आर्य कौन है?
आर्य कौन है?
जो सुबह को दस चिड़ियों का पेट भरे और
शाम को भोजन में मात्र एक मुर्गा चरे। या फिर,
वह जो धर्म के नाम पर धन एकत्र करे और
धर्म पर एक रुपया भी व्यय न करे। या
वह जो शीश पर लम्बी–सी शिखा धारण करे और
जीवन–भर अज्ञान में ही जिए व अज्ञान में ही मरे। या
वह, ‘आर्य’ जिसके नाम के पीछे जुड़े या
वह जिसको नाम तक का बोध नहीं पर आत्मीयता जिसके व्यवहार में बसे। या
वह जो सत्पुरुष होने का नाटकीय वेश धारण करे या
वह जो किसी भी वेश में तेज, ओज व ज्ञान को धारण करे।
आर्य कौन है? यह प्रश्न मेरे हृदय में बसा अन्धकार है
किस दीपक से मैं लौ लगाऊं, यहां तो भ्रम की ही भरमार है
धन की लौलुप्ता व अन्यत्र वासनाओं से घिरा,
परन्तु फिर भी चमक रहा यह संसार है।
किस दीपक से मैं लौ लगाऊं, यहां तो भ्रम की ही भरमार है।
Rosha
साधु
जिन साधुओं के सामने नतमस्तक हुए महापुरुष हरेक
जिन साधुओं की प्रशंसा में कबीर ने कहे दोहे अनेक
उन साधुओं की पवित्रता को क्यों तुम नष्ट करते हो
भावनाएं आहत हो किसी की,
इस घोर पाप से क्यों तुम नहीं डरते हो
चलो मानता हूॅं भीख माॅंगना तुम्हारी लाचारी होगी
कारण शिक्षा का अभाव और समाज की दुत्कारी होगी
पर क्या इस चखना और शराबने तुम्हारी भूखको मारी होगी
सोचो तो, सारे विषय और इंद्रियाॅं है स्वयं जिसके वशमें
जो डूबा हुआ है रामरसमें, मदिरारस में उसकी भला क्या रुचि होगी
नहीं रहीं इतनी भी समझ तुममें,क्यों बुद्धि तुम्हारी सत से न्यारी होगी
चाहे तुम किसी भी धर्म,पंथ या मज़हब के हो अनुयायी
साधुवेश की आड़ में,पापयुक्त कार्य कर,मत बनो अन्यायी
साधुता पवित्र है,उसे पवित्र रहने दो
जहाॅं से बह रही है परम ऐश्वर्य और परमानन्द की धार उसे वहीं से बहने दो।
Rosha
कुएं का मेंढक
देखने दुनिया बाहर की, गांव से निकला था मैं भी
भयभीत हुआ जिनसे मैं,जो न कभी सोचा था ऐसा दिखा हर दृश्य में
वैमनस्य,अविश्वास और असुरक्षा से दुनिया मैने घिरी देखी
स्वार्थ, ईर्ष्या और षड्यंत्र में लिपटी फिर अमीरी देखी
प्रकृति से बना है कण–कण,उसी प्रकृति को नष्ट करने में विचित्र सा हो रहा है यहाॅं रण
देखने की इस प्रक्रिया में आधुनिक मानव की मानवता मैंने मरी देखी
स्वास्थ्य की बात करते है जो,उन्हीं के यहां स्वास्थ्य को नष्ट करने वाली नशाखोरी देखी
इस नशाखोरी के चक्कर में न जाने कितनो की आत्मा मैंने मरी देखी
जन्म देकर स्वयं दुख सहकर जिनको दिए सुख सभी
उन्हीं कृतघ्न संतानों के कारण किसी वृद्धाश्रम में
या घर में कही अकेली,
वह मां मैंने रोती देखी
रिश्ते हो या भाव तिरस्कृत हुए पड़े हैं किसी कोने में
धन मिल जाए बस कहीं से बदले इसके यह दुर्बुद्धि मानव अब डरता नहीं अपने प्रिय को भी खोने में
मिला जिससे भी मैं ज्ञानी है वह सबमें,
अज्ञान स्वरूप इस अहं से हर किसीकी बुद्धि मैंने भरी देखी
देखने की इस प्रक्रिया में आधुनिक मानव की मानवता मैंने मरी देखी
बस, लौट रहा हुॅं मैं अपने गाॅंव, नहीं रहना ऐसी दुनिया में
इससे तो कुएं का मेंढक ही सही मैं,जैसी मैंने यह दुनिया देखी
देखने की इस प्रक्रिया में आधुनिक मानव की मानवता मैंने मरी देखी
Rosha