बेरोजगारी ओ महगाई का प्रश्न तो खड़ा है l
जवाब देने जाओ तो मसला बहुत बड़ा है ll
देश में कोई नहीं जो आवाज़ उठाएंगे कि l
जहा देखो पूरा सिस्टम मुकम्मल सड़ा है ll
बिना रिश्वत के कोई रोज़गार नहीं मिलता l
उपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार जड़ा है ll
भूख के मारे लाचार नौजवान मज़दूर बने l
दुनिया का हर पढ़ा लिखा इन्सां रड़ा है ll
कानून की जानकारी नहीं है देश वासी को l
मुकम्मल कायदा बस नाम का ही दड़ा है ll
सभी अपने आप की समस्याओ में डूबे हुए l
भाईचारे की कमी ओ निजी मतलब नड़ा है ll
कोई किसी के लिए नहीं सोचता है यहाँ l
सच्चे और सीधे लोगों का अकाल पड़ा है ll
शूरवीरो की कहानियाँ किताबों तक सीमित l
कमजोर इन्सां अपनों से ही ज्यादा लड़ा है ll
१६-२-२०२४
इश्क चढ़ा परवान
चार दिन में सच्चा इश्क़ हुआ पशेमान l
बिखर गये हैं सारे दिल के अरमान ll
जिंन्दगी की धड़कनों में समा गये हैं l
सब कुछ जानकर हो गये अनजान ll
जूठे वादे पर फ़रेब खाता रहेगा ताउम्र l
मिलता इंतजार मुहब्बत में बात मान ll
वफ़ा के नाम पर धोखा देते प्यार में l
मासूमियत हुश्न की ले लेती है जान ll
बरबाद हुए उसीने बेगाना बना दिया l
ठोकर से आ जाती ठिकाने पर सान ll
१७-२-२०२४
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह
चार दिन में सच्चा इश्क़ चढ़ा परवान l
मुकम्मल हो गये सारे दिल के अरमान ll
जिंन्दगी की धड़कनों में समा गये हैं l
सब कुछ जानकर हो गये बागबान ll
यादों के साथ जीते रहे हैं ताउम्र सखी l
मिलता है सुकून मुहब्बत में बात मान ll
वफ़ा के नाम जान भी देगे प्यार में l
मासूमियत हुश्न की ले लेती है जान ll
जलती है तो जला करे दुनिया वाले l
न छोड़ेगे उम्र भर साथ लिया ठान ll
१७-२-२०२४
खामोशी से हर अनकहा सुन लेते हैं l
तुम तक पहुंचता रास्ता चुन लेते हैं ll
आज तुझ में ख़ुद को ढूंढ ने के लिए l
दिल को बहलाने वाली धुन लेते हैं ll
सखी इश्क़ की इन्तिहा तो देखो l
तेरी याद में ग़ज़ल गुन गुन लेते हैं ll
ज़िंदगी की शाम होने से पहले ही l
बातों में सुहाना घरौंदा बुन लेते हैं ll
वक्त जरा आहिस्ता आहिस्ता चलो l
ख्वाबों में मुलाकात से झूम लेते हैं ll
१८-२-२०२४
शिवाजी
शिवाजी की बहादुरी पर नाज़ हैं l
याद भारतवासी करते आज है ll
भगवा ऊंचे गगन पे लहराता जो l
उस वीर के दम ने रखी लाज है ll
क्षत्रियता की अदभूत निशानी है l
रण में विरासत का काम काज है ll
आत्मबलिदान में नाम गूँजता l
अजर अमर वीरता का राज है ll
रणभूमि में गुन गुनता बुलंद l
तलवार और भाला का साज है ll
१९-२-२०२४
किस्मत का न्याय देख लिया l
मुकम्मल जिन्दगी को जिया ll
भाग्य का लेखा समझकर ही l
चुपचाप लिया जिसने जो दिया ll
सखी ताउम्र मुस्कराते हुए l
ज़हर ज़ाम की तरह पिया ll
जहां बोलने की ज़रूरत थी l
वहाँ भी होंठों को सिया ll
जूठो की दुनिया में रहने को l
सच्चाई बताने को बिया ll
२०-२-२०२४
माँ शारदे हे माँ शारदे
इस जगत की जननी हे माँ शारदे
दुःख हरिणी है तू ही सुख करिणी है ll
मातृभाषा की सरिता पीढ़ी दर पीढ़ी बहती रहनी चाहिए l
उसकी गरिमा ओ गौरव की बातेँ सदा कहती रहनी चाहिए ll
अथाग प्रयत्न करे उसके मूल्यों को बचाये रखने के लिए l
साथ अस्तित्व हेसियत हर प्रांत की चहती रहनी चाहिए ll
धरोहर बचाने के लिए जड़ों को मजबूत करने को और l
वज़ूद बनाये रखने माँ की तरह साथ पहती रहनी चाहिए ll
अजीब सा माहौल है कि माँ की जुबां भूलने लगे हैं आज l
भाईचारे से मुकम्मल दिलों दिमाग में लहती रहनी चाहिए ll
दुनिया का सबसे मजबूत और गहरा प्रेम है मातृभाषा में l
सदा रगों में साथ लहू के माँ की बोली दहती रहनी चाहिए ll
२१-२-२०२४
गहरे चिंतन से मिलती सच्चई राह l
होनी चाहिये दिल में सच्चई चाह ll
कहीं और से नहीं मिलता जवाब l
खुद को मिलती है खुद की छाह ll
जिंदगी हुई खुशियों से आबाद l
अंतर मन पर छा जाती है दाह ll
ध्यान, स्मरण ओ गहराईयों से l
सोचने से विधि होती है ताह ll
निजी अनुभवों के विचारों में l
कई बार गूजर जाते हैं माह ll
२२-२-२०२४
दो रूहों का विवाह अटूट अनूठा बंधन है l
दो व्यक्तियों का जन्मों जन्म का संबंध है ll
स्वार्थ,स्वयं और मैं कि आहूति अग्नि में दे l
प्रेम, त्याग और समर्पण से सजा कंगन है ll
दो अलग आत्माओं को संगम होकर वो l
जीवन की नयी शुरुआत के लिए चंदन है ll
जातियों और प्रान्तों से आगे निकल कर l
दो विभिन्न संस्कृतियों का वो लंगर है ll
में को छोड़कर हमेंशा हम ने जगह ली l
दो दिलों को मिलाने को आई पंगत है ll
२३-२-२०२४
पूर्णिमा का चाँद मनमोहन होता है l
प्रेमियो के दिल का चैन खोता है ll
शीतलता से भरी भीगी चाँदनी में l
प्रियजन की यादों को बोता है ll
मंद मंद मुस्कराते हुए संग हुश्न के l
छत पर मीठी छांव में सोता है ll
पूरी क़ायनात को रोशनी क़रने वो l
दिल की गहराइयों से पिरोता है ll
चाँद उतर आया है मनाने खुशियां l
शरद पूनम में सबको संजोता है ll
२४-२-२०२४
शरद पूर्णिमा के दिन इश्क़ से पहली मुलाकात हुई थी l
पूनम की चाँदनी रात में मुहब्बत की शुरुआत हुई थी ll
एक चाँद आसमान में था और एक नीचे ज़मीं पे रूबरू l
सितारों के सामने हाल ए दिलों की रजूआत हुईं थीं ll
राग रागिनी से गूँजती नशीली और खिलखिलाती l
महफिल में आँखों ही आँखों प्रियतमा से बात हुईं थीं ll
२४-२-२०२४
जीने की वजह मिल गई है l
तब से जिन्दगी सिल गई है ll
पहले प्यार के पहले स्पर्श से l
तन मन की रग हिल गई है ll
साँसों से साँसों के मिलने से l
आज धड़कनों ने गिल गई है ll
२५-२-२०२४
दिल से दिल का रिश्ता क्या है जानना चाहते हैं l
ख़ामोश नज़रें जो कहती हैं वो मानना चाहते हैं ll
अनूठे बंधन में बाधा है तबसे बेचैनी बहुत बढ़ी
कि l
लुपाछुपीके खेलको छोड़ आमना सामना चाहते हैं ll
सुख और दुख के साथी मन के मीत प्रीतम प्यारे l
साथ जीने ओ मरने की करना कामना चाहते हैं ll
वादा किया है तो निभायेंगे जी जान से खाते हैं क़सम l
दोस्त ओ हमदम जन्मो जन्म में पामना चाहते हैं ll
प्रीत में बहकर सभी दिल के जज्बात कह जाते l
जिंदगी के बाग को महकाने आमना चाहते हैं ll
२६-२-२०२४
स्त्रियां जीना चाहती है खुला आसमान देदो l
मुकम्मल परवरिश के साथ बागबान देदो ll
हमेशा दुसरों के लिए जीती रहीं हैं मुस्का के l
अपनी मर्जीसे जीने को दिन चारपांच देदो ll
आज़ाद औ हिदायतों को नई राह दिखाने l
आसमाँ में ऊंची उड़ान भरने परवाज़ देदो ll
क्षमताओं के पंख खोलकर स्वयं को पहचानने l
फूलों से भरी राह और साथ लाजवाब देदो ll
नित नई आशा से पल्लवित होती जाती हैं वो l
खुद की क़ायनात बसाने को आफताब देदो ll
२७-२-२०२४
बुढ़ापा खूबसूरत हैं मानो कहना l
समय की नजाकत साथ बहना ll
कर्म के अनुसार जिन्दगी जाएगीं l
दर्द दिल का चुपचाप से सहना ll
क़ायनात से रुखसत होने से पहले l
साथ सबके मिलझुल कर रहना ll
आईना भी हसता हुआ देख रोने लगे l
सदा मुस्कुराहट का मुखोटा पहना ll
हाथ पैर भले इस्तीफ़ा देदे फ़िर भी l
मजबूती ओ आत्म सम्मान लहना ll
स्पष्ट भाषा और जीवन शैली के साथ l
अनुभव कहे सहनशीलता ही गहना ll
२८-२-२०२४
शिवरात्रि
चलो इस शिवरात्रि को विष पिए l
दिलों को प्यार के धागे से सिए ll
जातियों के भेदभाव से ऊपर उठ l
रंजिशें भूलाकर साथ साथ जिए ll
शिव विवाह की शहनाई की बजाए l
दीप ममता भावना के जलाएं दिए ll
रोली चंदन,माला पुष्प,बेलपत्र संग l
पूजनार्चन करे प्रभु शिव के लिए ll
अर्चना आराधना उपासना साधना l
शिवभक्तो ने भक्ति के कार्य किए ll
२९-२-२०२४
क्या है यादें
अमर जवान की माँ से पूछो
महेंदी वाले हाथों से पूछो
लकड़ी लेकर चलते हुए बुढ़े बाप से पूछो
कभी देखा नहीं अपने पिता को उस बच्चे से पूछो
राखी के दिन बहन को पूछो
घर के सुनें आँगन को पूछो
ये यादें ही है जो जीने का सहारा बन जाती है l
अकेलेपन में मुस्कराने की वजह बन जाती है l
डूबते इन्सां के लिए तिनका बन जाती है l
डूबती साँसों की धड़कन बन जाती है l
अंधे के लिए रोशनी बन जाती है l
लंगड़े के लिए बैसाखी बन जाती है l
भटकती नैया की साहिल बन जाती है l
मुसाफिर के लिए हमसफ़र बन जाती है l
पंखों को खुला आसमाँ बन जाती है l
फूलों के लिए माली बन जाती है l
२९-२-२०२४