Dream to real journey - Last Part in Hindi Science-Fiction by jagGu Parjapati ️ books and stories PDF | कल्पना से वास्तविकता तक। - (अंतिम भाग)

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कल्पना से वास्तविकता तक। - (अंतिम भाग)

अगर आप इस धारावाहिक को पूरा पढ़ना चाह्ते हैं, तो आपको हमारी प्रोफाइल पर इसकी पूरी सीरीज शुरुआत से मिल जाएगी।


जो चीज़ जिस जगह के लिए बनी होती है अगर वो वही रहे तो वही उसके लिए सही होता है क्योंकि उसकी अहमियत सिर्फ़ उसको खोने वाले ही समझ सकते हैं... क्योंकि दीपक की कीमत सिर्फ़ अंधेरा जानता है.. रोशनी को उसके वजूद से कभी कोई फ़र्क़ नही पड़ता है ।


बामी धीरे धीरे अपनी चेतना खो चुका था और जैसा की उसने कहा था वो सब उसके द्वारा बताई गयी चाभी की सहायता से मिशेल के घर के उस कोने तक भी पहुँच गए थे जहाँ की तरफ़ उसने उन्हें इशारा किया था... वो मिशेल के पेड़ के पास पहुंचे ही थे जब कहीं से उन्हे रेयॉन अंकल अपनी तरफ़ आते दिख रहे थे... उनको देखकर अब कोई भी नही कह सकता था कि कुछ समय पहले वो लगभग मरने की हालत में थे...! सब एक बार तो उन्हे देखकर चौँक ही गए थे.. उन्हे कुछ पल को तो लगा कि शायद ये उनकी आँखों का भ्रम मात्र है... लेकिन नही वो सच में वहाँ थे.... और वो भी बिल्कुल सही सलामत ।

" रेयॉन् अंकल आप.... आप जिंदा हैं.. मेरा मतलब आप मरे नही... आह.. मेरा मतलब आप बिल्कुल ठीक हैं... आप तो... "

"अरे! शांत नेत्रा... शांत.. " रेयॉन् अंकल ने नेत्रा को चुप कराते हुए कहा... जो उन्हे सही सलामत देखकर इतना खुश थी कि उसको खुद भी समझ नही आ रहा था कि वो क्या बोले जा रही थी।

" हाँ... मैं किसी चमत्कार.. या यूँ कहे कि कुदरत के कुछ नियमों की वजह से मैं एकदम ठीक हूँ.. . ! " उन्होंने कहा ।

" क्या मतबल?? " कल्कि ने उनसे पूछा ।

" मतलब कि जैसे मिशेल जब तक पूर्ण नही था.. तब तक उसको मारना मुश्किल था... ठीक वैसे ही जब मेरा आधा हिस्सा मेरे पास था ही नही तो मैं कैसे मर सकता था ..मेरा मतलब आपने मुझे बताया था ना कि एक रेयॉन् विथरपी पर भी है..जो कि मेरा ही हिस्सा है...वही पेयर प्रोडक्शन फेनोमेनोन की वजह से ना.... और नतीजा... मैं आप सब के सामने सही सलामत खडा हुआ हूँ " उन्होंने अपनी बात पूरी करते हुए कहा.... उन्होंने अपनी पहली बात अधूरी ही इसलिए बताई थी ताकि वो सब उस से वो सवाल पूछ सके... और वो अपना पुरा ज्ञान उन सब पर झाड़ सके। सबको कुछ ज्यादा समझ तो नही आया था एक नेत्रा को छोड़कर... लेकिन बस उन्हे इस बात की खुशी थी की वो सही सलामत थे और एक बार फ़िर उनके साथ थे ।

उन सबने मिशेल के पेड़ की आखिरी शाखा को जब देखा तो वो और सबसे अलग थी.... उसको अंदर से भी अज़ीब किस्म की पेड़ बालाओं शाखाओं ने जकड़ रखा था.... जिसपर वो जैसे ही वो एक गोल आकार की चाभी रखते हैं तो वो धीरे धीरे वहाँ से अपनी पकड़ कमजोर करते हुए वहाँ से दूर हटने लगती हैं... और सामने दिखता है एक और बड़ा सा कमरा... जिसके ठीक बिचोबिच नेत्रा या नेत्रा जैसा ही कोई और खडा हुआ था । सब एक टक उसे ही घूर रहे थे ।

" ये तो... "

" ये तो बिल्कुल तुम्हारे जैसी है.. है ना... यही कहना चाहती हो ना तुम... " रेयॉन् अंकल ने नेत्रा की बात पूरी करते हुए कहा... नेत्रा ने उनको ऐसी नजरों से देखा मानो उनकी बात पर अपनी सहमति दिखा रही हो ।

" ये तुम्हारे जैसी नही.. बल्कि तुम ही हो नेत्रा... वो तुम्हारा ही एक हिस्सा है बिल्कुल मेरे उस हिस्से की तरह.... क्योंकि याद रखो जब मैं इस दुनियाँ में आया था तब तुम भी तो उस दुनिया में गयी थी ... मतलब गति तो तुम्हारी भी प्रकाश से ज्यादा ही थी.. तो यकीनन तुम्हारी ऊर्जा का भी दो हिस्सों में बंट जाना स्वीकार्य है.... और तभी तुम्हारे इस कंगन की ऊर्जा विथरपी वासियों को अधूरी लगती होंगी... क्योंकि तुम खुद अधूरी थी... " रेयॉन् ने बड़ी समझदारी से कहा... और नेत्रा को भी उनकी बात के होने की भारी सम्भावना लग रही थी... वो एक बार के लिए अपनी ही हुमशकल् को घुरती है... जो अज़ीब तरीके से पुतले जैसी लग रही थी... मानो उसमे जीवन होकर भी जीवन का अंश नही दिख रहा था ।

" लेकिन फ़िर ये यहाँ मिशेल की कैद में क्या कर रही है अंकल???... मेरा मतलब उसने इसे क्यों बन्दी बनाया होगा?" कल्कि ने अपनी शंका जताते हुए कहा।

" जहाँ तक मुझे लगता है उसने इसको भी इसलिए बन्दी बनाया होगा ताकि इसकी हेल्प से वो विथरपी पर अपना कब्जा कर पाए... लेकिन मेरी तरह ये भी अधूरी थी तुम्हारे बिना.. तो चाहकर भी वो इसे मार नही पाया होगा... " रेयॉन् ने कहा और एक बार फ़िर सभी को उसकी बात में काफी हद तक वैसा ही होने की संभावना नज़र आई ।

" अच्छा अब ज्यादा वक़्त जाया किये.. उसके करीब जाओ.. और उसे छुओ..... आगे तुम सब अपने आप समझ जाओगी... " रेयॉन् ने नेत्रा को लगभग आदेश देने के लहज़े से कहा ।

नेत्रा धीरे धीरे उनके कहे अनुसार उसके करीब जा रही थी.. और जैसे जैसे वो करीब जा रही थी वैसे वैसे ही उसे उसके साथ एक अज़ीब सा जुड़ाव महसूस हो रहा था... वो धीरे से उसके हाथ की एक उंगली जब अपनी उंगली से छूती है तो.. वो धीरे धीरे जीवंत सी होने लगती है और फ़िर आहिस्ता आहिस्ता एक चमक के साथ उसका अक्स फीका पड़ने लगता हैं... देखने से ऐसा लग रहा था जैसे वो एक दूसरे में समा रही हो... सब उस नज़ारे को एकटकी लगाए देख रहे थे... और आखिर में वहाँ सिर्फ़ एक नेत्रा थी.... जिसका कंगन आज फ़िर बहुत दिनों बाद चमका था.... जिसको देखकर ही नेत्रा को एहसास हो गया था कि उनका गोलक्ष पर आने का लक्ष्य पुरा हो चुका है...!

*

वो सब अब वापिस गोलक्ष से विथरपी पर लौट चुके थे... सभी गोलक्ष वासियों ने उन्हें पूरी इज़्ज़त और सम्मान के साथ विदा किया था... सब पहले जैसा था.. सिवाए की अब नित्य उनके बीच.. उनके साथ नही था.. सबको रह रह कर उसकी याद आ रही थी लेकिन वो कुछ नही कर सकते थे.....

रेयॉन् अंकल भी अब अधूरे से पूर्ण हो चुके थे.... और अब एक उनका दिमाग पहले से भी दोगुना तेज चल रहा था क्योंकि वो नेत्रा की तरह कैद में नही रहे थे बल्कि गोलक्ष से भी वो बहुत कुछ सीखकर आये थे ।

आखिर समय से पहले विथरपी के पास अपनी पूरी शक्तियां आ चुकी थी और अब वो दिन भी आया जब उन्हें पृथ्वी के बिल्कुल पास से गुजरना था... जहाँ पर वो पृथ्वी से टकरा भी सकते थे... लेकिन समय रहते अब उन्होंने अपनी सारी शक्तियों का प्रयोग करके उसकी दिशा बदल दी थी....

और बस यही समय था जब नेत्रा, कल्कि, युवी के साथ रेयॉन् अंकल को भी फ़िर से अपनी पृथ्वी पर लौटना था... सब के कहने के बावजूद नेत्रा ने फ़िर से पृथ्वी पर जाने का फैसला लिया था क्योंकि उसको कल्कि और युवी में ही अपना संसार दिखता था फ़िर भले वो कहीं भी रहे ।

वो चारों एक बार फ़िर उसी जगह थे जहाँ सबसे पहली बार विथरपी पर पाऊँ रखा था....ग्रमिल् के साथ और भी कुछ खास लोग उन्हे विदा करने आये थे.... उनमें से ज्यादा वो थे जो रेयॉन् अंकल के खास थे.... रेयॉन् की आँखें नम थी क्योंकि वो इतने सालों से यहाँ था कि उसकी अब उन सबसे भी बहुत लगाव हो गया था ।

उन्होंने एक आखिरी बार फ़िर से सबको अलविदा कहा.. और फ़िर नेत्रा ने अपना कंगन उस जगह से छुआ दिया... धीरे धीरे एक बार फिर से वहाँ वही रास्ता बन गया था ..जैसे रास्ते से वो सब यहाँ आये थे... और उन सबने बारी बारी से उसमें छलांग लगा दी थी.... कुछ ही क्षणों पश्चात वो धरती के आखिरी छोर पर थे.. और उनके ठीक सामने वो रास्ता खुला हुआ था.. जो किसी भी वक़्त बन्द हो सकता था... इस से पहले की वो बन्द होता नेत्रा अपना कंगन निकाल कर उसी में फैंक देती है..

"ये तुमने क्या किया?? "

" और क्यों किया?? " कल्कि और युवी एक साथ हैरानी से नेत्रा को देखते हुए पूछती है।

" वही जो मुझे सही लगा.. क्योंकि जो जहाँ की जरूरत है उसको उसी जगह होना चाहिए.. और इस संसार के शांति से चलने के लिए ये जरूरी नहीं कि कोई भी इधर से उधर ना ही जाए तो अच्छा है... क्यों रेयॉन् अंकल मैंने सही किया ना? " नेत्रा रेयॉन् की तरफ़ देखते हुए कहती है... वो भी उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा देते हैं मानो कह रहे हो कि हाँ यही सबसे सही निर्णय है । वही दूसरी ओर वो कंगन ग्रमिल् को मिल चुका था जिसको देखकर वो मुस्कुरा रहा था ।

**

इस बात को कई महीने बीत चुके थे... नेत्रा, युवी, कल्कि, और रेयॉन् अंकल तब तक अपने घर से बाहर नही निकले थे जब तक कि उनके शरीर का रंग पृथ्वी के लोगों जैसा नही हो गया था... लेकिन नेत्रा के रंग से कुछ फ़र्क़ नही पड़ता था क्योंकि वो मूल रूप से विथरपी वासी थी। कुछ महीनों बाद उनकी जिंदगी में सब समान्य हो चुका था सिवाए युवी के जो अब भी अकेले में बैठकर नित्य को याद करती थी। रेयॉन् के इतने सालों बाद अचानक से वापिस लौट आने को एक चमत्कार बताया जा रहा था.... हर टीवी मीडिया पर साइंटिस्ट रेयॉन् की ही न्यूज़ चलती रहती थी लेकिन उन्होंने हर जगह ये कहकर बात टाल दी थी कि उन्हे पुरानी कोई भी यादाश्त नहीं है... उन्हे नही पता वो इतने साल कहाँ थे और कैसे थे... उन्हे तो लगता हैं जैसे वो कल की ही बात थी जब वो अपनी रिसर्च कर रहा था । अब किसी की पास भी कोई सवाल बाकी ही नही रहे थे ... जो वो रेयॉन् से पूछ सकते थे.. तो धीरे धीरे ये मामला ठण्डा पड़ चुका था और रेयॉन् एक बार फ़िर अपनी रिसर्च में मशगुल हो गया था... हाँ बस अब फ़र्क़ था तो सिर्फ़ इतना कि अब उसके पास नेत्रा, युवी और कल्कि जैसे दोस्त भी थे... जो उन्हे अपने पिता से भी बढ़कर मानते थे ।

नेत्रा,कल्कि और युवी की जिंदगी भी पहले की तरह ही समान्य हो गयी थी... वो अब सब वैसे ही करती थी जैसे वो पहले किया करती थी... वो शनिवार की रात थी जब वो तीनों किसी के फंक्शन में गयी हुई थी... युवी अब इन भीड़भाड़ से जल्दी ही उकता जाती थी.. तो वो एक शांत सा कोना देखकर अकेली बैठी हुई थी... नेत्रा और कल्कि भी उस को कुछ नही कहते थे.. बल्कि उसको पहले सा होने के लिए पुरा समय दे रहे थे... युवी ने अपने हाथ में एक जुस का गिलास पकडा हुआ था.. जिसके किनारों पर वो किसी सोच के हवाले उंगली घुमा रही थी कि तभी उसको आवाज आती हैं...

" एक्यूजस् मी... अगर यहाँ कोई ना बैठा हो तो क्या मैं बैठ सकता हूँ? "

" हाँ हाँ क्यों नहीं..... " ये कहते हुए जैसे ही युवी उपर देखती हैं तो उसके मुँह से एक दम से निकलता है " नित्य..!! "और वो एक टक सी उसको देखती रह जाती है।

" अह.... थेंक्यू... बट मेरा नाम नित्य नही नित्यक है... वो उसके पास बैठते हुए कहता है।

युवी अब भी उसको देख रही थी और जब वो होश में आती हैं तो वो खुशी से इतना जोर से चिल्लाती है कि सब उस तरफ़ ही देखने लग जाते हैं.... एक बार तो उसको देखकर कल्कि और नेत्रा को भी विश्वास नही हो रहा था.. वो हुबहु नित्य जैसा ही था सिवाए कि उसके शरीर का रंग बैंगनी नही था । तब के दिन के बाद युवी और नित्यक धीरे धीरे बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे... और अब युवी पहले जितना ही खुश रहती थी ।

नेत्रा एक बार अपनी रसोई में कुछ काम कर रही थी जब उसे पहली बार महसूस हुआ कि ग्रमिल् उसे पुकार रहा है... उसने अपनी आँखे बन्द कर के कुछ देर ध्यान लगाया तो उसे एहसास हुआ कि वो सच में इतनी दूर से भी ग्रमिल् से बात कर सकती हैं.. अब उनका जब भी मन होता था तो वो सबसे बात कर लेती थी.... और कल्कि और युवी की बातें भी उन तक पहुंचा देती थी.... अब नेत्रा के पास एक नही बल्कि दो दो ग्रह थे.. जिन्हें वो अपना कह सकती थी । सच में उन सबने कल्पना से वास्तविकता तक का सफर बखूबी तय किया था और औरों के लिए जो अब तक कल्पना थी वो उनके लिए वास्तविक से भी ज्यादा वास्तविक थी।

समाप्त..!

©JagGu Shayra ✍️


आपको ये पूरी कहानी कैसी लगी हमें समीक्षा करके जरूर बताइयेगा ।

पढ़ने के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया 😇🙏😇