उस समय मनोज्ञा के मुँख की प्रसन्नता देखने योग्य थी,वो चारुचित्रा को ये अनुभव कराना चाह रही थी कि तुम कितनी भी चतुर और बुद्धिमान क्यों ना बन जाओ,परन्तु मेरे आगें तुम कुछ भी नहीं हो,मैं तुम्हारे सभी क्रियाकलापों पर दृष्टि रख रही हूँ,तुम मुझसे कुछ भी नहीं छुपा सकती,किन्तु उस समय चारुचित्रा ने मौन रहना ही उचित समझा,वो मनोज्ञा से कोई भी वाद विवाद नहीं करना चाहती थी,उसने उससे केवल इतना ही पूछा....
"तुम्हें कैंसे ज्ञात हुआ कि मैं राजकुमार यशवर्धन से भेंट करने गई थी",
"जिस रथ पर आप गईं थीं ना! तो उसका सारथी मेरा मित्र है",मनोज्ञा बोली...
"मैं तुम्हारे कहने का आशय नहीं समझी",चारुचित्रा बोली...
"कहने का आशय है कि वो सारथी मेरा प्रेमी है",मनोज्ञा ने झूठ बोलते हुए कहा...
" क्या सारथी उदयभान तुम्हारा प्रेमी है?",चारुचित्रा ने मनोज्ञा से पूछा...
"हाँ! वो मुझसे बहुत प्रेम करता है",मनोज्ञा बोली...
"और तुम उससे प्रेम करती हो या नहीं",चारुचित्रा ने पूछा....
"नहीं! मैं उससे प्रेम नहीं करती,केवल उसे अपना मित्र मानती हूँ",मनोज्ञा बोली...
"ओह...तो ये बात है",चारुचित्रा बोली....
"हाँ! यही बात है",मनोज्ञा बोली...
"अब तुम जा सकती हो,मुझे तनिक विश्राम करना है",चारुचित्रा ने मनोज्ञा से कहा...
"जैसी आपकी आज्ञा रानी चारुचित्रा!",
और ऐसा कहकर मनोज्ञा वहाँ से चली गई,चारुचित्रा अब समझ चुकी थी कि मनोज्ञा के समक्ष उसका कोई सामर्थ्य नहीं है,वो किसी भी सीमा तक झूठ बोल सकती है और वो अब भी झूठ ही बोल रही थी कि उदयभान उसका प्रेमी है,क्योंकि उस सारथी का नाम उदयभान नहीं सत्यवान है,अब चारुचित्रा सोचने लगी कि मनोज्ञा अत्यधिक शक्तिशाली है,वो ये भी समझ चुकी है कि मेरे मन में क्या चल रहा है, इसलिए कदाचित वो मुझे चेतावनी देने आई थी कि मैं जो भी करती हूँ उस पर उसकी दृष्टि रहती है,यही सब सोच सोचकर अब चारुचित्रा चिन्तित थी,वैतालिक राज्य एवं महाराज विराटज्योति की सुरक्षा हेतु उसके पास कोई भी उपाय ना था और वो अपने बिछौने पर लेटे हुए सोने का प्रयास करने लगी...
और इधर जब यशवर्धन मान्धात्री से वार्तालाप कर रहा था,तो मान्धात्री को यशवर्धन के पीछे किसी की छाया दिखी,वो छाया कदाचित यशवर्धन पर आक्रमण करने आई थी,वो छाया यशवर्धन को कोई हानि पहुँचा पाती,इसके पहले ही मान्धात्री चीखी....
"राजकुमार यशवर्धन सावधान!"
मान्धात्री का वाक्य सुनकर यशवर्धन अपने पीछे मुड़ा और उस छाया को उसने पकड़ने का प्रयास किया किन्तु वो छाया यशवर्धन के हाथ में नहीं आई,यशवर्धन उस छाया के पीछे पीछे भागा किन्तु वो उसे तब भी नहीं पकड़ नहीं पाया और वो छाया वायु वेग से उड़कर ना जाने कहाँ चली गई,यशवर्धन ने उस छाया को उस एकान्त स्थान पर अत्यधिक खोजने का प्रयास किया,किन्तु वो उस छाया को प्राप्त ना कर सका....
कुछ समय पश्चात् मान्धात्री भी उसकी ओर भागते हुए आई और उसने उससे हाँफते हुए पूछा....
"कौन था वो"?
"नहीं ज्ञात कर सका,वो ना जाने कहाँ चला गया",यशवर्धन बोला....
"मैं उसका मुँख भी नहीं देख पाई,क्योंकि वहाँ अँधेरा था",मान्धात्री बोली...
"कोई बात नहीं,उसे तो मैं खोज ही लूँगा",यशवर्धन बोला...
"तुम्हारे पास शक्तियांँ नहीं हैं तो तुम उसे किस प्रकार खोज पाओगे".,मान्धात्री ने यशवर्धन से पूछा...
"वो तो मुझे नहीं ज्ञात,किन्तु मैं चारुचित्रा और विराटज्योति को इस प्रकार के संकट में फँसा हुआ नहीं छोड़ सकता",यशवर्धन बोला...
"मेरे पास तुम्हारी समस्या का समाधान है,उसकी सहायता से हम उस छाया को सरलता से खोज सकते हैं",मान्धात्री बोली....
"तुम्हारे पास ऐसा क्या है जिसकी सहायता से हम उस प्रेतात्मा को सरलता से खोज सकते हैं",यशवर्धन ने मान्धात्री से पूछा...
"मेरे पास मेरे पूर्वजों कि ऐसी विभूति है जो सिद्धहस्त है,जब भी मेरे परिवार में किसी पूर्वज की मृत्यु होती है तो दाह संस्कार के पश्चात् उनके शरीर की कुछ विभूति निकाल ली जाती है,जो कि तंत्रविद्या में प्रयोग की जाती है,यदि उस विभूति को उस दिशा में बिखेर दो,जहाँ प्रेतात्माओं एवं मायावी शक्तियों के होने की सम्भावना होती है तो ये विभूति हमारा मार्गदर्शन करती हुई,स्वर्ण की भाँति चमकने लगती है",मान्धात्री बोली....
"तो कहाँ है वो विभूति?"यशवर्धन ने पूछा...
"ये रही",
मान्धात्री ने अपनी पोटली से लकड़ी का एक सन्दूक निकालकर यशवर्धन के हाथों में देते हुए कहा,उसके पश्चात् यशवर्धन ने वो विभूति उस दिशा में बिखेर दी जिस दिशा में उस छाया के जाने की सम्भावना थी और सच में उस विभूति ने अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर दिया...
सम्भावित दिशा में वो विभूति सच में स्वर्ण की भाँति चमकने लगी,तब मान्धात्री बोली....
"राजकुमार यशवर्धन! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हमें उस दिशा में चल देना चाहिए,बिलम्ब करना उचित नहीं है"
"हाँ! कदाचित! आप ठीक कहती हैं",यशवर्धन बोला...
और दोनों उस दिशा की ओर चल पड़े जिस दिशा में विभूति चमक रही थी,मार्ग में चलते चलते मान्धात्री यशवर्धन से बोली....
"राजकुमार यशवर्धन! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वो कालबाह्यी की छाया नहीं थी,क्योंकि उसके वस्त्र और व्यवहार से तो ऐसा लग रहा था कि वो कोई पुरुष था",
"कहीं ऐसा तो नहीं कि राज्य में हो रही हत्याओं का कारण वो पुरुष हो और हम लोग मनोज्ञा बनी कालबाह्यी पर अकारण ही संदेह कर रहे हों",यशवर्धन बोला....
"नहीं! राजकुमार यशवर्धन! वो मनोज्ञा बनी कालबाह्यी ही है,किन्तु जो पुरूष है वो धवलचन्द्र हो सकता है",मान्धात्री बोली...
"धवलचन्द्र .... अब ये कौन सा नया चरित्र आ गया",यशवर्धन ने पूछा....
"मैंने सुना है कि वो घगअनंग का शिष्य है,घगअनंग भी मेरे गुरुदेव महातंत्रेश्वर की भाँति ही बहुत बड़े तान्त्रिक हैं,धवलचन्द्र ने उनके पास रहकर ही तंत्रविद्या सीखी है",मान्धात्री बोली...
"ये आपको कै़से ज्ञात है"?,यशवर्धन ने पूछा....
"क्योंकि! घगअनंग मेरे पिताश्री के मित्र हैं",मान्धात्री बोली...
"अब धवलचन्द्र का क्या अतीत है? भला वो क्यों ऐसा करेगा"?,यशवर्धन ने पूछा...
"क्योंकि! कदाचित मनोज्ञा उसकी मित्र हो सकती है इसलिए",मान्धात्री बोली....
"वो प्रेतनी और धवलचन्द्र मानव,ये कैसा सम्बन्ध है?",यशवर्धन ने पूछा....
"अब यहाँ पर एक और कहानी है जो मैं आपको बाद में सुनाऊँगीं,पहले ये देखिए कि ये विभूति हमें लेकर किस दिशा की ओर जा रही है",मान्धात्री बोली...
"ये तो हम दोनों को राजमहल की ओर ले जा रही है,इसका तात्पर्य है कि मनोज्ञा सच में प्रेतनी है,तो वो छाया भी यहीं उड़कर आई होगी",यशवर्धन बोला...
"हाँ! ये भी हो सकता है",मान्धात्री बोली....
"तो क्या करें,राजमहल के भीतर चलें",यशवर्धन बोला....
"अभी हम दोनों राजमहल के भीतर नहीं जा सकते राजकुमार यशवर्धन! क्योंकि हमारे पास कोई परिमाण नहीं है ये सिद्ध करने हेतु कि मनोज्ञा प्रेतनी है",मान्धात्री बोली...
"कदाचित! आप सच कहती हैं",यशवर्धन बोला...
"तो अब क्या करें?",मान्धात्री ने पूछा...
"हम यहीं महल के बाहर छुपकर प्रतीक्षा करते हैं,यदि वो छाया राजमहल के भीतर गई होगी तो जब वो राजमहल के बाहर आऐगी तो हमें दिख ही जाऐगी",यशवर्धन बोला...
"हाँ! यदि वो छाया मनोज्ञा की मित्र होगी तो अवश्य वो राजमहल में मनोज्ञा बनी कालबाह्यी से ही मिलने आई होगी",मान्धात्री बोली...
"हाँ! यही हुआ होगा",यशवर्धन बोला....
और दोनों राजमहल के बाहर झाड़ियों के पीछे छुपकर उस छाया की राजमहल से बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगे....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...