mere baare me kuchh in Hindi Short Stories by Zalri books and stories PDF | मेरे बारे मे कुछ।

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मेरे बारे मे कुछ।

नमस्ते दोस्तो,

मेरे बारेमे तो आप जानते ही होंगे, ओह सोरी सोरी, आप कैसे जानोगे? मैंने बताया जो नही। 😅 खैर, मेरा नाम झलक है। और मुझे बचपनसे ही फिल्मों का बहोत शौक रहा है। बचपनमें फिल्मे देखकर मुझे भी स्टार, फिल्मस्टार बनने का भूत चढ़ता था। फिर जैसे जैसे में बड़ी होती गई, वैसे वैसे समझ आता गया कि यह सब मोह माया है।

फिल्मोमे जिंदगी जितनी रंगीन दिखाई देती है, फिल्मस्टार्स की जिंदगी उतनी ही बेरंग और फीकी होती है। ऊपर से स्ट्रगल इतना कि शायद जिंदगी ही निकल जाए कुछ बनते बनते।

वैसे भी में गुजरात के एक मिडलक्लास फेमेली से हु। तो टीवी पर आना तो एक सपना ही रह जाना था। हमारे यहां कपड़ो से ज्यादा सोच छोटी होती है।

और फिर जैसे जैसे बड़ी होती गई, वैसे एक और बात समझमे आई कि में तो बोल ही नही पा रही हु। अरे नही नही, गूंगी नही हु में। बस स्टेज फियर कुछ ज्यादा ही है ऐसा समझ शकते हो। स्कूलमे थी, तब पेपरमे मेरे काफी अच्छे नंबर आते थे। वही जब मौखिक परीक्षा देनी होती थी तो लगता था जैसे मुझे कुछ आता क्यो नही?

मतलब चार लोग भी मेरे सामने देख ले, तो में पढ़ा हुआ सब कुछ भूल जाती थी। ऐसा नही था कि मुझे कुछ आता नही था, लेकिन वो लोग मेरे सामने देख ही क्यों रहे होते है? और अपने दोस्तों के सामने तो बड़ा मुह चलता है मेरा, लेकिन जब जरूरत होती है, तो दिमाग जैसे बिल्कुल साफ हो जाता था।

कभी कभी मेरे मन मे खयाल आता है, की कही में भी दानवीर कर्णके वंशज में से तो नही हु? क्योंकि कर्ण को भगवान परशुराम के द्वारा श्राप दिया गया था, की 'उसने जो भी शिखा है, उसे वो तब भूल जाएगा, जब उसे उसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी। और कर्ण उसकी शिखी हुई चीज़ों को तब इस्तेमाल नही कर पायेगा।' यह जानने के बाद तो मुझे पक्का यकीन हो गया था, की महान दानवीर कर्ण से मेरा कोई ना कोई नाता जरूर है।

मेरे ना बोल पानेकी एक वजह और भी है। तब में 20 साल की थी। एकबार मेरे फोनपर किसीका कोल आया। जैसे ही मैने हेलो कहा, तो वो बोलता है "आंटी राज को फोन देना।"

मैने सोचा शायद उसने मेरी आवाज ठीकसे सुनी नही होगी, इसीलिए आंटी बोल दिया होगा। इसीलिए मैने ठीक से, फिरसे बोला, "यह रॉंग नंबर है। यहां कोई राज नही है।"

तो उसने बोला, "ठीक है आंटी। सोरी।" और उसने कोल काट दी।

अब तो यह सुनकर मेरा पारा चढ़ गया। अरे भाई! 20 साल की हु में। हम उस संसारमे रहते है, जहा आंटी को भी आंटी बोलना पाप माना जाता है। अगर किसी आंटी को गलती से भी आंटी बोल दो, तो वो हमें ऐसे घूरती है, जैसे हम मंगल से आये कोई एलियन हो। और उस लड़के ने मुझे... मुझे आंटी बोला था। दिल तो कर रहा था, अगर वो लड़का मेरे सामने होता तो उसका कॉलर पकड़के उसे पूछती, "आंटी... हा? आंटी नजर आ रही हु में तुम्हे?" लेकिन अफसोस कि वो फोन के उस साइड पर था, जहा में चाहकर भी कुछ नही कर शकती थी।

लेकिन उस दिन एक और खयाल आया। कि मेरी आवाज क्या सचमे आंटी जैसी है? अगर 20 साल की उम्र में मेरी आवाज आंटी जैसी है तो 35 तक पहुचते पहुचते तो मेरी आवाज दादी अम्मा जैसी लगने लगे। तब मैंने फैसला किया, की अब किसी अनजान के सामने मुह खोलना ही नही।

जब तक बहोत जरूरी ना हो, बात किसीके जीने मरने तक ना आ जाये, तब तक अपना मुह बंध ही रखना। और इसीलिए मैंने लिखना शुरू किया, अब जो दिलमे है, उसे कही तो निकालना है ना?

मेरी बस आपसे एक बिनती है, आपसे जितना हो शके, प्लेज़ मेरी मदद करे। में छोटी सी उम्र में आंटी नही बनना चाहती। में बस एक लेखिका बनना चाहती हु। अगर मेरी पहचान कुछ हो जाती है, अगर में कुछ बन जाती हूँ, तो मुझे लगता है, मेरी आवाज पर कोई ज्यादा ध्यान नही देगा।

इस बारे में आपकी क्या राय है?