"हाँ! मैं धवलचन्द्र हूँ! कालबाह्यी! तुम इतने दिवस से मुझसे मिलने नहीं आई तो मैं स्वयं ही तुमसे मिलने चला आया",धवलचन्द्र बोला....
"यदि तुम्हें यहाँ किसी ने देख लिया तो हम दोनों का सारा रहस्य खुल जाएगा",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"मुझे राजमहल में आते कोई नहीं देख सकता कालबाह्यी!,तुम्हें ज्ञात है ना कि मेरे पास कैंसी कैंसी शक्तियाँ हैं",धवलचन्द्र बोला....
"तुम्हारी शक्तियों के विषय में मुझे ज्ञात है धवलचन्द्र! किन्तु तब भी तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था,कुछ तो सोच विचार कर लिया करो",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"क्यों नहीं आना चाहिए था,क्या मेरा आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा,मुझे तुम्हारी याद आ रही थी,इसलिए चला आया,अब से ना आया करूँगा",धवलचन्द्र ने दुखी मन से कहा...
"ऐसी बात नहीं है धवल! तुम देख ही रहे हो ना राज्य में क्या चल रहा है,राजा विराटज्योति रात्रि में वैतालिक राज्य का भ्रमण करने जाते हैं,कहीं उन्होंने तुम्हें देख लिया तो तुम्हारे प्राणों पर संकट आ सकता है",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"तुम चिन्ता मत करो,उसने तो मुझे राज्य में भ्रमण करते कई बार देखा है किन्तु अब तक बंदी नहीं बना सका,मेरे पास ऐसी शक्तियांँ हैं जिससे वो मुझे स्पर्श भी नहीं कर सकता,बंदी बनाना तो दूर की बात है",धवलचन्द्र बोला...
"तुम अपनी माता हिरणमयी के स्वर्ग सिधारने के पश्चात और भी अधिक उदण्ड हो गए हो,किसी की बात नहीं सुनते",कालबाह्यी बोली...
"किन्तु ! तुम्हारी बात तो सुनता हूँ ना प्रिऐ!",धवलचन्द्र प्रेमपूर्वक बोला...
"कहाँ सुनते हो मेरी बात,यदि मेरी बात सुनते होते तो यहाँ आते भला!",कालबाह्यी बोली....
"अच्छा! वो सब छोड़ो,पहले ये बताओ कि रात्रि में कोई अतिथि इस राजमहल में आया है क्या?" धवलचन्द्र बोला...
"हाँ! वो राजा विराटज्योति का पुराना मित्र है,वो मूर्छित अवस्था में राज्य के मुख्य द्वार पर महाराज को मिला था ,इसलिए महाराज उसे राजमहल ले आए,उसका नाम यशवर्धन है",कालबाह्यी बोली...
"हाँ! मैंने ही उस पर आक्रमण किया था,किन्तु वो है बड़ा ही साहसी उसने हार नहीं मानी,मुझे तो लगा था कि आक्रमण के पश्चात् उसकी मृत्यु हो जाएगी",धवलचन्द्र बोला...
"मुझे उसके विषय में और भी कुछ ज्ञात हुआ है",कालबाह्यी बोली...
"वो भला क्या? उसका ऐसा कौन सा भेद तुम्हारे हाथ लग गया",धवलचन्द्र ने पूछा...
"मैं आज उसके कक्ष के बाहर छुपकर रानी चारुचित्रा और यशवर्धन की बातें सुन रही थी,उन दोनों के मध्य हो रहे वार्तालाप को सुनकर ऐसा प्रतीत हुआ कि यशवर्धन चारुचित्रा से प्रेम करता था और चारुचित्रा ने उसके प्रेम को अनदेखा करके विराटज्योति से विवाह कर लिया,अभी मैं ये बात पूर्ण विश्वास से नहीं कह सकती किन्तु मुझे ऐसा ही कुछ संदेह है",कालबाह्यी बोली...
"ओह....तो ये तुम्हारे लिए अच्छा है,अब तुम यशवर्धन और चारुचित्रा के सम्बन्ध को लेकर राजा विराटज्योति के मन में संदेह पैदा कर सकती हो",धवलचन्द्र बोला....
"हाँ! मैं भी यही सोच रही थी",कालबाह्यी बोली...
"जब विराटज्योति को ये ज्ञात होगा कि यशवर्धन चारुचित्रा का पूर्व प्रेमी है तो इसके पश्चात् हमें कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी,दोनों एक दूसरे के शत्रु हो जाऐगें और इस बात का हम दोनों लाभ उठा सकते हैं",धवलचन्द्र बोला....
"किस प्रकार का लाभ"?कालबाह्यी ने पूछा...
"मेरे कहने का तात्पर्य है कि जब दोनों एकदूसरे के शत्रु हो जाऐंगे तो दोनों एकदूसरे की हत्या करने का प्रयास करेगें और यदि राजा विराटज्योति मर गया तो हम दोनों सरलता से इस राज्य पर अधिकार पा सकते हैं,तब मैं इस राज्य का राजा हूँगा और तुम मेरी रानी बन जाना",धवलचन्द्र बोला....
"मैं तुम्हारी रानी नहीं बनूँगी,क्योंकि मैं तुमसे प्रेम नहीं करती",कालबाह्यी बोली...
"यदि तुम्हें मेरी रानी नहीं बनना तो तुम किसकी रानी बनना चाहती हो",धवलचन्द्र ने पूछा...
"वो मुझे ज्ञात नहीं,वो तो भविष्य बताएगा",कालबाह्यी बोली...
"देखो कालबाह्यी मुझसे विश्वासघात मत करना,किसी और को अपने हृदय में लाने का सोचना भी मत,नहीं तो इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा",धवलचन्द्र बोला...
"अच्छा! ये सब बातें छोड़ो,पहले ये बताओ तुम मेरा भोजन लाए हो या नहीं,जो मुझे सुन्दर और युवा रखता है",कालबाह्यी ने पूछा...
"हाँ! मैं तुम्हें वही देने तो आया था",धवलचन्द्र बोला....
और ऐसा कहकर धवलचन्द्र ने स्वर्ण से बने एक छोटे से संदूक को खोलकर उसमें से कालबाह्यी को किसी प्राणी का हृदय खाने के लिया दिया ,तब कालबाह्यी ने बिलम्ब ना करते हुए एक ही क्षण में उस हृदय को अपना आहार बना लिया और धवलचन्द्र से बोली....
"एक बात पूछूँ धवलचन्द्र!",
"हाँ! पूछो! कालबाह्यी!",धवलचन्द्र बोला....
"मेरे माता पिता कौन हैं,कहाँ हैं वे",कालबाह्यी बोली....
तब धवलचन्द्र ने कालबाह्यी से झूठ बोलते हुए कहा...
"मुझे इस विषय में कुछ नहीं ज्ञात कालबाह्यी!,क्योंकि ये रहस्य मेरी माता हिरणमयी जानतीं थीं,जो अब इस संसार में नहीं हैं,मुझे केवल इतना ज्ञात है कि तुम्हारी माता प्रेत योनि की थी और तुम्हारे पिता मानव योनि के थे,तुम्हारी माता ने तुम्हारे पिता से झूठ बोलकर कर विवाह किया था,उन्हें ये नहीं बताया था कि वो एक प्रेतनी है और तुम्हारे जन्म के पश्चात् उनकी हत्या कर दी,तुम प्रेत एवं मानव के समागम से पैदा हुई हो,इसलिए तुम मानवों की भाँति साधारण भोजन भी कर सकती हो,किन्तु तुम्हारी माँ तो केवल मानव हृदय पर ही जीवित रहती थी,तुम तो मानवों के भोजन पर भी जीवित रह सकती हो",
"किन्तु! यदि मानव हृदय मुझे कुछ दिनों तक आहार के रुप में नहीं मिलता तो मैं वृद्ध होने लगती हूँ,मेरा शरीर क्षीण एवं निर्बल होने लगता है,मेरे मुँख की कान्ति विलीन हो जाती है",कालबाह्यी बोली....
"तुम इतना सब क्यों सोचती हूँ कालबाह्यी! मैं जब तक जीवित हूँ तो तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा,मैं केवल अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेना चाहता हूँ,उसके पश्चात् मैं तुमसे विवाह कर लूँगा और हम दोनों प्रसन्नतापूर्वक साथ में रहेगें",धवलचन्द्र बोला...
तब कालबाह्यी बोली....
"ठीक है धवल! अब तुम यहाँ से जाओ,यदि हम दोनों को किसी ने साथ में देख लिया तो हम दोनों पर ही संकट आ सकता है,कितनी कठिनाइयों के पश्चात् तो मुझे इस राजमहल में प्रवेश मिल पाया है,पहले भी हम दोनों ने कितना प्रयास किया था ,इस महल में मुझे प्रवेश कराने का, परन्तु ये हो ना सका,वो तो अच्छा हुआ कि उन दस्युओं के यहाँ मैं बंदी बनकर चली गई और मैंने राजा विराटज्योति से अपने अनाथ होने की बात कही तो उन्हें मुझ पर दया आ गई और इस प्रकार मुझे राजमहल में प्रवेश मिल गया",
"हाँ! ठीक है अब मुझे जाना चाहिए,तुम अपना ध्यान रखना और तुमने जो समूचे महलवासिओं पर वशीकरण किया है,वो यूँ ही बनाए रखना,हम दोनों की विजय निश्चित है",धवलचन्द्र बोला....
"ठीक है! मैं सभी बातों का ध्यान रखूँगी,अब तुम जाओ",कालबाह्यी बोली...
और इसके पश्चात् धवलचन्द्र वहाँ से अपनी शक्तियों के बल पर अन्तर्धान हो गया,इधर चारुचित्रा अपने बिछौने पर बेकल सी पड़ी थी,क्योंकि विराटज्योति तो राजमहल के बाहर राज्य का भ्रमण करने चला गया था,उससे बातें करने वाला कोई भी नहीं था,वो बिछौने पर लेटे लेटे यशवर्धन और विराटज्योति दोनों के ही विषय में सोच रही थी,तब उसे ध्यान आया कि क्यो ना वो यशवर्धन के कक्ष में जाकर उसे देख आए कि वो सो पा रहा या नहीं,ऐसा तो नहीं कि उसे किसी गहरी चिन्ता ने घेर रखा हो और वो उसके कक्ष की ओर बढ़ चली....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....