Muje Nyay Chahiye - 8 in Hindi Women Focused by Pallavi Saxena books and stories PDF | मुझे न्याय चाहिए - भाग 8

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 8

भाग -8  

रात को जब काशी रेणु और उसकी माँ, तीनों साथ में बैठे तो काशी ने आज का पूरा किस्सा रेणु को बताया. रेणु यह जानकर खुश हुई कि उसकी माँ को एक ऐसा काम मिल गया जिसमें उनको ज्यादा थकान नहीं होगी और किसी तरह की कोई दौड़-भाग भी उन्हें नहीं करनी होगी. इधर रेणु को मन ही मन ‘आदि’ का इंतज़ार था. वह रोज एक चक्कर उसके घर का लगा आती, यह सोचकर कि शायद आज वह आ गया होगा. पर हर बार उसके दरवाजे पर ताला देखकर उदास मन से लौट जाती. कई महीने गुजर चुके थे, अब भी आदि वापस नहीं लौटा था. यह बात कई बार रेणु के मन को अंशांकित कर जाती कि आदि ठीक भी है या नहीं, पर उसके पास ऐसा कोई जरिया नहीं था जिसके माध्यम से वो यह पता लगा पाती कि वह ठीक या नहीं. इसलिए बस रेणु रोज उसी मंदिर में जाती जहां उसे काशी मिली थी और आदि के लिए प्रार्थना करती कि वह ठीक हो और जल्द से जल्द लौट आए .एक दिन भगवान ने उसकी सुनली. यूं भी जिसका मन साफ होता है ईश्वर उसकी प्रार्थना सुन ही लेता है इसलिए शायद इससे पहले भी ईश्वर ने हर बार रेणु की किसी ना किसी रूप मे सहायता करी थी. रोज की तरह जब रेणु यह देखने पहुंची कि आदि लौटकर आ गया या नहीं तो उसे उस दिन घर का दरवाजा खुला मिला.

रेणु भागकर आदि.....आदि....! कहती हुई घर के अंदर पहुंची तो देखा आदि किसी और लड़की के साथ सभ्य अवस्था में नहीं था. यह देख रेणु के पाँव तले ज़मीन निकल गयी और उस वक्त उसके कदम दरवाजे पर ही ठिठक कर रह गए. उसने दरवाजे पर खड़े होकर बाहर की ओर मुंह फेर लिया. उसकी आँखों से उसके टूटे हुए दिल की पीड़ा बह निकली. आदि भी रेणु को यहाँ अचानक देखकर चौंक गया और शर्ट के बंटन बंद करते हुए बाहर आया. उसने रेणु से आश्चर्यचकित भाव से पूछा, तुम अचानक यहाँ कैसे ? क्या तुम अब भी ऊपर वाले माले में काम करती हो ? रेणु ने उसकी तरफ देखकर कहा नहीं, लेकिन मैं इतने दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रही थी तो बस रोज यह देखने चली आती थी कि तुम लौटे या नहीं. पर मुझे नहीं मालूम था कि तुम अपने जीवन में इतना आगे बढ़ चुके हो कि तुम्हारे जीवन में अब मेरी कोई जरूरत नहीं रही. रहती भी कैसे, मैं ठहरी एक गाँव की गंवार काम करने वाली लड़की और तुम ठहरे एक अभिनेता तुम्हारा तो बड़े-बड़े लोगों में उठना बैठना होगा.

मैं उस लायक कहाँ हूँ एक सांस में रेणु के मन कि बात कह डाली और यह सब कहते हुए रेणु जाने लगी, तो आदि ने उसे रोकते हुए कहा रुको. रेणु रुक गयी तो आदि ने उसके सामने आकार उससे कहा मुझे लगता है कि ‘हमारे बीच में जो कुछ हुआ, वह शायद सिर्फ एक क्षणिक आकर्षण था प्यार नहीं’ और फिर वहाँ मेरे जीवन में ‘कृतिका’ आयी. जिसके साथ रहकर मुझे यह समझ आया कि मेरे लिए यही है मेरा सच्चा हमसफर, जो मुझे मेरे काम के आधार पर अच्छे से जानती हैं, समझती हैं और सबसे अच्छी बात तो यह कि वह मेरे ही साथ काम भी करती हैं. ‘इसलिए ....इसलिए, तुमने मुझे भुला दिया’ ? यही न ? रेणु की आँखों से आँसू बहने लगे और उसका गला भर्रा गया.

देखो रेणु, जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाओ और हाँ आज तक तुमने जो कुछ भी मेरे लिए किया उसके लिए यह कुछ पैसे रख लो, आदि ने अपनी जेब से कुछ हजार रूपय निकाल कर रेणु को देने के लिए बढ़ाए ले लो क्यूंकि तुमने न जाने कितने महीनों मेरे यहाँ बिना पैसों के काम किया. आदि के इस संवाद ने रेणु के दिल के टुकड़े -टुकड़े कर दिये. आदि के मुंह से अपने लिए पैसों की बात सुनकर उसका दिल खून के आँसू रो दिया और उसने उसी चीत्कार में रोते हुए आदि से कहा ‘आदित्य’ साहब मैं गरीब जरूर हूँ. लेकिन मेरा दिल आप की तरह छोटा नहीं है. इसलिए आप जो यह नोटों की गर्मी मुझे दिखा रहे हैं ना, इसे मैं आपकी पत्नी के सिर से उतारकर आपको ही देती हूँ. कहकर रेणु ने बाहर से पैसे घुमाकर आदि के सामने आसमान में उछाल दिये और रोते हुए वहाँ से चली गयी. आदि उसे जाते हुए देखता रहा. कुछ ही दिनों बाद आदि अपना सारा समान लेकर हमेशा के लिए वहाँ से चला गया.

इस सब के बाद रेणु बहुत उदास रहने लगी. काशी ने उसे बहुत समझाया कि आगे बढ़ो ‘यही जीवन है और जीवन में यह सब कुछ तो लगा ही रहता है. एक आता है, एक जाता है. यह सब छोड़ो और काम पर ध्यान दो’ रेणु भूली तो कुछ नहीं, लेकिन उसने फिर काम पर ध्यान देना शुरू किया. इधर रेणु की माँ लक्ष्मी बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहने लगी. कई बार वह बच्चे की माँ को भी समझती कि अभी तुम्हारा बच्चा छोटा है और पूरी तरह तुम पर निर्भर है. इसलिए तुम्हें कुछ हिदायतें बरतने की जरूरत हैं. जैसे समय से सुपाच्य अर्थात हल्का भोजन खाना, गर्मी में रहना, ज्यादा वातानुकूलित क्षेत्र में ना रहना ताकि तुम्हें, सर्दी, जुकाम, खांसी ना हो. वरना फिर उसके लिए तुम दवाओं का सेवन करोगी और फिर बच्चे को स्तन पान कराओगी तो वह बच्चे के लिए ठीक नहीं होगा. कुछ ही महीनों की बात है. वह भी उनकी बातें मनाने लगी थी. कभी कभी लक्ष्मी अखिलेश को देखती तो बहुत डर जाती, पर कभी कभी उसके मन में एक माँ होने के नाते उसके प्रति एक दया भाव भी उत्पन्न हो जाता.

एक दिन उसने देखा जोश-जोश में उसका वीर्य स्खलन हो गया है और रमेश उसे बुरी तरह से डांट फटकार रहा है क्यूंकि अब उसे ही अखिलेश की सारी साफ सफाई करनी होगी, उसे नहलाना होगा. अखिलेश बहुत रो रहा है और रोते रोते ही कह रहा है मैंने कुछ नहीं किया….मैंने कुछ नहीं किया....! और रमेश उस पर चिल्ला रहा है कि जब खुद पर काबू नहीं है तो क्या जरूरत हैं खिड़की खोलकर लड़कियां देखने की, साला कितनी बार समझाया है तुझे, तू है कि समझता ही नहीं और तेरा सारा गंद साफ मुझे करना पड़ता हैं. यह सब देख लक्ष्मी की आँखों में आँसू छलक आए और उसने भगवान से प्रार्थना करी कि भगवान ऐसा किसी माता-पिता के साथ ना करे. यदि देनी है किसी को स्वस्थ संतान दे अथवा दे ही ना. लक्ष्मी का मन तो हुआ कि जाकर रमेश को रोके. लेकिन फिर कुछ सोचकर वह रुक गयी. ऐसा उसने एक नहीं कई बार देखा, एक दिन उसके धैर्य ने जवाब दे दिया और उसने रमेश को रोकने की कोशिश करते हुए कहा. यह क्या कर रहे हो बेटा, यह कोई तरीका नहीं है अक्कू को संभालने का, अगर इसमें इतनी ही समझ होती तो क्या ऐसा होता ? जैसा यह है ?

ऐसे लोगों को प्यार से संभालने की जरूरत होती है बेटा, डांटने फटकारने की नहीं. उस दिन ‘अक्कू उर्फ 'अखिलेश’ लक्ष्मी का आँचल पकड़कर उसके पीछे छिप गया. रमेश को लक्ष्मी पर भी बहुत तेज गुस्सा आरहा था. उसने कहा देखो आंटी, यह आपका काम नहीं है. यह मेरी ज़िम्मेदारी हैं और मुझे बहुत अच्छे से पता है कि इसे कैसे संभालना चाहिए. आप अपना काम करो और मुझे अपना काम करने दो जाओ यहाँ से ...!

लक्ष्मी जब अपना सा मुंह लिए वहाँ से जाने लगी तो, अखिलेश ने उसका आँचल पकड़ कर खींच लिया और रोने लगा. लक्ष्मी का दिल पसीज गया मगर वह उस वक़्त कुछ नहीं कर सकती थी. किसी तरह उसने अक्कू  से अपना आँचल छुड़ाया और वहाँ से चली गयी. एक दिन वो नवजात बच्चे की बूढ़ी दादी जिनका नाम ‘रुक्मणी’ था उन्होंने यह सब देख लिया था. वह तो पहले ही अपने बेटे के हालातों से वाकिफ थी ही सही, पर उसके साथ वह उतनी ही विवश भी थी क्यूंकि बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखने के बाद भी, वह इसी नतीजे पर पहुंची थी कि अखिलेश का कुछ नहीं हो सकता. वह उम्र भर ऐसा ही रहेगा. उसकी भलाई इसी में है कि उसे ऐसे ही किसी सेंटर में या संस्थान में भरती करा देना चाहिए, जिसमें उसी के जैसे लोगों हों तो वह कुछ सीख ज़रूर सकता है. लेकिन पूरी तरह कभी ठीक नहीं हो सकता. लेकिन एक माँ का दिल अपने ऐसे बच्चे को खुद से दूर करने या रहने देने के लिए राजी नहीं होता क्यूंकि उसे ऐसा लगता जब उसकी आँखों के सामने उसी बच्चे की देखभाल के लिए रखा जाने वाला नौकर उसके साथ ऐसा बर्ताव करता है तो उस संस्था के लोग ना जाने उस मासूम के साथ कैसा बर्ताव करेंगे. और फिर ऊपर से कहीं ना कहीं अक्कू का स्वभाव आक्रमक भी तो था. उसने लक्ष्मी को यह सब बातों के जरिये अपने मन की व्यथा और अक्कू से जुड़े इस व्यवहार के बारे में बताने और समझाने का प्रयास किया. यूं भी बच्चा चाहे जैसा भी हो और उसकी उम्र चाहे जितनी भी हो वीएच अपनी माँ के लिए सदा मासूम ही रहता है. 

चुकी लक्ष्मी स्वयं एक माँ है, इसलिए वह रुक्मणी जी के दिल का दर्द बहुत अच्छे समझ गयी और खुद भी उनको समझाने लगी कि ‘हाँ मैं आपका दर्द समझ सकती हूँ लेकिन हम और आप इसमें कर ही क्या सकते हैं. यह तो ईश्वर की इच्छा है, उसने चाहा तो आप देखना एक दिन कोई चमत्कार होगा और अक्कू ठीक हो जाएगा’. वैसे आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ ? हाँ कहो ना, अब मुझे बुरा नहीं लगता क्यूंकि घर के ही रिश्तेदारों और बाहर के लोगों ने मिलकर मेरे बेटे का इतना मज़ाक बनाया है कि अब मुझे किसी का कुछ भी कहा बुरा नहीं लगता. कहो क्या कहना चाहती हो ? मैं यह कहना चाह रही थी कि आप अक्कू की शादी क्यूँ नहीं कर देती. एक बार शादी हो जाएगी तो हो सकता है अक्कू ठीक हो जाये. क्या ...! यह सुनते ही रुक्मणी जी का पारा चढ़ गया तुम पागल तो नहीं हो गयी हो कहीं ....? दिमाग फिर गया है क्या तुम्हारा...? जाहिल औरत...! क्या बकवास कर रही हो, तुम होश में तो हो ? क्या रुक्मणी जी लक्ष्मी की बातों पर अमल करेंगी ...? जानने के लिए जुड़े रहे....!