चारों तरफ से सुंदर पहाड़ियों, जंगलों और फूलों की घाटियों से घिरी हुई बहुत ही सुंदर रियासत थी फतेहगढ़ और इससे भी ज्यादा खूबसूरत थी फतेहगढ़ की राजकुमारी मनूकांता, मोहब्बत और इश्क का दूसरा नाम। फतेह गढ़ के सुल्तान वीरेंद्र प्रताप की इकलौती बेटी, परियों की शहजादी और परियों की रानी मनूकांता। आइए अब खो जाते है एक जादुई और तिलस्मी दुनिया फतेहगढ़ में।
रात का वक्त था। रात के करीब बारह बजे होंगे। फतेहगढ़ रियासत के एक कोने पर स्थित एक कच्चा सा छोटा सा मकान था। इस मकान में से किसी 18 -19 वर्षीय लड़के अजीत सिंह के रोने की आवाज आ रही थी। कोई बूढ़ा व्यक्ति उसे जोर जोर से पीटे जा रहा था। उसकी ये रोने की आवाज रात की इस अजीब और भयानक सी खामोशी को चीरे जा रही थी।
एक भयानक से दिखने वाले बूढ़े व्यक्ति ने एक जोरदार बेंत अजीत सिंह की टांग पर जमाते हुए चिलाकर कहा "साले अजीत के बच्चे मैने तुझे 50 सेबो को देकर उन्हें बेचने बेजा था। सारे सेब बेचने के बाद भी तू सिर्फ 40 रूपये ही लेकर आया है। सच सच बता बाकी दस सेब तू खा गया ना। बाकी दस रुपए कहां है? उन्हे धरती खा गई या फिर आसमान निगल गया।"
इतना कहकर उसने एक जोरदार बेंत उसकी दूसरी टांग पर दे मारी।
"सच बता रहा हूं आका, मैंने वो दस सेब कुछ भूखे बच्चो को बांट दिए थे।" अजीत सिंह ने रोते बिलखते हुए कहा।
इतना सुनते ही वो बूढ़ा व्यक्ति आग बबूला हो गया और उसे जोर जोर से पीटने लगा। जमकर पीटने के बात उसने अजीत सिंह का हाथ पकड़ा और उसे एक भयानक से कमरे में धक्का दे मारा। ये कमरा जमीन में थोड़ी सी गहराई में स्तिथ था। वो धम से कमरे के अंदर जा गिरा और दीवार से जा टकराया। उस बूढ़े ने उस कमरे का दरवाजा बंद करते हुए कहा "अब दो दिन तक ना तो तुम्हे खाना मिलेगा और ना ही पानी।"
अजीत सिंह ने उसकी बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया क्योंकि उसे अब इन सब आदतों की आदत सी हो गई थी। उसके साथ तो रोज ही ऐसी घटनाएं होती थी। वो दीवार के साथ इक्ट्ठा सा होकर बैठ गया और अपनी यादों में गुम सा हो गया। उसे सब कुछ याद आने लगा की किस तरह से उसके माता पिता उसे उसकी मौसी के पास छोड़कर चले गए थे । वे कहां गए थे ये तो उसे भी मालूम नहीं था। उसे तो दो महीने बाद पता चला था की उसके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। वे कहां गए किसी ने भी उसे नहीं बताया। वो बेचारा बाद में बस रोता बिलखता रहा। उसकी मौसी उससे घर के सारे काम करवाती , कभी मजदूरी करने बेज देती। मारती पिटती। उसका मौसा कौनसा कम जालिम था वो भी पीट पीटकर उसका बुरा हाल कर देता। एक दिन तो उसकी मौसी ने हद पार कर दी। उसने अजीत सिंह को एक जालिम बूढ़े को 100 आने में बेच कर खूब ऐश मारी और अपने ही घर में महारानी बनकर मजे लुटती रही। उस बूढ़े ने अजीत सिंह को उसके बालों से पकड़ कर फतेहगढ़ में ला पटका। उसे कभी फल बेचने बेज देता तो कभी किसी के घर में बर्तन मांजने के लिए। बदले में वो बूढ़ा उसके मुंह पर एक सुखी रोती दे मारता और खुद बाहर सरायों में जाकर देशी विदेशी खाना खाकर मजे लुटता और हरामों सी नींद लेता। अजीत सिंह उस कमरे में गुम सुम सा अपने आप में मस्त हुआ बैठा था। उसके कुछ समझ में नहीं आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है? सोचते सोचते उसकी कब आंख लग गई उसे कुछ पता ही नहीं चला।
सुबह हो चुकी थी। एक खिड़की से सूरज की कुछ किरणे उसके मुंह पर पड़ने लगी । उसे अचानक से होश आया और वो उठ खड़ा हुआ। उसने आस पास नज़र दौड़ाई। वहां पर कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। वो फिर से गुम सुम सा होकर बैठ गया और कुछ सोचने लगा।
एक बार फिर से उसके भूतपूर्व के सभी नजारे उसकी आंखों के आगे से गुजरने लगे।
उसे याद आने लगा की किस तरह एक साल पहले उसके माता पिता उसे उसकी मौसी के पास छोड़ न जाने कहां गायब हो गए थे। उसे तो दो महीनों के बाद पता चला की उसके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे, उन्हें क्या हुआ कैसे हुआ? किसी ने उसे न बताया। वो तो बेचारा रोता बिलखता ही रह गया। मौसी उस पर खूब अत्याचार करती। घर के सारे काम करवाती तो कभी कहती " अपने मां बाप के साथ तूं कमबख्त भी मर जाता तो मुझे शांति मिल जाती।"
एक दिन तो उसकी मौसी ने हद कर डाली उसे इस बूढ़े पाखंडी को 100 असरफियों में बेच डाला और खुद बाजार से जेवर ला खूब नाची और फूला न समायी।
वो बूढ़ा कभी उससे चोरी करवाता , कभी कुछ बाजार में बेचने भेज देता। बदले में उसे दो सुखी रोटियां और चार पांच चमाटे या बेंत मिलती। उसकी जिंदगी इसी तरह बस दर्द में गुजर रही थी।
इतने में कमरे का दरवाजा खुला। अजीत सिंह डर के मारे तेजी से उठ खड़ा हुआ। वो बूढ़ा कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो उसकी और घूरने लगा मानों की अभी उसे दबोच लेगा और चील की तरह उड़ जायेगा।
बूढ़ा - " क्यों वे हरामजादे अभी तक वेश्याओं की नींद ले रहा था।"
अजीत सिंह - ( डरते हुए) " नहीं आका मैं तो बस अभी बाहर आने ही वाला था।"
बूढ़ा - " मुझे तेरा सब हाल मालूम है। लगता है तेरे पंख निकल आए है। चल बाजार से आटा वगैरा लेकर आ। और जल्दी आना। और ध्यान रखना लोहे की एक छड़ चूल्हे में गरम हो रही है । तुझे बखूबी मालूम है की अगर तूने पहले जैसी गुस्ताखी की तो तेरा क्या हाल होगा।"
अजीत सिंह - " जी आका मैं अभी आ जाऊंगा।"
उस बूढ़े ने उसकी और कुछ असरफियां फेंक दी और चला गया। अजीत सिंह ने कंपकंपाते हाथों से उन असर्फियो को उठाया और कंधे पर अपना थैला टांग बाजार की तरफ लड़खड़ाते हुए कदमों से निकल पड़ा।
उसे याद आने लगा की किस तरह उसके जिगरी यार सुजीत सिह ने उसे भागने की सलाह दी थी। इस अत्याचार से बचने के लिए वो बेचारा जंगलों से होकर भागा भी था मगर अफसोस उस आका के बच्चे को कानो कान ये खबर हो गई और उसने अपने दो लौड़े उसके पीछे लगा दिए। जंगलों से भागते हुए उसके पैर में कांटा चूब गया और वो वो चिल्लाता हुआ वहीं पर ढेर होकर रह गया। अंतत उसे पकड़ कर आका के पास पहुंचा दिया। उस बूढ़े ने अजीत सिंह की ऐसी पिटाई की की वो आज भी उस पिटाई को याद करता है तो उसके पसीने छूट जाते हैं वो थर थर कांपने लगता है। अब तो वो फतेहगढ़ से भागने के बारे में सोचने से भी डरता है। इस भरे शहर फतेहगढ़ में उसका एक ही दोस्त था सुजीत सिंह। अब उसने भी उसे इस आफत में डाल दिया था तो जिंदगी से एक शिकायत तो बनती ही है।।
अजीत सिंह जैसे तैसे गिरते पड़ते, होश संभालते हुए बाजार में जा पहुंचा। कपड़ों की दुकानें देखकर उसका मन भी लालायित हो उठा लेकिन आका का ख्याल आते ही ये लालसा एक निराशा में बदल उठी।
वो जानता था की ये महंगे कपड़े, राजाओं वाला ठाठ बाठ उसे कभी भी नसीब ही नहीं होगा लेकिन अपने आने वाले कल से शायद वो भी अनजान था। उसने एक अच्छे मखमली कपड़ों के हाथ लगाते हुए एक हकलाती और झिझकती सी आवाज में दुकान के मालिक से पूछा " इन कपड़ों का दाम क्या है?"
मालिक अजीत सिंह को पैरों से लेकर सर तक देखता है और फिर उसे चिढ़ाते हुए कहता है " बड़े आए नवाब साहब बनने। पैरों में तो तुम्हारे चपल भी नहीं है और ये इतने महंगे कपड़े खरीदोगे। मुर्ख दफा हो जाओ जहां से मेरी किस्मत इतनी भी खराब नहीं है की तुम जैसे दो कोड़ी के लौंडों को इन आलीशान कपड़ों का दाम बताऊंगा। वैसे भी तुम अपनी हैसियत तो देखो। अब निकलो जहां से या फिर और बेइज्ती करवानी है।"
अजीत सिंह दुखी मन , करुण स्वर और एक भारीपन से वहां से निकल पड़ा।
वो मालिक हंसते हुए " पता नहीं ऐसे भिखारी कहां से आ जाते हैं। अपना चेहरा तो आईने में देखते नहीं और चले आते हैं राजकुमार बनने के लिए।"
अजीत सिंह एक दुकान के आगे खड़े होकर रोजमर्रा का कुछ जरूरी सामान लेता है और जैसे ही पीछे मुड़ता है तो उसके सामने इस दुश्मनों से भरी रियासत में उसका एकमात्र दिल्लगी यार सुजीत सिंह दिखाई पढ़ता है जिसके हाथ में दो लड्डू हैं।
अजीत सिंह उसे देखकर मुंह फेर लेता है और वहां से जाने लगता है तभी पीछे से सुजीत उसका हाथ पकड़कर बोलता है " दोस्त नाराज हो क्या मुझसे?"
अजीत सिंह - " मुझे तुम से बात नहीं करनी है सुजीत।"
सुजीत सिंह - " मैं तुम्हारा दर्द और तुम्हारी तकलीफ समझ सकता हूं अजीत। एक बार मेरी बात तो सुनकर देखो।"
अजीत सिंह - " सुजीत तुमने मुझे जहां से भागने की सलाह क्यों दी?"
सुजीत - " तो फिर क्या करता तुम्हें इसी तरह दर्द में देखता रहता, उस साले बूढ़े से तुम्हे दिन रात मार खाते हुए देखते रहता। अजीत तुम अपनी हालत देखो। क्या हाल हो गया है तुम्हारा?"
अजीत - " ये सारा हाल मेरे माता पिता ने किया है मेरा ? वो ना मुझे मेरी मौसी के पास छोड़ते और ना ही मेरी मौसी मुझे आका को बेचती।"
सुजीत अजीत का हाथ पकड़कर एक एकांत जगह में लेकर जाता है और वे दोनों पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं।
सुजीत - " अजीत अगर तुम्हारे माता पिता ने तुम्हे जहां छोड़ा है तो इसके पीछे कोई न कोई मकसद जरूर होगा।"
अजीत - " कोई मकसद नहीं है इसके पीछे। मेरी जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ दर्द ही लिखा हुआ है। कभी मौसी की पिटाई तो कभी आका की पिटाई। मैं अब तंग आ गया हूं इन सबसे। "
सुजीत उसके हाथ में लड्डू थमाते हुए " पहले कुछ खा लो?"
अजीत तो बेचारा दो दिन से भूख के मारे तड़प रहा था हाथ में लड्डू देख झट से उसे खाने का मन किया लेकिन जैसे ही उसने लड्डू को खाना चाहा उसका हाथ वहीं पर रुक गया और उसे कुछ याद आ गया।
सुजीत - " क्या हुआ खा लो?"
अजीत - " तुमने खाया सुजीत।"
सुजीत - " मैं खा लूंगा अजीत पहले तुम खा लो न जाने कब से ही भूखे हो।"
अजीत लड्डू सुजीत के मुंह की और बढ़ाते हुए " पहले तुम खाओ। वैसे भी तुम्हारे बिन अजीत कैसे खा सकता है और एक बात हमेशा याद रखना की सुजीत के बिना अजीत अधूरा था, अधूरा है और अधूरा ही रहेगा।"
सुजीत - " ठीक है।"
वे दोनों लड्डू खा लेते हैं।
तभी सुजीत खड़ा होते हुए बोलता है " कल मैं महल में जाऊंगा राजकुमारी मनुकांता को देखने के लिए।"
अजीत हैरानी से - " मनुकांता।"
सुजीत - " अरे हां मनुकांता। इस रियासत की राजकुमारी। कहते हैं की रात के अंधेरे में भी उनका चेहरा किसी हीरे की तरह चमकता है। वो इतनी नाजुक हैं की अगर कोई उन्हें छू ले तो वो पिघल जाए। उनका जिस्म कपास से भी ज्यादा मुलायम है। वो इतनी खूबसूरत हैं की हर कोई उन्हें देखकर दीवाना हो उठे और उनके प्यार में पागल हो जाए।"
अजीत - " क्या राजकुमारी सच में इतनी खूबसूरत हैं?"
सुजीत - " अरे इससे भी ज्यादा खूबसूरत हैं। अगर कोई उन्हें एक बार देख ले तो बस उन्हें देखता ही रह जाए।"
अजीत - " तुम महल में क्यों जाओगे।"
सुजीत - " अरे कल उनका जन्मदिन है। बड़े बड़े राजकुमार आएंगे वहां। लेकिन महल में सिर्फ रईस लोग ही जा सकते हैं हम जैसे गरीब नहीं।"
अजीत - " तो फिर तुम जाओगे कैसे?"
सुजीत - " अरे मैं किसी तरह सिपाहियों को घुस देकर और किसी राजकुमार के कपड़े चुराकर और फिर उन्हें पहनकर महल में घुस ही जाऊंगा।"
अजीत - " लेकिन सुजीत ऐसा करना गलत है।"
सुजीत - " नहीं दोस्त राजकुमारी मनुकांता को देखने के लिए तो मैं कुछ भी करूंगा। कुछ भी। अच्छा ये बताओ तुम्हे चलना है या नहीं।"
अजीत - " चलना तो है लेकिन आका।"
सुजीत - " अरे तुम्हारा वो आका जाए भाड़ में । तुम बस कल सुबह तैयार रहना। हम दोनों चलेंगे महल में और किसी को भनक तक न पड़ेगी।"
अजीत खड़ा होने लगता है तभी वो दर्द से कराह उठता है।
सुजीत उसके कंधे पर हाथ रखते हुए " संभाल कर मेरे दोस्त। अगर उस दिन तेरे पैर में कांटा नहीं चूबता ना तो तूं पक्का इस चंगुल से आजाद हो जाता।"
अजीत - " लेकिन मैं जाता कहां? इस दुनिया में कौन है मेरा अपना।"
सुजीत - " वक्त आने पर सब ठीक हो जायेगा तूं अभी फिक्र मत कर। देखना भगवान जो भी करता है वो अच्छे के लिए ही करता हैं।"
अजीत - " मुझे तो ऐसा नहीं लगता।"
सुजीत - " चल ठीक हैं । अभी तूं अपने घर जा वरना वो साला बूढ़ा बेवजह ही तुझ पर चिला चिलाकर गला फाड़ेगा।"
अजीत वहां से निकल पड़ता है और सुजीत अपने घर की और जानें लगता है तभी दो लड़के पीछे से भागकर आते हैं और अजीत को धक्का मारकर उसका थैला उससे छीन लेते हैं।।
सतनाम वाहेगुरु।।