Tishyarakshita in Hindi Fiction Stories by Aucky Mishra books and stories PDF | तिष्यरक्षिता

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तिष्यरक्षिता

पूर्णिमा की रात थी ,जंगल के बीचों बीच एक झरने के सामने एक लड़का खड़ा था , वो लगभग छः फुट तीन इंच का रहा होगा ;उसके बाल उसके चेहरे पे आ रहे थे ,वो ज़ोर ज़ोर से सांस ले रहा था ;उसके चौड़े कंधे उसकी सुंदरता बढ़ा रहे थे उसने काले रंग के वस्त्र पहन रखे थे; उसने हाथ में कोई रत्न पकड़ रखा था ,उसको देख के लग रहा था की वो किसी कार्य को करने की बहुत कोशिश कर रहा हो परंतु वो कार्य पूरा न कर पा रहा हो , तभी अचानक से वो दौड़ते हुए झरने के बीचों बीच पहुंच कर उसी रत्न से चोट करता है और उस झरने के बीच में से रास्ता बन जाता है। उस रास्ते को देख कर वो जोर से अट्टाहस करता है उसकी आवाज पूरे जंगल में गूंज जाति है ; तभी जंगल से कुछ लोग निकल कर आते हैं जो पूरे काले रंग के कपडे पहने होते है वो सब आते है और पंक्तिबद्ध होकर खड़े होते है , पूरे जंगल में सन्नाटा होता है तभी किसी के कदमों की आवाज सुनाई देती है ; धीरे धीरे सैनिक दो भागो में बंट जाते है उन के बीच से एक स्त्री आती है जिसने पूरे सफेद रंग के वस्त्र पहने हुए होते है,उसका पूरा चेहरा उस पूर्णिमा के चांद से भी अधिक खूबसूरत था उसके सर पर एक हीरे जड़ित हल्के नीले रंग का मुकुट था जो चंद्रमा की रोशनी पड़ने से और भी अधिक चमक रहा था।

"मां आपने जो कार्य दिया था वो मैने पूरा किया "_वो लड़का उस स्वेत वस्त्र वाली औरत के सामने अपने घुटनों पर बैठते हुए बोला।
राजकुमार अभिज्ञान! आपका कार्य अभी पूर्ण नही अभी शुरू हुआ है;ये तो कुछ भी नही है अभी तो आपने बस मार्ग ढूंढा है उस दूसरी दुनिया में आने और जाने का अभी तो आपको उस दुनिया में जाकर वो वस्तु लानी है जो उस दुष्ट द्रोही ने अपनी शक्तियो का का गलत उपयोग कर के उस दूसरी दुनिया में छिपा दिया है, उस सूर्यतेज को ये लगा था की बस वो इकलौता है जो दो दुनिया में भ्रमण कर सकता है पर वो भूल गया था की ये सकती हर पीढ़ी के ज्येष्ठ पुत्र को जन्मजात मिलती है ,पुत्र अभिज्ञान इस समय की प्रतीक्षा पूरा स्वर्ण राज्य कर रहा था ,तुम जाओ और उस सूर्यतेज को ढूंढो और वो रत्न जो हमारा है उसे लेकर के आओ ,जाओ अभिज्ञान।
उस लड़के के आंखो में चमक आ गई थी उसने अपने हाथो को अपने सीने पे रखा और महारानी तारा के सामने सर झुकाया और कहा–हां रानी मां मैं वो रत्न भी लाऊंगा जो हमें कुलदेवी ने हमारे पूर्वजों को दिया था और साथ में उस देशद्रोही को भी जिसने अपनो के साथ धोखा किया और हमारी कुलदेवी चंद्रा के दिए शक्तियों का गलत प्रयोग किया । अभिज्ञान मुड़ता है और उस झरने के बीच बने रास्ते की तरफ जाता है
अभिज्ञान एक बात सदैव स्मरण रखना वहा किसी के प्रेम "में कभी मत पड़ना क्युकी उसने भी उसी दुनिया में प्रेम किया था और उसी वजह से वो यह से वो रत्न लेके भागा था और इस रास्ते को भी बंद कर दिया था।"
वहा किसी से प्रेम न करना अभिज्ञान ये मेरी आखिरी चेतवानी समझो अथवा सुझाव
अवश्य मां मैं ये बात सदा स्मरण रखूंगा


क्या हो अगर अभिज्ञान भी किसी से प्रेम करने लगे?