Pathreele Kanteele Raste - 2 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | पथरीले कंटीले रास्ते - 2

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पथरीले कंटीले रास्ते - 2

 

पथरीले कंटीले जंगल 

 

2

 

लङके को उस बैंच पर बैठे बैठे आधे घंटे से ज्यादा हो गया था । इस समय दीवार से सिर टिकाये , आँखे बंद किये अपनी ही सोचों में खोया हुआ था । मुंशी ने सिर उठाकर घङी देखी । चार बजने को हैं । अभी साहब आते होंगे । चार और सवा चार के बीच किसी भी समय आ टपकते हैं । उसने मेज पर बिखरी फाइलें एक ओर सरका कर एक के ऊपर एक करके टिकाई । एक फाइल खोल कर मेज पर टिकाकर उस पर  पैंसिल टेढी करके रखी । अपनी जेब से पैन निकाल कर उसकी कैप पीछे फँसाई और उस पैन को भी फाईल पर टिका दिया ताकि ऐसा लगे कि कोई काम करते करते अबी उठ कर गया है । इस सारी व्यवस्था से संतुष्ट होकर उसने एक भरपूर अंगङाई ली । फिर वह भीतर के कमरे में गया और एक अलमारी खोल कर उसमें से सासपैन निकाला । घङे से लेकर पानी के तीन कप उसमें डाले और हीटर का बटन दबाकर पैन उस पर टिका दिया । साहब को आते ही चाय चाहिए । थाने में सिपाहियों , अर्दलियों , मुजरिमों और थाने में आने वाले हर आम खास आदमी पर अपना रौब झाङने वाला यह थानेदार अपनी बीबी के सामने एकदम भीगी बिल्ली बन जाता है । दोनों आमने सामने हों तो वही बोलती है , यह सिर झुकाये सुनता रहता है । यहाँ तककि उसे एक कप चाय के लिए कहता हुआ भी घबराता है । यहाँ आते ही चमची मारेगा – रोशन लाल तेरे हाथ की चाय न सचमुच लाजवाब होती है । एक कप पीकर मजा आ जाता है । जैसी चाय तू बनाता है , सच कहता हूँ , और कोई बना ही नहीं सकता । ला भई जल्दी से एक कप पिला ही दे ।

यह सब सोच कर रोशन लाल के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी । खौलते पानी  में छोटी इलायची और चाय पत्ती डालकर वह बाहर आकर अपनी सीट पर बैठ गया ।

हाँ भई , अब बता , तू क्या कह रहा था ।  वह उस युवक की ओर मुङा ।

युवक अपनी सोच में डूबा बैसे ही दीवार से सिर टिकाये आँखें बंद किये बैठा रहा । मुंशी की आवाज उसके कानों तक नहीं पहुँची ।  

मुंशी ने दोबारा उसे पुकारा – ओए मैं तुझे कुछ कह रहा हूँ । सुन रहा है न ।

अब युवक की तंद्रा टूटी । वह अपनी जगह से उठा और मुंशी की मेज के सामने आ खङा हुआ ।

जी हुजूर !

हजूर के बच्चे , मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ और तू है कि पता नहीं कौन से माघी के मेले में सैर कर रहा था । कोई बात सुनता ही नहीं ।

युवक सिर झुकाये खङा रहा । उसने कोई प्रतिवाद नहीं किया ।

अब बता , क्या कांड करके आया है ?

जी मैंने जानबूझ के कुछ नहीं किया । मुझे तो पता नहीं चला , वह कैसे मर गया ।

पहले अपना नाम बता ?

रविंद्र सिंह

बाप का नाम ?

बग्गा सिंह

रहता कहाँ है ?

चक्क राम सिंहवाला गाँव में

घर में और कौन है ?

 पापा हैं , माँ और दो  छोटे भाई हैं ।

तेरे पापा क्या करते हैं ?

जी किसी दफ्तर में सरकारी जीप के ड्राइवर हैं

और भाई ?

एक बारहवीं में और एक नौवीं में पढता है ।

और तू  ?

जी मैं राजेन्द्रा कालेज में एम ए पंजाबी कर रहा हूँ । पुलिस भर्ती का इम्तिहान भी दे रखा है । फिजिकल निकल गया था पर अब पता नहीं क्या होगा ।

हुआ क्या था ?

जी , मैं रोज की तरह कालेज से वापिस आया था । बस से उतरा । प्यास लगी तो हैंडपंप से पानी पीने लगा । अचानक बहुत सारे लङके आए और सरताज को मारना शुरु हो गये । हाकियों से , डंडों से एक दो के पास लोहे की राड भी थी । सबने मिलकर उसे जमीन पर गिरा लिया ।

अब ये सरताज कौन है ?

मेरे गाँव का है । मेरा बचपन का दोस्त है । वहीं बस अड्डे पर उनकी कपङे की दुकान है ।

ये सारे लङके उसे क्यों मार रहे थे ?

आज सुबह ही वह शैकी को धमकी देके आया था कि उसकी बहन को परेशान करना छोङ दे । शैंकी उसकी बहन को स्कूल आते जाते कई दिनों से तंग कर रहा था । वह इस मार से लहू लुहान हो गया था ।

फिर …?

मैंने वहीं से आवाज दी – औए छोङो इसे ।

उन्होंने उसे छोङ दिया और मुझे गालियाँ देना शुरु हो गये । माँ बहन की गंदी गंदी गालियाँ   ।

मैंने वह हाथ में पकङी हत्थी फेंक कर मारी । हत्थी शैंकी को लग गयी । वह चीख मार के बेहोश हो गया । उसके साथ के सारे लङके भाग गये ।

हथ्थी कहाँ थी ?

वहीं सामने वाली दुकान पर रखी रहती है । जिसे पानी पीना होता है , दुकान से उठा लाता है । कील लगा कर जोङ देता है । पानी पीकर वापिस वहीं रख आता है ।

तभी सामने से थानेदार आता दिखाई दिया । मुंशी ने कागज वहीं छोङा और सावधान मुद्रा में खङा हो गया ।

जयहिन्द साब ।

जयहिंद

साहब ने आँखों ही आँखों में युवक के बारे में सवालिया निगाहों से मुंशी को देखा और अपने दफ्तर की ओर बढ गये । मुंशी भी युवक को वहीं छोङ कर साहब के पीछे पीछे लपक लिया ।

साहब यह लङका रविंद्र सिंह है । चक्क राम सिंह वाला गाँव से । अभी अभी नलके की हत्थी मार के किसी शैंकी नाम के लङके  को खत्म कर आया है । पर अभी उस ओर का कोई बंदा रिपोर्ट लिखाने तो आया नहीं ।

थानेदार अभी तक नाम में ही उलझा पङा था – “  ओये क्या नाम बताया उसका जिसे चोट लगी है “ ?

जी शैंकी

थानेदार अपनी कुर्सी से उछल पङा  - सच में ? क्या बोला तू ? शैंकी ?

मुंशी असमंजस में खङा था – जी यही नाम बताया उस लङके ने ।

जानता है , ये शैंकी कौन है ?  

मुंशी ने इंकार में सिर हिलाया ।

यह है इकबाल सिंह का बेटा ।

इकबाल सिंह का नाम सुनते ही मुंशी को एकदम से पसीना आ गया । इकबाल सिंह सत्ता पक्ष का वफादार वर्कर था । इस इलाके का कद्दावर नेता । नेता क्या , गुंडा था पक्का । बंदूकों , रिवाल्वर , पिस्टल जैसे हथियारों का शौकीन था । शराब के कई ठेके थे उसके । बात की बात में हत्या कर देना उसके बाएं हाथ का खेल था । हमेशा अपने साथ आठ दस लठैत और गनमैन लेकर निकलता । कई शातिर अपराधी उसके लिए काम करते थे । हर थाने में उसके नाम के पर्चे दर्ज थे । उसके बेटे के भी चर्चे आम होने लगे थे ।