेटा जय….! तू चिंता ना कर। एक दीवार का ही तो फर्क है। फिर हम दोनो तो यही बरामदे में ही रहते है। रज्जो बहू की देख भाल कर लेंगे।"

जय को पिता के आश्वासन में थोड़ी तसल्ली हुई। उसने जरूरत का सारा सामान ला कर रख दिया। और अच्छे से रज्जो को समझा दिया। कोई भी परेशानी हो तो अम्मा से जरूर बताए। साथ ही नाउन चाची को घर के ऊपरी काम के लिए लगा दिया। इसके बाद जय रज्जो से अगले महीने फिर आने का वादा कर चला गया।


जो गुलाबो जेठानी को बड़ी बहन समान समझती थी। उससे अपनी हर छोटी बड़ी बात बताती थी। अब उसे जेठानी आ आना अच्छा नहीं लगा। उसे लगा अब वो अपने हिस्से का खेत और उसमें उपजने वाला अनाज बांट लेंगी। विजय खेती बारी का ही काम करता था। विश्वनाथ जी सेवा निवृत हो चुके थे। तीन तीन बच्चों का खर्च चलाने में बहुत मुश्किल होती थी। तीन बच्चों की देख भाल और घर के काम काज से गुलाबो की गुलाबी रंगत फीकी पड़ गई थी। साथ ही कच्ची उम्र में तीन बार मां बनने से उसका शरीर भी भारी हो गया था। अब भारी शरीर से उसको काम करने में परेशानी होती। और इधर जेठानी के घर में नाउन चाची को काम करते देख उसे बहुत जलन होती थी। वो मन ही मन सोचती और भुनभुनाती की, "मेरी तो किस्मत ही खराब है। ना ही शहर में रहने का सुख मिला और ना ही अकेले रहने का। दीदी कितनी नसीबों वाली है शहर में भी रह रही और अब अकेले मजे से गांव में भी रह रही। काम भी नही करना होता। नाउन चाची सब कर देती हैं।

रज्जो एक तो घर के काम काज में कुशल थी। दूसरे अकेली जान। अच्छे अच्छे पकवान बना कर और सास ससुर को पहले थाली भर के दी। फिर उसने गुलाबो और उसके बच्चों को भी दिया। पर उसकी भरी थाली जगत रानी ने मुंह बनाते हुए लौटा दिया ये कह कर की, "अपने माल पुए तू ही खा। हमें अपनी रूखी सूखी ही भली। मेरे बच्चे किसी का दिया नही खाते।"

गुलाबो के बच्चे श्याम और रिद्धि, सिद्धि ललचाई नजरों से थाली को देख रहे थे। पर जगत रानी ने उन्हें बहला दिया। और खाने से रोक दिया। उसके मन में ये बात थी की रज्जो कही अपने मां बनने के लिए इन बच्चों को कोई तंत्र मंत्र कर के ना खिला दे।

सास जगत रानी के थाली वापस करने पर रज्जो मायूस हो कर थाली वापस ले कर घर में जाने लगी। विश्वनाथ जी को बहू रज्जो का उतरा चेहरा आहत कर गया। उनसे नहीं रहा गया। आखिर वो भी तो उनके घर की ही सदस्य है। घर की बड़ी बहू है। अपनी पत्नी जगत रानी की परवाह ना करते हुए उन्होंने रज्जो को रोकते हुए कहा, "अरे!!! बहू..! तेरी सास नही खायेगी तो तू क्या मुझे भी नहीं खिलाएगी…? दिखा तो क्या बनाया है..? बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है..!"

ससुर की बात सुन मायूसी से जाती रज्जो के चेहरे पर रौनक लौट आई। वो वापस लौटी और विश्वनाथ जी के सामने सजी सजाई पकवानों से भरी थाली बड़े चाव से रख दी। विश्वनाथ जी ने अपने खाने भर का निकाल लिया और बाकी रज्जो को वापस कर दिया। वो अकेली जान कितना खाती..? बनाया तो उसने पूरे घर के हिसाब से था। बाकी का बचा खाना नाउन चाची को दे दिया घर ले जाने के लिए। अब गुलाबो कसमसा कर रह गई की उसके बच्चे देखते रह गए और खाना नाउन चाची ले गई।

अब तो ये रोज ही होने लगा। रज्जो जो कुछ भी बनाती लंबा घूंघट चेहरे पर खीच कर आती और ससुर के पास बरामदे में रख कर चली जाती। विश्वनाथ जी जगत रानी को छेड़ने के लिए और भी तारीफ कर करके चटकारे ले ले कर खाते। जगत रानी जल भुन जाती।