Andhayug aur Naari - 53 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | अन्धायुग और नारी - भाग(५३)

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अन्धायुग और नारी - भाग(५३)

रात को भी खाना खिलाते वक्त उसने मुझसे ठीक से बात नहीं की,शायद मेरे जाने की खबर से वो भी खुश नहीं थी,फिर खाना खाकर जब मैं उठा तो दादी मुझसे बोली....
"बेटा! आज रात तू मुझसे ढ़ेर सारी बातें कर,कल तो तू चला जाएगा,फिर ना जाने कभी तुझसे मुलाकात होगी भी या नहीं",
"जी! चलिए",
और ऐसा कहकर मैं उनके साथ आँगन में आ गया,फिर हम दोनों चारपाई पर बैठकर बातें करने लगे और बातों ही बातों में दादी ने मुझसे कहा कि...
"कभी कभी सोचती हूँ कि मेरे बाद इस लड़की का क्या होगा"?
"तो आप विम्मो की शादी क्यों नहीं कर देतीं",मैंने उनसे कहा...
"कौन करेगा उस अभागन से शादी",दादी बोलीं....
"अगर आपको एतराज़ ना हो तो मैं उससे शादी करना चाहता हूँ,मैं कई दिनों से सोच रहा था कि आपसे ये बात कहूँ,अब जब ये बात उठ ही गई है तो मैं उससे शादी करने के लिए तैयार हूँ",मैंने कहा....
"तुम्हें उसके बारें में कुछ भी पता नहीं है जब उसके बारें में जान जाओगे तो खुद ही उससे शादी करने से इनकार कर दोगे",दादी बोली....
"क्यों ऐसी क्या बात है"?,मैंने पूछा....
"वो विधवा है",दादी बोली....
ये बात सुनकर मैं एक पल को सन्न रह गया और फिर खुद को सन्तुलित करते हुए बोला....
"उसे देखकर तो नहीं लगता",
"उसके मन में बहुत दर्द है बेटा! मैं ही समझ सकती हूँ उसकी तकलीफ़ और कोई नहीं समझ सकता"दादी बोली....
"मतलब! क्या कहना चाहतीं हैं आप",मैंने कहा....
"बहुत दर्द भरी कहानी है उसकी",दादी बोली...
"तो मैं आज सबकुछ जानना चाहता हूँ उसके बारें में और तब भी मैं उसका हाथ थामना चाहूँगा,वो विधवा है तो ये उसका दोष नहीं है",मैंने कहा...
"ये तो तुम्हारा बड़प्पन है,क्योंकि उसकी पूरी कहानी जानने के बाद कोई भी उसे सहारा देने के लिए तैयार नहीं है",दादी बोली....
"आप मुझे उसके बारें में सब बता दीजिए,मैं आपसे वादा करता हूँ कि मैं किसी भी हालात में उसे अपनाने के लिए तैयार हूँ",मैंने कहा...
"तो सुनो,मैं तुम्हें सब सुनाती हूँ"
और ऐसा कहकर दादी ने विम्मो के बारें में सब कहना शुरू किया,मेरा एक बेटा था जिसका नाम जगमोहन था,मेरे पति जगमोहन के पैदा होने के बाद दिमागी बुखार का शिकार हो गए,बहुत इलाज करवाने के बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ और एक दिन वो मुझे और जगमोहन को रोता बिलखता हुआ छोड़कर भगवान के पास चले गए,वे अपने बाप दादा की ये पुश्तैनी जमीन और ये घर छोड़कर चले गए थे,मैंने जैसे तैसे जगमोहन को अकेले ही पालपोसकर बड़ा किया और जब वो जवान हो गया तो उसने पूरे घर का बोझ अपने काँधों पर ले लिया....
उसने अकेले ही अपनी मेहनत के दम पर इस जमीन पर सोना उगाया,मेरा घर धन-धान्य से भर गया,गाय बैलों से गौशाला भर गई,अब जब लड़का जवान हो गया तो चार पड़ोसी रिश्तेदार उसके ब्याह की बात करने लगे और अब मैं भी यही चाहती थी कि घर में सुन्दर सी बहू आ जाएँ और मेरा घर पोते पोतियों से भर जाए.....
फिर मैं ने अपने बेटे जगमोहन के लिए एक अच्छी लड़की तलाशनी शुरू कर दी,कई रिश्तेदारों ने भी मेरी इस काम में मेरी मदद की और आखिरकार मुझे अपने बेटे के लिए मुनासिब सी लड़की मिल ही गई और फिर सोलह सत्रह साल की गुड्डो मेरे घर पर बहू बनकर आ गई,बहू के आने से घर में रौनक हो गई,बहू का व्यवहार भी बहुत अच्छा था,वो मिलनसार और बहुत हँसमुख थी और घर के काम तो ऐसी फुर्ती से निपटाती थी कि इधर काम को कहते देर नहीं कि उधर गुड्डो काम खतम भी कर चुकती थी,वो जगमोहन के साथ खेतीबाड़ी का काम भी सम्भालने लगी थी,हम सब बहुत खुश थे...
और फिर शादी का एक साल होते होते गुड्डो ने खुशखबरी भी सुना दी,बच्चे के आने की खबर सुनकर खुशी के मारे तो जैसे मेरे पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे,मैं गुड्डो का बहुत ख्याल रख रही थी,मैं अब उससे कोई भी भारी काम ना करवाती,उसके पीहर वालों ने उसे ज़चगी के लिए अपने पास बुलाने की बात कही तो मैंने मना कर दिया,मैं बच्चे को अपने घर पर पैदा होते हुए देखना चाहती थी,इतने सालों बाद घर में किलकारी गूँजने वाली थी और ये शुभ काम मैं अपने घर में होने देना चाहती थी.....
ऐसे ही हँसी खुशी गुड्डो के गर्भ को सात महीने बीत गए ,अब उसे आठवाँ महीना लग चुका था और वो आषाढ़ का महीना था,उमस वाली गर्मियों के दिन थे,जगमोहन एक शाम घर से दूर वाले खेत में काम कर रहा था,बगल वालों खेतों में और भी लोग काम कर रहे थे और खेतों में काम करते वक्त ना जाने कहाँ से एक विषैला साँप आ गया,जगमोहन ने ध्यान नहीं दिया और वो उसे डसकर भाग गया,जगमोहन को जैसे ही साँप ने डसा तो उसे दर्द महसूस हुआ और उसने जब अपने पैर की ओर देखा तो साँप अपना काम करके जा रहा था, जगमोहन चीखा तो उसकी चीख सुनकर सब अपने अपने खेतों से भागकर आए,जिसके हाथ से जो हो सका सो उसने किया लेकिन घर लाते लाते ही जगमोहन ने दम तोड़ दिया....
लोगों ने जगमोहन के शव को घर के द्वार पर रख दिया और दरवाजा खटखटाया,मैंने दरवाजा खोला तो बुझे मन से एक पड़ोसी ने मुझे ये खबर सुनाई,वो मनहूस खबर सुनकर तो जैसे मेरा कलेजा मुँह को ही आ गया,मेरी हिम्मत ना हो रही थी गुड्डो से ये बात कहने की,लेकिन ये खबर उसे तो पता चलनी ही थी सो पता चल गई और वो बेहोश होकर गिरने को हुई तो मैंने उसे सम्भाला,समझ में नहीं आ रहा था कि बहू को सम्भालूँ या खुद को,मेरी और उसकी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी लेकिन मुझे तो जिन्दा रहना था अपनी बहू गुड्डो के लिए और गुड्डो को जिन्दा रहना था अपनी आने वाली सन्तान के लिए और हम दोनों ने यही करने की कोशिश की...
लेकिन गुड्डो इस बात को सहन नहीं कर पा रही थी और वो दिन बदिन कमजोर होती जा रही थी,वो ठीक से खाती पीती भी नहीं थी,इस बात का असर उसके बच्चे पर भी पड़ा रहा था,वो दिन भर आँसू बहाती रहती थी,वो सच में जगमोहन को बहुत चाहती थी,मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो बेचारी भी कैंसे समझती,पति का असमय जाना क्या होता है ये मैं भली प्रकार से समझ सकती थी और इस तरह से गुड्डो के गर्भ को नौ महीने पूरे भी नहीं होने पाए थे कि उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई,मैंने जल्दी से दाईमाँ को बुलवाया,तब दाईमाँ बोली गुड्डो की हालत बहुत खराब है,दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है,तो मैंने दाईमाँ से कहा कि वो गुड्डो को बचाने की कोशिश करे,लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था,दाईमाँ ने गुड्डो को बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन गुड्डो ना बच सकी लेकिन उसका बच्चा बच गया जो कि एक लड़की थी,बिन माँ बाप की बच्ची को मैंने अपने कलेजे से लगाकर बड़ा किया,मैंने उसका नाम विम्मो रखा....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...