विम्मो सोलह सत्रह साल की हुई तो उसे किसी पड़ोसी की शादी में सतपाल ने देखा और पसंद कर लिया,सतपाल भी बिन माँ बाप का बच्चा था,उसे उसके भाई भाभी ने पालपोसकर बड़ा किया था,उसके भाई भाभी के कोई सन्तान नहीं थी इसलिए वो दोनों सतपाल से बहुत प्यार करते थे, फिर मेरी विम्मो उनके घर बहू बनकर गई तो सतपाल की भाभी फुलमत ने उसे अपनी पलकों पर बिठाया,उसे बहुत प्यार दिया,सतपाल तो उसे प्यार करता ही था साथ में फुलमत भी विम्मो को बहुत चाहने लगी,अभी विम्मो के ब्याह को छः महीने ही बीते थे कि एक शाम सतपाल और उसके बड़े भइया हरपाल खेत से लौटे तो अचानक सतपाल को उल्टियाँ शुरु हो गई,खूब घरेलू इलाज किया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और सतपाल विम्मो को हमेशा के लिए छोड़कर चला गया,ये खबर सुनकर तो जैसे मेरा कलेजा ही फट गया ,मैंने सोचा ना जाने क्या लिखा है मेरे घर की औरतों के भाग्य में.....
और फिर विम्मो की जेठानी फुलमत ने विम्मो को अपने पास रख लिया,उसने किसी की परवाह नहीं की,लोग तो बहुत कुछ कहते रहे विम्मो के बारें में कि मनहूस है आते ही पति को खा गई लेकिन विम्मो की जेठानी ने सबको करारा जवाब दिया और उसे अपने घर भी रखा मायके नहीं भेजा,लेकिन शायद विम्मो की किस्मत में कुछ और ही लिखा था,एक शाम विम्मो की जेठानी फुलमत मंदिर गई थी,फुलमत ने विम्मो से भी साथ चलने को कहा था लेकिन उस दिन विम्मो की तबियत ठीक नहीं थी इसलिए वो फुलमत के साथ मंदिर नहीं गई....
विम्मो रसोई में रात के खाने की तैयारी कर रही थी तभी उसकी कमर में किसी ने हाथ डाला तो विम्मो डर गई ....
और उसने गर्दन घुमाई तो वो उसका जेठ हरपाल था,हरपाल को देखकर वो बोली....
"भाईसाहब! ये आप क्या कर रहे हैं"?
"वही कर रहा हूँ जो मुझे करना चाहिए",हरपाल बोला...
"लेकिन ये तो पाप है",विम्मो बोली....
"पाप-वाप कुछ नहीं होता विम्मो! आदमी औरत का जन्म केवल इसी काम के लिए होता है और मैं तुम्हारे साथ वही कर रहा हूँ",हरपाल बोला....
"ये ठीक नहीं है,मुझे छोड़ दीजिए,नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी",विम्मो गुस्से से बोली....
"तू कितना भी चिल्ला ले ,लेकिन कोई भी तुझ पर भरोसा नहीं करेगा,सब मेरी बात ही सुनेगें क्योंकि मैं मर्द हूँ",हरपाल बोला...
"मैं आपके छोटे भाई की पत्नी हूँ,आपकी बेटी समान हूँ,भगवान के लिए ऐसा मत कीजिए",विम्मो गिड़गिड़ाते हुए बोली....
"ये तू क्या कह रही है,तुझे पाने के लिए ही तो मैंने अपने छोटे भाई को रास्ते से हटा दिया और तू कहती है कि मैं तुझे छोड़ दूँ,तुझ पर तो मेरी नज़र पहले दिन से ही थी,तेरे इस गदराये बदन और रुप ने मुझे पागल कर दिया था",हरपाल बोला...
"ये क्या कह रहे हैं आप",विम्मो ने रोते हुए पूछा....
"तुझे क्या लगता है कि तेरा पति उल्लटियाँ करते करते मर गया,नहीं....खेत में मैंने उसके खाने में विष मिला दिया था और घर आते ही उसे उल्लटियाँ शुरु हो गईं फिर वो मर गया और मेरा रास्ता साफ हो गया",हरपाल बोला....
"पापी! मैं तुझे नहीं छोड़ूगी,तूने मेरे पति को मार दिया"
और ऐसा कहकर विम्मो ने उसके हाथों पर जोर से काटा और खुद को छुड़ाकर उसने रसोई में रखा हुआ हँसिया उठा लिया,लेकिन वो हरपाल से कैंसे जीत सकती थी, हरपाल ने उसके सिर पर वहीं पर रखे पीतल के लोटे से जोर का वार किया,जिससे विम्मो बेहोश हो गई फिर वहीं रसोईघर में ही हरपाल ने बेहोश विम्मो को अपनी हवस का शिकार बना डाला,इसके बाद वो वहाँ से भाग गया,जब फुलमत मंदिर से लौटी तो उसने विम्मो को अस्त व्यस्त हालत में बेहोश पाया तो वो उसकी हालत देखकर घबरा गई और जल्दी से उसके मुँह पर पानी के छींटे मारे,जब विम्मो होश में आई तो उसने रो रोकर फुलमत को सारी बात बताई,ये सुनकर फुलमत खामोश सी वहीं बैठ गई ,कुछ ना बोली और विम्मो से आराम करने को कहकर वो रात का खाना बनाने में जुट गई और रात को जब हरपाल लौटा तो फुलमत उसके सामने गई,लेकिन उस समय फुलमत के चेहरे पर एक भी शिकन नहीं थी,उसने हरपाल के संग सामान्य व्यवहार किया और उसके लिए गर्म खाना परोसकर लाई,हरपाल ने खुशी खुशी खाना खाया,हरपाल को लगा कि शायद विम्मो ने डर के मारे फुलमत को कुछ नहीं बताया.....
आधी रात होते होते हरपाल की तबियत बिगड़ने लगी और उसने फुलमत को आवाज दी,फुलमत उसके पास आई और उससे पूछा....
"क्या हुआ जी! क्या होता आपको"
तब हरपाल ने लरझती आवाज़ में फुलमत से कहा....
"मेरा जी घबरा रहा है,बदन अकड़ रहा है,हाथ पैंरों में ऐठन हो रही है,उल्टी का जी हो रहा है लेकिन उल्टी नहीं आ रही है",
"लगता है धतूरे के बीज अपना असर दिखा रहे हैं"फुलमत बोली...
"क्या कहा? तुमने मेरे खाने में धतूरे के बीज डाले",हरपाल बोला....
"हाँ! तुमने भी तो मेरे बेटे समान देवर के खाने में विष मिलाया था",फुलमत बोली...
"तुम्हें विम्मो ने सब बता दिया क्या"?,हरपाल ने पूछा....
"हाँ! और तुम्हारी यही सजा है कि तुम अब तड़प तड़प कर मरो",
फिर फुलमत ने हरपाल की कोठरी की लालटेन बुझाकर उसके किवाड़ बंद कर दिए और कोठरी के किवाड़ो के नीचे बैठकर हरपाल की मौत का इन्तजार करने लगी,उसे हरपाल की मौत का कोई भी ग़म नहीं था,उसकी आँखों में ना आँसू थे और ना ही दिल में उसके मरने का कोई ग़म था,वो पत्थर बन चुकी थी.....
सुबह हरपाल की लाश कोठरी में पाई गई,पुलिस आई और फुलमत ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया,फिर फुलमत ने विम्मो को उसकी दादी के घर भेज देने को कहा और फुलमत को हरपाल के खून के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गई और एक साल के भीतर ही फुलमत को जेल के भीतर ही बड़ी चेचक निकली,उसे बहुत तेज बुखार हुआ जो इलाज के बाद भी ठीक ना हुआ और वो मर गई,मैं और विम्मो उसके अन्तिम दर्शन करने जेल गए थे और ये कहते कहते दादी की आँखें भर आईं.....
"तो ये थी विम्मो की कहानी",मैंने दादी से कहा...
"तो तुम अब भी उससे शादी करना चाहते हो",दादी ने पूछा....
"हाँ! मुझे कोई एतराज़ नहीं है,इन सब में विम्मो की कोई गलती नहीं है",मैंने कहा....
"एक बार और सोच लो",दादी बोली....
"सोच लिया दादी",मैंने कहा....
"तो फिर कल ही मैं उससे तुम्हारी शादी करवा के तुम्हारे साथ भेज देती हूँ",दादी बोली....
"आप भी हमारे साथ चलिए,हम सब हवेली में साथ मिलकर रहेगें",मैंने उनसे कहा...
"नहीं बेटा! अब यही मेरी दुनिया है,मैं अपने इसी पुश्तैनी घर में अपने प्राण त्यागना चाहती हूँ",दादी बोली....
और तब मुझे उस दिन पता चला कि वो कुरता पायजामा जो विम्मो ने मुझे पहनने के लिए दिया था वो उसके पति का था,फिर दादी ने विम्मो की मर्जी पूछकर उसकी शादी मेरे साथ करवा दी,इसके बाद मैं और विम्मो हवेली में खुशी खुशी रहने लगे,मैंने दोबारा अपनी बहनों के बारें में पता किया तो सच में मेरी बहने अब इस दुनिया में नहीं थीं,उनके परिवार के सदस्य भी नहीं बचे थे,फिर विम्मो की दादी भी कुछ सालों बाद स्वर्ग सिधार गई,फिर मेरे बच्चे हुए मेरा परिवार बढ़ा ,तुम सब आए,मेरा जीवन खुशियों से भर गया,मेरे जीवन में जिन महिलाओं का जो जो योगदान रहा वो मैंने सब लिख दिया है,अब इसमें जो भी तब्दीलियाँ तुम्हें करनी हैं वो तो तुम कर सकती हो,इसकी तुम्हें पूर्ण स्वतन्त्रता है.....
और इस तरह से मृणाल ने अपने दादा की लिखी हुई आत्मकथा को पढ़ा, जिसमें उन्होंने उस अन्धेयुग की नारियों के विषय में लिखा था,जहाँ पर नारियों के साथ केवल अत्याचार और शोषण ही होता आया था,वो था ऐसा युग जहाँ नारियों की दशा ठीक नहीं थी और मृणाल ने उस कथा को नाम दिया अन्धायुग और नारी.....
समाप्त....
सरोज वर्मा....