Pagal in Hindi Love Stories by Kamini Trivedi books and stories PDF | पागल - भाग 1

Featured Books
  • ભીતરમન - 58

    અમારો આખો પરિવાર પોતપોતાના રૂમમાં ઊંઘવા માટે જતો રહ્યો હતો....

  • ખજાનો - 86

    " હા, તેને જોઈ શકાય છે. સામાન્ય રીતે રેડ કોલંબસ મંકી માનવ જા...

  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

Categories
Share

पागल - भाग 1

"पागल,, हां सही नाम से पुकारा करता था वो मुझे। (हंसते हुए) पागल ही तो हूं मैं उसके लिए , उसके पीछे , उसके प्यार में।"

रात के 1 बज चुके थे । आंखों से नींद कोसों दूर । आज उसे पहली बार जो देखा था। ना जाने क्या कशिश थी उसकी आंखों में दिल काबू में ना रहा । शायद इसे पहली नजर का प्यार कहते है । लेकिन क्या हो सकता है।
ना मैं उसे जानती हूं ना वो मुझे । बस एक पार्सल लेने वो मेरे घर आया था । कुछ जरूरी सामान मम्मी को एक परिचित के यहां भेजना था ।

ये शायद उससे मिलवाने के लिए ही भगवान ने लीला रची थी। मैं कभी भी अपने घर का दरवाजा नहीं खोलती थी। चाहे कोई भी हो । लेकिन आज मम्मी को बाजार जाना था और मुझे बोल कर गई थी कि अगर मैंने दरवाजा ना खोला और पार्सल ना दिया तो अगले एक सप्ताह तक वो मुझे बाहर नहीं जाने देंगी । मरती क्या ना करती ।

दोपहर को घंटी बजी में आलसी की तरह सोफे पर पसरी पड़ी थी। आधी नींद से जागी, आंखे खुल नही रही थी। अस्त व्यस्त कपड़े हो रहे थे और बिखरे बाल। घंटी बजी पर मैं ना उठी। दोबारा घंटी बजी , तब याद आया मम्मी बोलकर गई थी पार्सल देना है। मैं झट से उठी कपड़े ठीक किए लेकिन बाल ठीक ना कर पाई अगर बाल ठीक करने जाती और पार्सल वाला चला जाता तो मैं सप्ताह भर के लिए घर में कैद हो जाती ।

दरवाजा खोला तो सामने का नजारा देख कर कुछ पल खो सी गई। गहरी भूरी आंखें, लंबा चेहरा , घनी भौंहे, गुलाबी होठ सांवला रंग ,कद लम्बा, मैं उसे बस देखे जा रही थी अपने होश गवाए ।

"मैडम, मुझे देर हो रही है , पार्सल दे दीजिए।"
उसकी आवाज से मुझे होश आया । मैं शर्मसार हो गई और अंदर जाकर पार्सल ले आई।
"सो रही थी क्या मैडम, पहले तो दरवाजा देर से खोला और फिर बाहर आकर भी नींद में खड़ी थी आप । कितनी आवाज़ दी लेकिन आप तो कलाकार है , खुली आंखों से खड़े खड़े ही सो जाती है।" व्यंग्य करते हुए वह हंसा।

मैने उसे गुस्से से देखा ।हालांकि मेरी आधी खुली आंखे गुस्से में भी छोटी छोटी ही लग रही थी ।
"सॉरी मैडम" कहते हुए वह मुस्कुराता हुआ चला गया।

कौन था ? कहां से आया था? क्या नाम था? मैं तो कुछ भी नहीं जानती थी। वो तो चला गया लेकिन मेरी आंखों में अपना प्रतिबिंब छोड़ गया । मेरे चेहरे के सामने बार बार उसका प्रतिबिंब दिख रहा था।

शायद ईश्वर उसे मुझसे मिलाना चाहते थे तभी कभी ना दरवाजा खोलने वाली मैं द वन एंड ओनली कीर्ति त्रिवेदी आज दरवाजा खोलने चली गई । लेकिन खुद पर बड़ा गुस्सा आ रहा था ।
"क्या सोच रहा होगा वो मेरे बारे में , पहली बार उसने मुझे देखा तो भी भूत की तरह , बिखरे बाल, और नींद भरी आंखे। क्या यार 🤦" मैने अपना सिर पीट लिया ।

उसके जाने के बाद ना मैं पढ़ सकी ,ना खाना खाया । खोई रही उसके खयालों में । रात को मम्मी ने एक मग भरकर दूध दिया लेकिन मैं वह भी पीना भूल गई । दो बज चुके थे लेकिन अब भी उसकी आंखे मुझे सोने नहीं दे रही थी। दिल में कसक हुई कि काश! किसी तरह उसका नाम जान पाती तो उसे ढूंढ पाती। काश! मैंने उससे उसका नाम पूछ लिया होता ।अफसोस करती रही और ना जाने कब सो गई।

शायद सुबह के 4 बजे मुझे नींद आई होगी। और 8 बजे मेरा कॉलेज था । 7 बजे मम्मी ने जबरदस्ती उठाया और कहा
"रात को देर से सोई थी ना? दूध पिया नही खाना खाया नही ।हुआ क्या है ?"

"कुछ नही मम्मी"
तैयार होते हुए सोचा मम्मी से पूछती हूं ।
"मम्मी, वो पार्सल आपने किसके यहां दिया था?"
"रोहिणी आंटी के घर, क्यों तूने कुछ किया क्या उसका? सही से दिया तो है न? मेरी नाक ना कटा देना उनके सामने"
"अरे मम्मी , मैने कुछ नही किया , "
"तो तु इस तरह की पंचात तो करती नहीं कभी "
अब अगर मैं मम्मी से पूछती की लड़का कौन था तो मम्मी समझ जाती मेरी मम्मी अगर शादी ना करती तो डिटेक्टिव होती । बड़ी बारीकी से हर बात की तह तक जाती है।मैने ना पूछना ही सही समझा ।


मैं कॉलेज पहुंची।लेकिन उसके खयाल पीछा नहीं छोड़ रहे थे । दिमाग से झटकती तो दिल में बैठ जाता दिल से भगाती तो दिमाग में चढ़ जाता ।उसका ये खेल चलता रहा मेरे साथ।
"ओ मैडम , आज कहां खोई हो?" रिया की आवाज थी।
"कुछ नही यार"
"मूड काफी खराब है?"
"हम्म "
"बताना नही चाहोगी"
"नहीं " मैं अपने दिल की बात किसी से नहीं कहती थी । रिया मेरी दोस्त जरूर थी लेकिन बस कॉलेज में साथ घूमने फिरने के लिए बाकी कुछ खास नहीं।

"ओके, तेरी मर्जी" कहकर वो चली गई । मैं सोच रही थी आज कॉलेज से जाते वक्त रोहिणी आंटी के घर जाऊं शायद उनका पड़ोसी हो या उन्हीं का कोई रिश्तेदार कभी कहीं दिख जाए ।
सोचकर में रोहिणी आंटी के घर तक चली गई । लेकिन अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई, मैं कभी उनके घर नही जाती थी ।मैं कभी उनके घर को देखती कभी सड़क को।
निकल ले कीर्ति अगर रोहिणी आंटी ने देखा तो मम्मी को बताएंगी और मम्मी 50 सवाल करेंगी । मेरे दिमाग ने मुझसे कहा ।
मैं वापिस कॉलेज आ गई । आज घर जाने का मन नहीं था।कॉलेज में एक गार्डन था , मैं वहां बैठ गई। कॉलेज के नए सत्र के एडमिशन स्टार्ट हो चुके थे । बहुत से लोग एडमिशन लेने आ रहे थे। मैं सभी को आते जाते देख रही थी। और तभी किसी से मेरी नज़रे टकराई। ये वही आंखें थी। दिल की धड़कन ने रफ्तार पकड़ ली थी। मैं उसे घूर रही थी । लेकिन वह तो बाइक लेकर कॉलेज के कैंपस में घुस रहा था ।
उसने मास्क और हेलमेट पहना हुआ था । मुझे सिर्फ उसकी आंखें दिखाई दी । उसने मुझे देखा ना होता तो मैं आंखे भी ना पहचान पाती लेकिन हमारी नजरें टकराई ।
मेरा मन किया दौड़ कर उसके पास जाकर उसका मास्क हटाकर देखूं । लेकिन खुद से कहा , "कंट्रोल कीर्ति"


क्या करूंगी अब मैं जानने के लिए अगले भाग का इंतजार कीजिए ।