Drohkaal Jaag utha Shaitaan - 47 in Hindi Horror Stories by Jaydeep Jhomte books and stories PDF | द्रोहकाल जाग उठा शैतान - 47

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द्रोहकाल जाग उठा शैतान - 47

एपिसोड ४७


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महाराज, रघुबाबा-संतयारवशी प्रधान, सब तंबू में बैठे थे। रघुबाबा उन्हें झुग्गी की यक्षिणी विद्या से लेकर तहखाने की घटना तक सब कुछ बताते थे।

वह सब सुनकर महाराज के साथ-साथ प्रधानजिनी भी आश्चर्यचकित रह गये। वे इस अद्भुत बात को जानते थे कि इस धरती पर मानव तर्क से परे क्या मौजूद है..वे यह जानते थे और जब वह अशोभनीय ध्यान रहजगढ़ के निवासियों को उनके टेढ़े शरीर की दृष्टि सहित इस खतरे से अनजान बनाने वाला था। तब क्या प्रतिक्रिया होगी उन सभी में से? क्या कोई गाँव छोड़ने की तैयारी कर रहा होगा? तो फिर इससे लड़ेगा कौन या फिर खुद ही मौत को गले लगा लेगा

होगा

"फिर इन खून-चूसने वालों से बचने का कोई और रास्ता नहीं है! राहजगढ़ के हमारे लोग दिन में भी इस वीभत्स खतरे से भयभीत हैं! हम कल्पना नहीं कर सकते कि जब हमारे लोगों को इसके बारे में पता चलेगा तो क्या होगा! कृपया, रघुबाबा, आप सही काम करना चाहिए!"प्रधानजींनी आपले दोन्ही हात रघुबाबांसमोर जोडले. महाराजांनी एकवेळ यार्वशी प्रधानजींकडे पाहिल मोठी गर्वाची गोष्ट होती..की असा प्रधान राहाजगडला मिळाला होता.जो की धोक्याच्या क्षणालाही स्व्त:च्या हिताच विचार सोडून प्रजेच विचार करत होता.

"महाराज तसं सांगायचं तर ही प्रजात आपल्या देशातली न्हाई, त्यामुळ ह्यावर उपाय मात्र जस्ट ठाव नाई..पन एक उपाय हाई ! "

" अहो मग बोलाना तुम्ही! वाटलस तर आताच्या आताच अमळात आणु तो उपाय!" महाराज खुर्चीत ताठ बसत म्हणाले.

" ठिक ऐका तर !" रघूबाबांनी एक धीरगंभीर कटाक्ष सर्वांवर टाकला.

" म्या अस ऐकलय की दिवसा ह्यो रक्तभक्षक झोपलेला असतुया. आण रातच्याला बाहेर पडतुया -कारण ह्यांस्नी सुर्याचा प्रकाश वर्जित हाई...कारण ह्यो सैतान म्हंजी एक मेलेल जित प्रेत. हाई ! की ज्यांस्नी एकदा उजेडाचा स्पर्श झाला की त्याची चामडी शरीर जळाया लागतीया. तर महाराज म्या अस म्हंतु.आपल्याला त्याचा ठाव बी माहीती हाई- तए आपण चाळीस -पन्नास सैनिकांची मशाली -टिटव्यांची फौज घेऊन त्या तळघरात जायच -आणि त्याच्या पेटीत तो सैतान आता झोपला असल..तर त्या पेटीला बाहेर आणायच आण..!"रघु बाबा पुढे बोलणार की तोच मध्ये त्यांच्या मागे उभे असलेला संत्या डिवचला.
"सूरज की रोशनी के लिए खुला! आओ शैतान खल्लास"

संता ने कहा. इस वाक्य पर रघुबाबा ने धीमी गति से अपना सिर उनकी ओर घुमाया - वे चेहरे पर हाथ रखकर चुप रहे।

रघुबाबा धीरे-धीरे वहीं खड़े हो गये - आँखें चौड़ी करते हुए, उन्होंने अपना एक हाथ हवा में उठाया और जोर से नीचे ले आये।

शांत

"वा..हाहाहा!" इतना कहकर रघुबाबा मुस्कुराये और महाराज के चेहरे पर भी अनजाने में मुस्कुराहट आ गयी। कहीं न कहीं मन में वह अशोभनीय शक्ति समाप्त हो जायेगी।

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क्रमश:
केवल 18 वयस्कों के लिए..

प्यारा, रोमांचकारी, हिंसक। डरावना..

लेखक: जय......





इस कहानी में रोमांस-सौन्दर्यात्मक दृश्य दिखाया गया है। कहानी के लिए उपयोगी होने के कारण उनका उपयोग किया गया है। यह कहानी केवल वयस्कों और मजबूत दिमाग वाले पाठकों के मनोरंजन के लिए बनाई गई है, कहानियों के माध्यम से समाज में किसी भी तरह की अश्लीलता फैलाने का कोई इरादा नहीं है, या लेखक की मंशा है...पाठक ध्यान दें यह!
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