Muje Nyay Chahiye - 6 in Hindi Women Focused by Pallavi Saxena books and stories PDF | मुझे न्याय चाहिए - भाग 6

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 6

भाग -6

कुछ ही दिनों बाद भूमिजा की डॉक्टर घर आयी उसे देखने, उसने रेणु को बहुत शाबाशी दी कि वह बहुत अच्छे से भूमिजा का ध्यान रख रही है. उसने रेणु को कहा कि भूमिजा को घर के बाहर लेकर जाये, थोड़ा पैदल चलाये, दौड़ाए, भगाये, जिससे वह थक जाय क्यूंकि अकसर ऐसे बच्चों के अंदर शक्ति बहुत होती है. लेकिन इन बच्चों का शारीरिक श्रम वैसा नहीं हो पाता जैसा होना चाहिए. इसलिए उनका वजन बढ़ता चला जाता है और वह और अधिक दूसरों पर निर्भर होते चले जाते हैं. रेणु ने उनकी सारी बातें ध्यान से सुनी और आंटी की तरफ कुछ इस तरह से देखा मानो आँखों ही आँखों में पूछ रही हो कि क्या वो भूमिजा को घर से बाहर ले जा सकती है.? किन्तु आंटी के हावभाव देख रेणु ने उन्हें समझा और डॉक्टर को आंटी के मन की बात बातते हुए कहने लगी आंटी को डर लगता है कि अभी तक भूमिजा किसी की नज़रों में नहीं आयी है. बाहर जाना शुरू करते ही वह अचानक से सभी की नजरों में आ जाएगी और सभी तरह -तरह के सवाल जवाब शुरू कर देंगे और उसे भी जब दुनिया दिखने लगेगी तो उसकी अपेक्षाएँ भी बढ़ेंगी फिर उसकी सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम करने होंगे. यह सब जब भूमिजा की डॉक्टर ने सुना तो उन्होने विकल्प के रूप में भूमिजा की स्थिति देखते हुए कहा, यदि वह चाहें तो भूमिजा के गर्भ का ऑपरेशन कर उससे इस हर महीने की समस्या से छुटकारा दिलाया जा सकता है. लेकिन चूंकि औरतों के सम्पूर्ण शरीर का लिंक कहीं न कहीं उनके इस मासिक चक्र से जुड़ा होता है. इसलिए हो सकता है भावी जीवन में उसे इस से संबन्धित कोई परेशानी आए, लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है. एक डॉक्टर होने के नाते मेरा काम था आपको परामर्श देना. सो मैंने दे दिया, आगे आपकी मर्ज़ी आप सोच लीजिये क्यूंकि भूमि किसी न किसी पर निर्भर है इसलिए वह इन दिनों अर्थात उसके मासिक चक्र के दौरान वह अपना ख्याल स्वयं नहीं रख सकती. तो या तो कोई ना कोई हमेशा ही इसके साथ रहे या फिर वो जो मैंने आपको बताया. यह सब सोचते हुए आंटी डर गयी और उन्होंने भी आँखों ही आँखों में रेणु को माना कर दिया. फिर बप्पा का समय आया और चारों और एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रकाश सा फैलने लगा. रेणु ने भूमिजा को बप्पा के दर्शन कराने ले जाने के लिए आंटी से आज्ञा मांगी. पहले तो उन्होंने साफ साफ माना कर दिया. लेकिन फिर थोड़ा मनाने के बाद वह मान गयी. रेणु भूमिजा को साथ लेकर गणपति बप्पा के दर्शन कराने के लिए अपने साथ ले गयी.

वहाँ उसने आदित्य उर्फ 'आदि' को ढ़ोल पर थाप देते देखा तो उसका मन खुशी से खिल उठा. उन्होंने साथ में दर्शन कर बप्पा का आशीर्वाद लिया और फिर साथ में बाकी लोगों के साथ नाचने -गाने लगे. ढ़ोल ताशे की थाप पर दोनों के मन एवं मुख मण्डल पर प्रेम की लालिमा साफ-साफ देखी जा सकती है. मानो दोनों ही गा रहे हो "दोनों के मन से मन के मिलन से सजने लगे हैं आज मेले" ढपली वाले ....! इतने में ढ़ोल की थाप के शोर से भूमिजा डर गयी और रेणु को पुकारने लगी. किन्तु ढ़ोल के शोर के बीच रेणु को भूमिजा का पुकारना सुनाई नहीं दिया. यूं भी ‘आदि’ के साथ होते हुए रेणु को और कुछ याद ही कहाँ रहता था कि वह कहाँ है, क्या कर रही है, उसे तो बस आदि का साथ होना ही सारे सुख पहुंचा दिया करता था और आज तो आदि की आँखों में अपने लिए एक अलग तरह के एहसासों को देखते हुए उसका मन और भी प्यासा हो उठा था, उसके प्रेम का रस पीने के लिए. इस सब एहसासों के बीच रेणु बिलकुल भूल चुकी थी कि आज पहली बार वो भूमिजा को भी साथ लेकर नीचे आयी हुई थी. वह सीधा ‘आदि’ के साथ घर वापस आ गयी. ‘आदि’ उसे अपने घर ले गया और दरवाजा बंद करके उसे एक कौन में ले जाकर दीवार से सटाकर बारी-बारी उसकी आँखों में देखते हुए उसके चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाते हुए बोला रेणु. उसकी गरम साँसों की गरमाहट से रेणु का पूरा बदन झंकृत हो उठा. पहले ‘आदि’ ने अपने होंठों से उसकी गर्दन को छुआ और फिर धीरे -धीरे उसे आपने बाहु पाश में कसते हुए उसके काँपते अधरों पर अपने होंठ रख दिये.

रेणु के पूरे शरीर में बिजली सी कौंध गयी और उसे अचानक ही भूमिजा का खयाल आ गया. उसने बोला भूमिजा, क्या ? तुमको अब भी उसी की पड़ी है...? हाँ भूमिजा, रुक जाओ रेणु ना जाने आज के बाद यह पल कब मिले ...! नहीं आदि अभी नहीं, मैं तो भूल ही गयी थी. मुझे अभी जाना होगा इतनी बड़ी भूल कैसे हो गयी मुझसे....! कहती हुई रेणु भागी वापस बप्पा के पंडाल की और जहां उसने भूमिजा को बैठने के लिए कहा था. पर उसे भूमिजा वहाँ नहीं मिली. रेणु का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा उसने यहाँ वहाँ भूमिजा.....भूमिजा....! पुकारते हुए उसे यहाँ वहाँ ढूँढना शुरू कर दिया. पर बहुत देर तक रेणु को भूमिजा नहीं मिली. वह बहुत घबरा गयी. उसकी आँखों से आँसू बह निकले, और वह वापस उसी पंडाल में आकार बप्पा के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी की, हे बप्पा भूमिजा ठीक हो और वह जल्द से जल्द उसे मिल जाये, वरना वह आंटी को क्या जवाब देगी. तभी उसने देखा एक चाय की दुकान पर बैठी भूमिजा बिस्कुट खा रही है. वह भागकर भूमिजा के पास पहुंची और उसका नाम लेकर पुकारने लगी भूमि....भूमि...! कहाँ चली गयी थी तुम, मैंने तुम्हें कितना ढूंढा. मैंने भी आपको बहुत आवाज दी थी रेणु दीदी, पर आप नहीं आयी मेरे पास, मैं कितना डर गयी थी पता है, फिर यह आंटी मुझे यहाँ अपने साथ ले आयी. और पता हैं इन्होंने मुझे बिस्कुट भी दिया खाने के लिए. यह सब भूमि ने अपने हिसाब से अपने आड़े टेढ़े भावों और अटकते हुए स्वरों में रेणु से कहा. जिसे सिर्फ रेणु समझ पाती थी क्यूंकि वह ही उसके साथ अधिक समय बिताती थी इसलिए रेणु को सब समझ में आज्ञा कि भूमि क्या कहना चाहती है तभी रेणु को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था. सच ही तो कहा भूमि ने ढ़ोल की थाप से अवश्य ही भूमि डर गयी होगी और निश्चित ही उसने रेणु को आवाज़ भी दी ही होगी. मगर आदित्य के साथ पाकर तो जैसे रेणु किसी ओर ही दुनिया में चली जाती है.  

उस अपने आप पर बहुत गुस्सा आरहा था कि चाहे कुछ भी हो, उसे भूमिजा के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था. आखिर ज़िम्मेदारी भी तो कोई चीज होती है. उस पल भूमिजा की बातें सुनकर रेणु ने उसे गले से लगा लिया और उस चाय वाली आंटी को हाथ जोड़कर धन्यवाद देते हुए भूमि को अपने साथ ले गयी. उन दोनों के घर पहुँचते ही भूमि की माँ ने पूछा कहाँ चली गयी थी तुम दोनों ? मेरा दिल कितना घबरा रहा था पता है ? अब जाकर मेरी जान में जान आयी. रेणु ने फीकी सी हंसी के साथ बात को वहीं खत्म कर दिया. उस दिन तो वह बात किसी तरह आयी गयी हो गयी. लेकिन पूरी रात रेणु सो ना सकी. उसके मन में रह रहकर यही खयाल आरहा था कि यदि आज भूमि ना मिली होती तो क्या होता और उधर उसके ऐसे अचानक चले जाने की वजह से ‘आदि’ के दिल पर जो बीती, उसका क्या ? इस सब में भला उसका क्या दोष था. सारी गलती तो रेणु की ही थी उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था.

अगले दिन रेणु ने आदि से मिलना चाहा. लेकिन आदि ने बताया कि वह एक धारावाहिक की शूटिंग के लिए मुंबई से बाहर जा रहा है. कब आएगा यह उसे अभी पता नहीं, आदि रेणु के लिए यह (नोट) अर्थात लिखकर छोड़कर जा चुका था. आदि की यह बेरुखी रेणु की आँखों से आँसू बनकर टपक पड़ी और वह चुपचाप वापस भूमि के पास जाकर उसके साथ समय बिताने का नाटक करने लगी. कुछ समय और बीत गया. सब ठीक ही चल रहा था. आंटी ने कहा वह भूमि को लेकर कुछ दिनों के लिए अपनी बहन के घर 'परदेस' जाना चाहती हैं. उन्होंने रेणु को भी साथ आने के लिए कहा. लेकिन रेणु ने मानाकर दिया क्यूंकि रेणु पहले ही आदि को लेकर परेशान थी और दूजा वह भी कुछ दिनों के लिए अपने गाँव जाकर अपने माँ बाबा से मिलना चाहती थी. भूमिजा कब वापस आएगी इसकी कोई गारंटी नहीं थी. महीना, दो महीना अभी से कुछ भी कह पाना मुश्किल था. इसलिए दो महीने का एडवांस देकर आंटी ने एक तरह से रेणु को नमस्ते बोल दिया था.

रेणु अब और भी अधिक दुखी हो चली थी क्यूंकि उसको भी अब इतने दिनों में भूमिजा से प्यार हो गया था. वह उसे अपनी छोटी बहन की तरह पालने लगी थी. अब वो उससे कई दिनों तक नहीं मिल पाएगी सोच-सोचकर उसका मन दुखी हो रहा था. इस नौकरी के बाद रेणु ने अपनी पुरानी महिला ग्रह उद्योग वाली कंपनी का सारा एडवांस भी वापस कर दिया था और बहुत से पैसे भी बचा लिए थे. इसलिए कुछ महीनों की चिंता तो उसे नहीं थी. यही सोचकर वह काशी को बताकर अपने गाँव चली गयी. वहाँ पहुँचकर जब उसने अपना घर देखा तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यह उसका वही अपना घर है जो कभी एक झोंपड़ी के जैसा दिखता था. आज एक पक्के घर में बदल चुका है. उसकी माँ का रहन सहन पहले से अच्छा हो चुका है. बाबा अब भी चल फिर नहीं सकते. लेकिन अब उनके चेहरे पर बेचारगी और विवशता नहीं है. बल्कि अब उनके चेहरे पर गर्व है. अपने माँ बाबा के चेहरे पर अपने लिए गर्व और खुशी देखकर रेणु की आंखें खुशी के आँसुओं से छलक उठी और कुछ देर के लिए वह अपनी सारी परेशानियाँ और दुख भूल गयी.

बेटी को पास पाकर अब माँ बाबा भी चैन और सुकून महसूस कर रहे हैं. कुछ दिन बीत जाने के बाद रेणु ने माँ से कहा कि अब वो अपने बाबा का इलाज शहर में करवाना चाहती हैं. अब तक तो ठीक था. लेकिन इलाज के लिए लगने वाला पैसा कम नहीं होगा, यह लक्ष्मी बहुत अच्छे से जानती थी. उसने रेणु को समझाने की बहुत कोशिश की पर रेणु नहीं मानी. रेणु ने कहा एक बार शहर के डॉक्टर की सलाह और राय लेना भी जरूरी है. फिर देखेंगे कि आगे क्या करना है. कुछ ही दिनों में सारा परिवार शहर आ गया. रेणु के काशी से कहकर रहने का इंतजाम किया और फिर एक दिन वह दोनों मिलकर ही बाबा को किराय कि (वीलचेयर) पर अस्पताल ले गए जहां बहुत सी जाँचो के बाद डॉक्टर ने कहा कि कुछ ऑपरेशन करने होंगे. उसके बाद ही ठीक तरह से बताया जा सकेगा कि आगे वह चल पाएंगे या नहीं. डॉक्टर की यह बात सुनकर माँ बेटी दोनों ही सोच में पड़ गयी. दोनों के पास जोड़कर रखे गए पैसों के बावजूद भी इतना पैसा नहीं था कि इलाज में लगाया जा सके क्यूंकि रेणु ने जो पैसा जोड़ा वो आने वाले दिनों में जीवन यापन के लिए जोड़ा और उसकी माँ ने भी यही सोचकर थोड़ा बहुत पैसा जोड़ा था. यूं भी उनके पास कोई निश्चित आमदनी तो थी नहीं, सिवाय दीनदयाल जी की थोड़ी सी पेंशन के और अब तो रेणु का काम भी जाता रहा ही हो गया है. पता नहीं कब आंटी भूमिजा को लेकर मुंबई लौटेंगी, लौटेंगी भी या नहीं.

इधर ‘आदि’ का भी कुछ पता नहीं आगे क्या होगा ? कैसे होगा ? यह किसी को कुछ पता नहीं. रही बात काशी की तो वह बेचारी भी क्या ही मदद कर सकती थी, सिवाय थोड़े दिन आश्रय देने के. अब करे तो क्या करे. रेणु का दिल और दिमाग पूरी तरह यही सोचने में डूबा था काम की तलाश उसे अब भी थी. रेणु की माँ ने कहा मैं भी यहीं कोई काम ढूंढ लेती हूँ, घर के काम तो कर ही सकती हूँ. दो आमदनी होंगी तो पैसा जमा करने में आसानी होगी. किन्तु रेणु ने यह कहकर माना कर दिया कि उसके रहते उसकी माँ को इस उम्र में किसी और के घर काम करने की कोई जरूरत नहीं है. यदि करना भी पड़ा तो वह खुद कर लेगी. अब आगे रेणु की ज़िंदगी भूमिजा और उसके प्यार आदित्य के बिना क्या मोड़ लेगी...? क्या रेणु को काम मिल जाएगा....? क्या रेणु और उसकी माँ लक्ष्मी दोनों मिलकर दीनदयाल जी का इलाज मुंबई जैसे शहर में रहते हुए करवा सकेंगे...?

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