विराटज्योति विजयी होकर लौटा था इसलिए राजमहल में हर्षोल्लास का वातावरण छा गया,विराटज्योति को सफलता प्राप्त हुई है,ये सूचना समूचे राजमहल में बिसरित हो चुकी थी,किन्तु अभी तक विराटज्योति राजमहल ना पहुँचा था क्योंकि वो सेनापति दिग्विजय सिंह के संग उन नवयुवतियों को उनके यथास्थान पहुँचाने गया था,जब उसने सभी युवतियों को उनके परिजनों तक पहुँचा दिया तो तब वो राजमहल पहुँचा, जहाँ विराटज्योति की पत्नी चारुचित्रा आरती का थाल सजाकर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी,विराटज्योति जब चारुचित्रा के समक्ष पहुँचा तो चारुचित्रा की प्रसन्नता का पार ना रहा और वो प्रसन्नतापूर्वक उसकी आरती उतारने लगी,आरती उतरवाने के पश्चात विराटज्योति चारुचित्रा से बोला....
"प्रिऐ! मैं तुम्हारे लिए एक उपहार लाया हूँ",
"उपहार...वो क्यों भला! मुझे उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी महाराज! आप सकुशल वापस लौट आए,यही मेरा सबसे बड़ा उपहार है"चारुचित्रा बोली...
"मैं तुम्हारे लिए एक दासी लाया हूँ,जो अब से सदैव तुम्हारे पास सखी की भाँति ही रहा करेगी"विराटज्योति बोला...
"सखी! मेरे लिए,वो आपको कहाँ मिली?",चारुचित्रा ने पूछा...
"दस्युओं ने उसे बंदी बना रखा था,उसका इस संसार में कोई भी नहीं है,उस असहाय युवती को मैं यूँ ही नहीं छोड़ सकता था,इस राज्य का राजा होने के नाते मेरा कोई कर्तव्य बनता था इसलिए मैं उसे राजमहल ले आया,तुम्हें इससे कोई आपत्ति तो नहीं",विराटज्योति बोला...
"नहीं! महाराज! मुझे ज्ञात है कि आपने जो भी सोचा होगा वो सभी प्रकार से उचित ही होगा",चारुचित्रा बोली...
"मुझे अपनी रानी से यही आशा थी",विराटज्योति बोला...
"परन्तु! वो है कहाँ?"चारुचित्रा ने पूछा...
"वो अभी अतिथिगृह में है,मैंने सोचा पहले तुम्हारी अनुमति ले लूँ,इसके पश्चात मैं उसे तुम्हारे पास लाऊँ" विराटज्योति बोला...
"आपको मेरी अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं महाराज! आप उसे शीघ्र ही यहाँ बुलवा लीजिए" चारुचित्रा बोली....
"मुझे ज्ञात था कि तुम मुझे ऐसा ही उत्तर दोगी",विराटज्योति बोला...
"वैसे उसका नाम क्या है?" चारुचित्रा ने पूछा...
"मनोज्ञा..मनोज्ञा नाम ही उसका,किसी स्वर्णकार की पुत्री थी,किन्तु अब निर्धन और अनाथ है" विराटज्योति बोला....
"हम दोनों के रहते हुए वो भला अनाथ कैंसे हो सकती है",चारुचित्रा बोली..
और इसके पश्चात चारुचित्रा के कहने पर विराटज्योति ने मनोज्ञा को शीघ्रता से अतिथिगृह से बुलवाया और जैसे ही मनोज्ञा चारुचित्रा के समक्ष आई तो उसकी सुन्दरता देखकर चारुचित्रा एक क्षण को स्तब्ध रह गई क्योंकि मनोज्ञा सुन्दर होने के साथ साथ यौवन की भी धनी थी,मनोज्ञा की सुन्दरता देखकर चारुचित्रा के मन में कुछ दूसरे ही भाव उत्पन्न हो चुके थे,उसने सुन रखा था कि सुन्दर और नवयौवना युवतियाँ पुरूषों को शीघ्रता से अपने प्रेमजाल में फँसा लेतीं हैं,चारुचित्रा को मनोज्ञा का अब यूँ उसके राजमहल में आना अच्छा ना लगा था,किन्तु वो उस समय मौन रही,वो मनोज्ञा के विषय में कुछ भी अनुचित वाक्य कहकर अपने स्वामी को दुखी नहीं करना चाहती थी....
ऐसे ही दिन बीतने लगे और अब राज्य में आए दिन लोगों की हत्याएंँ होने लगी थीं,राज्य में अत्यधिक अराजकता फैल चुकी थी,मानवों के शव क्षत विक्षत अवस्था में मिल रहे थे ,ऐसा प्रतीत होता था कि उन शवों का कोई रक्त चूषकर उनके हृदय को ग्रहण कर लेता था,ये बात विराटज्योति तक भी पहुँची, वो इस बात से अत्यन्त चिन्तित हो बैठा और जब ये बात अचलराज और भैरवी तक पहुँची तो उन्हें केवल कालवाची पर ही संदेह हुआ और उन्होंने इस विषय पर कालवाची और भूतेश्वर से भेंट करने का विचार बनाया, किन्तु अभी उन्होंने इस विषय पर ना तो विराटज्योति से कुछ कहा और ना ही चारुचित्रा से,इसके पश्चात अचलराज और भैरवी कालवाची से मिलने उसके गाँव पहुँचे,दोनों को अपने घर में उपस्थित देखकर कालवाची अति प्रसन्न हुई और उन दोनों ने जब अपने आने का कारण बताया तो ये सुनकर कालवाची के मुँख पर निराशा का भाव झलक आया और अचलराज ने कालवाची से कहा....
"कालवाची! सच सच बताओ,उन सभी हत्याओं के पीछे कहीं तुम्हारा हाथ तो नहीं है",
"नहीं! अचलराज! तुम्हें सब कुछ ज्ञात है कि मैं अब साधारण मनुष्यों वाला जीवन जी रही हूँ,मेरे पास कोई भी शक्तियांँ नहीं हैं जिससे मैं ये सब कर सकूँ और मेरी कोई सन्तान भी नहीं है जो वो ऐसा कर रही हो,एक कन्या हुई थी वो भी मृत", कालवाची बोली....
"तुम्हें भली प्रकार याद है ना कालवाची ! कि वो कन्या मृत थी,कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम लोगों ने उस कन्या को मृत समझकर धरती में दबा दिया हो और वो जीवित रही हो,आगें चलकर अब वो ही ये सब कर रही हो", भैरवी बोली...
अब ये सुनकर कालवाची और भूतेश्वर दोनों के मुँख कुछ मलिन से हो गए क्योंकि ये तो सत्य था कि वो कन्या मृत तो नहीं थी ,उन्होंने तो उसे उस कन्दरा में मरने हेतु छोड़ दिया था,किन्तु तब भी उन दोनों ने अचलराज और भैरवी से झूठ कह दिया कि वो कन्या मृत थी इसलिए उन्होंने उस कन्या को धरती में दबा दिया था,वे भला जीवित कन्या को धरती में कैंसे दबा सकते थे....
अब कालवाची और भूतेश्वर की बात सुनकर अचलराज और भैरवी को विश्वास हो गया कि वे दोनों सत्य कह रहे हैं और वे अपने संदेह को विश्वास में बदलकर वहाँ से चले गए,किन्तु उन दोनों के जाते ही भूतेश्वर कालवाची से बोला....
"कालवाची! ये तो अनर्थ हो गया,हम दोनों को जिस बात का भय था अन्ततोगत्वा वही हुआ,उन हत्याओं के पीछे हमारी पुत्री का ही हाथ है और अब ये सबसे बड़ी बिडम्बना है कि यदि अब वो हमारे समक्ष आ गई तो हम उसे पहचान भी नहीं सकते,नहीं तो इस समस्या का कोई ना कोई समाधान अवश्य निकाल लेते",
"तो क्या मेरी भाँति मेरी पुत्री भी एक प्रेतनी बन गई है? अब क्या होगा भूतेश्वर! वो मेरी भाँति हत्याएंँ करके ही अपना भोजन ग्रहण करती होगी,मुझे तो लगा था कि उसकी मृत्यु हो चुकी होगी",कालवाची बोली...
"हम लोगों से बहुत बड़ी भूल हो गई कालवाची! हम दोनों को दोबारा उस कन्दरा में जाकर देखना चाहिए था कि वो कन्या मर चुकी थी या नहीं",भूतेश्वर बोला....
"तो इसका तात्पर्य है कि उस कन्या का स्वर सुनकर किसी ने उसे कन्दरा से निकाल लिया होगा और अब वो व्यस्क होकर समूची मनुष्य जाति की शत्रु बन गई है",कालवाची बोली...
"हाँ! कालवाची! कदाचित यही हुआ होगा,अब क्या होगा ,उसने तो वैतालिक राज्य पहुँचकर वहाँ अतिभय मचा रखा है,अब अचलराज क्या करेगा,उसका दुहितृपति(दमाद) विराटज्योति अब क्या करेगा,वैतालिक राज्य की स्थिति को कैंसे सम्भालेगा वो",भूतेश्वर बोला....
"ना जाने अब क्या होने वाला है",कालवाची बोली...
"तुम चिन्ता मत करो कालवाची!,मैं कुछ सोचता हूँ कि क्या हो सकता है",भूतेश्वर बोला...
"भूतेश्वर! तुम्हारे पास तो ऐसी शक्तियांँ हैं ना जिससे तुम प्रेतों को पहचान सकते हो,याद है तुमने मुझे भी पहचान लिया था जब मैं पहली बार कौत्रेय के साथ तुम्हारे घर के समीप वाले वृक्ष पर रात्रि को ठहरी थी",कालवाची बोली....
"हाँ! तो हमें अब अपनी प्रेतनी पुत्री को खोजना होगा,तभी मैं उसे पहचान सकता हूँ",भूतेश्वर बोला....
"इसके लिए तो हमें वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान करना होगा",कालवाची बोली....
"तो चलो! शीघ्रता से वैतालिक राज्य चलने का प्रबन्ध करो,हम अचलराज को यूँ ही नहीं छोड़ सकते",भूतेश्वर बोला....
और इसके पश्चात कालवाची और भूतेश्वर वैतालिक राज्य जाने हेतु अपनी व्यवस्था बनाने लगे...
क्रमशः....
सरोज वर्मा...