Hotel Haunted - 54 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 54

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 54

हर्ष ने शराब से भरे ग्लास को मुंह से लगाया ही था कि श्रेयस ने उसका हाथ पकड़ के उसे नीचे कर लिया, हर्ष ने अपनी नजरें उठा के उसकी तरफ देखा,"क्या है?चल हाथ हटा" हर्ष ने लड़खड़ाते हुए कहा लेकिन श्रेयस ने अपना हाथ नहीं हटाया बल्की वो हमसे अपने गुस्से से भर्री आँखों से घूरता रहा,"तुझे कहा ना हाथ हटा, सुना नहीं क्या?" हर्ष ने चिल्लाते हुए अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं कर पाया,यह देखकर श्रेयस ने उसका हाथ ओर कसकर पकड़ लिया,जिसकी वजह से हर्ष के हाथ से ग्लास छूटकर फर्श पर गिर गया,यह देखकर हर्ष ने चीखते हुए कहा,"पागल हो गया है क्या?हाथ छोड़"थोड़ी देर पहले हुई बहस की वजह से उसका सारा गुस्सा अब बाहर आ रहा था,जो उसकी हुई हार की वजह से ओर भी ज्यादा बढ़ गया था लेकिन अब इंसान ही गलत हो तो उसका गुस्सा भी किसी काम का नही रहता,वो श्रेयस को धक्का देते हुए पीछे करने की कोशिश कर रहा था पर उसका कोई असर नहीं हुआ।


"बस....अब बहुत हो गया" कहते हुए हर्ष ने एक लात श्रेयस के पेट पर मारी जिसकी वजह से वो थोड़ा पीछे हट गया और हर्ष के हाथ पर उसकी पकड़ छूट गई,हर्ष बैठकर अपने हाथ को देख रहा था जो पूरा लाल पड़ चुका था,श्रेयस ने अपने आप को संभालते हुए कहा,"जिस इंसान मैं इतनी ताकत भी नही की वो अपना हाथ छुड़ा सके तो फिर उससे प्यार की उम्मीद क्या ही कर सकते है" यह बात सुनते ही हर्ष जैसे गुस्से मै पागल हो गया क्योंकि श्रेयस ने उसके दुखते घाव पर पाव रख दिया था,You Bloody A*shole, साले सड़क छाप, नाजायज,गंदे खून की पैदाईश अपना मुंह बंध कर"यह सुनकर श्रेयस का जैसे गुस्सा हो उमड़ पड़ा क्योंकि वो हर बात से सकता था अपने मां बाप को गली देने वाले को कभी माफ नहीं कर सकता,उसने सीधे आगे बढ़कर एक जोर का punch हर्ष की chest पर मारा,जिससे उसकी सांस जैसे उखड़ सी गई,हर्ष अभी कुछ कर पात उसके पहले श्रेयस ने उसका गला पकड़कर जमीन से उठाया और पूरी ताकत से दूर फेंक दिया जिससे वो कमरे की दीवार से टकराकर नीचे गिर गया,दीवार से टकराने की वजह से वहा रखी चीज़े और तस्वीरें जमीन पर टूटकर गिर गई और हर्ष जोरो से सांसे लेने लगा,श्रेयस गुस्से से गुराते हुए बोला,"मुझे लगा था जो तू कर रहा है वो सही नही है यह बात तू वक्त के साथ समझ जाएगा और अपनी गलती सुधार लेगा पर नही तू किसी चीज के लायक है ही नही,आज यह साबित हो गया कि तू उस मां का बेटा नही है जिसने हर पल हमे प्यार और मर्यादा की भाषा सिखाई।"यह कहकर श्रेयस ने एक ओर लात उसके पेट के पास मारी जिससे वो दूर बेड के पास जाकर गिरा और दर्द मैं कराहने लगा,"जिस्म सिर्फ प्यार के एहसास को बांटने के लिए होता है पर तूने उसे अपनी हवस मिटाने का झरिया समझ लिया है और आज आंशिका के प्यार का इस्तेमाल करके तूने हमारी मां के प्यार और परवरिश दोनो का अपमान किया है।"इतना कहकर श्रेयस गुस्से में हर्ष के कमरे से बाहर जाने लगा तभी उसके दिमाग मैं कुछ आया और उसने मुड़ते हुए कहा,"मैने मां के जाने से पहले उनसे वादा किया था कि मैं हमेशा तेरा ध्यान रखूंगा पर तेरी वजह से उसे वादे को तोड़कर तुझे दर्द देकर मुझे जरा भी बुरा नही लग रहा है क्योंकि तू इसी दर्द के लायक है।" इतना कहकर श्रेयस कमरे से बाहर निकल गया और हर्ष यह बाते सुनकर सुन्न सा हो गया था,उसने कुछ पल सोचा और अपने पास पड़ी शराब की बोतल उठाकर दीवार पर दे मारी जिसकी वजह से उसकी आवाज कमरे मैं गूंज उठी और सारी शराब वहा फैल गई, इन सब बातो के बारे मैं सोचकर हर्ष वही अपनी आंखें बंद करके बैठ गया।


आंशिका खोई हुई सी आईने के सामने खड़ी अपने आप को देख रही थी,कुछ पल ऐसे ही खड़े रहने के बाद उसकी आंखें नम होने लगी और वो रोने लगी क्योंकि आज उसका चेहरा ही उसके दर्द की वजह बना था,सब लोग उसके प्यार और जज़्बात से बढ़कर उसके रूप और शरीर से प्यार करते थे, अब वो अंदर ही अंदर इस चेहरे को दोष दे रही थी, नल से निकलते पानी को बार बार वो अपने चेहरे पर मार रही थी, इस उम्मीद में की शायद उसका चेहरा बदल जाए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था।


वहा नल से निकलते पानी की आवाज बिखरी हुई थी कुछ देर तक अपना चेहरा धोने के बाद उसने आईने के सामने देखा तो उसकी सांसें अटक गई क्योंकि उसका पूरा चेहरा लाल सुर्ख सा हो गया था मानो किसी ने लाल रंग उसके पूरे चेहरे पर लगा दिया हो,उसके साथ ही उसे अपने चेहरे मैं किसी ओर के चेहरे की हल्की सी झलक दिखाई दे रही थी जो बेहद डरावना था,यह देखकर आंशिका के हाथ और दिल कांप उठा, उसने तुरंत पानी की तरफ देखा तो बिल्कुल सही था, जिसे देख उसने अपना चेहरा फिर आईने में देखा तो इस बार उसे अपना नॉर्मल चेहरा ही दिखाया दिया, जिसे देख आंशिका ने एक गहरी सांस छोड़ी नल बंद किया और तौलिया लेकर अपने रूम में चली गई।



अगले दिन....


आंशिका कमरे से बाहर निकल ही रही थी कि तभी उसकी नज़रे सामने कमरे से निकलते हुए हर्ष पे पड़ी और एक अजीब सा माहोल बन गया,आंशिका के मन मैं कई सवाल थे जो इस वक्त उसकी आंखो मैं दिख रहे थे पर इन आंखो की भाषा से दूर हर्ष बिना कुछ समझे वहा से चला गया,आंशिका उसे जाते हुए ऐसे ही देखती रही तभी आंशिका ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया की श्रेयस उसी को देख रहा है, दोनों की नजरें आपस में मिली और नज़रों के इस खेल ने आंशिका को एक पल के लिए मजबूर बना दिया कि वो श्रेयस से कहना चाहती थी की वो इस वक्त क्या मेहसूस कर रहीं है।इस खामोशी को तोड़ने के लिए श्रेयस ने अपने कदम बढ़ाए लेकिन ना जाने क्यों आंशिका ने अपनी खामोशी को एक राज़ रखना सही समझा और वो उस राज़ को अपने साथ लिए वहा से चली गई।



रिजॉर्ट के बाहर जंगल के पास सब पहाड़ों के सुंदर से नज़ारे का लुफ्त उठाते हुए ठंडी बहती हवा को मेहसुस कर रहे थे लेकिन आंशिका अपनी प्यारी सी मुस्कान और मासूमियत हो बंध करके उस खामोशी मैं कही खो गई थी और मैं इस उम्मीद मैं उसके साथ चल रहा था की शायद मैं उस दर्द को बाटने वाला हमदर्द बन जाऊं तभी मिलन ने उसके पास आते हुए कहा,"अरे श्रेयस, तू यहां क्या कर रहा है? तू तो हर वक्त इन जंगल और पहाड़ों मैं खोया रहता है तो अब क्या हुआ,चल इस तरफ आ क्या नजारा है" कहते हुए मिलन ने श्रेयस का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए वहां से ले जाने लगा,"नहीं मिलन मेरा मन नहीं है, प्लीज़.. बात तो सुन.. रुक यार "श्रेयस उसे मना करता रहा लेकिन मिलन जबरदस्ती उसे खिचकर ले गया।



आंशिका से दूर हर्ष अपने दोस्तो के साथ मस्ती करने मैं लगा हुआ था, इन सब बातो को भूलकर कोई इंसान खुश कैसे रह सकता है यह सोचकर उसका मन बैठा जा रहा था,यह खामोशी अब उसे चुभने लगी थी इसलिए सबसे छुपकर नजरे बचाकर वो वहा से चली गई, उधर मिलन और बाकी सब श्रेयस के साथ पहाड़ के किनारे पर खड़े थे, जहां से नीचे की तरफ जंगल दिख रहा था जिसे कोहरे ने घेर रखा था और ऊपर से आती धूप उससे और ज्यादा खूबसूरत बना रही थी, श्रेयस तो कहीं ओर ही था,"चलो ना दोस्तों नीचे चलते हैं, मज़ा आएगा"प्राची ने excited होते हुए कहा और सबने उसकी बात मैं हामी भरी इसलिए श्रेयस को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा,वक्त बीतता जा रहा था, शाम ढल चुकी थी, सूरज लगभग छुप चुका था और हवाएं सर्ज बन रही थी।




जहां परिंदे भी अकेले जाना पसंद नहीं करते वहां इस वक्त अकेली आंशिका जा रही थी, हाथों से अपने शरीर को समेटे नज़रे नीचे झुकाये उस खामोशी और खौफ के पल से दूर वो आगे बढ़ रही थी, 'कट्ट-कट्ट' पत्तों और टहनियों के उपर से गुजरते हुए सिर्फ उसके चलने की आवाज सुनाई दे रही थी, इन सब बातो से अंजान होकर वो अपने ही ख्यालों मैं खोई हुई आगे बढ़ रही थी,इस वक्त उसके चेहरे पर छाई खामोशी सब कुछ बयां कर रही थी,चारो ओर हल्की हल्की धुंध हवा के साथ बहती हुई इक्ट्ठा हो रही थी लेकिन आंशिका इन सब चीज़ों को नज़र-अंदाज़ करते हुए आगे चल रही थी, उसने यह भी ध्यान नहीं दिया कि वो अब रिसॉर्ट के गेट से कुछ कदम दूरी पे थी,सामने से आते हुए इंसान को देखकर गेट बेहद आराम से बिना कोई आवाज करे खुलता चला गया मानो वो इस वक्त इसी शक्स का इंतजार कर रहा हो।आंशिका चलते हुए अंदर घुस गई, उसके अंदर पहुचते ही पीछे गेट धीरे धीरे बिना कोई आवाज किए बंद हो गया और वहा पर छाई हल्की सी रोशनी भी अँधेरे में बदल गई और गेट बंद होने के साथ ही आंशिका रिजॉर्ट में कैद हो गई।


गुजरते वक्त के साथ सूरज बादलों के पीछे खोता जा रहा था,आसमान मैं धीरे धीरे अंधेरे की परत चढ़ रही थी, शाम का समय ढल चुकी थी, पहाड़ों पर ढलते सूरज की रोशनी अब काफी कम बची थी, जिसके साथ वहां की हल्की गर्मी भी अब सर्दी में बदल गई थी और उसके साथ खामोशी भरा सन्नाटा भी पसरने लगा था,"जल्दी चलो ना...." प्राची की आवाज ने उस सन्नाटे को खतम किया,वो बेहद खुश थी उसके साथ-साथ बाकी सब भी इस माहोल को मेहसूस कर के बेहद excited थे,श्रेयस उन सब के साथ चलते हुए बार-बार पीछे की ओर देख रहा था इस उम्मीद में की शायद आंशिका कहीं से चलती हुई आ जाए लेकिन ये सिर्फ उसका ख्याल था उसकी एक सोच जिसे वो पूरा करना चाहता था।


बड़े-बड़े पेडों के बीच में कोहरा घना होता जा रहा था, सब उसे अपने हाथो से हटाते हुए आगे बढ़ रहे थे पर कुछ ही पलों में वो फिर इक्कठा हो जाता था, सब मस्ती करते हुए आगे बढ़ रहे थे, कहते हैं ना कि खुशी वो लम्हा होता है जहां सिर्फ अच्छे पल रखते हैं, उस वक्त हम सब कुछ भूलकर बस उस लम्हों में खो जाते हैं, इस सोच में कि आने वाला वक्त शायद ये ख़ुशी दुबारा ना दे पाये,पर साथ ही उलझने और परेशानियाँ इंसान को वक्त से दूर ले जाती है यहीं हाल श्रेयस का था, वो आगे बढ़ रहा था लेकिन उसे वक्त और रास्ते का बिलकुल अंदाजा नहीं था,अपने दिमाग में चल रही उल्जनो को किसी तरह सुलझाने की कोशिश कर रहा था और उसी चक्कर में वो अपने रास्ते से भटक गया उसे पता ही नही चला,कोहरा इतना घना हो चूका था कि उसकी बिछी हुई चादर के आर पार देखना लगभाग नामुमकिन हो चूका था।


"यह pic बहुत बढ़िया है,घर जाते इसे ही सबसे पहले मैं इसे अपलोड करूंगी"फोटो सेशन का लूफ़्ट उठे हुए सब फोटो क्लिक करें करने में busy थे, पर तभी चल रही इस मस्ती को अंधेरे ने भंग कर दिया, जिसे महसुस करते ही घड़ी पर नज़र पड़ी तो पाया 5 बज चुके थे,"अरे दोस्तों, देर हो रही है, हमें जाना होगा, वर्ना मिस. से बहुत डांट पड़ेगी.. "श्रुति की आवाज सुन के सबको थोड़ा बुरा लगा लेकिन अँधेरे में खोने का डर था इसलिए सबने हामी भर दी।
"One Second Guys" कुछ कदम ही बढ़ाये थे सबने कि मिलन ने उन्हें रोक दिया।
"क्या हुआ" श्रुति ने पूछा।
"श्रेयस कहा पर है?" मिलन के कहते ही सब अपनी नजरें इधर उधर घुमाने लगे," वो क्या हमारे साथ आया भी था?'' प्राची ने अटपटे ढंग से सवाल किया।
"Yesss Ofcourse में उसे लेकर आया था" मिलन ने कहा और कुछ कदम आगे बढ़ के वो ज़ोरों से चिल्लाया,"श्रेयस..." उलझनों से घिरे दिमाग मैं जैसे ही यह आवाज पड़ी श्रेयस को फिर अपने वक्त में ला फैंका, होश में आते ही श्रेयस ने अपने आसपास देखा लेकिन बढ़ती हुई धुंध के अलावा ओर कुछ नहीं दिखा," Guysss...." उसने आवाज लगाई लेकिन दूर तक देखना बहुत मुश्किल लग रहा था, वो तेजी से कुछ कदम आगे की तरफ बढ़ाए लेकिन वहां कोई नहीं था,वो आसपास देखकर रास्ते को पहचानने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कुछ समझ नही आ रहा था।
तेज़ चलती हुई सांसों के साथ उसके चलने की रफ़्तार भी तेज़ हो गई तभी उसे ऐसा लगा मानो उसके ठीक सामने कुछ दूरी पर कोई खड़ा उसकी तरफ ही देख रहा हो,"मिलन...श्रुति..." वो नाम पुकारते हुए उस तरफ बढ़ा लेकिन जब वहां पहुचा तो वहां उसे कोई नहीं मिला, वो हैरान परेशान सा इधर उधर देखने लगा लेकिन फिर तभी उसे एक बार फिर अपने दाहिने हिस्से को ओर एक परछाई दिखी और वो फिर उस परछाई के पीछे चल दिया।


आंशिका फ्रेश होकर चेंज करके आईने के सामने बैठी अपना चेहरा तौलिए से पोंछ रही थी, उसके चेहरे पे साफ दिख रहा था की वो कल रात सोई नहीं है जिसने उसके चेहरे की सारी रंगत ही छीन ली थी, थकावट से चूर आंशिका अपनी जगह से उठी और बिस्तर की तरफ बढ़ी,वो आराम करना चाहती है थी लेकिन उसके वक्त में आराम की जगह कुछ और ही लिखा था,जैसे ही आंशिका बेड के पास पहुची उस सन्नाटे मैं तेज़ आवाज़ उसके कानो में आ घुसी, 'खट्ट....खट्ट.... 'मानो कोई भारी समान ऊंचाई से नीचे ज़मीन पर गिर गया हो, एक पल के लिए आंशिका इस तेज़ आवाज़ से सहम सी गई लेकिन जल्द ही खुदको संभालते हुए उसने कमरे का गेट खोला और अपना गर्दन निकाल के इधर उधर देखने लगी लेकिन उसे दूर तक कोई नहीं दिखा, लेकिन तभी उसकी नज़र सामने एक कमरे में पड़ी जिसका गेट हल्का सा खुला हुआ था और उसके अंदर लाइट जल रही थी, कमरे कि तरफ देखते हुए आंशिका ने कुछ सोचा, कुछ पल उसे देखने के बाद वो सामने कमरे मैं चली गई।


"यार,क्या पता शायद वो वापस चला गया हो" कुछ देर तक इधर उधर श्रेयस को ढूंढने के बाद थककर प्राची ने कहा।
"Yeah May Be She Is Right, हमें जल्दी वापस जाना चाहिए वरना मिस हमें डांटेगी'' श्रुति ने कहा तो मिलन को वो भी यह बात ठीक लगी,"Hamm May Be You All Are Right Lets Go" इधर सब लोग वापस रिजॉर्ट की ओर बढ़ने लगे,हर्ष को चुप देख आखिर अविनाश ने अपना सवाल किया, "क्या हुआ, सुबह से देख रहा हूं तू आज खोया हुआ लग रह है।" हर्ष ने पहले तो कुछ नहीं कहा, लेकिन अविनाश के जोर देने पर हर्ष ने अपने पीछे देखा तो ट्रिश कानो मैं ईयरफोन लगा के गाने सुन रही थी और फिर अविनाश की तरफ देखते हुए बोला, "मैं अब बस आंशिका से दूर रहना चाहता हूं"
"क्या?" अविनाश हर्ष की बात सुन चौंका पड़ा,"पर क्यों?!!"
"बस यार अब यह सब बहोत हो गया मुझे लगता है इस बार मैने कुछ ज्यादा ही कर दिया।"
"पर ऐसे आचनक क्यू?" अविनाश के पूछते ही हर्ष ने सब कुछ बता दिया कि वो यह पर क्यों रुकना चाहता था,कल रात आंशिका के साथ जो कुछ हुआ उसके बाद श्रेयस के साथ झगड़ा इतना सब कुछ सुनने के अविनाश कुछ कहना चाहता था पर हर्ष के गुस्से के आगे कुछ नहीं बोल पाया।पीछे चल रही ट्रिश ने अपने हाथ को कसकर दबा दिया क्योंकि उसने सिर्फ दिखाने के लिए earphones लगा रखे थे उन दोनो की बात सुनकर उसे बहुत गुस्सा आया पर वो इस वक्त शांत होकर चुप चाप चलती रही।


दिल मैं हल्की सी घबराहट लिए आंशिका विवेक,निशा और आर्यन के कमरे मैं घुसी,कमरे की जलती हल्की सी रोशनी मैं आंशिका ने देखा तो एक Stool गिरा हुआ था जो लोहे का था इसलिए गिरने की वजह से उसकी आवाज हुई थी तभी उसे पीछे की और के एक ठंडी हवा की लहर अपनी गर्दन पर मेहसूस हुई जिसे छूते ही उसने पीछे मुडकर देखा तो खिड़की खुली रहने की वजह से हल्की हवाएं कमरे के अंदर आ रही थी,जिसके साथ वहा लगे परदे भी हिल रहे थे पर तभी आंशिका की नजर उस परदे पर रुक गई क्योंकि उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके पीछे कोई इंसान छुपा हो, वो तेज़ सांसों के साथ आगे बढ़ रही थी कि उसके कानो मैं हल्की सी आवाज पड़ी,जिसे सुनकर पीछे घूमने के साथ ही वो सीधा नीचे बैठ गई,उसके नीचे बैठ के साथ ही वो लोहे का stool खिड़की को तोड़ते हुए बाहर गिर गया अगर आंशिका वहा से नही हटती तो वो उसके सर मैं लगता और वो सीधा नीचे गिर जाती,यह सब देखकर वो सीधा कमरे से निकल गई और बाहर से उसने दरवाजा बंध कर दिया,पर उसके दरवाजा बंध करते ही अंदर जैसे तूफान उठा हो वैसी अजीब सी आवाजे आने लगी।


आंशिका दरवाजे से पास बैठकर गहरी गहरी सांसें ले रही थी, मानो वो बहोत दूर से दौड़कर आई हो,चेहरे फीका पड़ चुका था, माथे पे हल्का पसीना और चेहरे पर हल्की घबराहट के साथ आंखों में एक अलग दहशत थी, "मुझे यहां से जाना होगा।" आंशिका तेज़ चलती सांसों के साथ बिना वक्त गाए कॉरिडोर में आगे बढ़ी की तभी" तुम...ही ..हो....तुम ही...हो...वो..."
एक अजीब भारी आवाज़ आंशिका के कानो में चुभी, जिसकी वजह से उसने अपने कदम रोक दिये,यह आवाज़ ऐसी थी मानो कोई बहुत गहरी नींद में सो रहा हो और अचानक से उठ गया हो, बेहद भारी और डरावनी आवाज़ ने आंशिका के पैरो को जैसे जमा दिया,एक पत्थर सी बनकर कुछ पल ऐसे ही खड़ी रही।
धीरे धीरे इस जगह का डर उसके दिल मैं घर करने लगा था,उसने कुछ कदम आगे बढ़ाए लेकिन फिर उसके कानों में फुसफुसाने की आवाज पड़ी जैसे दो लोग आपस में बातें कर रहे हो और ये सुनते ही आंशिका रुक गई, अब उसे यकीन हो गया कि ये उसका वेहम नहीं बल्कि कोई है वो भी ठीक उसके पीछे खड़ा है, वो फ़ौरन पीछे मुड़ी और जैसे ही पीछे मुड़ी हवा का झोंका इतना तेज़ आया कि वो हल्का सा पीछे हो गई और सामने से आ रही रोशनी को देख वो चिल्ला पड़ी।


उसकी यह चीख इन चार दीवारी में ही कैद होकर रह गई,कुछ पल के लिए सब कुछ शांत हो गया, ना हवा ना रोशनी और ना ही कोई आवाज़ें लेकिन इतना सब झेलने के बाद आंशिका के मन मैं अब यह की दहशत ने घर कर लिया था, उसकी सांसें उखड़ चुकी थी,दिल ज़ोरों से धड़क रहा था,एक डरी सहमी ही लड़की ने अपने हाथों से अपने आप को समेटा और धीरे धीरे सुबाकते हुए रोने लगी, डर और खौफ उसके चेहरे पे हावी हो चुका था, उसे ये समझ नहीं आया कि पिछले कुछ घंटो से उसके साथ क्या हो रहा है, पहले वो आवाज़ें , फिर कमरे के बाहर आते ही ये सब कुछ, इन हालातो मैं उसे बस एक इंसान की याद आई जो ज़रूरत के वक्त हमेशा अपने या फिर दोस्त के साथ खड़ा होता है और इस वक्त उसे इस इंसान की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस हो रही थी,उसका शरीर पूरी तरह कांप रहा था,"श्रेयस तुम कहा हो?" पर उसे यह समझ आ गया की वो इस वक्त अकेली है इसलिए मन ही मन वो भगवान को याद करने लगी,डर का खेल शरीर में मेहसूस होते ही हमें ये लगने लगता है कि मौत शायद हमारे दरवाज़े पर खड़ी हो लेकिन यहां कुछ अलग था क्योंकि यहां मौत भी तब मिलती है जब वो चाहती है।


"कौन है??!" सुबकते हुए आंशिका ने पुकारा और उसकी आवाज पूरे कॉरिडोर में गूंज उठी, अकेले होने के कारण उसका गल्ला सुख रहा था लेकिन फिर भी हिम्मत करके आंशिका ने एक बार फिर पुकारा ," कौन... है..!!?" और इस बार उसका जवाब मिला,"मैं.... मैं.... मैं......." तीन बार सामने से आती आवाज ने आंशिका की रूह को हिला डाला, उस्के बाद आंशिका कुछ कर पाती उसकी आंखें सामने से आती चीज़ की वजह से ख़राब हो गई और मुँह से एक चीख निकल पड़ी,वो भागने कोशिश करने लगी पर उसका पैर फिसल गया और वो पेट के बल धड़ाम से गिर पड़ी, उसने खड़े होने की कोशिश की पर किसी चीज़ ने इसके गले को जोर से पकड़ कर दबा दिया,उसने आंशिका को पकड़ कर ऊपर के कॉरिडोर से पकड़कर नीचे हॉल मैं फेंक दिया,नीचे गिरते ही वो नीचे टेबल से टकरा गई,जिसकी वजह से उसकी हड्डियां वही टूट गई,दर्द की वजह से वो अपना सर हिलाते हुए चीखने लगी पर ये दर्द तो अभी ओर ज्यादा बढ़ने वाला था तभी उसका शरीर ज़ोर - ज़ोर से हिलने लगा और एक तेज़ झटके के साथ उसका शरीर सामने की दीवार से जा टकराया,जिससे उस दीवार मैं दरारे पड़ गई, बिलखते हुए वो सांस लेने की कोशिश कर रही थी पर फिर उसका शरीर उपर जाने वाली सीढ़ियों से जा टकराया,उसके हाथ पैर और शरीर के कई हिस्सों की हड्डियां टूट चुकी थी, कुछ पल बेहद दर्द झेलने के बाद उसका शरीर शांत पड़ गया,शांत पड़ते हुए आंशिका ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, उसके मुंह,हाथ, सर और शरीर के कई हिस्सो से ख़ून बहते हुए फर्श पर इकट्ठा हो गया था।


पर अभी भी ओर भी कुछ होना बाकी था उसका शरीर फिर हवा मैं ऊपर गया,उसका चेहरा नीचे जमीन की और था और पीठ उपर हवा मैं,उसका शरीर करीब 7-8 फीट तक उपर उठा और पूरी जोर से नीचे जमीन से टकराया,जिससे आंशिका के मुंह के बायी ओर का हिस्सा जमीन से टकरा गया और उसके कान से भी खून निकल आया,ऐसी ही आंशिका का शरीर उपर जाता और नीचे गिरता ऐसा 5-6 बार हुआ जिससे नीचे फर्श भी टूट चुका था और "धम्मम...." की आवाज के साथ उसका शरीर नीचे गिर गया,खून से भीगा हुआ उसका चेहरा साफ दिखा रहा था कि वो कितने दर्द में है, दर्द में बिलखती हुई वो कुछ पल ऐसे ही लेटी रही क्योंकि उसके शरीर मैं अब दर्द सहन करने की हिम्मत नही बची थी,बेहोशी की वजह से उसकी आंखें बंद हो रही थी पर तभी उसकी नज़र सामने की ओर गई तो लाल आंखें ,चेहरे पर गुस्सा और मुंह से निकलते खून के साथ वो आंशिका की ओर ही देख रही थी,यह देखते हुए आंशिका के शरीर मैं जितनी भी ताकत बची थी,उससे इक्कठा करके करते हुए वो उससे दूर भागने लगी पर उसने आंशिका का पैर पकड़ लिया और सीढ़ियों से उसे घसीटकर उपर के floor पर ले जाने लगी, ऊपर जाने की वजह से आंशिका का सर टकराते हुए उपर जाने लगा और एक चीख के साथ उस जगह मैं शांति छा गई।


श्रेयस दौडता हुआ आखिरकर रिसॉर्ट पहुच ही गया कुछ देर पहले जो उसके साथ हुआ उसे उसका चेहरा ऐसा था मानो आज उसने कुछ ऐसा देख लिया हो जिसने कभी कल्पना भी ना की हो, वो भागता हुआ अंदर घुस गया तभी उसकी नज़र मिलन पर पड़ी जो सीढ़ियों से उतरता हुआ उसकी तरफ ही आ रहा था,जिसका चेहरा पूरा पसीने से भीगा हुआ था,वो अभी कुछ पूछता उससे पहले ही,"आआआआआ" ऊपर से किसी लड़की की चीख सुनाई दी, जिसे सुनते ही दोनो की नज़र ऊपर की तरफ गई और उसके बाद मिलन ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर श्रेयस का शरीर जैसे सुन्न पड़ गया।



To be Continued....