मनपाल ने ये तुरंत आकाश की ओर देखा | वह एक निर्भीक योद्धा थे भय या चिंता तो उनके मुख पर कभी झलकती ही नहीं थी। आक्रमण की खबर सुनते ही उनकी आंखों में एक उज्जवल चमक आ गई, फौरन तैयारी करने लगे। सबको एकत्र कर लिया सारी
सेना एक झटके में प्रचंड मोर्चे में बदल गई और सीमा की और कूच किया। मनपाल अब वृद्धावस्था की ओर जाने लगे थे, परंतु उनके उद्घोष किसी भी जवान योद्धा की ललकार को मात दे सकते थे। उनकी एक आवाज पर सैनिक मार-काटने और मर- कटने को आतुर हो जाते थे।
शत्रु की स्थिति और सिपाहियों की संख्या का अनुमान न था तो घुड़सवारों के एक बड़े दल को मनपाल ने आगे भेज दिया और बाकी सारी सेवा का नेतृत्व करते हुए पीछे हो लिए। पीछे की ओर ध्यान किया, तो देखा अंगद अपने कृष्ण अश्व(घोड़ा) पर आंधी की तरह आंखों में ज्वाला जैसी गर्मी के साथ ऐसे आ रहा था, मानो यमदूत स्वयं उसके साथ उसकी कटार की नोक पर दुश्मन के प्राण हरने को बैठे हो।
मनपाल सेनापति के पुत्र को आगे भेजकर उसके प्राणों को संकट में डालना नहीं चाहते थे, तो उसे अपने साथ रुकने को कहा। अंगद ने गर्जन भरे स्वर में कहा ,"सेनापति आज आप देखेंगे कि मैं भान सिंह का पुत्र कहलन योग्य हूं,या नहीं...।"और हवा पर सवार होकर वहां से निकल गया।
अब शत्रु अधिक दूर नहीं था संपूर्ण सेना दल अब युद्ध स्थल पर पहुंचने को था। घुड़सवारों के दल ने शत्रु सेना की स्थिति स्थिति भांप ली और सेनानायक मनपाल के आदेश के लिए वहीं रुक गए। अंगद उस टोली में सबसे आगे था, उसका धीरज अब जवाब दे रहा था, दुश्मन पर टूट पड़ने को वह आतुर था। उसकी आंखों में लहू की भूख थी, उसकी कटार गर्दनों को धड़ों से अलग करने के लिए आतुर थी। उसके पैरों में बिजली से फुर्ती और बाज़ुओ में चट्टान सी ताकत आ गई थी।
मनपाल सेना के साथ आए, सारी जानकारी ली, गणना करी और शत्रु को समय से पहले ही प्रकट होकर अचंभित कर दिया मैनपाल की कमाल की रणनीति देख वज्रपाल थोड़ा संकुचित हो गया, परंतु उसे यह विश्वास था कि वह इतनी बड़ी सी लेकर आया है की शेरगढ़ पर आज जरूर फतेह कर लेगा।
अब दोनों सेना आमने- सामने थीं। आगे की पंक्ति को मनपाल सिंह ने सुरक्षा दीवार बनाने का आदेश दिया और "आगे बढ़ो" का उद्घोष किया, परंतु एक जवान इस सुरक्षा दीवार से आगे था। वह जवान था अंगद। मनपाल सिंह क्रोधित होकर कहा- "ये अंगद सारी सेना से आगे क्या कर रहा है? किसने जाने दिया इस वहाँ ? इसे मृत्यु का भय है या नहीं...? मूर्ख बालक, चला है वीरता दिखाने।
और इसका अश्व कहां है, न रथ, न अश्व, क्या बनेगा इसका इस युद्ध में ? वह यह सब बोल ही रहे थे कि उनका ध्यान अंगद की भुजाओं पर गया, दोनों हाथों में तलवार। वह फिर चिल्लाए, "इसकी ढाल कहां है? युद्ध आरंभ हुआ और ये धराशायी। मूर्ख हमारे राज्य की भी नाक कटवाएगा और अपने पिता के नाम की भी इसे चिंता नहीं।"
दोनों ओर से 'आक्रमण' के बिगुल बजे और सेनाएँ एक दूसरे पर टूट पडी।