अंततः पांच सौ सालों की लंबी प्रतीक्षा, कई पीढ़ियों के साथ वर्तमान पीढ़ी का भी सपना 22 जनवरी को तब साकार हो गया,जब अयोध्याधाम में भव्य राम मंदिर में हम सबके प्रभु श्रीराम जी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा हुई। देश दुनिया ने इस अवसर को विलक्षण और राम कृपा। विश्व भर में इसकी उत्सुकता और किसी भी रूप में इस अवसर का साक्षी बनने की अति उत्सुकता, उत्साह और उमंग देखने लायक था।
जाता है कि माना सनातन धर्म के सनातन काल से ही हमारे संस्कारों में रचा बसा हुआ है। इसके व्यापक स्वरूप में हमारी आस्था, रीति रिवाज, परंपराएं और सांस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए तैंतीस कोटि देवी देवताओं के प्रति आस्था की गहरी जड़ें फैली हुई हैं।
विदेशी आक्रांताओं की कुत्सित सोचआक्रमणकारी विध्वंसक नीति और हमारी आस्था को चोट पहुंचा कर हमें समाप्त करने की कोशिश के साथ हमारे मंदिरों, धर्म स्थलों को तोड़ फोड़ कर उनके रूप परिवर्तन का लंबा इतिहास रहा है। जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक और जाति धर्म का उन्माद गहराता गया और उसके दुष्परिणाम भी दुनिया ने देखा,झेला।
लंबे संघर्ष पथ पर तरह तरह के पड़ावों, तनावों, संघर्षों, बलिदानियों और कानूनी पेचीदगियों से जूझते हुए, अनेकानेक दंश झेलते हुए बदलाव की सुबह की आहट तब आई जब सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम आदेश आया और फिर तो बताती सूर्य का अप्रतिम उजाला 22 जनवरी को दुनिया ने देखा समय करवट ले चुका है और सनातन धर्म के पुनरुत्थान का ऐतिहासिक क्षण हमारे सम्मुख हमारे विश्वास को एक बार फिर मजबूत और अक्षुण्य संदेश का पर्याय बनकर हमारे आपके ही नहींहर मानव मात्र के लिए संदेश है।
आज जब राम लला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी है। हम सभी में प्रसन्नता की नयी लहर, तरंग तैर रही है।
और हमारा संघर्ष, हमारी लड़ाई और जबरदस्ती करने के बजाय बल्कि न्यायालय के निर्णय पर नव निर्माण करना उचित मान, सबके साथ और सामूहिक परिप्रेक्ष्य में ठीक समझा और सुप्रीम न्यायालयी फैसला आने से हम सभी में यह प्रसन्नता अतिरेक नहीं स्वाभाविक है। आस्था का जन सैलाब उमड़ता स्वत: दिखाई दिया,यह सनातनी आस्था के फलस्वरूप ही संभव था और है।
अगणित संख्या में सड़कों मंदिरों और जगह जगह राम भक्तों का मेला, रामलला के दर्शनों के लिए अयोध्याधाम में अनवरत इतनी बड़ी संख्या में निरंतर आना और दर्शन के लिए उमड़ रहे जन सैलाब को देखकर महसूस किया जा सकता है।
समूचे राष्ट्र के हर राज्य,हर क्षेत्र, हर व्यक्ति की किसी न किसी रूप में मंदिर निर्माण में योगदान किसी नियम कानून अथवा बाध्यता का परिणाम नहीं है।यह सब स्वमेव स्वेच्छा, आस्था और श्रद्धा विश्वास के परिणामस्वरूप सड़कों, गलियों, छोटे बड़े मंदिर मंदिर, घर घर, गली गली, में दीपक प्रज्वलन, दीपावली जैसी साफ सफाई और रंग बिरंगी सजावट, रोशनी की अभूतपूर्व सजावट, गोले पटाखे, फुलझड़ी आदि में आस्था का सैलाब को देखा गया।
आंखों ने जो देखा, मन बुद्धि ने जो विचार किया। अपने अपने स्थान पर इस ऐतिहासिक क्षण को सभी ने देखा ही नहीं संपूर्ण श्रद्धा से आत्मसात कर धन्य हो जाने जैसा भाव भी महसूस किया।आज की पीढ़ी ने चौदह वर्षों के वनवास के उपरांत राम जी के अयोध्या वापसी के तत्सम के उत्साह, उल्लास को आज कलयुग में भी महसूस कर जीवन को धन्य ही माना। इसे अपने आराध्य राम जी की कृपा का प्रसाद माना।
आज सबसे बड़ी जरूरत है कि हम सभी को सनातन की महत्ता गरिमा का दृश्य स्वयं देखने के बाद यह सुनिश्चित संकल्प लेने की आवश्यकता है कि सनातन की सेवा में ही जीवन की सार्थकता होगी ।
अंत में
"धर्मो रक्षति रक्षित:।" के सूत्र को ध्येय मान सनातन की रक्षा संकल्प लेना ही नहीं, संकल्प को मूर्त रूप देना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। यही सनातन के प्रति श्रेष्ठ समर्पण होगा और सनातन का सम्मान भी।
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश
१८.०२.२०२४