Andhayug aur Naari - 49 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | अन्धायुग और नारी - भाग(४९)

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

Categories
Share

अन्धायुग और नारी - भाग(४९)

हमारा इतना सख्त रवैया देखकर डाक्टर धीरज फिर चुप ना रह सके और हमसे बोले....
"माँफ कीजिएगा ! बानो! मैं किसी गलत इरादे से आपके पास नहीं आया था"....
"आपका इरादा हम अच्छी तरह से भाँप चुके हैं डाक्टर साहब! आप बिलकुल भी फिक्र ना करें,हमारा साया भी आपके बेटे के पास नहीं भटकेगा",
"मैं आपसे ऐसी गुजारिश लेकर नहीं आया था",डाक्टर धीरज बोले...
"तो फिर क्या चाहते हैं आप हमसे ",हमने उनसे पूछा...
"आपने मुझे अपनी बात कहने का मौका ही नहीं दे रहीं हैं,आप ही सबकुछ कहें जा रहीं हैं",डाक्टर धीरज बोले....
"आप यही तो चाहते हैं ना कि हम आपके बेटे से दूर रहें",हमने उनसे कहा...
"नहीं! बानो! आप शायद गलत समझीं,मैं तो आपसे ये कहने आया था कि अब आप हमारे साथ हमारे घर आकर रहें,आपके बेटे के साथ ",डाक्टर धीरज बोले....
"तो क्या आपने सूर्यप्रताप को सब कुछ बता दिया?",हमने डाक्टर धीरज से पूछा...
"नहीं! आपकी मर्जी के बिना मैं भला उसे कैंसे कुछ भी बता सकता हूँ",डाक्टर धीरज बोले....
"और ये गलती कभी मत करिएगा,क्योंकि अगर ऐसा कुछ हुआ तो ये जमाना कभी भी इस रिश्ते को बरदाश्त नहीं कर सकेगा,मजहब के नाम पर नफरत फैलाने लग जाएगा और इस कश़्मकश में कहीं हमारा बेटा उलझकर ना रह जाए,फिर वो सोच नहीं पाएगा कि आखिर वो किसको चुने,जन्म देने वाली मुस्लिम माँ को या फिर पालपोसकर बड़ा करने वाले हिन्दू माँ बाप को",हमने डाक्टर धीरज से कहा....
"तो आप क्या चाहतीं हैं कि मैं इस राज को जिन्दगी भर अपने सीने में दफन करके रखूँ ",डाक्टर धीरज बोले....
"हाँ! हम यही चाहते हैं",हमने उनसे कहा....
"आप अगर यही चाहतीं हैं तो यही सही लेकिन एक बात तो आप को मेरी माननी ही पड़ेगी",डाक्टर धीरज बोले...
"जी! कहें! अगर मानने लायक होगी तो हम जरूर गौर फरमाऐगे ",हमने उनसे कहा...
"यही कि कभी कभी मैं आपसे मिलने यहाँ आया करूँगा,सिर्फ़ ये तसल्ली करने के लिए कि जिसने मुझे इतनी बड़ी खुशी दी थी वो सही सलामत है या नहीं,क्योंकि अब आप अकेली हैं और आपकी तबियत भी ठीक नहीं रहती, जिससे आपका ख्याल रखना मेरा फर्ज बनता है",डाक्टर धीरज बोले...
"ठीक है कभीकभार आप यहाँ हमसे मिलने आ सकते हैं,लेकिन आपको भी हमारी एक बात माननी होगी", हमने उनसे कहा...
"जी! कहें, कौन सी बात",डाक्टर धीरज ने पूछा....
"यही कि आप सूर्यप्रताप को इस शहर से कहीं और लेकर चले जाइए",हमने कहा....
"ये क्या कह रहीं हैं आप",डाक्टर धीरज बोले....
"हाँ! आपने देखा नहीं,नफरत की आग फैलने में ज्यादा वक्त नहीं लगता,फिर हिन्दुस्तान के बँटवारे की बात चल रही है,हो सकता है हमें हिन्दुस्तान छोड़कर कहीं और जाना पड़ जाए,इसलिए यही अच्छा रहेगा कि हम सूर्यप्रताप से अभी से दूरियाँ बना लें तो ठीक है",हमने उनसे कहा...
"ये आप खुद पर ज्यादती कर रहीं हैं",डाक्टर धीरज बोले...
"जी! नहीं! ये हम अपने बेटे पर रहम कर रहे हैं,आप अभी इस दुनिया को नहीं जानते",हमने उनसे कहा....
और फिर उस दिन के बाद डाक्टर धीरज सूर्यप्रताप को लेकर अपने पुराने शहर लौट गए,सूर्यप्रताप की शादी में हम जानबूझकर नहीं गए,हमने कहलवा दिया कि हमारी तबियत ठीक नहीं है हम शादी में नहीं आ पाऐगें, उसके बाद सूर्यप्रताप अपनी पत्नी के संग विलायत चला गया,उसकी पढ़ाई का खर्च हम ही उठा रहे हैं,कम से कम हमारी दौलत सूर्यप्रताप के किसी काम तो आए, सूर्यप्रताप को कैंसर पर रिसर्च करनी थी जो कि इस मुल्क में मुमकिन नहीं थी,अब इस समय सूर्यप्रताप विलायत में है,डाक्टर धीरज उसी की खैर खबर बताने के लिए कभी कभी हमारे पास आ जाते हैं,क्योंकि सूर्यप्रताप ही हमारा हाल पूछने के लिए डाक्टर धीरज को हमारे पास आने के लिए कहता है.....
ये कहते कहते मर्सियाबानो की आँखें भर आईं,उनकी आँखों में आँसू देखकर मैंने उनसे कहा....
"ये कैसा नामालूम सा रिश्ता है,कैंसे जी रहीं हैं आप इतना दर्द लेकर"
"नामालूम सा रिश्ता तो हमारा आपके साथ भी है,फिर भी हमारे बीच एक रिश्ता तो कायम है ना!",वे बोलीं....
"आपकी बात भी ठीक है चाचीजान! लेकिन आपको सूर्यप्रताप से ये बात छुपानी नहीं चाहिए",मैंने उनसे कहा....
"आप अभी ये सब बातें नहीं समझेगें,ये मजहबी बातें आप जैसे नादान शख्स की समझ में नहीं आऐगीं, आपने भी तो सुना होगा हिन्दुस्तान के बँटवारे के बारें में,अखबार तो पढ़ते ही होगें आप, अल्लाह करे ऐसा कुछ ना हो,लेकिन अगर ऐसा कुछ हुआ तो फिर ये नफरत की आग इन्सानों को तबाह कर देगी,जब मजहबी नफरत की आग फैलती है ना तो इन्सानों की इन्सानियत खत्म होने में देर नहीं लगती और हम नहीं चाहते कि इस बात को लेकर डाक्टर धीरज और उनके परिवार के ऊपर कोई खतरा आए", मर्सिया बानो बोलीं....
"जी! शायद आप ठीक कह रहीं हैं,मैं भी ये सब कभी नहीं चाहूँगा,ईश्वर करे ऐसा कुछ भी ना हो"मैंने कहा....
"इसलिए तो हमने हवेली में रह रहे सभी हिन्दू किराएदारों को कह दिया है कि वे सभी अपने घर लौट जाएँ",मर्सियाबानो बोली....
"मतलब! आपको पूरा पूरा अंदेशा है अनहोनी होने का",मैंने पूछा...
"एहतियात बरतने में क्या बुराई है भला! सब कुछ सोचकर चलना चाहिए",मर्सियाबानो बोलीं...
"जी! मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ",मैंने कहा....
"तो आप भी हमारी मदद कीजिए इस काम को पूरा करने में,क्योंकि कई सारे बच्चे तो हवेली से जाने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं,खुदा के लिए आप ही उन सभी को समझाइए,हम चाहते हैं कि सभी बच्चे महफूज रहें",मर्सियाबानो बोलीं....
"जी! मैं सभी को समझाने की कोशिश करूँगा"मैंने उनसे कहा....
और बाद में वही हुआ जिसकी मर्सियाबानो को आशंका थी,हिन्दुस्तान और पकिस्तान के बँटवारे की बात सामने आ ही गई,शहर में दिनबदिन दंगे भड़कने लगे,इसलिए मैंने और त्रिलोक नाथ त्रिपाठी ने एक एक करके सभी हिन्दू लड़को को समझाकर उनके घर भेज दिया,मैं अपने गाँव वापस नहीं जाना चाहता था इसलिए मैं मर्सियाबानो की हवेली में ही रुक गया,मर्सिया बानो ने कहा भी कि ये जगह मेरे रहने के लिए मुनासिब नहीं है ,लेकिन मैं उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहता था,गाँव की उतनी बड़ी हवेली में मैं अकेले रहकर करता भी क्या,उस पर त्रिलोक नाथ भी मर्सिया बानो की हवेली छोड़कर नहीं गया तो फिर मेरा भी वहाँ से जाने का मन ना हुआ,सोचा जो होगा सो देखा जाएगा,अगर मौत आनी होगी तो आ ही जाएगी,उसके बाद मैं और त्रिलोक मर्सियाबानो की उसी हवेली में उन सभी मुस्लिम छात्रों के साथ रहने लगे,जुम्मन मियाँ तो बँटवारे की खबर सुनते ही अपने पुश्तैनी गाँव दो महीने पहले ही लौट गए थे इसलिए अब मरसियाबानो बिलकुल अकेली थीं,उन्हें हम लड़को का ही सहारा था..,..

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....